Raja Ram Mohan Rai In Hindi – राजा राम मोहन राय जीवन परिचय

राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Rai In Hindi ) एक महान समाज सुधारक और देशभक्त थे। हमेशा से ही मूर्ति पूजा के विरोधी रहे राजा राम, इसे अंधविश्वासों और कर्मकांडों की जड़ मानते थे। उन्होंने बहुदेववाद का विरोध किया और एकेश्वरवाद की अवधारणा को स्वीकारा।

वेदो और उपनिषद को हिन्दू धर्म का आधार मानते हुए वेदान्त दर्शन के आधार पर ईश्वर को सर्वशक्तिमान, निराकार और चीर-शाश्वत बतलाया। ईसाई धर्म के द्वारा हिन्दू धर्म के विरुद्ध उगले जा रहे दुसप्रचार का विरोध किया।

राजा राममोहन राय सती प्रथा के कट्टर आलोचक थे। उन्होंने सती-प्रथा के साथ विधवा विवाह, बाल-विवाह का जमकर विरोध किया। नारी की दशा सुधारने, उनकी शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक भारत के उत्थान के लिए के लिए उन्होंने कई कदम उठाये।

RAJA RAM MOHAN RAI IN HINDI - राजा राममोहन राय जीवन परिचय
RAJA RAM MOHAN RAI IN HINDI – राजा राममोहन राय जीवन परिचय

इस कारण उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता के नाम से जाना जाता है। राजा राममोहन राय ने ब्राह्मसमाज की स्थापना की।

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कहते हैं की उन्होंने ही सन 1826 ईस्वी में हिन्दुत्व शब्द के लिए अंग्रेजी में Hinduism का प्रयोग किया था। तो दोस्तों चलिये जानते हैं Raja Ram Mohan Roy जीवनी के वारें में विस्तार से : –

राजा राम मोहन राय जीवन परिचयRaja Ram Mohan Rai in Hindi –

राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 ईस्वी में हुगली के पास राधानगर ग्राम में हुआ था। अव यह स्थान पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में स्थित है। राजा राममोहन राय के बचपन का नाम ज्ञात नहीं है। उनका जन्म एक सम्पन ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

राजा राममोहन राय के पिता का नाम रमाकांत राय और माता का नाम तारिणी देवी था। राजा राममोहन राय बचपन से ही अदम्य प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मात्र 15 वर्ष की अवस्था में ही बँगला, अरबी, फारसी और इस्लामी संस्कृति का विस्तृत ज्ञान हासिल का लिया था।

राजाराम मोहन राय का प्रारम्भिक शिक्षा पटना में हुआ तत्पश्चात वे कासी जाकर चार वर्षों तक भारतीय साहित्य और संस्कृति का विशद अध्ययन किया।

ईस्ट इंडिया कंपनी में नोकरी – Raja Ram Mohan Roy history

उन्होंने ने ईस्ट इंडिया कंपनी में 1805 से 1814 ईस्वी तक नौकरी की। ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी के दौरान वे पश्चिमी देशों के संस्कृति और साहित्य से अवगत हुए।  इसके फलस्वरूप उनपर अंग्रेजी साहित्य का खासा प्रभाव पड़ा।

उन्होंने ने यह महसूस किया की भारत के लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए और उन्हें जागरूक करने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान भी जरूरी है। इसीलिए वे भारतीय के लिए अंग्रेजी शिक्षा के पक्ष में थे। वे समाज में व्याप्त कुरीतियों के हमेशा खिलाफ थे।

उस दौरन समाज में विधवा विवाह, बाल-विवाह और सती-प्रथा का बोलबाला था। उन्होंने East India Company की नौकरी को छोड़कर, समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुप्रथा के खिलाफ के अपनी मुहिम तेज कर दी। वे भारतीय समाज में महिलाओं की दुर्दशा से बहुत ही चिंतित थे।

जब उनके सामने ही उनकी भाभी को जिंदा चिता में जलाया गया।

कहते हैं की उस समय भारतीय समाज में सती-प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियाँ अपने विकराल रूप में थी। उस दौरान पति के मृत्यु के बाद लड़की को उनके इच्छा के विरुद्ध चिता की आग में जला दिया जाता है।

राजा राम मोहन राय को नारी के प्रति संवेदना उस बक्त और प्रबल हुई जब उनके भाई का निधन हुआ। उनके आँखों के सामने ही उनकी भाभी को धर्म के ठेकेदारों ने उनकी इच्छा के विरुद्ध चिता के आग में धकेल दिया। उस घटना ने उन्हें झकझोड़ कर रख दिया।

राजा राम मोहन राय समाज सुधारक

उन्होंने सती प्रथा का घोर विरोध किया और समाज में व्याप्त इस प्रकार की सामाजिक बुराइयों को सदा-सदा के लिए समाप्त करने का संकल्प लिया। सन 1829 ईस्वी में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक से सहयोग से कानून वनवाया।

उन्होंने समस्त भारत में भ्रमण कर लोगों के पास जा-जा कर सती प्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया। इस प्रकार उन्होंने समाज में व्याप्त सती-प्रथा जैसी कुरीतियों को कड़ी मेहनत के बाद अंत किया।

राजा राम मोहन राय को राजा की उपाधि किसने दी

दोस्तों बहुत ही कम लोग जानते हैं की राम मोहन राय के नाम के साथ ‘राजा’ उपाधि किसने प्रदान की। उन्हें राजा क्यों कहा जाता है। आइए जानते हैं। उन्हें दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक अकबर द्वितीय ने ‘राजा’ की उपाधि प्रदान की थी।  

उस बक्त मुगल शासक ईस्ट इंडिया कंपनी के पेंशन पर निर्भर थे। मुगल शासक अकबर द्वितीय के कहने पर Raja Ram Mohan Rai ने इंगलेंड जाकर बादशाह की पेशन बढ़ाने की सिफ़ारिश करने का आग्रह किया था।

मुगल वंश का अंतिम शासक बहादुर शाह जफ़र इसी अकबर द्वितीय के पुत्र थे। वही बहादुरशाह जफ़र जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। जिन्हें अंगरजों ने बंदी बनाकर रंगून के जेल में बंद कर दिया जहॉं उनकी मृत्यु हो गयी।

ब्रह्म समाज की स्थापना – Raja Ram Mohan Roy contribution

उन्होंने समाज सुधार के अनेक कार्य-क्रम का शुरूआत की और जाति-प्रथा, बाल-विवाह, बहु-विवाह और सती प्रथा का जमकर विरोध किया। नारी शिक्षा पर भी राजा राम मोहन राय ने विशेष बल दिया। राजा राममोहन राय के धार्मिक सुधार में ब्रह्म समाज की स्थापना प्रमुख है

महिलाओं के सम्मान के खातिर उन्होंने कठोर परिश्रम किए। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए ही उन्होंने 1828 ईस्वी में, ब्रह्म समाज नामक संस्था की स्थापना की। जिसे भारत के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन में से एक माना जाता है।

वे हमेशा से नारी की स्वतंत्रता, विधवा विवाह  और अंग्रेजी शिक्षा के पक्षधर थे। उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिए कलकता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की। इसके अलावा उन्होंने एंग्लो-हिन्दू स्कूल और वेदान्त विध्यालय की भी स्थापना की।

राजा राम मोहन राय की रचना है Raja Ram Mohan Roy books

कहते हैं की राजा राममोहन राय में भारतीय के साथ यूरोपीय तत्वों का भी समन्वय था। उन्होंने वेदान्त सूत्र का बँगला में अनुवाद किया। बांग्ला साहित्य में उनके अहम योगदान को कभी भी कम कर के आँका नहीं जा सकता।

बँगला साहित्य के योगदान के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा। राजा राम मोहन राय को बँगला गद्य के संस्थापक माने जाते हैं। राजा राममोहन राय द्वारा लिखित पुस्तकें में कुल 27 ग्रंथ शामिल हैं। सन 1873 ईस्वी में उनकी 800 पृष्ठ की रचनायें प्रकाशित हो चुकी है।

स्वतंत्रता आंदोलन के प्रबल समर्थक

राजा राम मोहन राय समाज सुधारक के साथ-साथ एक महान देशभक्त थे। वे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रबल समर्थक थे। 1821 ईस्वी में उन्होंने संवाद कौमुदी नामक समाचार पत्र निकाला। इस प्रकार सामाजिक बुराइयों के साथ-साथ भारत की आजादी की लड़ाई में भी उनका अद्वितीय योगदान रहा।

राजाराम मोहन राय के विचार

सती प्रथा के उन्मूलन के बाद राजा राममोहन राय ने 1814 ईस्वी में आत्मीय सभा का भी गठन किया था। इसके द्वारा उन्होंने भारतीय समाज के अंतर्गत सामाजिक तथा धार्मिक सुधार पर बल दिया। इस सुधार के द्वारा उन्होंने महिलाओं की दोबारा शादी, संपत्ति में महिला को समान अधिकार इत्यादि शामिल था।

राजा राममोहन राय की मृत्यु कब और कहां हुई – Raja Ram Mohan Rai death

राजा राम मोहन राय 1931 ईस्वी में यूरोप गये और 27 सितंबर 1833 को विदेश में ही इस महान समाज सुधारक की मृत्यु हो गयी। सम्पूर्ण मानव जाति के लिए उनका संदेश था कर्म करो। उनका सम्पूर्ण जीवन नारी के सम्मान और हक के लिए संघर्ष करते हुए बीता।

दोस्तों अगर आप राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Rai In Hindi ) पर निबंध के लिए लेख की तलाश में हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए मददगार साबित हो सकता है।

F.A.Q

राजा राम मोहन राय ने किस पत्रिका को प्रारम्भ किया ( Raja Ram Mohan rai ne kis patrika ko prarambh kiya )

महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ने बंगा-दत नामक पत्रिका को प्रारम्भ किया था। कलकत्ता से निकलने वाली उनका यह patrika अंग्रेजी, बंगाली, फारसी और हिंदी सहित चार भाषाओं में प्रकाशित होती थी.

राजा राम मोहन राय ने किस समाज की स्थापना की

राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की समाज की स्थापना की थी।

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