महाकवि कालिदास का जीवन परिचय – Mahakavi Kalidas Story in Hindi

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महाकवि कालिदास का जीवन परिचय, जीवनी और रचनाएं – Mahakavi Kalidas Story in Hindi

महाकवि कालिदास संस्कृत के प्रकांड विद्वान, कवि और नाटककार थे। वे शृंगार रस के अद्वितीय कवि माने जाते हैं। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के दरवारी कवि में महाकवि कालिदास का नाम आता है।

उनके द्वारा संस्कृत में रची गई ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम् और मेघदूत उनकी महान कृति मानी जाती है। कालिदास को भारत का शेक्सपियर भी कहा जाता है। उनके द्वारा रचित रचनाओं से यह पता चलता है की वे माँ काली के परम भक्त थे।

महाकवि कालीदास की रचनायें भारतीय पौराणिक कथाओं पर आधरित है। उनकी रचनाओं में भारत के जीवन और दर्शन की झलक दिखाई पड़ती है। हालांकि कालिदास का जन्म और मृत्यु की तारीख को लेकर विद्वान एक मत नहीं हैं।

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लेकिन विभिन्न तथ्यों के आधार पर महाकवि कालिदास का जीवन परिचय in hindi शीर्षक वाले इस लेख में उनके जन्म से लेकर उनके जीवन में घटित घटनाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है।

Mahakavi Kalidas Story in Hindi - कालिदास का जीवन परिचय
Mahakavi Kalidas Story in Hindi – कालिदास का जीवन परिचय

कवि कालिदास का जीवन परिचय की झलक – mahakavi kalidas in hindi

  • पूरा नाम – कालिदास 
  • कालिदास के बचपन का नाम – ज्ञात नहीं
  • जन्म – ईसा पूर्व पहली से तीसरी शताब्दी के बीच
  • कालिदास के माता पिता का नाम – ज्ञात नहीं
  • कालिदास की पत्नी का नाम – विद्योत्तमा
  • प्रमुख रचना – अभिज्ञान शाकुंतलम्, मालविकाग्निमित्रम्, रघुवंशम् और दूसरा कुमारसंभवम् और मेघ दूत
  • मृत्यु वर्ष – वास्तविक तिथि ज्ञात नहीं

कालिदास का जीवन परिचय हिंदी में – mahakavi kalidas ka jivan parichay

कालिदास का जन्म और मृत्यु की तिथि को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं हैं। उनके जन्म वर्ष और जन्म स्थान को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है। छठीं सदी के दौरान बाणभट्ट ने कालिदास का अपनी रचना हर्षचरित में वर्णन किया है।

इसी काल में पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल के अभिलेखों में भी कालिदास का वर्णन मिलता है। इन बातों से प्रतीत होता है की कालिदास का जन्म इनसे से पहले हुआ था।

दूसरी तरफ कालिदास ने अपने एक नाटक मालविकाग्निमित्रम् में जिस शासक अग्निमित्र की जिक्र किया हैं उनका शासन काल १७० ईसापू्र्व माना जाता है।

इन तथ्यों के आधार पर यह कयास लगाया जाता है की कालिदास का जन्म पहली सदी और छठीं सदी के दौरान हुआ होगा। उनके जन्म स्थान को लेकर भी विद्वानों के बीच मतांतर है। कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान मध्यप्रदेश के उज्जैन को मानते हैं।

जबकि कुछ विद्वान उनके जन्म स्थान उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग में स्थित कविल्ठा गांव को मानते हैं। उनके अनुसार कालिदास का जन्म कविल्ठा गांव में हुआ था और यही पर उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा भी हुई।

कालिदास के माता पिता का नाम के बारें में भी सही सही जानकारी नहीं मिलती है। कालिदास अपनी रचनाओं कुमारसंभवम, मेघदूत औऱ रघुवंशम महाकाव्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। आगे हम Mahakavi Kalidas Story in Hindi में उनके विवाह से जुड़ी रोचक बातें जानेंगे।

महाकवि कालिदास की कहानी – Mahakavi Kalidas Story in Hindi

महाकवि कालिदास का विवाह राजकुमारी विद्योत्तमा के साथ सम्पन हुआ था। उनकी शादी राजकुमारी के साथ कैसे सम्पन हुई इसके पीछे भी एक कहानी है। राजकुमारी विद्योत्तमा बहुत ही विदूसी थी। उन्हें अपनी ज्ञान और सूझ-बुझ पर बहुत ही घमंड था।

उनक पिता उनकी शादी किसी राजकुमार से कराना चाहते थे। कई राजकुमार ने राजकुमारी से शादी का प्रस्ताव रखा लेकिन राजकुमारी विद्योत्तमा की शर्त थी की जो उन्हें शास्त्रार्थ में मात दे देगा उसी के साथ वह शादी करेगी।

सैकड़ों राजकुमार आये लेकिन कोई भी राजकुमारी को शास्त्रार्थ में हरा नहीं सका। एक से बढ़कर एक विद्वान को राजकुमारी विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में हराकर तिरस्कार कर भगा दिया।

तब कुछ विद्वानों ने अपने तिरस्कार का बदला लेने के लिए किसी महामूर्ख से उनकी शादी कराने की युक्ति सोची।

कालिदास का महामूर्ख के रूप में पहचान

इस प्रकार वे किसी महामूर्ख की तलाश में लग गये। संयोगवश एक दिन कालिदास को उन्होंने देखा की एक पेड़ की डाली को काट रहे हैं। लेकिन यह क्या कालिदास जिस डाली पर बैठा था उसी डाली को काट रहा था।

उनलोगों ने सोच इस दुनियाँ में इस व्यक्ति से ज्यादा महामूर्ख तो कोई हो ही नहीं सकता। उन्होंने कालिदास को राजकुमारी विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ कराने के लिए ले गया।

उसके पहले उन्होंने कालिदास को सारी बातें समझा दिया था की वे राजकुमारी के सामने अपना मुँह नहीं खोलेंगे। बल्कि वह इशारों में ही किसी भी प्रश्न का जवाब देंगे। कालिदास के बारें में राजकुमारी विद्योत्तमा को बताया गया की वे परम ज्ञानी पुरुष हैं।

लेकिन वे आज मौन व्रत घारण किये हुए हैं। आप इशारों में सांकेतिक भाषा में इनसे शास्त्रार्थ कर सकती हैं। राजकुमारी विद्योत्तमा तैयार हो गई। राजकुमारी विद्योत्तमा द्वारा पूछे गये हर सवाल का जवाव कालिदास नें इशारों में ही सांकेतिक भाषा में दिया करता।

कालिदास के जबाब को वहाँ उपस्थित सभी विद्वान तर्क के माध्यम से सही ठहराते हुए विद्योत्तमा को संतुष्ट कर देते। जब राजकुमारी विद्योत्तमा ने कालिदास को एक अंगुली दिखाई तो कालिदास ने दो अंगुली दिखाया।

जब विद्योत्तमा ने कालिदास को अपना पंजा, मतलब पाँच अंगुली दिखाई तो कालिदास ने समझा की वह मुझे थप्पड़ मारने की बात कह रही है। इस प्रश्न के उत्तर में कालिदास ने राजकुमारी को अपनी मुट्ठी दिखाया।

अर्थात उन्होंने थप्पड़ के जबाव में मुक्का मारने की बात कही। लेकिन वहाँ मौजूद सभी विद्वानों ने विद्योत्तमा को यह तर्क देते हुए समझाया की कालिदास इशारा से बताना चाहते हैं की पांच इन्द्रियाँ अलग – अलग हैं, लेकिन सभी को एकजुट कर संचालित करने वाला मन है।

इस तर्क से प्रभावित होकर विद्योत्तमा ने कालिदास से शादी करने के लिए तैयार हो गयी। क्योंकि राजकुमारी को लगा की कालिदास एक प्रकांड विद्वान हैं। इस प्रकार राजकुमारी विद्योत्तमा की कालिदास के साथ शादी हो गयी।

शादी के बाद विद्योत्तमा को पता चला की उसके साथ छल किया गया। जिस कालिदास को वे प्रकांड विद्वान समझ कर उनसे शादी की, वह एक अत्यंत ही मंद बुद्धि और महामुर्ख वयक्ति निकला।

फलतः विद्योत्तमा ने कालिदास जी का बहुत अपमान किया और अपमानित कर घर से निकाल दिया।

कालिदास का गृह त्याग

अपनी पत्नी से घोर अपमान के बाद कालिदास ने निश्चय किया की वह तब तक अपने घर वापस नहीं कदम रखेगा, जब तक वह एक प्रकांड विद्वान नहीं बन जाते। इसी निश्चय के साथ उन्होंने घर का परीत्याग का कर दिया। 

कालिदास को ज्ञान की प्राप्ति कैसे हुई?

कहा जाता है की जब पत्नी के तिरस्कार से कालिदास ने गृह त्याग कर दिया। गृहत्याग के बाद वे इधर-उधर भटकते हुए ज्ञान की प्राप्ति के लिए हिमालय में घूमने लगे।

इसी दौरान वे बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा मार्ग के मुख्य से कुछ किमी की दूरी पर स्थित सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर पहुंचे। वहीं पर वे माँ काली की आराधना करने लगे और माँ काली के परम उपासक बन गए।

मान्यता है की उन्होंने माँ काली की कठोर साधना की। इस परकर उन्हें माँ काली ने आशीर्वाद दिया जिसके फलस्वरूप उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।

कविदंती है की माँ काली के वरदान के फलस्वरूप वे एक परम ज्ञानी और संस्कृत साहित्य के प्रकांड विद्वान बन गए। जब महाकवि कालिदास परम ज्ञानी हो गए तब वे अपने घर लौट आए। घर वापस आने पर उनकी पत्नी विद्योत्तमा ने अपने विद्वान पति कालिदास का भव्य स्वागत किया।

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के राजकवि कालीदास

उनके द्वारा रचित ग्रंथों से इस बात की पुष्टि होती है की कालिदास, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नों में से एक थे। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के राजकवि के रूप में महाकवि कालिदास का ही वर्णन मिलता है।

उनकी कुछ रचनायें जैसे की मेघदूत तथा रधुवंशनम से पता चलता है की उन्होंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया था। Mahakavi Kalidas Story in Hindi में हम आगे पढ़ेंगे उनकी प्रमुख रचना के बारें में।

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कालीदास की प्रमुख रचनायें – kalidas ki rachnaye in hindi

कालिदास की प्रमुख रचना की बात करें तो उन्होंने अपनी सारी रचनाएं संस्कृत में लिखी हैं। उनकी रचनाओं में महाकाव्य, गीतिकाव्य और नाटक प्रमुख हैं। आईये जानते हैं उनके कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं के बारें में :-

महाकाव्य : कालीदास द्वारा रचित महाकाव्य में सबसे प्रमुख दो महाकाव्य हैं पहला रघुवंशम् और दूसरा कुमारसंभवम्।  रघुवंशम् नामक महाकाव्य में जहॉं कालीदास ने रघुवंशी राजाओं के गाथाओं का वर्णन किया है।

वहीं कुमारसंभवम् महाकाव्य में कालीदास ने भगवान शिव और पार्वती की कथाओं और उनके पुत्र कार्तिक की जन्म की कथा का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है।

गीतिकाव्य – कालीदास द्वारा रचित गीति काव्य में मेघदूतम् (kalidas meghdootऔर ऋतुसंहार का नाम सुमार है। मेघदूतम् में कालीदास ने एक विरह-पीड़ित यक्ष और अलकापुरी में स्थित उनकी प्रेमिका का शृंगार रस से परिपुर्ण बड़े ही अनुपम रूप से वर्णन किया है।

साथ ही ऋतुसंहार में कालीदास ने सभी ऋतुओं में व्याप्त, प्रकृति के विभिन्न आयामों का विशद वर्णन किया है।

कालीदास द्वारा लिखित नाटक

मालविकाग्निमित्रम्

यह कालीदास की पहली रचना मानी जाती है। इसमें राजा अग्निमित्र और मालविका की प्रेम कहानी का वर्णन है। बाद में मालविका को जेल में डलवा दिया जाता है। लेकिन अंत में उनके प्रेम-संबंध को स्वीकार कर मालविका को रानी का दर्जा प्राप्त होता है।

अभिज्ञान शाकुंतलम्

कालिदास द्वारा रचित रचनाओं में अभिज्ञान शाकुंतलम् को सर्वश्रेष्ठ रचना माना जाता है। अभिज्ञान शकुन्तलम् शृंगार रस से भरपूर सुंदर रचना है। कालीदास की यह रचना इतना लोकप्रिय हुआ की उन्हें इस रचना ने प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचा दिया।

संस्कृत भाषा में लिखे उनके इस रचना का अनुवाद अंग्रेजी और जर्मन भाषा के अलावा दुनियां के अन्य कई भाषाओं में हो चुका है। अभिज्ञान शकुन्तलम् में राजा दुष्यंत और शकुन्तला की प्रेम कहानी का वर्णन है।

शकुन्तला राज ऋषि विश्वामित्र और स्वर्ग की अनुपम सुंदरी (अप्सरा) मेनका की पुत्री थी। राजा दुष्यंत को शकुन्तला से पहली ही नजर में प्यार हो जाता है। राजा दुष्यंत और शकुन्तला दोनों जंगल में ही गंधर्व विवाह के द्वारा परिणय सूत्र में बन्ध जाते हैं।

राजा दुष्यंत, शकुन्तला को वापस आने का वचन देते हुए, अपनी राजधानी लौट जाते हैं। पहचान के रूप में राजा दुष्यंत, शकुन्तला को अपनी अंगूठी दे देता है। शकुन्तला के द्वारा चुपके से गंधर्व विवाह किया जाना, ऋषि दुर्वासा को अपना अपमान लगता है।

वे शकुंतला को शाप देते हैं कि जिसके साथ परिणय सूत्र में बंधकर उसने ऋषि का अपमान किया है वही पति एक दिन उसे पहचानने से इनकार कर देगा।

शकुन्तला ने अपनी गलती के लिए ऋषि दुर्वासा से माफी मांगी और श्राप को वापस लेने की प्रार्थना की। तब ऋषि ने शकुन्तला को कहा जाओ, जब राजा दुष्यंत की नजर, तुम्हारी अंगूठी पर पड़ेगी, तब वे तुम्हें पहचान लेंगे। इधर शकुन्तला गर्भवती हो गयी ।

राजा दुष्यंत राजकाज में इतना व्यस्त हो गये की शकुन्तला की कोई सुध नहीं ली। अतः शकुन्तला राजा से मिलने खुद चल पड़ती है। नदी पार करते समय उनकी अंगूठी पानी में गिर जाती है जो एक मछुआरे के हाथ लग जाती है।

इधर जब शकुन्तला, राजा दुष्यंत से मिलती है तो राजा उसे पहचानने से इनकार कर देता है। शकुंतला के लाख गिड़गिड़ाने के बावजूद राजा को कुछ याद नहीं आया। अंत में जब एक मछुआरे ने वह अंगूठी राजा को दिखायी तो राजा को सब बातें याद आया।

विक्रमोर्वशीय

कालिदास द्वारा रचित नाटक विक्रमोर्वशीयम एक रहस्यपुर्ण कहानी से भरा है। इसमें इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी और पुरूरवा में प्रेम की कथा का वर्णन है।

एक दिन जब उर्वशी इन्द्र की सभा में नाचती है तब पुरूरवा से प्रेमासक्ति के कारण उनका नृत्य का प्रदर्शन खराव हो जाता है। उर्वशी के खराव प्रदर्शन से इन्द्र भगवान गुस्से में आ जाते हैं और उसे शाप देकर धरती पर भेज देते हैं।

लेकिन उर्वशी द्वारा भगवान इन्द्र से अनुनय विनय के बाद इन्द्र ने उसे कहा की अगर, उसका प्रेमी उनसे उत्पन्न होने वाले संतान को देख ले, तो वह फिर से वापस स्वर्ग लौट सकती है।

अन्य रचनायें – kalidas ki rachnaye in hindi

कालीदास द्वारा अन्य रचनाओं में श्यामा दंडकम्, कर्पूरमंजरी, श्रृंगार रसाशतम्, श्रृंगार तिलकम्, पुष्पबाण विलासम् सेतुकाव्यम्, ज्योतिर्विद्याभरणम्, श्रुतबोधम् प्रमुख हैं।

आपको महाकवि कालिदास का जीवन परिचय in hindi (Mahakavi Kalidas Story in Hindi) शीर्षक वाला यह लेख जरूर अच्छा लगा होगा, अपने सुझाव से अवगत करायें।

कालिदास का जन्म कहां हुआ था

कालिदास के जन्म स्थान को लेकर भी विद्वानों के बीच काफी मतभेद है। कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान मध्यप्रदेश के उज्जैन में मानते हैं। तो कुछ बिहार में। जबकि कुछ विद्वान के अनुसार उनका जन्म स्थान उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग में स्थित कविल्ठा गांव था।

कालिदास का विवाह कैसे हुआ था?

कालिदास का विवाह के बारें में एक रोचक कहानी है। कालिदास के पत्नी का नाम विद्योत्तमा थी। विद्योत्तमा को साक्षात्कार में हराने के बाद कालिदास का विवाह हुआ।

कालिदास का उपनाम क्या है?

भारत का शेक्सपियर संस्कृत के “महाकवि कालिदास” का उपनाम है। यह उपनाम उन्हें इंग्लैंड के प्रसिद्ध नाटककार “विलियम शेक्सपियर” के साथ तुलना करने से मिला है।

कालिदास की मृत्यु कब हुई?

कालिदास की मृत्यु के वारें में सही तिथि के बारें में विद्वानों में एक मत नहीं है। लेकिन उनकी मृत्यु 6 और 7 वीं सदी के दौरान मानी जाती है।

Q.महाकवि कालिदास का जन्म कब हुआ?

उत्तर – महाकवि कालिदास के जन्म के बारें में कयास लगाया जाता है की इनका जन्म पहली सदी और छठीं सदी के दौरान हुआ होगा। इसके पीछे कई तर्क दिए जाते हैं।

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