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हमारे भारत देश की घरती आध्यात्मिकता के लिए हमेशा से ही उर्वरा रही है। यहाँ भगवान राम, श्री कृष्ण, शंकराचार्य जैसी अनेक महान विभूतियों ने जन्म लिया। जिन्होंने हमेशा अपने आचरण और अमृतवाणी से लोगों को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
ऐसी ही आध्यात्मिक विभूति में गुरु नानकदेव जी का नाम आता है। Shri Guru Nanak dev ji in Hindi शीर्षक वाले इस लेख में श्री गुरु नानक देव जी की जन्म कथा, बचपन की कहानी, उपदेश के बारें में विस्तृत वर्णन है।
गुरु नानकदेव का जब इस धरा पर अवतरण हुआ। उस बक्त देश में जन-जीवन, सांस्कृतिक-धार्मिक दृष्टि से अत्यंत ही दुरूह हो चला था। भारत में मुगलों की बादशाहत कायम थी। हिन्दू समुदाय के लोग निराश और हताश हो चले थे।
ऐसे समय में गुरु नानक जी का अवतरण हिन्दू समुदाय के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। गुरु नानक देव महान दार्शनिक, समाज सुधारक, योगी, गृहस्थ तथा संत थे। इनके अनुयायी उन्हें गुरु नानक, बाबा नानक, गुरु नानक देव जी इत्यादि जैसे कई नामों से पुकारते थे
उन्होंने सभी धर्मों के लिए एकता का संदेश दिया। उन्होंने विभिन्न धर्मों जैसे हिन्दू समुदाय के प्रकांड विद्वान, साधु-सन्तों और मुस्लिम समुदाय के मौलवी और फकीरों के साथ सत्संग किया। उन्होंने नानक पंथ का श्री गणेश किया था जो बाद में चलकर सिक्ख धर्म कहलाया।
गुरुनानक देव सिक्ख धर्म के प्रथम गुरु थे। श्री गुरु नानक देव ने ‘इक ओंकार’ का संदेश पूरे विश्व में फैलाया, जिसका मतलब होता है ईश्वर एक है। गुरुनानक देव जी के जन्म दिवस को गुरुनानक जयंती के रूप में पूरे देशभर में उत्साह के साथ मनाया जाता है।
श्री गुरु नानक देव जी के बारें में – Shri Guru Nanak dev ji in Hindi
पूरा नाम (Full name) | श्री गुरु नानक देव जी (Guru Nanak) |
असली व वास्तविक नाम | नानक |
जन्म की तारीख (Born) | 15 अप्रैल 1469 |
जन्म स्थान | रावी नदी के तट पर स्थित तलवंडी नामक गांव |
माता का नाम | तृप्ती देवी |
पिता का नाम | कल्याण चंद या कालू जी |
पत्नी का नाम (Spouse) | सुलक्खनी देवी (Sulakkhani devi) |
बच्चे (Children) | श्री चंद और लक्ष्मी दास |
मृत्यु | 22 सितंबर 1539 करतारपुर |
पेश (Occupation) | संत (saint) |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय (Indian) |
श्री गुरु नानक देव जी की जन्म कथा – Shri guru Nanak Dev ji ka jivan parichay
गुरु नानकदेव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ईस्वी में वर्तमान पाकिस्तान के तलवण्डी नामक गाँव में हुआ था। कलांतर में गुरु नानक देव जी का जन्म स्थल तलवण्डी, ननकाना साहब के नाम से प्रसिद्ध है।
आजादी के बाद जब देश का बँटबारा हुआ, तब यह स्थान पाकिस्तान में चला गया। ननकाना साहब पाकिस्तान के लाहौर से करीव 30 मील की दूरी पर स्थित है। गुरु नानक देव जी का जन्म एक मध्यम वर्गीय हिंदू परिवार में हुआ था।
नानक जी के माता जी का नाम तृप्ति देवी थी। उनके पिता का नाम कल्याणचंद या कालूराम के रूप में उल्लेख मिलता है। कहते हैं की उनके पिता सक्त स्वभाव के थे। लेकिन उनकी माँ बहुत ही धर्मपरायण और सरल स्वभाव की थी।
फलतः वे अपने पिता की अपेक्षा माँ से ज्यादा प्रभावित हुए। गुरु नानक देव बाल्यावस्था से ही अत्यन्त विनम्र, दयालु और शान्तप्रिय स्वभाव के थे। बचपन से ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक विषयों के प्रति रुचि से कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया था।
वे हमेश ध्यान और आत्म-चिन्तन में लगे रहते। यह बातें उनके पिता को एकदम ही पसंद नहीं था। जिस कारण उनके पिता हमेशा चिंतित रहा करते थे। जब उनकी उम्र सात वर्ष की हई तब उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए पाठशाला भेजा गया।
लेकिन वहाँ भी पढ़ाई में उनका तनिक भी मन नहीं लगता। गहरे चिंतन में हमेशा खोये रहने के कारण अध्यापक ने जब उनसे कहा की तुम पढ़ाई क्यों नहीं कर रहे हो। तब बालक नानक ने बड़े ही विनम्र भाव से उत्तर दिया।
क्या आप मुझे इस सांसारिक ज्ञान से इतर परमात्मा के बारें में ज्ञान दे सकते हैं। क्योंकि मुझे इन सांसारिक ज्ञान में कोई रुचि नहीं है। यह सुनकर उनके अध्यापक निः शव्द हो गये। उनका पढ़ाई से ज्यादा आत्म-चिंतन और सत्संग में मन लगता था।
उन्होंने साधु संतों और सूफी संतों की रचनाओं का गहन अध्ययन किया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी नानक जी कई भाषा के जानकार थे। उन्होंने पंजाबी के साथ-साथ हिन्दी, संस्कृत और फारसी का भी अच्छा ज्ञान था।
गुरु नानक की बचपन की कहानी (Guru Nanak stories in Hindi)
नानक देव जी के पिता ने उन्हें एकबार मवेशी चराने का काम सौंपा। कहते हैं की एक दिन मवेशी चराने के दौरान संयोग से गुरु नानक देव जी की आँखें लग गयी। उनके सो जाने के कारण उनके मवेशी ने पास के खेत का फसल चर गया।
उस खेत का किसान गुस्से में आकर नानक देव जी से अपने नुकसान की भरपाई को कहा। किसान के गुस्सा को शांत करते हुए गुरु नानक जी ने बड़े ही विनम्र स्वर में बोला चलिए देखें की आपकी फसल की कितनी क्षति हुई है।
किसान जब गुरु नानक देव को अपने खेत दिखाने के लिए ले गये। तब किसान अपने फसल को देखकर विस्मित रह गया। उसने पाया की उसके खेत का एक तिनका भी नुकसान नहीं हुआ है।
कहते हैं की एक बार गर्मी के मौसम में गुरु नानक देव अपने पशु के साथ किसी पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे। पेड़ के नीचे उन्हें भी नींद आ गयी। जब वे गहरी नींद में खो रहे थे, तब उनके चेहरे पर धूप आ गयी।
उस दौरान एक सर्प ने अपने फन उठाकर उनके मुख पर छाया कर दी। गाँव के कुछ लोगों ने जब यह दृश्य देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गये। उसी बक्त से लोगों को आभास हो गया की नानक देव जी कोई साधारण मानव नहीं बल्कि एक दिव्य पुरुष है।
1. खेत-रखवाली
नानक देव जी के पिता ने उन्हें एक बार खेत की रखवाली के लिए भेजा क्योंकि खेत की फसल को चिड़ियाँ चुग जाती थी। खेते में जाकर वे चिड़ियाँ उड़ाने के वजाय प्रभु के स्मरण में लगे रहे।
इधर चिड़ियाँ खेत चुगती रहीं और उन्होंने भगाया नहीं। जब इस बात का पता उनके पिता को चला तब उन्हें बहुत डांट पड़ी।
2. साधु-संतों के सेवा
उनके जीवन की दूसरी घटना है। एक बार उनके पिता ने कुछ समान लाने के लिए उन्हें बाजार भेजा। उनके साथ एक आदमी को भी साथ में भेजा। लेकिन उन्होंने सामान लाने के वजाय रास्ते में ही सारे पैसे साधु-संतों के सेवा में खर्च कर दिया।
उनके साथी ने नानक देव जी के पिता को सारी बात बता दी। घर पहुचने पर उनके पिता ने खूब पीटा।
3. खाने के स्टोर के निरीक्षक
एक बार वे अपने बहनोई जयराम के यहाँ कपूरथले पहुँच गए। उनके बहनोई ने उन्हें लोदी खाँ नवाब के यहाँ खाने के स्टोर के निरीक्षक की नौकरी दिलवा दी। वहाँ भी वे साधु-सन्तों को खूब खिलाते-पिलाते और सेवा करते।
जब नवाब के पास शिकायत पहुँची। तब उन्होंने स्टोर की जाँच कराई। लेकिन नवाब में पाया की राशन में कोई कमी नहीं है। यह देखकर नवाब को आश्चर्य हुआ और गुरु नानक जी के प्रति उनकी श्रद्धा और बढ़ गई।
श्री गुरु नानक देव जी के पत्नी, बच्चे
गुरु नानक जी का विवाह बटाला के मूलाराम की कन्या सुलक्षणा देवी के साथ सम्पन हुआ। नानक देव जी को दो पुत्र थे एक का नाम श्रीचंद्र और दूसरे का नाम लक्षमीदास था। भरा पूरा घर परिवार होने के बावजूद भी उन्हें मोहमाया और सांसार से विरक्ति होने लगी।
गृह-त्याग
एक समय की बात है गुरु नानक देव जी नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान के दौरान वे किसी आत्म चिंतन में खो गये। कहा जाता है की तभी आकाशवाणी हुई कि नानक जिस काम के लिए तुम्हार इस जगत में जन्म हुआ है। उसे पूरा करने का समय आ गया है।
मोहमाया को परित्याग कर अपने कार्य सिद्धि में लग जाओ। कहा जाता है की उसी क्षण उन्होंने दृढ़ निश्चय कर गृह त्याग कर दिया। घर त्यागने के बाद गुरु नानक देव अपने शिष्य मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ इधर-उधर वे घूम-घूम कर प्रवचन करने लगे।
उनकी अमृतवाणी को सुनकर दिन प्रतिदिन उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। उन्होंने समस्त भारत में वेदान्त का प्रचार किया। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के बाहर अफगानिस्तान, अरब और फारस तक प्रवचन दिया।
सिख धर्म में उनकी इस यात्रा को पंजाबी में “उदासियाँ” कहा जाता है। अपनी यात्रा के क्रम में वे मुस्लिम के पवित्र धर्म स्थल मक्का की भी यात्रा की और काबा भी गये। कहा जाता है की जब वे काबा गये थे तब एक दिन काबे में जाकर सो गये।
उनको सोये हुए देखकर कुछ लोग भड़क उठे। क्योंकि सोते हुए उनका पाँव काबे की तरफ था। तब नानक जी ने उनसे कहा की भाई, मेरे पाँव उधर घूमा दो जिधर अल्लाह न हो। तब कुछ लोगों ने उनके पाँव को उठाकर गुस्से में घुमाने लगे।
कहा जाता है की उनके पाँव को जिधर घुमाया जाता, उधर ही काबा नजर आता था। यह देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ और उनसे बहुत ही प्रभावित हुए। इस प्रकार उन्होंने सिद्ध किया की ईश्वर कहें या खुदा वे सर्वत्र विराजमान है।
वहाँ उनका साक्षात्कार काजी से भी हुआ। गुरु नानकदेव जी ने काजी के द्वारा पूछे गये प्रश्नों का बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से उत्तर दिया। उनके उत्तर को सुनकर काजी बहुत ही प्रभावित हुए। गुरु नानकदेव जी ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता को स्वीकारा करते थे।
लेकिन कहा जाता है की वे मूर्ति-पूजा में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने उंच-नीच, जाती-पाती के बीच के खाई को पाटने का काम किया। उन्होंने वर्ण-व्यवस्था की व्याख्या गुण और कर्मों के अनुसार किया।
गुरुनानक देव ने योग और भक्ति को परम शान्ति का मार्ग बताया। उन्होंने भागवत प्राप्ति के लिए गुरु-भक्ति पर बल दिया। उनके वाणियों में कबीर, रैदास, मीराबाई की वाणियों का भी समावेश मिलता है। नानक जी ने अपने अनुयायी को एक मूलमंत्र दिया –
‘एक ओंकार सतनाम, कर्ता पुरख, निर्मोह निर्वैर, अकाल मूरत, अजूनी सभं, गुरु परसाद जप’ । आदी सच, जुगाद सच, है भी सच, नानक होसे भी सच ॥
सिख पंथ और गुरु नानकदेव-
श्री गुरु नानक देव जी ने ‘नानक पंथ’ की नींव रखी जो आगे चलकर सिक्ख धर्म के नाम से जगत प्रसिद्ध हुआ। उनके अनुयायी सिक्ख या सिख कहे जाते हैं। सिक्ख ‘ शब्द का मतलब शिष्य से होता है।
गुरुनानक देव जी मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने हमेशा समाज में फैले रूढ़ियों और कुसंस्कारों का विरोध किया। उनका मानना था की भगवान हमारे अंदर ही मौजूद हैं उन्हें कहीं बाहर ढूढने की जरूरत नहीं है।
गुरु नानक देव जी ने कई तरह के धार्मिक सुधार के कार्य किए। उन्होंने जाति व्यवस्था का विरोध कर उन्हें खत्म करने के प्रयास किया। उन्होंने लोगों के मन में भावनाएं जागृत की हर इंसान एक है और ईश्वर बाहर नहीं हमारे अंदर मौजूद है।
गुरू नानक जी को पूरे दुनियाँ में सांप्रदायिक एकता, भाई चारे, शांति, सदभाव और सच्चाई का संदेश देने के लिए याद किया जाता है।
गुरु नानक के उपदेश
गुरु नानक को सिख धर्म की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। सिख धर्म विश्व का सबसे कम पुराना धर्म में से एक है। उन्होंने एक ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया और उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का वास है।
उन्होंने कभी भी मूर्तिपूजा और मठवाद का समर्थन नहीं किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को ईमानदारी पूर्वक गृहस्थ जीवन के साथ ईश्वर भक्ति का उपदेश दिया। उनका उपदेश 974 भजनों के रूप में संकलित है।
गुरु नानक ने अपने उपदेश द्वारा बताया कि प्रत्येक मनुष्य आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त करने में पूरी तरह से सक्षम है। मूर्ति पूजा और कर्मकांड को नानक जी ने कभी समर्थन नहीं किया।
नानक जी ने अपनी शिक्षाओं में बताया की ईश्वर तक पहुंचने के लिए कर्मकांड और पुरोहितों की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने ईश्वर की आराधना के लिए नाम जपना पर वल दिया। उन्होंने अपने शिष्यों को दूसरों की सेवा करने तथा शोषण अथवा धोखाधड़ी से दूर रहने का उपदेश दिया।
उन्होंने अपने अनुयायियों को समाजिक कार्य करते हुए समाज के अंदर ही सामान्य जीवन जीते हुए ईश्वर की आराधना और मोक्ष प्राप्त करने के तरीके से अवगत कराये।
कहा जाता है की गुरु नानक देव ने समाज में महिला सशक्तिकरण पर वल दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों से महिलाओं का सम्मान और बराबर का हक देने की अपील की।
गुरु नानक देव जी का निधन (Guru Nanak death)
नानक देव जी का अंतिम समय करतारपुर में शिष्यों को उपदेश देते हुए बीता। गुरुनानक देव जी 70 वर्ष की अवस्था में सन 1596 ईस्वी में अपने शरीर का त्याग कर परलोक चले गये। भारत के सभी धर्मों के लोगों का उनके प्रीत अपार श्रद्धा है।
जातिगत वैमनस्य को दूर करने के लिए नानक देव जी ने लंगर और संगत परंपरा की शुरुआत की। नानक देव जी ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने शिष्य लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जो आगे चलकर गुरु अंगद देव नाम से प्रसिद्ध हुए।
F.A.Q
गुरु नानक देव का असली नाम क्या था?
उनका असली नाम ‘नानक’ था।
गुरु नानक देव का जन्म कहाँ और कब हुआ?
गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन 15 अप्रैल 1469 को वर्तमान पाकिस्तान के ननकाना साहिब में हुआ था
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