BHAGWAN SHANKAR KI KAHANI IN HINDI – भगवान शिव देवो के देव क्यों कहलाते है।
भगवान शिव देवो के देव कहे जाते हैं । कहते हैं की शिव जी सदैव हितकारी देव हैं जो बहुत जलती अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। Devon Ke Dev Mahadev की उपासना अत्यंत ही सरल है। इस कारण उन्हें अवढर दानी कहा जाता है।
त्रिदेव में ब्रह्मा जी को सृष्टि कर्ता, भगवान विष्णु को पालन कर्ता और भगवान शिव को संहार का देवता माना गया है। उनके भाल पर पर चंद्रमा शोभामान है और उनकी सवारी नंदी है।
उनके सिर के जटे से निकलती गंगा की धारा, गले में विषधर सर्प, शरीर में बाघ की छाल लपेटे हुए अन्य देवो से अलग करता है। उनके सवारी नंदी है जिसपर उन्हें सवार दिखाया जाता है।
भगवान शिव का अस्त्र पाशुपत नाम से जाना जाता है। आज हम देवों के देव महादेव DEVON KE DEV MHADEV शीर्षक के इस लेख में उनके वारें में विशेष रूप से जानने की कोशिस करेंगे।
शिव जी देवों को देव महादेव क्यों कहलाते हैं – BHAGWAN SHANKAR KI KAHANI IN HINDI
इनकी पूजा दो रूपों में की जाती है। एक मूर्ति के रूप में दूसरा शिव लिंग के रूप में। लिंगराज मंदिर भूबनेश्वर में उनकी पूजा हरी-हर के रूप में की होती है। हिन्दू धर्म में त्रिदेव में से एक हैं।
कहते हैं की हाथ में त्रिशूल और डमरू घारण करने वाले har har mhadev अनादि हैं। वे आदि गुरु कहे जाते हैं। समूचा ब्रह्मांड उनमें ही समाया हुया है। इसलिए उन्हें देवों के भी देव कहा गया है।
शिव जी की आराधना अत्यंत सरल about lord shiva in hindi
हम अन्य देवों के पूजन में सुगंधित पुष्पमालाओं और मिष्ठानों का भोग लगाते हैं। लेकिन शिव जी के पूजन में इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती। वे तो अवढर दानी ठहरे।
शिव जी तो पवित्र जल, धूतरा के फूल व बिल्व पत्र से ही खुश हो जाते हैं। ये बहुत जल्दी खुश हो जाने वाले देवता माने जाते है। इस कारण ही इन्हें अवढर दानी और आशुतोष के नाम से जाना जाता है।
शिव जी तो औघड़ बाबा हैं।
भगवान भोले भण्डारी, सुंदर वेशभूषा और अलंकारों से रहित देव हैं। वे तो जटाधारी, गले में रुद्राक्ष और नाग लिपटाये, चिता की भस्म लगाए औघड़ दानी बाबा हैं। इस प्रकार भगवान शंकर आडम्बर रहित वेष को ही धारण करने वाले देवो के देव हैं।
क्यों शिव जी को ‘नीलकंठ‘ कहा जाता है।
कहते हैं की जब देवगण एवं असुरगण अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तव पहली वस्तु हलाहल विष निकला। उस विष के प्रभाव से जीव मात्र पर संकट आ सकता था।
तब जगत कल्याण के लिए भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में उतार लिया। इस विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाये।
उन्होंने जगत कल्याण के लिए बिष पान कर सभी के दुखों का हरण किया। तभी तो भक्त उनके जयकारा में har har mahadev का उच्चारण करते हैं।
वेदों और पुराणों में इनकी महिमा की चर्चा
वेदों और पुराणों में इनकी महिमा का विस्तृत उल्लेख मिलता है। अठारह पुराणों में से 6 पुराण भगवान शिव को समर्पित है। शिव पुराण में इनके पूजन की विधि भी बताई गयी है।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के नाम
वैदिक कल में शिव को रुद्र व पौराणिक समय में महादेव, शंकर आदि कई नामों से प्रसिद्ध हुए। भगवान शिव जी के नाम से शिवपुराण प्रसिद्ध है। इसमें भगवान शिव के महत्व पूजन विधि और 12 ज्योतिर्लिंग को वर्णन मिलता है।
भगवान शिव के उपासक को शैव कहा जाता है। शिव पुराणों में वर्णित 12 ज्योतिर्लिंग के नाम हैं-
- सोमनाथ, 2. मल्लिकार्जुन, 3. महाकालेश्वर, 4. ओंकारेेश्वर, 5. केदारनाथ, भीमेश्वर, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैद्यनाथ, रामेश्वरम, नागेश्वर और घुश्मेश्वर हैं।
भगवान शंकर के कई नाम – Devon Ke Dev Mahadev के 108 नाम
पुराणों में Shiv ji के सहस्र नामों की चर्चा मिलती है। यहॉं भगवान शिव शंकर के नामों का वर्णन किया जा रहा है । जानें भगवान शिव के 108 नाम –
1. शिवाप्रिय 2. महेश्वर 3. शंभू 4. शशिशेखर 5. जटाधर 6. वामदेव 7. महादेव 8. कपर्दी 9. शंकर 10. कामारी 11. शूलपाणी 12. खटवांगी 13. विष्णुवल्लभ 14. शिपिविष्ट 15. अंबिकानाथ 6. श्रीकण्ठ
17. भक्तवत्सल 18. भव 19. शर्व 20. त्रिलोकेश 21. शितिकण्ठ 22. शिव- shiv ji 23. उग्र 24. कपाली 25. नीललोहित
26. सुरसूदन 27. गंगाधर 28. ललाटाक्ष 29. महाकाल 30. कृपानिधि 31. भीम 32. परशुहस्त 33. मृगपाणी 34. पिनाकी 35. कैलाशवासी 36. कवची 37. कठोर 38. त्रिपुरांतक 39. वृषांक 40. वृषभारूढ़ 41. हवि
42. सामप्रिय 43. स्वरमयी 44. त्रयीमूर्ति 45. अनीश्वर 46. सर्वज्ञ 47. परमात्मा 48. सोमसूर्याग्निलोचन 49. भस्मोद्धूलितविग्रह 50. जगद्गुरू
51. सोम 52. पंचवक्त्र 53. सदाशिव 54. विश्वेश्वर 55. वीरभद्र 56. गणनाथ 57. प्रजापति 58. हिरण्यरेता 59. दुर्धुर्ष 60. गिरीश 61. दिगम्बर 62. अनघ 63. भुजंगभूषण 64. भर्ग 65. गिरिधन्वा 66. गिरिप्रिय
67. कृत्तिवासा 68. पुराराति 69. भगवान् 70. प्रमथाधिप 71. मृत्युंजय 72. सूक्ष्मतनु 73. परमेश्वर 74. यज्ञमय 75. व्योमकेश 76. महासेनजनक 77. चारुविक्रम 78. रूद् 79. भूतपति 80. स्थाणु
81. अहिर्बुध्न्य 82. गिरिश्वर 83. अष्टमूर्ति 84. अनेकात्मा 85. सात्त्विक 86. शुद्धविग्रह 87. शाश्वत 88. खण्डपरशु 89. अज 90. पाशविमोचन 91. मृड 92. पशुपति 93. देव 94. विरूपाक्ष 95. अव्यय
96. हरि 97. अनंत 98. अव्यग्र 99. दक्षाध्वरहर 100. पूषदन्तभित् 101. भगनेत्रभिद् 102. अव्यक्त 103-सहस्राक्ष 104. सहस्रपाद 105. अपवर्गप्रद 106. अनंत 107. तारक 108. जगद्व्यापी
भगवान शिव जी के गण के नाम
भगवान शिव के कई गण हैं, जिनके नाम हैं – नंदी, भृंगी, रिटी, टुंडी श्रृंगी नन्दिकेश्वर, बेताल, पिशाच, भूतनाथ आदि।
तंत्र साधना और भगवान शिव
तंत्र साधना में भगवान शिव को भैरव के नाम से जाना जाता है। इनको हिन्दू समुदाय के सबसे प्रमुख देवता में माना गया है।
शंकर भगवान भस्म रमाये, हाथ में डमरू और त्रिशूल लिए साधनरत दिखाई पड़ते हैं। भगवान शिव को त्रिमूर्तियों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश ) में से एक हैं।
भगवान शिव को अर्धनारीश्वर क्यों कहा गया ।
सनातन धर्म के अनुसार भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत माना गया है। इसीलिए इन्हें को कैलाश पति कहा जाता है। कथाओ के अनुसार इनका निवास स्थान कैलाश मानसरोवर के पास स्थित है।
कहते हैं की शिव जी ने अपने शरीर से देवी शक्ति की सृष्टि की। देवी शक्ति को, पार्वती के रूप में माना गया है। इसलिए भगवान शिव को अर्धनारीश्वर भी कहा गया है।
शंकर भगवान का ॐ सभी मंत्रों का मूल
वेदों और पुराणों में कई मंत्रों की चर्चा मिलती है। लेकिन ॐ को Shiv ji का मूल मंत्र माना गया है। कहते हैं की ओम (ॐ) के बिना पूजा पूरी नहीं होती है। इसके बिना मंत्र अधूरा है। बिना ओम के सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
महाशिवरात्री
शिवरात्री के दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ सम्पन हुआ था। इसलिए शिवरात्री को शिव भक्त बहुत ही धूम-धाम से मनाते है। इस दिन शिवभक्त उपवास रखकर उनकी विशेष पूजा करते है।
भगवान शिव की पूजा के लिय सोमवार का दिन श्रेष्ठ
नारद पुराण के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा के लिए उत्तम माना गया है। इसके साथ साथ सावन का महिना और शिवरात्री में इनके पूजन का विशेष महत्व है।
सावन का महीना Devon Ke Dev Mahadev को अत्यंत प्रिय है। इस दिन भक्त har har mahadev के उद्घोष के साथ भगवान शिव की विशेष पूजा करते है।
भगवान शिव के त्रिनेत्र
कहते हैं की भगवान शंकर जब क्रोधित होते हैं, तब उनका त्रिनेत्र खुलता है। त्रिनेत्र से निकलने वाली तेज में, जलाकर भस्म कर देने का सामर्थ्य है।
कहते हैं की जब भगवान शिव का त्रिनेत्र एक बार क्रोध में आकार खुलने से कामदेव जलकर भस्म हो गये थे।
संगीत और नृत्य के आचार्य
शंकर भगवान को संगीत और नृत्य का प्रधान आचार्य माना जाता है। इनका शिवतांडव नृत्य विखयात है। अपने तांडव नृत्य के कारण ही उन्हें नटराज रूप में भी जाना जाता है। कहते हैं की शिवरात्री के दिन शिव जी ने तांडव नृत्य किया था। तभी से उन्हें नटराज कहते हैं।
उपसंहार
भगवान शंकर में परस्पर विरोधी भावों का समन्वय देखने को मिलता है। शिव जी के माथे पर एक ओर अर्ध चाँद है, जो शीतलता और आनंद का प्रतीक है।
वहीं दूसरी ओर विषधर नाग उनके गले में लिपटा है। जो काल और संकट का सूचक है। दोस्तों BHAGWAN SHANKAR KI KAHANI IN HINDI शीर्षक वाला यह लेख कैसा लगा अपने सुझाव से जरूर अवगत करायें।
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