हमारे भारत देश की घरती आध्यात्मिकता के लिए हमेशा से ही उर्वरा रही है। यहाँ भगवान राम, श्री कृष्ण, शंकराचार्य जैसी अनेक महान विभूतियों ने जन्म लिया। इस देश के अनेकों महापुरुषों ने अपने आचरण और अमृतवाणी से लोगों को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
ऐसी ही आध्यात्मिक विभूति में गुरु नानकदेव जी (shri guru nanak dev ji ) का नाम आता है। गुरु नानकदेव का जब इस धरा पर अवतरण हुआ। उस बक्त देश में जन-जीवन, सांस्कृतिक-धार्मिक दृष्टि से अत्यंत ही दुरूह हो चला था।
भारत में मुगलों की बादशाहत कायम थी। हिन्दू समुदाय के लोग निराश और हताश हो चले थे। ऐसे समय में गुरु नानक जी guru nanak ji का अवतरण हिन्दू समुदाय के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था।
वे विभिन्न धर्मों जैसे हिन्दू समुदाय के प्रकांड विद्वान, साधु-सन्तों और मुस्लिम समुदाय के मौलवी और फकीरों के साथ सत्संग किया। गुरुनानक देव जी को कई भाषा के जानकार थे।
उन्होंने पंजाबी के साथ-साथ हिन्दी, संस्कृत और फारसी का भी अच्छा ज्ञान था। वे कई साधु संतों और सूफी संतों की रचनाओं का भी अध्ययन किया था। नानक जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
वे एक दार्शनिक, समाजसुधारक, योगी, गृहस्थ और महान संत थे। इनके अनुयायी उन्हें गुरु नानक, बाबा नानक, गुरु नानक देव जी इत्यादि जैसे कई नामों से पुकारते थे
गुरुनानक देव (shri guru nanak dev ji ) सिक्ख धर्म के प्रथम गुरु कहलाते हैं। उन्होंने ही नानक पंथ का श्री गणेश किया था जो बाद में चलकर सिक्ख धर्म कहलाया।
गुरु नानकदेव सम्पूर्ण परिचय – Shri guru Nanak dev ji History stories in Hindi
गुरु नानकदेव जी का जन्म सन 1525 ईस्वी में पंजाब के तलवण्डी नामक गाँव में हुआ था। कलांतर में गुरु नानक देव जी का जन्म स्थल तलवण्डी, ननकाना साहब के नाम से जाना जाता है।
आजादी के बाद जब देश का बँटबारा हुआ तब यह स्थान पाकिस्तान में चला गया। ननकाना साहब पाकिस्तान के लाहौर से करीव 30 मील की दूरी पर स्थित है। गुरु नानकदेव जी के माँ का नाम तृप्ता देवी और उनके पिता का नाम कल्याणचंद या कालूराम था।
कहते हैं की उनके पिता सक्त स्वभाव के थे। लेकिन उनकी माँ बहुत ही धर्मपरायण और सरल स्वभाव की थी। यही कारण था की वे पिता की अपेक्षा माँ से ज्यादा प्रभावित हुए।
गुरु नानक देव (shri guru nanak dev ji ) बाल्यावस्था से ही अत्यन्त विनम्र, दयालु और शान्तप्रिय स्वभाव के थे। वे हमेश ध्यान और आत्म-चिन्तन में लगे रहते। यह बातें उनके पिता को एकदम ही पसंद नहीं था।
जिस कारण उनके पिता हमेशा चिंतित रहा करते थे। जब उनकी उम्र सात वर्ष की हई तब उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए पाठशाला भेजा गया। लेकिन वहाँ भी पढ़ाई में उनका तनिक भी मन नहीं लगता।
गहरे चिंतन में हमेशा खोये रहने के कारण अध्यापक ने जब उनसे कहा की तुम पढ़ाई क्यों नहीं कर रहे हो। तब बालक नानक ने बड़े ही विनम्र भाव से उत्तर दिया। और पूछा क्या आप मुझे इस सांसारिक ज्ञान से इतर परमात्मा के बारें में ज्ञान दे सकते हैं।
क्योंकि मुझे इन सांसारिक ज्ञान में कोई रुचि नहीं है। यह सुनकर उनके अध्यापक निः शव्द हो गये। गुरु नानकदेव ने अपनी पढ़ाई छोड़ कर अपने अधिकांश बक्त आत्म-चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे।
असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे गुरुनानक देव- SHRI GURU NANAK DEV JI HISTORY
नानक देव जी के पिता ने उन्हें एकबार मवेशी चराने का काम सौंपा। कहते हैं की एक दिन मवेशी चराने के दौरान संयोग से गुरु नानक देव जी की आँखें लग गयी। उनके सो जाने के कारण उनके मवेशी ने, पास के एक खेत का फसल चर गया।
उस खेत का किसान गुस्से में आकर नानक देव जी से अपने नुकसान की भरपाई को कहा। किसान की गुस्सा को शांत करते हुए गुरु नानक जी ने बड़े ही विनर्म स्वर में बोला चलिए देखें की आपकी फसल का कितना क्षति पहुँचा है।
किसान जब गुरु नानक देव (shri guru nanak dev ji ) को अपने खेत दिखाने के लिए ले गये। तब किसान अपने फसल को देखकर विस्मित रह गया। उसने पाया की उसके खेत का एक तिनका भी नुकसान नहीं हुआ है।
कहते हैं की एक बार गर्मी के मौसम में गुरु नानक देव अपने पशु के साथ किसी पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे। पेड़ के नीचे उन्हें भी नींद आ गयी। जब वे गहरी नींद में खो रहे थे, तब उनके चेहरे पर धूप आ गयी।
उस दौरान एक सर्प ने अपने फन उठाकर उनके मुख पर छाया कर दी। गाँव के कुछ लोगों ने जब यह दृश्य देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गये। उसी बक्त से लोगों को आभास हो गया की नानक देव जी कोई साधारण मानव नहीं बल्कि एक दिव्य पुरुष है।
1. खेत-रखवाली GURU NANAK STORIES
नानक देव जी (shri guru nanak dev ji ) के पिता ने उन्हें एक बार खेत की रखवाली के लिए भेजा क्योंकि खेत की फसल को चिड़ियाँ चुग जाती थी। खेते में जाकर वे चिड़ियाँ उड़ाने के वजाय प्रभु के स्मरण में लगे रहे।
इधर चिड़ियाँ खेत चुगती रहीं और उन्होंने भगाया नहीं। जब इस बात का पता उनके पिता को चला तब उन्हें बहुत डांट पड़ी।
2. साधु-संतों के सेवा – GURU NANAK STORIES 2
उनके जीवन की दूसरी घटना है। एक बार उनके पिता ने कुछ समान लाने के लिए उन्हें बाजार भेजा। साथ ही एक आदमी को भी उनके साथ में भेजा।
लेकिन उन्होंने सामान लाने के वजाय रास्ते में ही सारे पैसे साधु-संतों के सेवा में खर्च कर दिया। उनके साथी ने नानक देव जी के पिता को सारी बात बता दी। घर पहुचने पर उनके पिता ने खूब पीटा।
3. खाने के स्टोर के निरीक्षक – GURU NANAK STORIES
एक बार वे अपने बहनोई जयराम के यहाँ कपूरथले पहुँच गए। उनके बहनोई ने उन्हें लोदी खाँ नवाब के यहाँ खाने के स्टोर के निरीक्षक की नौकरी दिलवा दी। वहाँ भी वे साधु-सन्तों को खूब खिलाते-पिलाते रहे।
नवाब पर शिकायत पहुँची। उसने स्टोर की जाँच कराई। लेकिन उसके राशन में कुछ कमी नहीं पायी गयी। नवाब को आश्चर्य हुआ तथा गुरु नानक के प्रति उनकी श्रद्धा बढ़ गई।
Shri guru nanak dev ji का विवाह एवं गृह-त्याग
गुरु नानक जी का विवाह बटाला के मूलाराम की कन्या सुलक्षणा देवी के साथ सम्पन हुआ। नानक देव जी को दो पुत्र थे एक का नाम श्रीचंद्र और दूसरे का नाम लक्षमीदास था। इतना सब होने के बावजूद उन्हें मोहमाया और सांसार से विरक्ति हो होने लगी।
कहते हैं की एक बार वे नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान के दौरान वे आत्म चिंतन में खो गये। तभी कहा जाता है की आकाशवाणी हुई कि नानक जिस काम के लिए तुम्हार इस जगत में जन्म हुआ है।
उसे पूरा करने का समय आ गया है। मोहमाया को परित्याग कर अपने कार्य सिद्धि में लग जाओ। कहते हैं की तत्पश्चात उन्होंने गृह त्याग कर दिया।
भ्रमण एवं उनके धार्मिक सिद्धान्त- guru nanak teachings
घर त्यागने के बाद वे मरदाना नामक अपने एक मुस्लिम शिष्य के साथ इधर-उधर घूमने लगे। और घूम-घूम कर वे प्रवचन करने लगे। उनकी अमृतवाणी को सुनकर दिन प्रतिदिन अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी।
उन्होंने समस्त भारत में वेदान्त का प्रचार किया। साथ ही वे भारत के बाहर अफगानिस्तान, अरब और फारस तक वेदान्त का प्रचार-प्रसार किया।
कहते हैं की वे मुस्लिम के पवित्र धर्म स्थल मक्का की भी यात्रा की और काबा भी गये। एक बार वे काबे में जाकर सो रहे थे। उनको सोये हुए देखकर मुसलमान लोग भड़क उठे क्योंकि सोते हुए उनका पाँव काबे की तरफ था।
तब नानक जी ने उनसे कहा की भाई, मेरे पाँव उधर घूमा दो जिधर अल्लाह न हो। कहते हैं की उनके पाँव को जिधर घुमाया जाता उधर ही काबा नजर आता। इस प्रकार उन्होंने सिद्ध किया की ईश्वर कहें या खुदा वे सर्वत्र विराजमान है।
गुरु नानकदेव जी ने काजी के द्वारा पूछे गये प्रश्नों का बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से उत्तर दिया। उनके उत्तर पाकर काजी बहुत ही प्रभावित हुए।
गुरु नानकदेव जी ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता को स्वीकारा लेकिन मूर्ति-पूजा को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने उंच-नीच, जाती-पाती के बीच के खाई को पाटने का काम किया।
उन्होंने वर्ण-व्यवस्था की व्याख्या गुण और कर्मों के अनुसार किया। गुरुनानक देव ने योग और भक्ति को परम शान्ति का मार्ग बताया। उन्होंने भागवत प्राप्ति के लिए गुरु-भक्ति पर बल दिया।
उनके वाणियों में कबीर,रैदास, मीराबाई की वाणियों का भी समावेश मिलता है। नानक जी ने अपने अनुयायी को एक मूलमंत्र दिया –
‘एक ओंकार सतनाम, कर्ता पुरख, निर्मोह निर्वैर, अकाल मूरत, अजूनी सभं, गुरु परसाद जप’ । आदी सच, जुगाद सच, है भी सच, नानक होसे भी सच ॥
सिख पंथ और गुरु नानकदेव-
shri guru nanak dev ji ने ‘नानक पंथ’ की नींव रखी जो आगे चलकर सिक्ख धर्म के नाम से जगत प्रसिद्ध हो गया। उनके अनुयायी सिक्ख या सिख कहे जाते हैं। सिक्ख ‘ शब्द का मतलब शिष्य से होता है। उनके शिक्षाओं को दूसरे गुरुओं ने आगे बढ़ाया।
निधन – Guru nanak death
गुरुनानक देव जी (shri guru nanak dev ji ) का 70 वर्ष की अवस्था में सन 1596 ईस्वी में अपने शरीर का त्याग कर परलोक चले गये। भारत के सभी धर्मों के लोगों का उनके प्रीत अपार श्रद्धा है।
वे एक महान युग प्रवर्तक, संत और धर्म-प्रणेता थे। जातिगत वैमनस्य को दूर करने के लिए guru nanak ji ने लंगर और संगत परंपरा की शुरुआत की।
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