झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान | Jhansi ki Rani Poem in Hindi

झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान | JHANSI KI RANI POEM IN HINDI
झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान | JHANSI KI RANI POEM IN HINDI

झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान – Jhansi Ki Rani Poem In Hindi

झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान, झाँसी की रानी की समाधि पर कविता भावार्थ व सारांश, बुंदेले हरबोलों के मुंह कविता, खूब लड़ी मर्दानी झांसी वाली रानी थी कविता, झाँसी की रानी कविता की व्याख्या,

सुभद्रा कुमारी चौहान ने झांसी की रानी कविता में रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का वर्णन बहुत ही सुंदर ढंग से लिया है। बुंदेले हरबोलों के मुंह कविता आजादी की लड़ाई के दौरान हर भारतबासी के जुवान पर रहता था।

इस कविता का भावार्थ स्वतंरता संग्राम के दौरान आजादी के मतवाले में जान फुकने का काम किया। इस दौरान यह काव्य स्वतंत्रता सेनानी का हौसला बढ़ाने का काम किया। इस प्रकार झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर काव्य रचना बन गई।

भारत के महान वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने जिस बहादुरी से अंग्रेजों का सामना किया और कभी उनके सामने घुटने नहीं टेके। इसका सुभद्रा जी ने अपने काव्य खूब लड़ी मर्दानी झांसी वाली रानी थी कविता में बखूबी व्याख्या की है।

- Advertisement -
सुभद्रा कुमारी चौहान झांसी की रानी कविता

झांसी की रानी कविता का सारांश की बात करें तो रानी लक्ष्मीबाई के अंदर अदम्य की साहस और वीरता थी। एक नारी होकर भी उन्होंने अंग्रेजों को युद्ध में परास्त किया।

अंत समय में जब वे ग्वालियर के पास अंग्रेजों से घिर गई फिर भी उन्होंने आत्म-समर्पण नहीं किया। उन्होंने दुर्गा बनकर अपने तलवार की धार से दुश्मनों को तक काटती रही और अंत में दुश्मन की गोली लगने से वीरगति को प्राप्त हुई।

ग्वालियर के पास झाँसी की रानी की समाधि आज भी उनकी वीरता की कहानी कह रही है। आईए सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित सम्पूर्ण काव्य Jhansi ki Rani Poem in Hindi पढ़ते हैं।

jhansi ki rani kavita subhadra kumari chauhaan – झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से, नयी जवानी थी। गुमी हुई आज़ादी की कीमत, सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की, सब ने मन में ठानी थी। चमक उठी सन-सत्तावन में, यह तलवार पुरानी थी, बुंदेले-हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥ 1

कानपुर के नाना की, मुह बोली बहन छबीली थी, लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वो संतान अकेली थी। नाना के संग पढ़ती थी, वो नाना के संग खेली थी, बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी, उसकी यही सहेली थी। वीर शिवाजी की गाथाये, उसकी याद जुवानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी॥ 2

लक्ष्मी थी, या दुर्गा थी, वो स्वयं वीरता की अवतार, देख मराठे पुलकित होते, उसकी तलवारों के वार। नकली युध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, यह थे उसके प्रिय खिलवाड़। महाराष्‍ट्र कुल-देवी उसकी भी आराध्या भवानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी॥ 3

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, ब्याह हुआ, बन आई रानी, लक्ष्मी बाई झाँसी में। राजमहल में बजी बधाई, खुशियाँ छायी झाँसी में, सुघट  बुंदेलों की विरुदावलि-सी वो आई झाँसी में। चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी॥4

उदित हुआ सौभाग्या, मुदित महलों में उजियली छाई, किंतु कालगती, चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई। तीर चलाने वाले कर में, उसे चूड़ियाँ कब भाई, रानी विधवा हुई है, हाय! विधि को भी नहीं दया आई। निःसंतान मरे राजाजी, रानी शोक-सामानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी॥5

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरसाया, ऱाज्य हड़प करने का यह उसने अच्छा अवसर पाया। फ़ौरन फौज भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया, लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज झाँसी आया। अश्रुपुर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई वीरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥6

झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान | JHANSI KI RANI POEM IN HINDI
झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान | JHANSI KI RANI POEM IN HINDI

Jhansi ki Rani kavita आगे...

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया, व्यापारी बन दया चाहता था जब वह भारत आया। डलहौजी ने पैर पसारे, अब तो पलट गयी काया, राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया। रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महारानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥7

छीनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात, क़ैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात। ऊदैपुर, तंजोर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात, जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात। बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥8

रानी रोई रनिवासों में, बेगम गम से थी बेज़ार, उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार। सरे आम नीलाम छपते थे अँग्रेज़ों के अख़बार, नागपुर के ज़ेवर ले लो, लखनऊ के लो नौलख हार। यों पर्दे की इज़्ज़त परदेसी के हाथ बीकानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥9

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान, वीर सैनिकों के मान में था अपने पुरखों का अभिमान। नाना धूंधूपंत पेशवा जूटा रहा था सब सामान, बहिन छबीली ने रण-चंडी का कर दिया प्रकट आहवान। हुआ यज्ञा प्रारंभ उन्हे तो सोई ज्योति जगानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥10

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी, यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी। झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी, मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी। जबलपुर, कोल्हापुर, में भी कुछ हलचल उकसानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥11

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम, नाना धूंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम। अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवर सिंह, सैनिक अभिराम, भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम। लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो क़ुर्बानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥ 12

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में, जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में। लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में, रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद आसमानों में। ज़ख़्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥ 13

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार, घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार। यमुना तट पर अँग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार, विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार। अँग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥14

विजय मिली, पर अँग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी, अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुंहकी खाई थी। काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी, यूद्ध क्षेत्र में उन दोनो ने भारी मार मचाई थी। पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥15

सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी कविता झांसी की रानी के अंतिम पद ...

तो भी रानी मार काट कर, चलती बनी सैन्य के पार, किंतु सामने नाला आया, था वो संकट विषम अपार। घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार, रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार। घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीरगति पानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥16

रानी गयी सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी, मिला तेज से तेज, तेज की वो सच्ची अधिकारी थी। अभी उम्र कुल तेईस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी, हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता-नारी थी। दिखा गयी पथ, सीखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥ 17

जाओ रानी याद रखेंगे, ये कृतज्ञ भारतवासी, यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी। होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी, हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी। तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥ 18

सुभद्रा कुमारी चौहान एक महान फ़्रीडम फाइटर साथ जानी मानी कवियत्री थी। झांसी की रानी के जीवन पर आधारित बुंदेले हरबोलों के मुंह कविता आजादी के बक्त लोगों में अतिरिक्त उत्साह भरने का काम किया।

झाँसी की रानी कविता की व्याख्या,भावार्थ व सारांश

झांसी की रानी कविता के पद में सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रानी लक्ष्मीबाई की शूरवीरता का बखूबी वर्णन किया गया है। इस कविता के द्वारा कवयित्री ने रानी लक्ष्मीबाई के जन्म से लेकर वीरगति की प्राप्ति तक की उनके जीवन के सम्पूर्ण वृतांत का सुंदर तरीके से बताया है।

उन्होंने इस काव्य में बताया है कि रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, युद्धकला, घुड़सवारी में माहिर थीं। उन्हें अपने कुलदेवी पर विशेष आस्था थी, जिनकी पूजा से उन्हें और भी अदम्य साहस व ऊर्जा की प्राप्त होती थी।

आपको झांसी की रानी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान जरूर अच्छी लगी होगी, अपने कमेंट्स से अवगत कराएं।

Q. रानी लक्ष्मीबाई किस की मुंहबोली बहन थी?

उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना साहब की मुंहबोली बहन थी। बचपन में लक्ष्मीबाई नाना के संग ही पढ़ती और खेलती थी।

Q. झाँसी की रानी कविता किसने लिखी है?

उत्तर – झाँसी की रानी कविता महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखी है। यह सुभद्रा के अमर कविता में गिनी जाती है।

Q. सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता क्या है?

उत्तर – सुभद्रा कुमारी चौहान की बुंदेले हरबोलों के मुंह कविता उनकी सबसे प्रसिद्ध काव्य रचना है।

Q. झांसी की रानी कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

उत्तर – झांसी की रानी कविता से हमें प्रेरणा मिलती है की कठिन परिस्थिति में भी हौसला नहीं खोना चाहिए। तथा अपने देश की रक्षा के लिए जान भी कुर्बान करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

Q. कविता झांसी की रानी में झांसी की रानी कौन है कविता की कवयित्री का भी नाम लिखें?

उत्तर – झांसी की रानी में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई है। जिसके बचपन का नाम मनु थी। इस कविता के कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान है।

Q. रानी के घोड़े के सामने क्या संकट आ गया था ?

उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई के ग्वालियर में अंतिम लड़ाई के दौरन उनका घोड़ा नया था। इस क्रम में रानी के घोड़े के सामने एक बड़ा सा नाला आ गया। यही रानी के घोड़े के लिए संकट बना जिसे वह पार नहीं कर सका और रानी दुश्मनों से चारों तरफ से घिर गई।

इन्हें भी पढ़ें

बाहरी कड़ियाँ (External links🔗)

Share This Article
Leave a comment