Kabir Das Biography In Hindi – कबीर दास भारत में 15वीं सदी पैदा हुए के प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि और संत थे। उनके जन्म के समय पूरे भारत के समाज में धर्म और राजनीति को लेकर अशान्ति और अव्यवस्था का माहौल व्याप्त था।
सामाजिक दृष्टिकोण से हिन्दू समुदाय और मुसलमानों के बीच परस्पर आपसी कलह और अंधविश्वास बढ़ता जा रहा था। इस दशा में एक ऐसे मार्गदर्शक की जरूरत थी जो आम जन को इस परिस्थिति से बाहर निकाल सके।
कबीर दास जी ऐसे ही महापुरुष थे। जिन्होंने दोनो समुदाय के मार्गदर्शन करने का काम किया। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज को प्रेरित किया। उनकी रचनाएं कबीर ग्रंथावली के रूप में संकलित किया गया है। तो चलिए कबीर का जीवन परिचय हिन्दी में विस्तार से जानते हैं :-
कबीर दास का जीवन परिचय इन हिंदी – Kabir Das Biography in Hindi
- नाम – कबीरा, कबीर, कबीर दास
- जन्म वर्ष व स्थान – 1399 ईस्वी, काशी, उत्तरप्रदेश
- मृत्यु वर्ष व स्थान – 1518, मगहर, उत्तरप्रदेश
- माता और पिता का नाम – माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू
- कबीर जी के पत्नी का नाम – लोई
- संतान – पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली,
कबीर दास जी का जन्म – Kabir Das ji ka Jeevan Parichay
कबीर दास की जीवनी – कबीर दास जी के जन्म तिथि को लेकर विद्वानों में मतांतर है। कुछ विद्वानों उनका जन्म 1399 से लेकर 1400 ईस्वी के बीच मानते है। लेकिन अधिकतर विद्वान मानते हैं कबीर दास का जन्म 1456 में हुआ था।
उनके आनुयायियों के द्वारा उनके जन्म के बारें में यह चौपाई लिखी है।
“चौदह सौ छप्पन साल गए, चंद्रवार एक ठाठ भए। जेठ सुदी बरसाइत की, पूर्णमासी प्रगट भए।”
कहा जाता है की कबीर दास जी का जन्म ब्राह्मण के घर एक विधवा कन्या के गर्भ से हुआ था। अतः बदनामी के भय से बालक कबीर को जन्म लेते ही कासी के लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ दिया गया।
तालाब के किनारे से गुजर रही नीरू और नीमा नामक दंपति का उस बालक पर नजर पड़ी। चूंकि वे निःसंतान थे, अतः बालक कबीर दास को उठाकर अपने घर ले आई।
इस प्रकार कबीर दास का पालन पोषण नीरू और नीमा नामक एक गरीब जुलाहा (बुनकर) दंपति के घर में हुआ। इस आधार पर कहा जा सकता है की कबीर की माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था।
बड़े होने के बाद वे अपने पैतृक पेशा में माता पिता के काम मे हाथ बांटने लगे। इस बात का उल्लेख उनके दोहे के इस पंक्ति से मिलता है। ‘जाति जुलाहा नाम कबीरा। बनि -बनि फिरों उदासी।।‘
कबीरदास जी का पारिवारिक जीवन
कहते हैं की बड़े होने पर उनकी शादी लोई नामक महिला से हुआ था। लोई का जिक्र एक जगह इस प्रकार मिलता है –
‘कहत कबीर सुनहू रे लोई । हरि बिन राखन हार न कोई‘
इससे प्रतीत होता है की कबीर दास की पत्नी का नाम लोई था। उन्हें एक पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। उनके पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली रखा गया था।
बड़े होकर कबीर दास ने अपने जीविका के लिए पैतृक पेशा कपड़े बुनने के काम को अपनाया। लेकिन सांसारिक कार्यों से उन्हें धीरे-धीरे विरक्ति सी होने लगी।
कबीर दास जी की शिक्षा
कबीर दास जी पढ़े लिखे नहीं थे। वे अनपढ़ थे। उनके एक दोहे “मसि कागद छुयौ नहीं, कलम गहो नहीं हाथ” के अनुसार उन्होंने कभी कागज और कलम को हाथ नहीं लगाया। लेकिन वे बहुश्रुत विद्वान थे। जब कबीर दास को सांसारिक कार्यों से विरक्ति होने लगी।
वे हिन्दू बेदान्त से काफी प्रभावित होकर वैष्णव संप्रदाय से अहिंसा का मार्ग चुना। वे महान सूफी फकीर शेख तकी के भी प्रभावित थे। उनका कुछ शिष्य सूफी फकीर शेख तकी को ही कबीर दास को गुरु मानते है। लेकिन कहते हैं की कबीर दास जी स्वामी रमानंद से दीक्षा प्राप्त की थी।
जनश्रुति के अनुसार स्वामी रामनन्द ने कबीर दास को मुसलमान मानकर दीक्षा देने से मना कर दिया था। एक दिन कबीर दास जी सुबह अंधेरे में ही कासी में गंगा घाट के सीढ़ियों पर लेट गये। उसी रास्ते से स्वामी रामानंद सुबह-सुबह गंगा स्नान के लिए जाते थे।
कहते हैं की स्वामी रामानंद का पैर जब कबीर दास से टकराया तो उनके मुहँ से निकला – बच्चा राम राम कह”। बस कबीर दास जी को दीक्षा मिल गयी और उन्होंने रामानंद को अपना गुरु मान लिया। वे साधु संतों के संगति कर उनसे ज्ञान की वातें सीखते।
कबीर दास एक महान समाज सुधारक – Kabir Das biography in Hindi
जिस समय कबीर दास ka आविर्भाव हुआ उस बक्त हिन्दू धर्म में नाथ संप्रदाय, मुसलमानों में सुफी संप्रदाय का बोलवाला था। स्वर्ण और अवर्ण के बीच दूरी बढ़ती जा रही थी।
कबीर दास जी हिन्दू और मुसलमान धर्मों में व्याप्त आडंबरों और अंधविश्वासों के घोर विरोधी थे। उन्होंने समाज में व्याप्त इन कुरीतियों पर कुठाराघात किया। कबीर दास के अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनो हुए। हिन्दू समुदाय में उनके अनुयायी कबीर पंथी कहे जाते हैं।
कबीर दास की धार्मिक सोच
Kabir das biography in Hindi -कबीर दास जी किसी खास धर्म, संप्रदाय और दार्शनिक विचार धारा से अपने आप को जकड़े नहीं रखा। कबीर दास ईश्वर और अल्लाह, राम और रहीम सभी को एक ही मानते थे।
कबीरदास का साहित्यिक जीवन परिचय
उनका मानना था की ब्रह्म से ही जगत का आदि है और अंत में उसी में उसका विलय भी हो जाना है। ब्रह्म के अतिरक्ति जगत में सबकुछ नाशवान और मिथ्या है। उनका कहना था।
“पाणी ही ते हिम भया, हिम तै गया बिलाई। जो कुछ था सोई भया, अब कुछ कहा न जाई।।“
कबीर जी की सोच अद्वैत दर्शन से कुछ मिलती जरूर है। लेकिन उन्हें अद्वैतवादी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने ब्रह्म की प्राप्ति के लिए सिर्फ धार्मिक ग्रंथ के रटने के बजाय प्रेम और विश्वास पर बल दिया। उन्होंने प्रेम पर जोर देते हुए कहा –
‘पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुआ, पण्डित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढे सो पण्डित होय।।’
उन्होंने हिन्दू और मुसलमान धर्मों में व्याप्त सभी धार्मिक अंधविश्वासों पर कुठारघात किया और उनकी निंदा की। उन्होंने सिर के बाल मुँड़ाकर सन्यासी के वेश धारण करने वाले पाखंडियों पर व्यंग किया।
‘केसन कहा बिगरिया, जो मुंडों सौ बार। मन को क्यों नहीं मुंडिए जा में विषय विकार।।’
कबीर दास माला फेड़ने वाले पण्डितों और मुल्लाओं पर तंच कसते हुए उन्हें मन की माला फेरने का उपदेश दिया।
‘माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर। कर का मनका छोड़ी के, मन का मनका फेर।।
उन्होंने मुसलमान में व्याप्त अंधविश्वासों पर तंच कसा। मस्जिद में अजान के बक्त मुल्ला जोर से चिल्लाते थे। तब उन्होंने कहा की क्या खुदा को काम सुनाई देता है। जो इतना जोर से चिल्लाते हो।
‘काँकरी पाथरी जोड़ी के, मस्जिद लई चूनाय। ता चढ़ी मुल्ला बांग दे, क्या बहिरा है खुदाय।।
कबीर दास पत्थर की मूर्ति पूजा पर भी तंज कसते हुए कहा है। –
‘पाषाण पूजे हरी मिले, तो में पूजों पहाड़। या ते तो चाकी भली, जासे पीस खाय संसार।‘
इसके साथ ही कबीर जी निगुण ब्रह्म के प्रति विश्वास, गुरु के प्रति श्रद्धा और भक्ति आदि पर बल दिया। उनका कहना था की बिना गुरु के ब्रह्म की प्राप्ति संभव नहीं है। उन्होंने गुरु की महत्ता का बखूबी बखान किया है। वे कहते हैं –
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागुं पाय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।।
कबीर दास की रचना – Kabir Das biography in Hindi
कबीर दास जी की भाषा में क्षेत्रीय भाषों सहित कई भाषाओं का समन्वय देखने को मिलता है। यही कबीरदास की भाषा की विशेषताएं है। कबीर दास की भाषा क्या थी, इनकी रचनाओं से पता चलता है।
इनकी रचनाओं में खड़ी बोली, बज्र भाषा, अवधि, फारसी और राजस्थानी के शब्दों की प्रधानता है। महान कवि आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कबीर जी को “भाषा का डिक्टेटर” कहा है। उनके दोहे सारगर्भित है।
इसीलिए कबीर दास जी सुधारक पहले और कवि बाद में थे। आचार्य शुक्ल जी के अनुसार कबीर जी की भाषा सधूककड़ी कहा जाता है। श्यामसुंदर दास ने कबीर दास की भाषा के बारें में कहा है – कबीर जी की भाषा का निर्णय करना टेढ़ी खीर है क्योंकि वह खिचड़ी भाषा है।
कबीर दास जी की प्रमुख रचनाएं जिसमें साखी, सबद, रमैनी और बीजक प्रसिद्ध है। इसके आलवा ज्ञानसागर, विवेकसागर को भी उनकी रचनाओं में मान्यता है। संत शरीरोमानी तुलसीदास और सूरदास के रचनाओं के लोकप्रियता के बाद कबीर जी की रचना का आता है।
कबीर की मृत्यु – Death of Sant Kabir Das
जैसा की हम पढ चुके हैं की कबीर दास अंधविश्वास के घोर विरोधी थे। लोगों के अंधविश्वास को खत्म करने के लिए वे कासी छोड़कर मगहर चले गये। कहा जाता है की 1518 ईस्वी में मगहर में ही उनकी मृत्यु हो गयी।
उस बक्त ऐसी कविदंती थी की मगहर में मरने से नरक की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा था –
“क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम-हृदय जस मोर। जो काशी तन तजे कबीरा, रामहि कौन निहोरे।।“
कहते हैं की कबीर दास के शत्रुओं ने उनको मगहर जाने के लिए मजबूर किया था। क्योंकि उनके शत्रु चाहते थे की कबीर दास की मोक्ष की प्राप्ति न हो सके, लेकिन कबीर तो काशी मरन से नहीं, बल्कि राम की भक्ति से मुक्ति होना चाहते थे।
उपसंहार – kabir das short biography in hindi
कबीर जी एक महान संत थे तथा उनका जीवन अद्वितीय था। उन्होंने अपने उपदेश और रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। कबीर दास जी युग-युगांतर तक याद किए जाएंगे।
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