जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर भगवान महावीर का जीवन परिचय – Mahavir Swami 24 Tirthankara
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महावीर स्वामी जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर माने जाते हैं। भारत की धरती धर्मावतारों और ऋषियों मुनियों की भूमि है। हमेशा से ही यह वीरों और युग-प्रवर्तकों की धरती रही है। भगवान् राम, भगवान श्रीकृष्ण, अहिंसा के अवतार महात्मा बुद्ध आदि इसी धरा पर अवतरित हुए थे।
ऐसी ही महान् युग-प्रवर्तकों में अहिंसा के अवतार भगवान महावीर का नाम सुमार है। उन्होंने अपनी सारी उम्र दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ से अवगत कराने में लगा दिया। महावीर स्वामी ने अहिंसा पर जोर देते हुए उसे उच्च नैतिक गुण की संज्ञा दी।
उन्होंने केबल शारीरिक कष्ट नहीं पहुचाने को ही अहिंसा नहीं माना बल्कि मन, वचन कर्म से भी किसी को आहत नहीं करना, उनकी दृष्टि से सच्ची अहिंसा है। दुनिया को उन्होंने जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत पर चलने की सलाह दी।
महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों के माध्यम से विश्व को सन्मार्ग पर चलने का मार्ग दिखाया। उनका विचार देश, काल और धर्म की सीमा से पड़े था। कहते हैं की धीरे-धीरे बड़े-बड़े राजा महाराजा उनके अनुआयी बन गये।
उनके अनुयायी में मौर्य बंश के सम्राट बिम्बिसार भी शामिल थे। उनके निर्वाण तक उनके अनुयायी में चौदह हजार योगी, छतीस हजार मठ-वासिनी, डेढ़ लाख से ज्यादा श्रावक तथा तीन लाख से ज्यादा श्राविका की संख्या थी।
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महावीर स्वामी की जीवनी संक्षेप में –
महावीर स्वामी के बचपन का नाम | – वीर, अतिवीर, वर्धमान |
महावीर स्वामी का जन्म स्थान | – कुण्डग्राम, वैशाली, बिहार |
महावीर स्वामी की माता का नाम | – त्रिशला |
महावीर स्वामी के पिता का नाम – | – सिद्धार्थ |
महावीर स्वामी के गुरु का नाम | – ज्ञात नहीं |
महावीर स्वामी के नाना का नाम | – रजा चेटक |
भगवान महावीर स्वामी का जीवन परिचय – biography of Mahavir Swami in Hindi
भगवान महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पहले अर्थात ईसा से 599 वर्ष पूर्व हुआ था। उनका जन्म स्थान बिहार के वैशाली गणराज्य के लिच्छवी वंश में कुण्डलपुर नामक स्थान पर हुआ था।
उनके माता का नाम त्रिशला देवी और पिता का नाम सिद्धार्थ था। भगवान महावीर स्वामी के बाल्यावस्था का नाम वर्धमान था। कहते हैं की किशोरावस्था में उन्होंने एक मदमत्त हाथी को अपने वश में कर लिया था।
तभी से उनका नाम महावीर पड़ा। और वे इसी नाम से जगत प्रसिद्ध हो गए। इसके अलावा भगवान महावीर को सन्मति, वीर और अतिवीर भी कहा जाता है। घर में सभी तरह की सुख-सुविधाएँ के बावजूद उनका मन सांसारिक कार्यों से विरक्त होने लगा।
उनका मन सांसारिक क्रिया-कलापों में एकदम नहीं लगता था। वे घंटों एकान्त में बैठकर सांसारिक नश्वरता, जीवात्मा और परमात्मा जैसे जटिल विचार में खोये रहते थे।
महावीर स्वामी का विवाह – Mahavir Swami’s Marriage
युवावस्था में कदम रखने के बाद महावीर का विवाह कर दिया गया। उनका विवाह कलिंग नरेश की सुंदर कन्या ‘यशोदा’ के साथ सम्पन हुआ। किन्तु वे सांसारिक मोहपाश में कहाँ बंधने वाले थे। सांसारिक सौन्दर्य व मोहमाया उनके मन को लुभा नहीं सका।
गृह त्याग – Mahavir swami history in Hindi
कहते हैं की जब महावीर स्वामी Mahavir Swami की उम्र अट्ठाईस वर्ष की थी तब उनके पिता का निधन हो गया। पिता के मृत्यु के बाद उनका मन इस नश्वर संसार से और भी ज्यादा विरक्त हो होने लगा।
उन्होंने सांसारिक मोह माया को छोड़कर संन्यासी बनने के पथ पर अग्रसर होने का अपना मन बना लिया। महावीर स्वामी ने अपने विचार से अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन को अवगत कराया।
अपने जेष्ठ भाई के अत्यधिक आग्रह के कारण वे कुछ वर्ष किसी तरह घर पर ही बिताया। लेकिन इस प्रकार का मोह पाश, भला उन्हें कब तक रोक सकता था। फलतः तीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने एक दिन गृह त्याग कर दिया और संन्यासी बन गये।
ज्ञान की प्राप्ति
गृह त्याग के बाद ज्ञान की खोज में दर दर भटकने लगे। महावीर स्वामी Mahavir Swami ने साढ़े बारह वर्षों तक कुंडलपुर के निकट संदावन में रहकर बिना कपड़ो के कठोर तप किया। 12 वर्षो के कठोर तपस्या के बाद 43 वर्ष की अवस्था में उनको ज्ञान अर्थात केवल्य की प्राप्ति हुई।
कहते हैं की महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति रजुप्लिका नदी के तट पर एक शाल के पेड़ के नीचे हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद वे जंगलों को छोड़कर लोगों के बीच उपदेश देने लगे। उन्होंने अपना पहला उपदेश बिहार के राजगृह के पास विपुलांचल पर्वत पर दिया।
उनके सारगर्भित उपदेशों को सुनने के लिए दूर-दूर से लोग पहुचने लगे। इस प्रकार उन्होंने लगातार 30 वर्ष तक जगह-जगह घूमकर सत्य, अहिंसा एवं जीवमात्र से प्रेम का प्रचार किया। उन्होंने लोगों में ज्ञान की अजस्र धारा प्रवाहित कर, सत्य के मार्ग पर चलना सिखाया।
कल्प सूत्र के आधार पर माना जाता है की महावीर स्वामी ने अपने जीवन के 40 वर्ष से ज्यादा समय अस्तिग्राम, चम्पापुरी, वैशाली, नालंदा, मिथिला, भद्रिका,अलाभिका ,पनिताभूमि, श्रावस्ती और पावापुरी में विताये ।
महावीर स्वामी का उपदेश – Teachings of Mahavira
भगवान महावीर स्वामी Mahavir Swami के अनुसार हिंसा करना, झूठ तथा चोरी करना ये पाप के अंतर्गत आते हैं। उन्होंने अपने अनुयायी को सदैव इनसे बचने की सलाह दी। स्वामी जी ने अपना उपदेश मागधी या प्राकृत भाषा में प्रदान किया था।
महावीर स्वामी ने सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दमन, सम्यक् चरित्र को मुक्ति का मार्ग बताया। उनके अनुसार आवश्यकता से अधिक धन या किसी अन्य वस्तु को जमा करना पाप के समान होता है।
महावीर स्वामी ने अपने उपदेश में बताया की सिर्फ बड़े जाति या कुल में जन्म लेने से कोई व्यक्ति महान् नहीं होता। बल्कि उन्होंने कर्म की प्रधानता पर बल दिया। उनके अनुसार कर्म ही आदमी को महान् बनाता है। उन्होंने सभी जीवों पर दया करने का पाठ पढ़ाया।
महावीर स्वामी का प्रथम उपदेश
कहा जाता है की भगवान महावीर स्वामी ने अपना प्रथम उपदेश राजगृह के पास विपुलांचल पहाड़ी पर दिया था। उनके प्रथम शिष्य ‘जमाली’ और शिष्या ‘चंदना’ थी। उन्होंने अपने उपदेश में बताया की किसी भी जीव को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए।
भगवान महावीर स्वामी के प्रथम उपदेश को ’बिरशासन उदय’ के नाम से जाना जाता है। इनका प्रथम शिष्य जामालि था। इनके अनुयायियों को ’निर्ग्रन्थ’ (बंधनरहित) कहा जाता था।
महावीर भगवान के पाँच महावर्त
जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर पार्शवनाथ जी ने महावर्तों की संख्या चार बताई थी – सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और अस्तेय। लेकिन भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य को जोड़कर इनकी संख्या पाँच कर दी।
इन पाँच चीजों को अपने जीवन में उताड़ना सभी जैन मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका के लिए अनिवार्य है।
1. अहिंसा – उन्होंने सभी जीवों के प्रति समभाव रखने पर जोड़ दिया। अहिंसा का पालन करते हुए सभी जीवों पर दया करने का उपदेश दिया। महावीर स्वामी ने कहा जितना प्रेम अपने आत्मा से करते हैं। उतना ही प्रेम दूसरों के साथ भी करना चाहिए।
2. सत्य – भगवान महावीर ने सत्य की महत्ता पर बल देते हुए कहा की मनुष्य को हर स्थिति में सत्य बोलना चाहिए। उन्हें सत्य का साथ किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए।
3 . अपरिग्रह – उन्होंने अपने उपदेश में कहा तृष्णा ही दुखों का कारण होता है। फलतः हमे सांसारिक मोह माया का परित्याग करना चाहिए।
4 . अस्तेय – महावीर स्वामी ने आत्म संतुष्टि पर बल दिया। उन्होंने ने कहा भगवान ने जितना दिया है उतने में ही हमें संतुष्ट रहना चाहिए। दूसरों की चीज़ों देखकर लालायित होना, चोरी करना महापाप है।
5 . बृह्मचर्य – महावीर स्वामी जी के अनुसार बृह्मचर्य सबसे बड़ा तप है तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए इसका पालन जरूरी है।
जैन धर्म की पुनर्स्थापना
जैसा की हम जानते हैं की भगवान महावीर स्वामी (Mahavir Swami )के कई नाम हैं। इन नामों में ”जिन’, अर्हत’, ‘निर्ग्रथ’, ‘महावीर’, ‘अतिवीर’ प्रमुख हैं। इनके एक नाम ‘जिन’ के कारण ही उनके धर्म का नाम ‘जैन धर्म’ कहलाया।
भगवान महावीर के सिद्धांत में कर्मों की पवित्रता और अहिंसा पर विशेष बल दिया गया है। जैन धर्म के मानने वाले ‘जैनी’ कहे जाते हैं। भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर हुए।
महावीर स्वामी ने प्रथम तीर्थकर पार्श्वनाथ द्वारा शुरू किए तत्वज्ञान को परिमार्जित कर उसको जैन धर्म के रूप में स्थायी आधार प्रदान किया। इस प्रकार भगवान महावीर स्वामी को अहिंसा पर आधारित जैन धर्म की पुन: स्थापना का श्रेय दिया जाता है।
महावीर स्वामी की मृत्यु – death of mahaveer swami
महावीर स्वामी ने जैन धर्म को फिर से जन-जन तक पहुचाने के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में निर्वाण को प्राप्त किया। इस प्रकार वे 72 वर्ष की आयु तक लोगों के बीच अपने ज्ञान की धारा से सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित करते रहे।
जैन समुदाय के लोग दीपावली के त्योहार को भगवान महावीर की निर्वाण दिवस रूप में बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। उनकी मृत्यु के बाद जैन धर्म की दो शाखाएँ में बंट गया। श्वेताम्बर और दिगम्बर। लेकिन दो शाखायों में बंटने के बावजूद भी स्वामी जी की द्वारा दिए गये उपदेश में कोई हानि नहीं हुई है।
महावीर जयंती – Mahavir Jayanti in Hindi
जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर भगवान महावीर की जयंती को पूरे भारत में धूम-धाम से मनाई जाती है। यह दिन जैन समुदाय के लिए बेहद खास होता है। क्योंकि इसी दिन जैन धर्म के मुख्य तीर्थकर महावीर स्वामी का नाम हुआ था।
महावीर जयंती हिन्दी कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदसी को मनायी जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के आधार पर देखा जाय तो महावीर जयंती मार्च या अप्रैल माह में पड़ता है। महावीर जयंती को जैन समुदाय के लोग जैन महापर्व के रुप में बड़े ही उमंग के साथ मनाया जाता है।
भगवान महावीर की मृत्यु की तिथि क्या थी?
जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें ) तीर्थंकर महावीर स्वामी की मृत्यु 527 ई. में पटना के निकट पावापुरी में हुआ था।
महावीर का जन्म कब और कहां हुआ था?
महावीर स्वामी का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व वैशाली के पास कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के राज परिवार में हुआ था।
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