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तुलसीदास कौन थे (Tulsidas ji kaun the)
तुलसीदास जी हिन्दी के अद्वितीय कवि हैं। उनकी गिनती भारत के महान कवि और संत के रूप में की जाती है। तुलसीदास का जीवन परिचय से पता चलता है की वे वेद पुराण के ज्ञाता और हिन्दी के मर्मज्ञ विद्वान थे। तुलसीदास जी का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास था।
तुलसीदास जी ने भगवान राम के जीवन गाथा को सरल भाषा में हिन्दू समुदाय के घर-घर तक पहुंचाया। गोस्वामी तुलसीदास ने राम और शिव की भक्ति के विभेद को दूर कर शैव और वैष्णव समुदाय के बीच समन्वय प्रस्तुत किया।
तुलसी दास जी ने ईश्वर, जीव और माया के बारें में अपने स्पष्ट विचार रखे हैं। उनके द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस एक प्रसिद्ध धर्म ग्रंथ हैं। जिसका पाठ पुण्यदायक माना गया है। कुछ लोग उन्हें रामायण के रचियाता महर्षि बाल्मीकि के अवतार भी कहते हैं।
उनके द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस के कारण रामायण का पाठ घर-घर में संभव हुआ। तुलसी दास जी अवधि और ब्रजभाषा दोनो में निपुण थे साथ ही वे हिन्दी और संस्कृत के परम ज्ञानी थे।
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कहते हैं की तुलसीदास जी अपने पत्नी के भटकार सुनकर भगवान श्री राम के परम भक्त बन गए। मान्यता है की चित्रकूट के घाट पर हनुमान के सहयोग से प्रभु श्रीराम ने tulsidas ji को दर्शन दिए थे। तुलसी दास जी को मुग़ल शासक अकबर का समकालीन माना जाता है। आइये इस लेख में तुलसीदास का जीवन परिचय विस्तार से जानते हैं: –
गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय – Biography of Tulsidas in Hindi
तुलसी दास जी का जन्म | – 1554 ईस्वी, राजापुर |
तुलसीदास के बचपन का नाम | – रामबोला |
तुलसीदास के गुरु का नाम | – बाबा नरहरी दास |
तुलसीदास के माता पिता का नाम | – माता हुलसी और पिता आत्माराम दुवे |
तुलसीदास की शिक्षा-दीक्षा | – बाबा नरहरी दास के सनिध्य में |
तुलसीदास जी के पत्नी का नाम | – रत्नावली |
तुलसीदास की प्रमुख रचनायें | – रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, विनय पत्रिका आदि, |
तुलसीदास जी का निधन | – 1554 ईस्वी (श्रावण मास, शुक्ल पक्ष सप्तमी ) |
तुलसीदास का जन्म – Goswami Tulsidas ka jivan parichay
विद्वानों का कहना है की तुलसीदास जी का जन्म यमुना के तट पर स्थित राजापुर नामक स्थान पर सन 1554 ईस्वी में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष सप्तमी को हुआ था। लेकिन तुलसी दास जी के जनस्थान, जन्म की तारीख और उनके जीवन को लेकर विद्वानों में मतांतर है।
तुलसी दास जी महान मुगल बादशाह अकबर के समकालीन थे। कुछ विद्वानों ने उनकी जन्म तिथि सन 1589 ईस्वी में मानते हैं। जबकि तुलसी चरित और गोसाई चरित के अनुसार उनकी जन्म तिथि 1554 ईस्वी मानी जाती है।
तुलसी दास जी के जन्म के बारे में सबसे लोकप्रिय कहानियों यह है कि जब तुलसी दास जी का जन्म हुआ तो वे 12 महीने तक अपनी माँ के पेट में थे। जबकि अमूमन बच्चा 9 महीने माँ के गर्व में रहता है।
जब उनका जन्म हुआ तब तुलसी दास जी एक मजबूत बच्चे की तरह दिखते थे और उनके मुख में 32 दांत थे। तुलसी दास जी ने जन्म लेते ही राम का नाम लिया। इसलिए घर वालों में उनके बचपन का नाम “रामबोला” रखा था। उनके जन्म-काल और जन्म-स्थान को लेकर बेनीमाधब दास जी का यह दोहा लोकप्रिय है।
पंद्रह सौ चववन विषे तरणि तनुजा तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी घरयो शरीर ।।
Tulsidas In Hindi तुलसीदास जी का जीवन परिचय
तुलसीदास का बचपन और माता-पिता – Tulsidas ji ka bachpan
गोस्वामी तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था। उनके माता का नाम हुलसी और पिता का नाम आत्माराम दुबे था। ब्राह्मण कुल में पैदा हुए तुलसीदास जी को पराशर गोत्र के सरयूपारीण ब्राह्मण माना जाता है। उनके घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी।
बचपन में उनके माता पिता किसी महामारी के चपेट में आ गये। अतः बाल्यावस्था में ही उनके सर से माता-पिता का साया उठ गया। उन्होंने अपनी रचना कवितावली में इस बाद का जिक्र इस प्रकार किया है।
मातु पिता जग ज्याई तज्यो, विधि हूँ न लिखी कछु भाल भलाई।
कविदंती यह भी है की तुलसीदास जी का जन्म, मूल नक्षत्र में हुआ था। कहा जाता है की तुलसीदास जी अपने माँ के गर्भ में 9 माह के वजाय 12 महीने रहे थे। कविदंती है की तुलसीदास जी अन्य सामान्य बच्चे की तरह जन्म के बाद रोए नहीं थे।
बल्कि उनके नाम से राम शब्द निकला था। इसी कारण से उनके माता पिता ने उनका नाम रामबोला रखा था। यह भी कहा जाता है की तुलसीदास जी का जन्म के समय से ही मुँह में पूरे 32 दाँत मौजूद थे।
उनके जन्म के बाद जब उनके माता पिता ने उनके मुँह में दाँत देखे तो वे डर गए। उन्होंने पंडित से राय मशविरा कर किसी अनहोनी से बचने के इसे त्यागना ही उचित समझा। इस कारण उनके माता पिता ने शिशु रामबोला को कहीं छोड़ आए।
कहते हैं की किसी दासी ने शुरू में उनका पालन किया बाद में बाबा नरहरिदास के सनिध्य में रहने लगे। इन्हीं के संरक्षण में तुलसीदास जी नें ज्ञान और भक्ति की दीक्षा प्राप्त की।
कुछ विद्वान मानते हैं की तुलसीदास जी को अपने माता पिता का सुख नहीं मिल था। परंतु रहीम जी के दोहे से ऐसा लगता है की तुलसीदास जी को अपने माता-पिता का सुख कुछ समय के लिए जरूर मिला।
सूरतीय नरतीय नागतीय, अस चाहत सब कोय। गोद लिए हुलसी फिरे, तुलसी सो सूत होय।
Tulsidas In Hindi, तुलसीदास जी का जीवन परिचय
तुलसीदास जी की शिक्षा-दीक्षा – Tulsidas ki shiksha in Hindi
माता-पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद बालक रामबोला अनाथ होकर भटकने लगा। बालक रामबोला को तब जाकर नरहरीदास का सहारा मिला। बाबा नरहरी दास ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया और बालक रामबोला का नाम उन्होंने तुलसीदास रखा।
इस प्रकार तुलसीदास की शिक्षा-दीक्षा बाबा नरहरीदास जी के संरक्षण में हुआ। तुलसीदास जी बाबा नरहरीदास के पास रहकर शस्त्रों का गहन अध्ययन किया। बचपन से ही तुलसीदास जी वहुत ही मेधावी थे। एक बार वे जो सुन लेते उन्हें पूरी तरह याद हो जाता था।
उन्हें अपने गुरु नरहरी दास से सुनकर पूरा रामायण याद हो गया। बाबा नरहरी दास के मार्गदर्शन में उन्होंने वेद, उपनिषद, संस्कृत और हिन्दी का विसद ज्ञान प्राप्त किया। आगे चलकर वे भगवान राम को अपना आराध्य माना और उनके परम भक्त बन गए।
तुलसीदास जी का विवाह
शास्त्र के अध्ययन के बाद वे अपने गुरु नरहरीदास जी के साथ कासी चले गए। कुछ विद्वान तुलसीदास जी को आजीवन कुंवारा मानते हैं। वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार तुलसीदास जी का विवाह महेवा ग्राम के दीनबंधु पाठक की अतिसुंदर कन्या साथ सम्पन हुआ था।
तुलसीदास जी के पत्नी का नाम रत्नावली था जो देखने में बहुत ही सुंदर थी। कहते हैं की वे अपने पत्नी से बहुत ही प्यार करते थे। कहते हैं की तुलसीदास जी के बच्चे का नाम तारक था जिसकी शैसवस्था में ही मृत्यु हो गई।
तुलसीदास जी अपने पत्नी से एक पल के लिए भी दूर नहीं रहना चाहते थे। एक बार की बात है तुलसी दास जी की पत्नी उनके अनुपस्थित में मायके चली गयी। जब तुलसीदास जी को पता चला की उनकी पत्नी मायके चली गई थे।
आधी रात में पत्नी से मिलने ससुराल पहुंचना
तब पत्नी की विरक्ति तुलसीदास जी को तुरंत खटकने लगी। पत्नी के प्रेम के वशीभूत होकर वे रात्री में ही अपने पत्नी से मिलने ही ससुराल के लिए रवाना हो गए। उनके अंदर पत्नी से मिलन की इस प्रकार की दीवानगी सवार थी की।
उन्होंने तेज वारिस और अंधेरी रात की भी परवाह नहीं ही। उन्होंने अंधेरी रात में उफनती नदी को एक लाश के सहारे पार किया। लेकिन जब तक वे अपने ससुराल पहुंचे घर के सभी लोग मुख्य दरवाजा बंद कर सो गए थे।
फलतः उन्होंने खिड़की के माध्यम से अपने पत्नी के कक्ष तक पहुँचे थे। कविदंती यह भी है की अपने पत्नी के पास खिड़की से प्रवेश करने के दौरन उन्होंने एक सांप को ही रस्सी समझकर पत्नी के कक्ष तक पहुंचे थे।
पत्नी की फटकार और जीवन में नया मोड़
रत्नावली को अपने पति को इस तरह अंधेरी रात में आना बहुत बुरा लगा। उन्होंने अपने पति तुलसीदास जी को खूब फटकार लगाई। उन्होंने अपने पति को बहुत बुरा भला और कटु वचन कहे। उन्होंने तुलसीदास से कहा :-
लाज न लागत आपको दौरे आयहू साथ, धिग -धिग ऐसे प्रेम को कहा कहों मैं नाथ ।। अस्थि चरममय देह मम तमें जैसी प्रीत, होती जो श्रीराम मह, होती न तौ भवभीती ।।
Tulsidas In Hindi -तुलसीदास जी का जीवन परिचय
अपने पत्नी का कटु वचन ने तुलसीदास जी के जीवन में एक नई दिशा दे दी। उनकी पत्नी ने कहा आपको थोड़ा सा भी इस तरह यहाँ आने में लज्जा महसूस नहीं हुई। इस तरह अंधेरी रात में दौड़े चले आना क्या उचित है। इस प्रकार के प्रेम को मैं धिक्कारती हूँ।
जितना प्रेम आपको हार-मांस के बने मेरे इस शरीर से है अगर उतना प्रेम भगवान श्री राम से होता तो आपका उद्धार हो जाता। पत्नी की फटकार और उनकी बात को सुनकर तुलसीदास जी की मानो आंखे खुल गयी।
उनका अंतर्मन जाग उठा था। उनकी पत्नी ने उन्हें आत्म ज्ञान से जो अवगत करा दिया था। पत्नी की फटकार ने उनके जीवन को नई दिशा दे दी। तत्क्षण उन्होंने गृह त्याग कर दिया और भगवान राम की आराधना करने लगे।
तुलसीदास का जीवन परिचय और हनुमान जी से मुलाकात
कहा जाता है की चित्रकूट में तुलसी दास जो को हनुमान जी के दर्शन प्राप्त हुए। बाद में हनुमान जी के सहायता से तुलसीदास जी को भगवान श्रीराम के दर्शन हुए।
तुलसी दास को भगवान श्री राम के दर्शन
कई वर्षों तक वे अनेक तीर्थ स्थानों में भटकते रहे। अंत में वे चित्रकूट पहुँचकर वहीं पर राम भक्ति में लीन हो गये। वे चित्रकूट के घाट पर नित्य स्नान कर वहीं राम जी की आराधना करते। इस प्रकार कई साल बीत गए।
बाद में कहा जाता है की इसी चित्रकूट के घाट पर पहले उन्हें हनुमान जी ने दर्शन दिए। बाद में हनुमान जी के सहयोग से उन्हें प्रभु श्री राम का दर्शन प्राप्त हुआ। इन घटनाओं का वर्णन उनके द्वारा रचित गीतावली में भी किया गया है। भगवान राम के दर्शन का जिक्र उनके दोहे के इन पंक्तियों में भी मिलता है।
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
उपरोक्त दोहे में तुलसीदास जी और भगवान राम की मुलाकात का जिक्र है। तुलसीदास जी के अनुसार इस दोहे में भगवान राम ने उनसे तिलक लगाने को कहा। तुलसीदास जी कहते हैं की भगवान राम को देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गये और अपनी सुध-बुध खो बैठे। बाद में भगवान राम ने तुलसीदास जी को तिलक लगाने के लिए कहा । कहते हैं की भगवान श्री राम को चंदन का तिलक लगाने के बाद वे भक्ति की अवस्था में आकर ध्यान में चले गए।
बाद में उन्होंने अयोध्या के तुलसी चौरा नामक स्थान पर रामचरित मानस की रचना शुरू की। कासी आकर उन्होंने इसे पूरा किया और फिर बाद में कई और रचनाएं की।
तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ
तुलसीदास जी ने अनेक रचनायें की। रामचरितमानस और विनयपत्रिका तुलसीदास जी द्वारा रचित सबसे उत्कृष्ट रचनाओं में से है। जहां वाल्मीकि रामायण संस्कृत में लिखा गया था। वहीं तुलसीदास जी ने रामकथा का सरल हिन्दी भाषा में लिखकर जन-जन तक पहुंचाया।
रामचरितमानस का अंग्रेजी और कई अन्य भाषाओं में अनुबाद भी हो चुका है। महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने रामचरितमानस के बालकाण्ड का खड़ीबोली में अनुवाद किया था। आईये संक्षेप में उनके द्वारा रचित रचनाओं के बारें में जानते हैं।
- रामचरितमानस,
- कवितावली,
- विनयपत्रिका,
- दोहावली,
- पार्वती मंगल,
- कृष्ण गीतावली
- जानकी मंगल
- हनुमान चालीसा
- वैराग्य संदीपनी
तुलसीदास का साहित्यिक परिचय
हिंदी साहित्य के इतिहास में उनके स्थान को कम करके आंका नहीं जा सकता। तुलसीदास को ‘समाज का मार्गदर्शक’ भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी रचनाएँ समाज को प्रगति के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
तुलसीदास ने अपने कार्यों के माध्यम से वर्तमान समाज में अपने आप को समाज सुधारक के रूप में प्रस्तुत किया। तुलसीदास ने काव्य के माध्यम से हिन्दी साहित्य में महान योगदान दिये।
राम चरितमानस, विनय पत्रिका और कवितावली जैसी धार्मिक कृतियों की रचना करके उन्होंने हिन्दी साहित्य में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। हिन्दी साहित्य के अद्वितीय कवियों में तुलसीदास के योगदान को सदैव याद किया जायेगा।
तुलसीदास की भाषा शैली
जैसा की हम जानते हैं की तुलसीदास जी का ब्रज और अवधि भाषा दोनो पर सामन अधिकार था। तुलसीदास जी की भाषा में बुन्देली, फारसी और अरबी, राजस्थानी, भोजपुरी शब्द देखने को मिलते हैं।
तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में उस दौरान प्रचलित सभी शैली का प्रयोग किया है। रामचरितमानस में जहॉं उन्होंने दोहा चौपाई शैली का प्रयोग किया है। वहीं उन्होंने विनय पत्रिका की रचना गीतात्मक शैली में की है। इसके साथ ही कवितावली की रचना कथात्मक शैली में की गयी है।
छंदों और अलंकारों का प्रयोग
उन्होंने अपनी रचनाओं में बड़ी ही कुशलता पूर्वक छंदों और अलंकारों का प्रयोग किया है। यही कारण ही की इनकी रचना का प्रसार जन जन तक हो गया। इसके अलाबा उन्होंने अपनी रचनाओ में दोहा, चौपाई, सवैया, सोरठा कुंडलियाँ आदि छंदों को प्रयोग खूब किया है।
उनकी रचना में अलंकार के रूप में यमक, श्लेषादी, उपमा, अनुप्रास आदि मुख्य हैं। इस प्रकार तुलसीदास जी के कविता में भाव तथा कला दोनों पक्ष का समावेश है। उनकी कविता में सभी रसों की धारा प्रवाहित दिखाई देती है।
तुलसीदास जी का जीवन परिचय कला पक्ष
तुलसीदास का भावपक्ष और कलापक्ष दोनों उनकी रचनाओं में दिखाई देता है। भाव-पक्ष की बात करें तो गोस्वामी तुलसीदास राम के परम भक्त थे और उन्हें भक्ति शाखा का कवि कहा जा सकता है।
साथ ही उनकी रचनाओं की कला-पक्ष की बात की जी तो उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा हिन्दी धर्म को जोड़ने का काम किया। उन्होंने सरल और सुबोध भाषा में राम चरित की रचना कर जन-जन तक पहुचने का काम किया।
तुलसीदास जी का निधन – Death of Tulsidas In Hindi
तुलसीदास जी की मृत्यु 125 वर्ष की अवस्था में सन 1627 ईस्वी में श्रावण शुक्ल सप्तमी को वाराणसी के अस्सी घाट पर हुई। उनके देहावसान के बारें में जो दोहा प्रसिद्ध है वह इस प्रकार हैं –
संवत सोलह सौ असी, असी गण के तीर, श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यो शरीर ।।
Tulsidas In Hindi तुलसीदास जी का जीवन परिचय
FAQ
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तुलसीदास के पत्नी का क्या नाम था? (Tulsidas ki patni ka kya naam tha )
तुलसीदास जी के पत्नी का नाम रत्नावली था। उनकी पत्नी रत्नावली अतिसुंदर और विदूसी थी। उनकी पत्नी का एक फटकार ने तुलसीदास जी को महान बना दिया।
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तुलसीदास के गुरु कौन थे? (Tulsidas ke guru kaun the )
तुलसीदास जी के गुरु श्री नरहरि दास जी थे।
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तुलसीदास का जन्म कब हुआ था?
tulsidas ji का जन्म यमुना के तट पर स्थित राजापुर नामक स्थान पर सन 1554 ईस्वी में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष सप्तमी को हुआ था।
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तुलसीदास की भाषा शैली क्या है?
गोस्वामी तुलसी ने अपनी रचना अवधी एवं ब्रजभाषा दोनों में लिखी। तुलसीदास जी ने जहाँ रामचरितमानस की रचना अवधी में की वहीं उन्होंने दोहावली, विनयपत्रिका, कवितावली की रचना ब्रजभाषा में किया।
अंत में : –
गोस्वामी तुलसीदास हिन्दू साहित्य के अद्वितीय कवि थे। हिन्दी साहित्य में योगदान के लिए हमेशा वे याद किए जायेंगे।आप 11 या 12 के छात्र हैं अथवा सिर्फ पाठक हिन्दी के ‘अद्वितीय कवि’ तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas biography in hindi ) शीर्षक वाली जानवाला यह लेख आपको जरूर पसंद आएगा।
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