वराहमिहिर का जीवन परिचय, भविष्यवाणी व विज्ञान में योगदान

वराहमिहिर का जीवन परिचय - BIOGRAPHY OF VARAHAMIHIRA IN HINDI
वराहमिहिर जीवन परिचय - BIOGRAPHY OF VARAHAMIHIRA IN HINDI

वराहमिहिर का जीवन परिचय के अलावा इस लेख में वराहमिहिर की भविष्यवाणी, वराहमिहिर का विज्ञान में योगदान, वराहमिहिर के पांच सिद्धांत, वराहमिहिर का जन्म स्थान, वराहमिहिर के पुत्र, वराहमिहिर की रचना के बारें में वर्णन है।

वराह मिहिर कौन था?

वाराहमिहिर (Varāhamihira) प्राचीन भारत के प्रसिद्ध ज्योतिष, गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। वाराहमिहिर अपने सटीक भविष्यवाणी के लिए जाने जाते हैं। उन्हें आर्यभट्ट का शिष्य माना जाता है।

आर्यभट्ट की तरह वाराहमिहिर भी इस धरती को गोल मानते थे। वे ज्योतिष विज्ञान और गणित के परम ज्ञाता थे। इसके साथ ही उन्हें वेद के बारे में असधारण ज्ञान प्राप्त था।

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ज्योतिष शास्त्र में अद्भुत पकड़, सटीक भविष्य वाणी, और गणित में प्रकांड विद्वान होने के कारण ही उन्हें मगध साम्राज्य में उच्च पद दिया गया था।

वराहमिहिर का जीवन परिचय - BIOGRAPHY OF VARAHAMIHIRA IN HINDI
वराहमिहिर का जीवन परिचय

उनके विद्वता के कारण ही राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने अपने दरवार में नौ रत्नों में एक बनाया। वाराहमिहिर ने अपने ज्ञान और अध्ययन को एक वृहद ग्रंथ का रूप दिया। Panchasiddhantika की रचना वाराहमिहिर ने की।

आज भी उनके द्वारा लिखित ग्रंथ मानक ग्रंथ के रूप में जाना जाता है। उनके द्वारा विकसित उज्जैन का गुरुकुल कई सौ वर्षों तक प्रसिद्ध रहा। 

वराहमिहिर का जीवन परिचय – Biography of Varahamihira in Hindi

पूरा नामवराहमिहिर
वराहमिहिर का जन्म स्थान उज्जैन
वराहमिहिर की माता का नाम ज्ञात नहीं
वराहमिहिर के पिता का नाम (Father)आदित्यदास (Adityadasa)
वराहमिहिर के पुत्र ज्ञात नहीं
वराहमिहिर की रचना – बृहज्जातक, वराहमिहिर बृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका

वराहमिहिर का जन्म व प्रारम्भिक जीवन

वाराहमिहिर का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के आसपास उज्जैन के पास माना जाता है। उनके पिता उज्जैन में शिप्रा नदी के पास कपित्थ नामक जगह में रहते थे।

वाराहमिहिर के पिता का नाम आदित्यदास था जो  भगवान भास्कर के परम भक्त थे। बचपन से वाराहमिहिर तेज दिमाग के थे। उन्होंने अपने पिता के संरक्षण मे ज्योतिष का गहन अध्ययन किया।

बचपन की शिक्षा उज्जैन में ही अपने पिता से प्राप्त करने के बाद वे आर्यभट्ट से मिले। आर्यभट्ट से मिलकर वे बहुत ही प्रभावित हुए। उन्होंने आर्यभट्ट से प्रेरित होकर ज्योतिष और गणित के अनुसंधान में जुट गये।

इस प्रकार वे आगे चलकर ज्योतिषशास्त्र के प्रकांड विद्वान कहलाये। उन्होंने समय मापक घट यन्त्र, वेधशाला की स्थापना और इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया।

कहते हैं की राजा विक्रमादित्य, वाराहमिहिर की सटीक भविष्यवाणी से बहुत ही खुश हुए। राजा विक्रमादित्य ने मिहिर को मगध राज्य का सबसे बड़ा सम्मान वाराह से अलंकृत किया। तभी से वे वाराहमिहिर के नाम से समूचे दुनियाँ में प्रसिद्ध हो गए।

वराहमिहिर की भविष्यवाणी       

राजा विक्रमादित्य के नौरत्नों में एक वराहमिहिर की सटीक भविष्यवाणी ने उन्हें ज्योतिष जगत में प्रसिद्ध कर दिया। कहते हैं की राजकुमारों के बारे में वाराह मिहिर के द्वारा की गई भविष्यवाणी सत्य हुई।

वराहमिहिर ने ग्रह, नक्षत्रों और गणना के आधार पर राजा विक्रमादित्य के पुत्र की मृत्यु की भविष्यवाणी  की। उन्होंने अपने भविष्यवाणी में बताया था की जब राजकुमार की उम्र 18 वर्ष की हो जाएगी तब उनकी मृत्यु हो जाएगी।

इसके लिए उन्होंने अपने गणना के आधार पर समय और दिवस भी बता दिये थे।  यह सुनकर राजा विक्रमादित्य बहुत ही दुखी हो गये। उन्होंने राजकुमार के देख रेख की विशेष व्यवस्था की। ताकि राजकुमार कभी बीमार ने पड़े।

लेकिन हुआ वही जो होनी को मंजूर थी। लाख सावधानी बरतने के बावजूद राजकुमार की मृत्यु टल ना सकी। इस प्रकार 18 वर्ष के उम्र के बाद राजकुमार की मृत्यु उसी दिन हुआ।

जिस दिन और समय के बारें में वराहमिहिर नें पहले से भविष्यवाणी कर दी थी। राजा विक्रमादित्य ने मिहिर को भरे दरबार में कहा की आपकी जीत हुई। मिहिर ने राज से बड़े ही वीनम्रता से जबाब दिया।

क्षमा चाहता हूँ महाराज। यह मेरी जीत नहीं है यह असल में ज्योतिष विज्ञान की जीत है। मैं तो गणना के आधार पर सिर्फ भविष्यवाणी की थी। राजा अपने पुत्र के निधन से बेहद आहात हुए।

लेकिन मिहिर के सटीक भविष्यवाणी का भी उन्हें लोहा मानना पड़ा। उन्होंने मिहिर को मगध साम्राज्य का सबसे बड़ा सम्मान वराह से पुरस्कृत किया।

तभी से मिहिर, वराहमिहिर के नाम से विख्यात हो गये। ज्योतिष और खगोल विद्या में उनके अहम योगदान के कारण राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने उन्हें अपने दरबार के नौ रत्नों में शामिल किया।

वराहमिहिर का योगदान

वाराहमिहिर ने गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ने का काम किया। इसके लिए ज्योतिष विज्ञान, गणित के अलावा उनका कई क्षेत्रों में योगदान रहा।

वराहमिहिर का विज्ञान में योगदान

भले ही गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का श्रेय महान वैज्ञानिक न्यूटन का जाता है। लेकिन आज से हजारों साल भारत के इस मनीषी वाराहमिहिर को इसका ज्ञान था। उनका मानना था की पृथ्वी में कोई शक्ति जरूर है।

जिसके कारण चीजें धरती की तरफ आकर्षित होती है। पृथ्वी के आकर्षण के इसी बल को बाद में गुरुत्वाकर्षण के नाम से जाना गया। वराहमिहिर ने पर्यावरण, जल और भू-विज्ञान के बारें में भी कई अहम जानकारी प्रस्तुत की।  

कहा जाता है की वाराहमिहिर को कृषि विज्ञान के क्षेत्र में भी अच्छा ज्ञान था। वे मौसम व पौधों के विश्लेषण द्वारा आगामी वर्षा व अकाल का अनुमान लगाने में सक्षम थे। इस बात का वर्णन उनके ग्रंथ में भी मिलता है।

वराहमिहिर का गणित में योगदान – Varahamihira contribution to mathematics

वाराहमिहिर को ज्योतिष, गणित और खगोल के क्षेत्र में महारत हासिल थी। उन्हें वेदों का भी अच्छा ज्ञान था। इसके लिए उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की। उनके द्वारा रचित ग्रंथ आज भी ज्योतिष शास्त्र में एक मानक ग्रंथ के रूप में स्वीकार जाता है।

वराहमिहिर एक प्रकांड गणितज्ञ भी थे। उन्हें ‘संख्या-सिद्धान्त’ नामक गणित के एक प्रसिद्ध पुस्तक का रचनाकार भी माना जाता है।उन्होंने गणित के एक महत्वपूर्ण त्रिकोणमितीय सूत्र का भी प्रतिपादन किया।

उन्होंने सर्वप्रथम अपनी पुस्तक पंचसिद्धान्तिका में अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड बताया था। उन्होंने भी धरती को गोल माना लेकिन उन्होंने पृथ्वी को गतिशील नहीं माना।

उनका तर्क था की अगर पृथ्वी गतिशील होती तो पक्षी सुवह अपना घोंसला छोड़ने के बाद शाम को अपना घोंसला तक नहीं पहुँच पाती। हालांकि बाद में उनका यह तर्क गलत साबित हुआ।

वराहमिहिर के पांच सिद्धांत

उन्होंने अपने पंचसिद्धांतिका में जिन पाँच सिद्धांतों का उल्लेख किया है वे पाँच सिद्धांत इस प्रकार हैं।

  1. पोलिशसिद्धांत,
  2. रोमकसिद्धांत,
  3. वसिष्ठसिद्धांत,
  4. सूर्यसिद्धांत,
  5. पितामहसिद्धांत

वाराहमिहिर की प्रमुख कृतियाँ

अपने जीवन काल में वाराहमिहिर  ने वैसे तो कई पुस्तकों की रचना की। लेकिन वराहमिहिर रचित ग्रंथ में बृहज्जातक, वराहमिहिर बृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका काफी प्रसिद्ध हुई।

बृहज्जातक – वराहमिहिर को त्रिकोणमिति के बारें में वृहद ज्ञान प्राप्त था। उन्होंने अपने इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति से संबंधित कई महत्वपूर्ण सूत्र बताये हैं।

पंचसिद्धांतिका (पंचसिद्धांतिका इन हिंदी )- इस ग्रंथ में उन्होंने पहले से प्रचलित पाँच सिद्धांतों का उल्लेख किया है।

बृहत्संहिता – वराहमिहिर नें बृहत्संहिता में वास्तुशास्त्र, भवन निर्माण-कला आदि से संबंधित जानकारी प्रस्तुत की है। इसके आलबा उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल हैं।

लघुजातक, बृहत्संहिता, टिकनिकयात्रा, बृहद्यात्रा या महायात्रा, योगयात्रा या स्वल्पयात्रा, वृहत् विवाहपटल, लघु विवाहपटल, कुतूहलमंजरी, दैवज्ञवल्लभ, लग्नवाराहि। वराहमिहिर रचित ज्योतिष ग्रंथ में यह प्रमुच रचना है।

इस प्रकार वराहमिहिर ने अपने विशद ज्ञान के बल पर फलित ज्योतिष, गणित और खगोलशास्त्र में वही स्थान हासिल किया। जो स्थान चाणक्य का राजनीति शास्त्र में और पाणिनी का व्याकरण में प्राप्त है।

कहते हैं की ‘सूर्य सिद्धांत’ वराहमिहिर द्वारा रचित प्रथम ग्रंथ था लेकिन उसके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनके अनुसार गणना के लिए चार प्रकार के माह हो सकते है। पहला सौर, दूसरा चंद्र, तीसरा वर्षीय और चौथा पाक्षिक।

वराहमिहिर की मृत्यु

ज्योतिष विज्ञान और खगोल विज्ञान का अच्छा ज्ञान रखने वाले वराहमिहिर की मृत्यु सन् 587 ईस्वी में मानी जाती है।वाराहमिहिर ने अपने जीवन काल कई सुदूर देशों की यात्रा की। उन्होंने अपने यात्राक्रम में यूनान तक की यात्रा की।

F.A.Q

  1. वराहमिहिर में मिहिर का अर्थ क्या है?

    मिहिर का मतलब सूर्य होता है. वाराहमिहिर अपने सटीक भविष्यवाणी के लिए प्रसिद्ध थे।

  2. वराहमिहिर का जन्म कब और कहां हुआ ?

    वाराहमिहिर का जन्म ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के आसपास उज्जैन में हुआ था।

  3. वराहमिहिर की मृत्यु कब हुई थी?

    ज्योतिष विज्ञान और खगोल विज्ञान का अच्छा ज्ञान रखने वाले वराहमिहिर की मृत्यु सन् 587 ईस्वी में मानी जाती है।

प्रश्न – वराहमिहिर द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ कौन सा है (varahmihir ke granth ka naam bataiye)

उत्तर – वाराहमिहिर प्राचीन भारत के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और ज्योतिषाचार्य थे। उनके तीन प्रमुख ग्रंथ में वृहज्जातक, वृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका का नाम आता है।

प्रश्न – वराहमिहिर किस काल के महान वैज्ञानिक थे

उत्तर – वराहमिहिर गुप्तकाल के महान वैज्ञानिक थे। वे राजा विक्रमादित्य के नौरत्नों में से एक थे।

प्रश्न – वराहमिहिर ने क्या खोज की?

उत्तर – वराहमिहिर ज्योतिष और गणित के प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने गणित में पास्कल त्रिकोण (Pascal’s triangle) की खोज की। गणित के इस प्रसिद्ध संख्या का उपयोग वे द्विपद गुणाकों (binomial coefficients) की गणना के लिये किया करते थे।

अंत में

आपको वराहमिहिर का जीवन परिचय, वराहमिहिर की भविष्यवाणी, वराहमिहिर का विज्ञान में योगदान, वराहमिहिर के पांच सिद्धांत से संबंधित जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी, अपने सुझाव से अवगत करायें।

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