Swami Vivekanand ka jivan Parichay | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय pdf 2023

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekanand ka jivan Parichay

अगर आप स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय , Swami vivekanand ka jivan Parichay, स्वामी विवेकानंद की जीवनी pdf, जीवन की सच्ची घटना, अद्भुत कहानी, स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय आदि गूगल पर सर्च कर रहे हैं तो यह लेख आपके लिए है।

Contents
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय pdf  – Swami Vivekanand ka jivan Parichayअपने दोस्तों के बीच लोकप्रियशिक्षा दीक्षा –स्कूल की घटनाईश्वर के जानने की प्रति गहरी जिज्ञासारामकृष्ण परमहंस से मुलाकातस्वामी विवेकानंद के जीवन की घटनारामकृष्ण का शिष्यत्व ग्रहण करनास्वामी जी का भारत भ्रमणस्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियांस्वामी विवेकानंद का नाम विवेकानंद कैसे पड़ाविश्व सर्वधर्म सम्मेलन के लिए रवानास्वामी विवेकानंद जीवन के अनजाने सचपश्चिमी देश का भारत के प्रति नजरियास्वामी जी के शिकागो भाषण के कुछ अंश–स्वामी विवेकानंद के सामाजिक कार्यस्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारणस्वामी विवेकानंद के सम्मान मेंयुवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के विचारउपसंहारस्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय इन हिंदीF.A.Qप्रश्न- स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध है?प्रश्न-स्वामी विवेकानंद रात में कितने घंटे सोते थे?प्रश्न-स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कार्य कौन से थे?प्रश्न-स्वामी विवेकानंद ने शादी क्यों नहीं की

स्वामी विवेकानंद कौन थे (Swami Vivekananda (Indian monastic))

भारत के महान युग-पुरुष  स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) त्याग, तपस्या, सेवा और भारतीयता दर्शन के प्रखर प्रवक्ता थे। वे परमार्थ के प्रतिमूर्ति थे जिन्होंने दुनियाँ को वेदान्त का पाठ पढ़ाया।

भारत की पवित्र भुमि पर अनेकों संतों ने जन्म लिया, लेकिन भारतीय दर्शन और सनातन धर्म के दिव्य ज्ञान को जन-जन तक पहुचाने का काम अगर किसी संत ने किया तो वह नाम था स्वामी विवेकानंद जी का।

- Advertisement -

एक युवा सन्यासी के रूप में उन्होंने विश्व भर में भारतीय दर्शन से अवगत कराया। आडंबरों और अंधबिश्वासों से ऊपर उठकर उन्होंने धर्म की अद्भुत विवेचना किया।

स्वामी विवेकानंद का कहना था, धर्म मनुष्य के भीतर सद्गुणों का विकास है। यह केबल किताब या धार्मिक सिद्धांत में निहित नहीं है। उनके व्यक्तित्व में ऐसा ओज था,  उनकी वाणी में ऐसा जादू था की उनकी बातों को सुनकर सामने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था।

उनके द्वारा कही गई हरएक बातें प्रेरणादायक और सटीक होती थी। उन्होंने अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म-सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सनातन धर्म और वेदान्त दर्शन से दुनियाँ को अवगत कराया।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekanand ka jivan Parichay
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय ( Swami Vivekanand ka jivan Parichay)

उनके विचार को सुनकर उपस्थित सारे श्रोता मंत्र-मुग्ध हो गए। कई मिनटों तक तालियाँ बजती रही। उनकी बोलेने की (वक्तृत्व) शैली तथा प्रखर ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया था।

उन्होंने युवाओं से कहा था जीवन में हार मानकर कभी भी रुकना नहीं चाहिए। सफल होने के लिए स्वामी विवेकानंद के कथन-“उठो, जागो, और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये”। उनके जन्म दिवस को प्रतिवर्ष ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

आइये जाने 8 साल की उम्र में स्कूल में दाखिला,  21 साल के उम्र में  बी ए पास करना,  25 साल के उम्र में सन्यास ग्रहण, 30 साल की युवा अवस्था में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेना और मात्र 39 साल के अवस्था में समाधी ग्रहण करने तक की सम्पूर्ण जीवनी।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय pdf  – Swami Vivekanand ka jivan Parichay

भारत के युवा सन्यासी स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 ईस्वी में कोलकता में एक कुलिन परिवार में हुआ था। था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो पेशे से वकील थे तथा कलकत्ता उच्च न्यालाय में वकालत करते थे।

उनकी माता का नाम भुवनेस्वरी देवी थी जो एक बहुत ही विदुषी महिला थी। उनकी माँ भुवनेस्वरी देवी भगवान शिव की परम भक्त थी और धर्म-कर्म में विशेष आस्था रखती थी। उनके वचपन का पूरा नाम नरेंद्र नाथ दत्त था तथा धर के लोग उन्हें नरेंद्र कह कर संबोधित किया करते थे।

नरेंद्र वचपन से ही अपनी माँ से रामायण, महाभारत आदि धार्मिक कहानियों सुना करते थे। इस प्रकार बचपन से नरेंद्र के अंदर धर्म और अध्यात्म के प्रति लगाव उत्पन्न हो गया था। वल्याबस्था से ही उसमें धीरे-धीरे धार्मिकता के बीज अंकुरित होने लगा।

नरेंद्र की असाधरण क्षमता, बुद्धिमानी और तीक्ष्ण स्मरण शक्ति ने उन्हें बचपन में ही अपने दोस्तों के बीच एक लीडर के रूप में पहचान दिला दी थी। उनकी मधुर आवाज और बोलने की अद्भुत शैली सुनने वालों को मंत्रमुग्ध करती थी।

अपने दोस्तों के बीच लोकप्रिय

नरेंद्र अपने दोस्तों के बीच बड़े लोकप्रिय थे। वे हमेश अपने मित्र मंडली का नेतृत्व किया करते थे। नरेंद्र बचपन से ही नीरसता को पसंद नहीं करते थे। उनके जीवन में हमेशा सक्रियता दिखाई पड़ती है। नरेंद्र को बचपन से ही संगीत के साथ-साथ योग में विशेष रुचि थी।

अपने दोस्तों के साथ मिलकर वे नियमित रूप से व्यायाम किया करते थे। साथ ही वे अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपना प्रिय खेल ‘राजा और राजदार’ खेला करते थे। इसके लिए बकायदा राज दरवार लगाया जाता था।

कमरे की सीढ़ी के सबसे ऊपर वाले पौड़ी को राजसिंहासन बनाकर बालक नरेंद्र खुद राजा बनकर उस राजसिंहासन पर विराजमान हो जाते थे। तत्पश्चात राजमंत्री की नियुक्ति के साथ सबको अपने पदों के अनुसार बैठने का स्थान निर्धारित किया जाता था।

इस प्रकार वे एक शाही गरिमा के साथ राज दरबार लगाकर विचार विमर्श करते और किसी विषय पर फैसला सुनाते। अगर उनके साथियों का आपस में किसी प्रकार का वाद-विवाद हो जाता था तब इनकी सुलह के लिए सभी नरेंद्र के ही पास ही जाते थे।

इसके अलावा वे अपने मित्र-मंडली के साथ मिलकर रंगमंच सजाते और नाटक खेला करते थे। इसके लिए घर के पूजा-कक्ष को नाट्यशाला बनाया जाता। वे तैराकी, कुश्ती और घुड़सवारी में भी बड़े ही निपुण थे।

शिक्षा दीक्षा –

नरेंद्र बचपन से ही तेज बुद्धि के थे। उनकी शिक्षा दीक्षा कलकता में ही हुई। जब वे तीसरी कक्ष में थे तब उन्हें अपने पिता के साथ रायपुर जाना पड़ा। उस दौरान रायपुर में स्कूल नहीं होने के कारण उनके शिक्षा में रुकावट आई।

करीब दो साल के बाद अपने पिता का साथ कलकत्ता वापस लौटे। उस बक्त बालक नरेंद्र की उम्र महज 8 साल की थी। कलकत्ता में इनका नामांकन ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में कराया गया।

इस प्रकार स्वामी विवेकानंद कि आरंभ से ही अंग्रेजी एवं बांग्ला में शिक्षा प्राप्त हुई। मात्र 21 वर्ष की अवस्था में ही स्वामी विवेकानंद जी ने बी ए की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी।

उनके पिता एक जाने-माने वकील थे, घर में किसी सुख-सुविधा की कमी नहीं थी। लेकिन वर्ष 1884 में उनके पिता की मृत्यु के पश्चात कहा जाता है की उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था।

बी ए करने के बाद वे कानून की पढ़ाई में जुट गये। कॉलेज में अध्ययन के दौरान ही उनका संपर्क ब्रह्म समाज से हुया। उनके अंदर धर्म और अध्यात्म के बारें में जानने को लेकर कई प्रश्न और जिज्ञासा थी। लेकिन ब्रह्म समाज के संपर्क में आकार भी उनकी धार्मिक और आध्यात्मिक जिज्ञासा शांत नहीं हुई।

स्कूल की घटना

कहा जाता है की एक बार क्लास में उनके शिक्षक पढ़ा रहे थे। तभी वे अपने दोस्तों से बातें करते हुए पकड़े गये। शिक्षक ने एक-एक कर सभी लड़के को पढ़ाई गई बात को दोहराने को कहा। टीचर की बात को सुनकर सभी लड़के चुप हो गये।

क्योंकि बातों में मशगूल होने के कारण उन्होंने टीचर की बातों को ध्यान से सुना ही नहीं थी। तब शिक्षक ने गुस्से से पूछा तुम लोगों में बात कौन कर रहा था। तब सभी लड़के नरेंद्र की तरफ इशारा करने लगे। टीचर ने नरेंद्र से बोला की अभी मैंने क्या पढ़ाया सुनाओ।

तब बालक नरेंद्र ने उसे हूबहू सूना दिया। यह सुनकर शिक्षक आश्चर्य चकित रह गये, उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था की बातों में मशगूल होने के बावजूद भी नरेंद्र ने पूरा पाठ सुना दिया। इस प्रकार उनके टीचर को नरेंद्र की प्रतिभा को मानना पड़ा था।

ईश्वर के जानने की प्रति गहरी जिज्ञासा

बचपन से ही उन्हें आधात्म और ईश्वर के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता थी। लेकिन वे हर बात को विना तर्क की कसौटी पर कसे और उनकी सच्चाई जाने बिना बिश्वास नहीं करते। वे ईश्वर की सत्ता को विना प्रमाण मानने को तैयार नहीं थे।

कहते हैं की जब भी वे किसी संत या महात्मा से मिलते उनका एक ही प्रश्न होता, क्या अपने भगवान को देखा है। महात्मा ढेर सारे तर्क के माध्यम से उन्हें समझाने की कोशिस करते।

लेकिन वे इन तर्कों के आधार पर मानने को तैयार नहीं थी। इस क्रम में उन्हें रामकृष्ण परमहंस जी से मिलने का मौका मिला।

रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात

स्वामी विवेकानंद का अपने मन में उठी हुई कई सबालों का जबाब पाने की लालसा से रामकृष्ण परमहंस के पास गये। उन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस जी महाराज से सीधा वही सवाल किए, जिसका जवाव आज तक उन्हें नहीं मिल पाया था।

उन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस से पूछा की आप तो महान संत हैं, माँ काली की इतनी पूजा करते हैं, तो क्या आपने उन्हें कभी देखा है। क्या आपको माँ काली का दर्शन प्राप्त हुया। कहते हैं की रामकृष्ण परमहंस जी ने सहज भाव से नरेंद्र की तरफ देखा और उत्तर दिया हाँ।

उन्होंने स्वामी विवेकानंद से कहा की हाँ, में उन्हें ठीक वैसे ही देख पा रहा हूँ जैसे तुम्हें देख पा रहा हूँ। अगर दर्शन करना चाहते हो तो तुम्हें भी करा सकता हूँ। लेकिन एक शर्त है की तुम्हें मेरे बताये हुये मार्ग पर चलना होगा। क्या तुम सहमत हो।

पहली वार किसी ने नरेंद्र को प्रश्न हीन कर दिया था। उन्हें स्वामी परमहंस जी के द्वारा बोले गए शब्द अनुभूति की गहराई से निकला प्रतीत हुआ।  

उन्हें रामकृष्ण की उपस्थिति में अद्भुत आनंद की अनुभूति हुई। कहा जाता है उसी बक्त से उनका रामकृष्ण परमहंस के प्रति झुकाव शुरू हो गया।

स्वामी विवेकानंद के जीवन की घटना

रामकृष्ण परमहंस जी नरेंद्र की विलक्षण प्रतिभा से अवगत होने के बाबजुद भी तुरंत अपना शिष्य नहीं बनाया। शायद वे किसी खास घड़ी के इंतजार में थे। इधर नरेंद्र की रामकृष्ण परमहंस से दुबारा मिलने की जिज्ञासा और प्रबल होने लगी।

वे इच्छा न होते हुए भी वे रामकृष्ण परमहंस की ओर खिचे चले जा रहे थे। कुछ दिनों के बाद नरेंद्र फिर से दक्षिणेश्वर स्थित रामकृष्ण मठ  पहुचे। किंतु इस बार रामकृष्ण परमहंस जी ने देखते ही बोले,  नरेंद्र तुम आ गये।

जैसे की उन्हें ही अपने परम शिष्य नरेंद्र का वेसब्री वर्षों से इंतजार हो। परमहंस ने विवेकानंद को पास बुलाया और उनके माथे को स्पर्श किया। हाथ का स्पर्श होते ही मानो नरेंद्र के शरीर में जोड़ से विजली का झटका लगा।

उनका सारा शरीर झंकृत हो उठा तथा उन्हें अलौकिकता की अनुभूति हुई। उन्हें लगने लगा की मानो जैसे सारा कुछ तिरोहित होकर मंजिल मिल गया हो। कहते हैं की बाद में रामकृष्ण परमहंस जी ने स्वामी विवेकानंद जी को माँ काली से सकक्षात्कार कराया।

रामकृष्ण परमहंस ने अपने स्पर्श मात्र से उन्हें समाधि की अवस्था तक पहुचा दिया। स्वामी विवेकानंद को आभास हो गया की श्री रामकृष्ण परमहंस अद्वितीय आध्यात्मिक शक्तियों के पुंज हैं। उसी क्षण स्वामी विवेकानंद जी श्री परमहंस जी के चरणों पर गिर पड़े।

उन्हें आत्म-बोध की अनुभूति हो चुकी थी। इस प्रकार नरेंद्र ने उसी क्षण परमहंस जी को अपना गुरु मान कर अपने को उनके चरणों में अर्पित कर दिया। परमहंस जी को भी उन्हें वो शिष्य मिल चुका था जिसकी उन्हें तलाश थी।

रामकृष्ण का शिष्यत्व ग्रहण करना

नरेंद्र श्री रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा प्राप्त कर उनके परम शिष्य बन गये। इस प्रकार उन्होंने आगे की कानून की पढ़ाई छोड़ कर मात्र 25 वर्ष की अवस्था में सन्यास ग्रहण कर लिया। उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी और त्याग का वर्त घारण कर लिया। 

श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने विवेकानंद को कहा की नरेंद्र तुम्हारा जन्म सांसारिक कर्मों के लिए नहीं बल्कि किसी खास प्रयोजन के लिए हुया है। तुम एक दिन विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाओगे। इस प्रकार परमहंस जी ने स्वामी विवेकानंद को मानव मात्र में परमात्मा के दर्शन की प्रेरणा दी।

रामकृष्ण परमहंस जी महाराज गले के केन्सर से पीड़ित थे। एक बार विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से कहा था की आप माँ काली के परंभक्त होते हुए केन्सर से पीड़ित हैं। आप माँ काली से अपने रोगों को दूर करने की कामना क्यों नहीं करते।

तब रामकृष्ण परमहंस ने बड़े ही सहज भाव से उत्तर देते हुए कहा की माँ से इस नश्वर शरीर के लिए क्या मांगना। एक न एक दिन तो इस शरीर को नष्ट होना ही है। अगर मांगना ही हो तो कुछ वैसा मांगा जाय जिसे पाने के वाद कुछ भी पाना शेष नहीं रहे।

कहते हैं बर्ष 1984 के बाद स्वामी रामकृष्ण का स्वास्थ बेहद बेहद खराव रहने लगा। इस प्रकार करीब दो वर्ष के बाद 1986 में रामकृष्ण परमहंस जी ब्रह्मलीन हो गये। कहा जाता है की अपने समाधि के चार दिन पहले ही परमहंस जी ने अपना सारा ज्ञान अपने परम शिष्य को प्रदान कर दी थी।

स्वामी जी का भारत भ्रमण

स्वामी विवेकानंद ने गेरुआ वस्त्र धारण कर वाराणसी, वृंदावन, लखनऊ, हाथरस होते हुए हिमालय की तरफ चले गये। हिमालय के घने जंगल, झरने, अनुपम दृश्य, हिमाच्छादित पर्वत शिखर तथा वहाँ व्याप्त असीम शांति और अनुपम वातावरण ने उनके अंदर अद्भुत उत्साह का संचार किया।

वे कई वर्ष तक हिमालय में ही तपस्या में लीन रहे और दिव्य ज्ञान की प्राप्ति की। उसके वाद वे कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पैदल ही समपूर्ण भारत का भ्रमण किया। उस बक्त हमारा देश भारत अंग्रेजों का गुलाम था।

वे भारतीयों के दिन-हीन दशा को देखकर काफी चिंतित थे। वे अतीत भारत के गौरवपूर्ण इतिहास से वर्तमान भारत की दशा की तुलनकर अति दुखी होते। उन्होंने भारतीयों का दशा सुधारने का संकल्प लिया।

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियां

स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी एक अद्भुत कहानी है। जब वे विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने हेतु अमेरिका के शिकागो रवाना हो रहे थे। तब रवाना होने के पहले वे अपने गुरुमाता माँ शारदा के पास आशीर्वाद लेने पहुचें।

माँ शारदा उन्हें कुछ भी उत्तर नहीं दिया। असल में उनकी गुरुमाता परीक्षा ले रही थी। जब विवेकानंद ने दुबारा पूछा तब माँ शारदा ने उन्हें एक चाकू की तरफ इशारा करते हुए लाने को बोली। स्वामी विवेकानंद विना कुछ सबाल किए उनकी आज्ञा का पालन किया।

उन्होंने चाकू लाकर माँ शारदा की तरफ बढ़ा दिया। तब माँ शारदा ने देखा की स्वामी विवेकानंद चाकू का धार वाला हिस्सा खुद पकड़ कर मूठ की तरफ से चाकू उन्हें पकड़ा रहा है। जबकी आमतौर पर चाकू मांगने पर लोग मूठ का भाग पकड़ कर धार के तरफ से चाकू सामने भले की तरफ बढ़ाते हैं।

माँ शारदा को समझते देर नहीं लगी उन्हें पता चल चुका की स्वामी विवेकानंद के अंदर परमार्थ की भावना जागृत हो चुकी है। उन्होंने आशीर्वाद दिया और कहा पुत्र तुम्हारे अंदर जन-कल्याण की भावना प्रबल हो चुकी है। जाओ विश्व में तुम्हारा नाम रौशन हो।

स्वामी विवेकानंद का नाम विवेकानंद कैसे पड़ा

अमेरिका, शिकागो रवाना होने के पहले वे खेतरी राजा के अनुरोध पर खेतरी गये। खेतरी के महाराज ने उन्हें स्वामी विवेकानंद नाम धारण करने का अनुरोध किया। उनके अनुरोध को स्वामी जी ने स्वीकार कर लिया इस प्रकार वे स्वामी विवेकानंद के नाम से पूरे विश्व प्रसिद्ध हो गये।

विश्व सर्वधर्म सम्मेलन के लिए रवाना

अमेरिका के शिकागो में सन 1893 ईस्वी में विश्व सर्व धर्म-सम्मेलन को आयोजन किया गया। स्वामी विवेकानंद सनातन धर्म, सत्य व सार्वभौम सिद्धान्तों का बोध विश्व को करना चाहते थे। इसी कारण वे विश्व सर्व धर्म-सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका गए।

उन्हने 31 मई 1893 को बम्बई से जहाज के माध्यम से शिकागो(United states ) के लिए रवाना हुये। कहते हैं की विवेकानंद जी इस सम्मेलन के पांच हफ्ते पहले ही 25 जुलाई 1893 को Chicago  पहुंच गये। इस दौरान उन्हें ढेर सारे कष्टों का सामना करना पड़ा।

स्वामी विवेकानंद जीवन के अनजाने सच

जब वे अमेरिका पहुचें उस बक्त वहाँ कड़ाके की ठंड थी। हालांकि उनके शिष्यों ने मुंबई से रवाना के बक्त कुछ गर्म कपड़े दिए थे। लेकिन शिकागो की सर्दी के लिए वे कपड़े पर्याप्त नहीं थे।

ऊपर से शिकागो अमेरिका का बहुत महंगा शहर था, तथा उनके पास खर्चे के लिए पर्याप्त पैसे भी नहीं थे। इस प्रकार शिकागों में कड़ाके की ठंड से बचने के लिए उन्हें यार्ड में खड़ी मालगाड़ी में सोकर कई रातें गुजारनी पड़ी थी।

पश्चिमी देश का भारत के प्रति नजरिया

पश्चिमी देश के लोगों का उस समय भारत के प्रति नजरिया अच्छा नहीं था। भारत को दिन-हीन और पराधीन होने के कारण अत्यंत ही हीन भाव से देखा जाता था। वहाँ सूची में भारत के लिए जगह ही नहीं थी। कहते हैं की एक अमेरिकन प्रोफेसर ने स्वामी विवेकानंद  की सहायता की।

फलसरूप उन्हें कुछ क्षण बोलने को मौका दिया गया। लेकिन उनके सारगर्भित बातों को सुनकर सभी उपस्थित विद्वान दंग रह गए। उन चंद मिनटों में ही उन्होंने सनातन धर्म की महत्ता को जिस प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उससे वहाँ बैठे 7000 से अधिक विद्वान मंत्र मुग्ध हो गये।

स्वामी जी के शिकागो भाषण के कुछ अंश

स्वामी विवेकनन्द को जब भी याद किया जाता है तब उनके द्वारा अमेरिका में दिया गया भाषण की चर्चा जरूर होती है। स्वामी विवेकानंद जैसे ही अपने भाषण की शुरूयात ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ से शुरू की, पूरा हॉल तालियों की ध्वनि से गूंज उठा।

उनके संबोधन के प्रथम वाक्य मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ ने सबका दिल जीत लिया था। कई मिनटों तक तालियाँ वजती रही। इस विश्व धर्म-सम्मेलन में वे भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए वेदान्त दर्शन से दुनियाँ को अवगत कराया। उन्होंने कहा : –

“अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है। मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं। सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।”

इस सारगर्भित भाषण के कारण कुछ मिनट वाद उन्हें फिर से अपना विचार रखने का अवसर मिला। उस विस्तृत भाषण में उन्होंने गीता एवं उपनिषदों में कथित निष्काम भाव कर्म की सुरुचिपूर्ण व्याख्या की।

उनके विचार से प्रभावित होकर अमेरिका में उनका भव्य स्वागत हुआ। वे करीब तीन साल तक अमेरिका में रहे। भौतिकवाद से ऊब चुके पश्चिमी देशों के लोगों को उनके विचार से शांति का नया मार्ग दिखाई दिया।

उनकी ओजस्वी वाणी को सुनने के लिए जगह-जगह से निमंत्रण आने लगे। तीन वर्ष तक वे अमेरिका में रहकर वहाँ के लोगों को भारतीय वेदान्त से अवगत कराया। पश्चिमी देशों में उनके ढेरों सारे शिष्य हो गये। उनके प्रमुख शिष्यों में इंगलेंड की सिस्टर निवेदिता एक थी।

स्वामी विवेकानंद के सामाजिक कार्य

विदेशों में करीब तीन साल अपने ज्ञान से लोगों को आत्मबोध कराने के बाद 16 दिसंबर 1895 को स्वदेश लौट आए। भारत लौटकर स्वामी विवेकानंद  ने लोगों में नई चेतना जगाई। उन्होंने जन-जन में प्रेम, त्याग एवं सेवा भावों को जागृत किया।

भारतीयता के नाम पर उन्हें गौरव की अनुभूति होती थी। उन्होंने लोगों को संगठित कर रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं एवं उपदेशों को जन-जन तक पहुचाने का काम किया।

उन्होंने अपने गुरु के नाम पर 1897 में रामकृष्ण मिशन (Ramkrishna mission )की स्थापना की।  इस मिशन के द्वारा वे रामकृष्ण परमहंस के संदेश को धर-धर तक पहुचाने का काम किया।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण

स्वामी विवेकानंद ध्यानावस्था में ही 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की अवस्था में परमधाम सिधार गये। स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण दिल का दौरा माना जाता है। लेकिन महान आत्मा कभी मरते नहीं हैं, वे अपने कार्य पूरा कर ब्रह्मलीन हो गये।

बेलूर मठ (Belur math) से कुछ दूरी पर गंगा तट पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। इसी तट के दूसरी तरफ ठीक 16 वर्ष पूर्व उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस जी का अंत्येष्टि किया गया था। स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि 4 जुलाई को उन्हें विशेष रूप से याद किया जाता है।

स्वामी विवेकानंद के सम्मान में

स्वामी विवेकानंद भारतवर्ष के देशभक्त, युवा सन्यासी तथा युवाओं के प्रेरणास्रोत थे। उनके सम्मान में उनके जन्म दिवस को हर वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद  निष्काम कर्म, अद्वैतवाद एवं हिन्दू-धर्म की उदारता में पूर्ण विश्वास रखते थे। उनके अनुसार पीड़ित विश्व को भारतीय सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा ही सच्चे सुख और शांति का मार्ग दिखा सकती है।

युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के विचार

उन्होंने ने देश के युवाओं को आह्वान करते हुए कहा था जीवन में हार मानकर कभी भी रुकना नहीं चाहिए। युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के विचार सफलता के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने सफल होने के लिए मूलमंत्र दिया “उठो, जागो, और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य को प्राप्त न कर लो। 

उपसंहार

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय में हमने जाना की कैसे वे अल्प आयु पाकर भी दुनियों को इतना कुछ दे गये की वर्षों तक आने वाली पीढ़ी उन्हें याद करेंगे। समस्त भारत उन्हें स्मरण मात्र से हमेशा गौरान्वित अनुभव करता रहेगा।

वास्तव में स्वामी विवेकानंद जी का जीवन अदम्य साहस और उत्साह का अद्भुत मिसाल है। हमें अपने कर्म के प्रति उत्साही, कर्मवीर या दृढ़वर्ती होना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद को शिक्षाओं से हम बड़ी-से बड़ी विपत्ति को भी हँसकर अंत करने की प्रेरणा पाते हैं। उनके उपदेशों का संकलन ज्ञान योग, और राज योग नामक पुस्तक में की गयी है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय इन हिंदी

पूरा नाम स्वामी विवेकानंद
बचपन का नाम नरेंद्र
जन्म तिथि व स्थान 12 जनवरी 1863 कोलकता
पिता का नाम विश्वनाथ दत्त
माता का नाम भुवनेस्वरी देवी
स्वामी विवेकानंद के गुरु का नामश्री रामकृष्ण परमहंस
स्वामी विवेकानंद की पत्नी का नामस्वामी विवेकानंद ने शादी नहीं की
निधन 04 जुलाई 1902
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू

स्वामी विवेकानंद की जीवनी PDF in Hindi download

F.A.Q

प्रश्न- स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर- स्वामी जी ने रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन की स्थापना और वेदान्त दर्शन से विश्व को अवगत कराने के कारण जगत प्रसिद्ध हो गये।

प्रश्न-स्वामी विवेकानंद रात में कितने घंटे सोते थे?

उत्तर- स्वामी विवेकानंद बहुत कम होते थे। कहा जाता है की 24 घंटे में वे केवल 2 से 3 घंटे ही सोते थे।

प्रश्न-स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कार्य कौन से थे?

उत्तर- स्वामी विवेकानंद जी ने 1893 में ईस्वी में अमेरिका के शिकागो में सम्पन्न हुए विश्‍व धर्म सम्‍मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया और दुनियाँ को वेदान्त का पाठ पढ़ाया। इसके साथ ही उन्होंने रामकृष्‍ण मठ, रामकृष्‍ण मिशन तथा वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।

प्रश्न-स्वामी विवेकानंद ने शादी क्यों नहीं की

उत्तर- शुरू में पिता की मृत्यु के बाद आर्थिक तंगी में फंस गए। बाद में जब उनकी मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई तो उनके जीवन की दिशा और दशा ही बदल गई और जीवन भर उन्होंने शादी नहीं की ।

इन्हें भी पढ़ें : –

मीरवाई का जीवन परिचय

Share This Article
Leave a comment