holika dahan ki kahani in hindi – होलिका दहन की कहानी

HOLIKA DAHAN KI KAHANI IN HINDI – होलिका दहन की कहानी

होलिका दहन दशहरे के रावण दहन कि तरह है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई के जीत का घोतक है। रंगो के त्यौहार होली के पूर्व सन्ध्या पर होलिका दहन मनाया जाता है। होलिका दहन में होलिका की कहानी बहुत ही रोचक है।

इस लेख में जानेंगे की होलिका दहन क्यों मनाया जाता है ? होलिका दहन का इतिहास क्या है। क्यों हिरण्यकस्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को आग में जिन्दा जलाने का आदेश दिया। साथ ही जानेंगे की होलिका कौन थी और कैसे वह वरदान के बावजूद आग में जलने से नहीं बच पायी।

ऋषियों कि भूमि भारत आस्था और त्योहारों का देश है। भारतवर्ष में शायद ही कोई महीना होगा, जिस महीने कोई त्यौहार न हो। भारत में विभिन्य धर्मों के द्वारा नाना प्रकार के उत्सव मनाये जाते हैं।

इन उत्सवों में होली, बैसाखी, दशहरा, दीपावली, राम नवमी, मुहर्रम, रमजान, ईद, गुड फ्राइडे प्रमुख है। इसमें रंगों का त्यौहार होली मस्ती, एकता, उमंग और उत्साह का प्रतीक माना जाता है।

होलिका दहन की कहानी – Holika Dahan Ki Kahani In Hindi

यह त्यौहार वसंत के आगमन का प्रतीक कहलाता है। जब चहुं ओर प्रकृति अपनी अनुपम छटा से मन मुग्ध कर रही होती है। जब गुलमोहर, आम के पेड़ फूलने-फलने लगते हैं। जिस समय पार्क और बगीचों में रंग-बिरंगि फूलों से इंद्रधनुष जैसा शानदार दृश्य दिखाई देता है।

होली लोगों कि तनावपूर्ण जीवन शैली से अलग़ एक नवीन परिवर्तन का अहसास प्रदान करता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार,फाल्गुन माह के पूर्णमासी के अगले दिन होली का त्यौहार मनाई जाती है।

होली और होलिका दहन की कथा, इतिहास Holika Dahan Ki Kahani In Hindi

दो दिन तक चलने वाला होली का त्यौहार होलिका दहन से शुरू होती है। और अगले दिन रंगोत्सव के साथ समाप्त होती है। यह त्यौहार आमतौर पर मार्च महीने में आता है।

इस दिन होलिका दहन की कथा को कई माध्यमों से बड़े ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। होलिका दहन के लिए किसी सार्वजानिक स्थान का चुनाव किया जाता है।

गाँव में कुछ दिन पहले से ही नवयुवक होलिका दहन कि तयारी में जुट जाते हैं। सूर्यास्त के बाद होलिका दहन के लिए लोग टोली बनाकर एक जगह जमा होते है।

होलिका दहन के लिए चयनित स्थान पर पहले से ही लकड़ी का ढेर जमा किया जाता है। जिसमें गोबर के उपलों, घी और शहद आदि डाले जाते हैं।

पंचांग के अनुसार तय मुर्हुत पर लोग ढोल-मजीरा के साथ नाचते गाते हुए इस लकड़ी ढेर में आग लगाते हैं। इस अवसर पर सारे लोग मिलकर होली का पारम्परिक गीत फाग गाते हैं।

जब आग की लपटें जलती हैं, तो लोग ढोल बजाते, नाचते और गाते हुए, जलती हुई आग कि परिक्रमा करते हैं। लोग अग्नि देवता से अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।

किसान के लिए क्यों खास होता है होलिका दहन

किसान के लिए भी होलिका दहन वहुत ही अहम् होता है। इस समय किसान के खेतों में लहलहाती फसलें पकने को तैयार होती है।

वे होलिका दहन की अग्नि में वे गुड़ और गेहूं के आटे से तैयार विशेष पकवान भी समर्पित करते हैं। किसान के लिए होली और होलिका दहन उल्लास और उमंग का त्योहार है।

यह त्यौहार अच्छी फसल की कामना के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने हेतु मनाया जाता है। होलिका दहन के समय किसान गेहूँ व् चना के अधपके फसल को आग में भूनकर घर ले जाते है।

किसान होलिका दहन के आग में पके दाने को घर ले जाकर परिवार के सदस्यों के बीच बाँट देते हैं। जिसे प्रसाद समझकर ग्रहण किया जाता है।

होलिका दहन की आग धीमी होने के बाद लोग नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए इनकी राख को माथे पर लगाया जाता है।

इस प्रकार होलिका दहन के रस्म को अदा करने के बाद सभी लोग अपने घर को प्रस्थान करते हैं।

इस दौरान सारे लोग मिलकर एक स्वर में फाग गाते हैं। इस प्रकार अच्छाई कि जीत का प्रतीक होलिका दहन में भाग लेते हुए एक दूसरे को अबीर और गुलाल लगाते हैं।

होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कथायें

हिंदुओं के अन्य त्योहारों की भांति, होलिका दहन के साथ भी एक पौराणिक कथा जुड़ा है। विष्णु पुराण में होलिका दहन की कथा मिलती है। कहा जाता है कि अति प्राचीन काल में भारतवर्ष में हिरण्यकश्यप नामक असुरों के राजा थे।

असुरों के राजा हिरण्यकश्यप ने अपने कठोर तपस्या के बल पर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। उन्होंने ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान माँगा। ब्रह्मदेव ने उन्हें अमर होने का वरदान तो नहीं दिया।लेकिन उन्हें वरदान स्वरूप अपार शक्ति प्रदान कर दिया।

ब्रह्मा जी ने हिरण्यकश्यप को आशीर्वाद देते हुए कहा जाओ तुम्हें देवी देवता, जीव-जंतु, दानव और मानव कोई नहीं मार सकेगा। तुम्हारी मृत्यु न किसी अस्त्र होगी और न ही किसी शस्त्र से तुम मारे जा सकोगे। तुम्हें न कोई दिन में मार सकेगा और न ही रात में।

तुम्हें न तो कोई घर में मार सकेगा और न ही घर से बाहर। ब्रह्मा जी ने वरदान देते हुए आगे कहा कि तुम आकाश, पृथ्वी या पताल कहीं भी नहीं मारे जाओगे। घमंड में चूर हिरण्यकश्यप स्वयं को अजर-अमर और अविनाशी समझने लगा।

 ब्रह्मा जी के वरदान को पाकर हिरण्यकश्यप अत्यंत अहंकारी हो गया। हिरण्यकश्यप ने वरदान में ब्रह्मा जी से असीम शक्ति पाकर पुरे मृत्युलोक पर विजय हासिल कर लिया।

हिरण्यकश्यप अहंकार में अंधा हो गया था। मृत्यु लोक में खुद को भगवान समझने कि भूल करने लगा। मृत्युलोक वासी भय बस उसे ईश्वर के रूप मे पूजने लगे।

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भक्त प्रहलाद की होलिका दहन से जड़ी ( story of holika dahan in hindi)

असुरों के राजा हिरण्यकश्यप पुत्र प्रलाद विष्णु के परम भक्त थे। प्रहलाद हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे। लेकिन दैत्यराज हिरण्यकश्यप भागवत प्रेमी अपने पुत्र प्रलाद से अत्यंत रुष्ट थे।

हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना घोर शत्रु मानते थे।  दैत्यराज हिरण्यकश्यप कतई नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र प्रलाद भगवान विष्णु की आराधना करे। इसीलिए प्रलाद को हर तरह से समझाया गया कि वे विष्णु कि आराधना छोड़ दे।

लेकिन भगवत प्रेम में अट्टु आस्था रखने वाले भक्त प्रलाद कहॉं समझने वाले थे। भगवान विष्णु के प्रति उनकी अट्टु आस्था थी.

जिससे वे अपनी वात पर अडिग थे। उन्हें हर तरह से कष्ट दिया गया ताकि वे विष्णु कि भक्ति छोड़ दे। लेकिन भक्त प्रलाद को भगवान विष्णु और उनकी भक्ति पर पूर्ण विश्वास था।

जब दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रलाद को जिन्दा जलाने का आदेश दिया।

गुस्से में आकर दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रलाद को जान से मारने का आदेश दिया। हिरण्यकश्यप के आदेश पर कई वार असुरों ने मिलकर प्रहलाद को मारने कि कोशिस की।

 लेकिन कहते हैं की जिसको वचाने वाला खुद भगवान हो, उसका बाल भी बांका नहीं किया जा सकता। भक्त प्रल्हाद को जहरीले साँप से कटवाया गया। उन्हें ऊंचे पहाड़ कि चोटी से फेंका गया।

लेकिन विष्णु भगवान के असीम अनुकम्पा के फलसरूप मृत्यु उन्हें वरन नहीं कर सकी। यधपि हर बार भक्त प्रलाद कि ईश्वर भक्ति को खंडित करने के हिरण्यकश्यप के सारे प्रयास असफल रहे।

अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के माध्यम से प्रहलाद को मारने का उपाय सोचा। होलिका के पास वरदान के द्वारा प्राप्त कि गयी एक अनोखी चादर थी।

यह चादर fire proof थी जो उन्हें भगवान शंकर के द्वारा वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था। विशेष खासियत वाली इस चादर को ओढ़कर, आग में प्रवेश करने पर भी आग उसे जला नहीं सकती थी।

हिरण्यकश्यप के आदेशनुसार होलिका प्रलाद को गोद में लेकर जलती हुई आग की लपटों के बीच बैठ गयी। भागवत कृपा ऐसी हुई कि हवा के एक झोंका आया ।

हवा के फलसरूप चादर होलिका के शरीर से हट कर प्रहलाद के शरीर से लिपट गया । इस प्रकार वह आग में जलकर भस्म हो गयी और भगवान विष्णु का परम भक्त प्रहलाद जिन्दा बच गया।

तभी से फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है। इस दिन होलिका दहन के रूप में लोग बुराई पर अच्छाई के जीत का जश्न मानते हैं ।

होली के एक दिन पहले – about HOLIKA DAHAN in hindi

Holika Dahan Ki Kahani In Hindi - होलिका दहन
Holika Dahan Ki Kahani In Hindi – होलिका दहन

होलिका दहन- holika dahan के अगले दिन सुबह से रंग-बिरंगे चेहरे के साथ हर आदमी होली के रंगों में सराबोर लगते हैं। होली के दिन पूरा वातावरण ही रंगीन दिखाई पड़ते हैं ।

दिन भर मौज-मस्ती के बाद शाम को सभी नए वस्त्र धारण करते हैं । आजकल अनेक स्थानों पर रंगों के त्यौहार होली पर मिलन समारोह आयोजित किए जाते हैं ।

इसके अतिरिक्त लोग अपने मित्रों व रिश्तेदारों के घर जाकर उन्हें गुलाल व अबीर का टीका लगाते हैं। इस प्रकार एक-दूसरे के गले मिलकर रंगों के त्यौहार होली की शुभकामनाएँ देते हैं ।

प्राचीन काल में रंगों का त्यौहार होली बहुत ही शिष्ट तरीके से मनाया जाता था। लोग मर्यादा में रहकर, रंगों के त्यौहार होली का भरपूर आनंद लेते थे।

वसंत पंचमी के दिन से ही गॉव के लोग रंगों के त्यौहार होली कि तैयारी में जुट जाते थे । होली के दिन गांव में लोग मंडली बनाकर होली के गीत गाते और नाचते हुए एक दूसरे के घर जाते थे।

पुराने समय में लोग प्राकृतिक रंगों और चंदन से होली खेलते थे। इस दिन हर गिला सिकवा भूलकर एक दूसरे को रंगों के त्यौहार होली कि शुभकामनाएं देते थे।

लेकिन आधुनिक दौर में प्राकृतिक रंगों कि जगह बाजार में केमिकल से तैयार रंगों का उपयोग किया जाता है। यह केमिकल वाला रंग त्वचा के लिए बहुत ही हानिकारक होता है।

हमें इन बाजारू रंगों के उपयोग से वचना चाहिए। प्राचीन समय में जैसे टेसू के फूल और चन्दन से होली खेली जाती थी। उसी तरह हमें प्राकृतिक रंगो पर जोड़ देना चाहिए।

होली के दिन लोग एक दूसरे में मुँह पर काली मोबिल या नहीं छूटने वाली केमिकल लगा देते है। इन चीजों का उपयोग होली के अवसर पर कभी भी नहीं करना चाहिए।

उपसंहार

आजकल होली के अवसर पर ठंडाई की जगह अंग्रेजी शराब ने लेली है। होली के अवसर पर शराब पीना एक फैशन बन गया है।

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कुछ लोग होली के दिन आवश्यकता से ज्यादा शराव पीकर लड़ाई झगड़ा कर बैठते हैं। हमें होली तथा होलिका दहन कि गरिमा को बनाये रखना चाहिए।

लोग आजकल होली तथा होलिका दहन के अवसर पर पारम्परिक गीत फाग कि जगह फूहर गाने बजाते और सुनते हैं। ये गाने बच्चे के मानस पटल पर गलत प्रभाव डाल सकता है।

इसका हमें ध्यान रखना चाहिए। होली तथा होलिका दहन की गरिमा बनाये रखने की जिम्मेदारी हमसब की है।

दोस्तों Holika Dahan Ki Kahani In Hindi शीर्षक वाला यह लेख कैसा लगा अपने सुझाव से अवगत करायें।

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