जानिये पिता के कहने पर भगवान परशुराम ने क्यों अपने मां का वध कर दिया

About Bhagwan Parshurama in Hindi – भगवान परशुराम के जन्मदिवस के रूप में समस्त भारत में हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है। प्राचीन हिन्दू धर्म शस्त्रों के अनुसार परशुराम जी विष्णु के अवतार थे। वे अत्यंत क्रोधी थे जिसके क्रोध से देवता भी कांपते थे।

प्रतिवर्ष वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। हिन्दू समुदाय के लिए भगवान परशुराम का जन्म दिवस खास महत्व रखता है। यह शुभ दिन अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है।

भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म त्रेता युग में अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन उनका जन्म होने के कारण उन्हें चिरस्थायी कहा जाता है। अर्थात वे मृत्यु से परे हैं। 

मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किए गए किसी भी अच्छे कर्म को हमेशा के लिए फल देने वाला कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन जन्म लेने के कारण भगवान परशुराम की शक्ति अनंत है।

इसके अलावा, भगवान परशुराम को आठ अमर पात्रों में से एक माना जाता है, जिनमें महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय शामिल हैं। जो हमेशा जीवित रहेंगे। 

भगवान परशुराम के पिता का नाम जमदग्नि और उनकी माता का नाम रेणुका था। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान परशुराम अपने क्रोधी स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। उनके क्रोध से देवी-देवता भी कांपते थे।

कहा जाता है कि एक बार भगवान परशुराम ने क्रोध में आकर भगवान गणेश के दांत तोड़ दिये थे। उन्होंने अपने पिता का आज्ञा मानकर क्रोध में अपनी ही माँ को वध कर डाला था। 

ऐसी मान्यता है की इस दिन भगवान परशुराम की पूजा करने से व्यक्ति को सफलता मिलती है और उनके शत्रुओं का नाश होता है। उनके पूजन से वीरता, तेज और समृद्धि प्राप्त होती है। इस दिन किए गये पुण्य का प्रभाव चीर स्थाई होता है।

इस दिन भगवान परशुराम की विशेष पूजा की जाती है। कहते हैं की ब्राह्मणों के लिए यह दिन खास होता है। आइये इस लेख में भगवान परशुराम के वारें में विस्तार से जानते हैं।

Bhagwan Parshurama in Hindi

भगवान परशुराम का जीवन परिचय ( Bhagwan Parshurama Jyanti in Hindi )

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष तृतीय के दिन भगवान परशुराम का जन्म को हुआ था। उनकी माता का नाम रेणुका और पिता का नाम ऋषि जमदग्नि थे। इनके माता पिता ने बचपन में इनका नाम राम रखा था। राम अपने पांचों भाई में सवसे छोटे थे।

परशुराम को अपने पिता ऋषि जमदग्नि से वेदों और शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त हुआ। भगवान परशुराम को श्रीविष्णु के 10 अवतारों में से छठा अवतार कहा गया है।

इन्होंने दुराचारी क्षत्रियों का विनाश किया था। आइये जानते हैं भगवान परशुराम के जयंती पर (Parshuram Jayanti ) उनके जीवन से जुड़ी हुई कुछ महत्वपूर्ण कहानी के वारें में।

1. भगवान परशुराम के जन्म से जुड़ी अद्भुत कहानी – Parshuram Jayanti story

भगवान परशुराम के जन्म से जुड़ी कहानी बहुत ही अद्भुत हैं। कहते हैं की अति प्राचीन समय में गाधि नाम के राजा का कन्नोज के ऊपर शासन था। उनकी पुत्री का नाम सत्यवती थी। राज गाधि ने अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र ऋचीक के साथ किया था।

एक समय की बात है सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त किया। तब पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें दो फल दिए, एक फल सत्यवती के लिए और दूसरा सत्यवती के माँ के लिए।

उन्होंने कहा की उन्हें और उनकी माता को पुत्र की कामना करते हुए पीपल और गूलर के वृक्ष से गले मिलकर इस फल का सेवन करना है। लेकिन सत्यवती ने पेड़ के आलिंगन के बाद गलती से अपनी माँ का फल का सेवन कर लिया।

जब सत्यवती को इस बात का अहसास हुआ तब उसने इसके बारें में महर्षि भृगु को बताई। महर्षि भृगु ने सत्यवती से कहा कि अब तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण तो होगा लेकिन वह ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों वाला पैदा होगा।

तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की और बोली की मेरा पुत्र ब्राह्मण गुणों वाला ही हो, भले ही पौत्र क्षत्रिय गुणों वाला उत्पन्न हो जाय जाये। कुछ महीने बाद सत्यवती के गर्भ से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ।

इसी जमदग्नि के घर में वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष तृतीया को पुत्र के रूप में भगवान परशुराम का जन्म हुआ। भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से छठा अवतार भगवान परशुराम को माना जाता है। इन्होंने कई वार क्षत्रियों का विनाश किया था।

2. उनका नाम परशुराम कैसे पड़ा

वे भगवान शिव के परमभक्त थे। बालक राम अपने पिता के कहने पर शस्त्र विद्या सीखने हिमालय पर्वत पर चले गये। वहाँ उन्होंने भगवान शिव के कठोर आराधना की। भगवान शिव उनके आराधना से अति प्रसन्न हुए।

उस दौरन देवता लोग दानवों से अत्यंत ही परेशान थे। भगवान सदा शिव ने राम को अपना दिव्य अस्त्र परशु दिया। भगवान शिव ने दिव्य अस्त्र परशु उन्हें प्रदान कर, दानवों से देवताओं की रक्षा करने को कहा।

अपने गुरु शिव जी की आज्ञा से उन्होंने असुरों से देवताओं की रक्षा की। स प्रकार भगवान शिव के अमोध अस्त्र पाने के कारण ही उनका नाम राम से परशुराम हो गया।

3. परशुराम ने अपनी माँ का गला क्यों काट दिया

परशुराम ने अपने पिता का बचन का पालन करते हुए अपनी माता का गला काट दिया। कहते हैं की एक समय महर्षि जगदग्नि ने क्रोध में आकार अपने पुत्रों को आदेश दिया की वे अपनी माँ का वध कर दे।

लेकिन उनके पुत्रों ने अपनी माता का गला काटने से इनकार कर दिया। उस बक्त परशुराम घर पर नहीं थे। जब परशुराम घर आये तो उन्हें भी कहा गया की अपनी माँ रेणुका का गला काट दे। तब परशुराम ने नहीं चाहते हुए भी पिता का आज्ञा मानकर अपनी माँ का गला काट दिया।

जिस कारण महर्षि जगदग्नि बहुत खुश हुए। उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा तब परशुराम ने माँ को जिंदा करने का वरदान मांग लिया।

4. सहस्त्रबाहु का वध

भगवान विष्णु के Dashavatar में से एक परशुराम अवतार को भी माना जाता है। परशुराम अवतार को Vishnu bhagwan का 6 वां अवतार कहा गया है। प्राचीन का में महिष्मती नगरी पर कार्तवीर्य अर्जुन नाम का एक शक्तिशाली राजा राज्य करता था।

राजा के पास 100 भुजायें होने के कारण अभिमान में चूर था। अपने 100 हाथों के कारण वे सहस्त्रबाहु के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने कठोर तपस्या के बल पर इतनी शक्ति अर्जित कर लिया की। वह मद में आकार अत्यंत ही दुराचारी हो गया।

शक्ति के मद में चूर होकर सहस्त्रबाहु अपने शक्ति का दुरुपयोग करने लगा। हरिवंशपुराण में वर्णित कथा के अनुसार, ऋषि आपव ने सहस्त्रबाहु को क्रोध में आकार श्राप दे दिया।

उन्होंने सहस्त्रबाहु को कहा की एक दिन Vishnu bhagwan अवतार लेकर तुम्हें और तुम्हारे समस्त क्षत्रिय वंश का सर्वनाश करेंगे। तब तुम्हारा मान मर्दन होगा।

इस प्रकार सहस्त्रबाहु के दुराचार को खत्म कर धर्म की स्थापना के लिए विष्णु भगवान ने परशुराम के रूप में अवतार लिया। जैसा की हम जानते हैं की उनका जन्म भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के घर उनके पत्नी रेणुका के गर्भ से हुआ था। एक दिन

सहस्त्रबाहु ने उनके अनुपस्थिति में कामधेनु गाय को जबरन उठवा लिया। इतना ही नहीं विरोध करने पर उनके पिता महर्षि जमदग्रि की हत्या कर दी गयी। परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु से युद्ध किया और उसके 100 हाथों को काट कर उनका वध कर दिया।

5. परशुराम द्वारा क्षत्रियों का 21 बार संहार

कहते हैं की भगवान परशुराम ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिए सहस्त्रबाहु वध किया। सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिए परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि का वध कर दी।

इससे क्रोधित होकर परशुराम ने सहस्त्रबाहु के सभी पुत्रों का मार दिया। इस प्रकार उन्होंने धरती पर 21 बार क्षत्रियों का विनाश किया।

6. भगवान परशुराम ने जब कर्ण को श्राप दिया

अंगराज कर्ण परशुराम के पास शस्त्र विद्या प्राप्त कर रहे थे। उन्होंने अपने को सूत पुत्र के रूप में परिचय दिया था। एक समय की बात है परशुराम, कर्ण के जांघ पर सर रखकर सो रहे थे। इस दौरान कर्ण को किसी कीड़े ने काट लिया और पैर से खून निकल रहा था।

लेकिन कर्ण कष्ट सहते रहे और अपने पैर को नहीं हिलाया। क्योंकि इससे परशुराम जी की नींद खुल जाती। जब परशुराम जी नींद से जगे, तो कर्ण के बहते हुए खून को देखकर वे समझ गये। उन्हें पता चल गया की कर्ण कोई सूत पुत्र नहीं है बल्कि क्षत्रिय है।

इस करना उन्होंने कर्ण को श्राप दे दिया की जो विद्या कर्ण ने सीखी है। वह जरूरत पड़ने पर भूल जाएगा। कहते हैं की महाभारत की लड़ाई में परशुराम जी के श्राप के कारण उनसे सीखी विद्या को भूल गये। जो उनकी मृत्यु का कारण बना।

7. परशुराम ने जब गणेश जी के दांत काट दिया

यह कहानी उस समय की जब परशुराम भगवान शिव से मिलने कैलास गये थे। चूंकि परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे। इस बार वे भगवान शिव और पार्वती के दर्शन करने कैलाश पर्वत पहुंचे। उस बक्त भगवान शिव साधना में रत थे।

गणेश भगवान ने परशुराम को दरवाजे पर ही रोक दिया। तब परशुराम ने क्रोध में आकर अपने फरसे से भगवान गणेश पर प्रहार कर दिया। जिस कारण गणेश जी का एक दांत टूट गया। तभी से गणेश जी को एकदंत के नाम से जाना जाता है।

8. सीता स्वयंवर में लक्ष्मण से संवाद 

जब भगवान परशुराम को सीता स्वयंवर में शिव धनुष का टूटने का पता चला तो वे जनकपुर गये। वहाँ लक्षमन को उनके क्रोध का सामना करना पड़ा। राम से मिलने के बाद उन्हें उनका तेज प्रभु श्री राम में समा गया। वे समझ गये की विष्णु अवतार हो चुका है और वापस तपस्या करने चले गये।

9. भगवान परशुराम आज भी जीवित हैं

ऐसी मान्यता है की भगवान परशुराम आज भी मन्दराचल पर्वत पर तपस्या में लीन हैं। हिन्दू धर्म शस्त्रों के अनुसार कुछ ऐसे महापुरुष हैं जिन्हें आज भी जीवित माना जाता है। इनमें भगवान परशुराम, अश्वत्थामा, राजा बलि, वेद व्यास, हनुमान,विभीषण, कृपाचार्य आदि नाम प्रमुख हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

यह लेख हमें संदेश देती है की हमें क्रोध नहीं करना चाहिए। क्योंकि भगवान परशुराम ने क्रोधवस ही गणेश जी का इस दाँत अपने फरसे से काट दिया था।

भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती?

अन्य देवी देवताओं की तरह भगवान परशुराम को पूजा नहीं जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है की वे अभीत भी धरती पर निवास करते हैं।

इन्हें भी पढ़ें – भगवान विष्णु के दशावतार की कहानी



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