गया धाम पितरों की मोक्ष स्थली कही जाती है। यह स्थान सदियों से हिन्दू समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है। प्रतिवर्ष लाखों लोग अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए गया धाम में पिंडदान करते हैं।
पुराणों में भी सीता जी के द्वारा गया धाम में दशरथ जी के पिंड दान की चर्चा मिलती है। कहते हैं की यहाँ पर बहने वाली फल्गु नदी का जल माता सीता के श्राप के कारण ही सुख गया।
यह स्थल गयासुर नामक असुर से जुड़ा हुआ है। जो भगवान बिष्णु की इच्छा अनुसार पत्थर में बदल गया। गया शहर का नाम असुर गयासुर के नाम पर ही पड़ा है। कहते हैं की सम्पूर्ण गया शहर असुर गयासुर के शरीर पर बसा है।
इस लेख में हम जानेंगे की हिन्दू धर्म के लिए क्यों खास है गया की धरती। आखिर गया में ही पिंडदान का महत्व क्यों है। Gaya ji history in Hindi शीर्षक के माध्यम से हम आज पिंडी दान के इतिहास और महत्व को जानेंगे।
गया में पिंडदान का इतिहास GAYA JI PIND DAAN IN HINDI / Gaya Ji History In Hindi
वैसे तो भारत के कई स्थल जैसे, हरिद्वार, गंगासागर, पुष्कर, कुरुक्षेत्र में पिंड दान की क्रिया सम्पन होती है। लेकिन पितरों के तर्पण और श्राद्धकर्म के लिए गया को श्रेष्ठ माना गया है।
गया में पितरों के पिंडदान के बिशेष महत्व की चर्चा धर्म शस्त्रों में भी मिलती है। गया में पिंडदान के महत्व का अंदाजा इसी बाद से लगाया जा सकता है की खुद भगवान राम ने भी इस स्थल का गुणगान किया।
उन्होंने अपने पिता दशरथ जी के पिंड दान के लिए माता सीता के साथ यहाँ आए थे। चैतन्य प्रभु भी अपने पिता के मृत्यु के बाद पिंडदान के लिए इसी स्थल को चुना था।
पितरों के मोक्ष हेतु गया धाम में श्राद्धकर्म और पिंडदान की चर्चा पुराणों मे भी मिलती है। कहते हैं की जब असुर गयासुर का विशाल शरीर विष्णु भगवान की कृपा से विशाल शीला खंड में बदल गया।
तब उन्होंने गायसूर को बचन दिया की जो लोग अपने पितरों का पिण्ड-दान इस शिला पर करेंगे। उनके पितरों को अवश्य मोक्ष की प्राप्ति हॉग। तभी से गया में पिंडदान का महत्व सबसे ज्यादा है।
कहते हैं की उसी काल से लोग यहाँ पिंड दान के लिए आते हैं। गया को पितृ तीर्थ के भी नाम से जाना जाता है। कहा जाता है की गया में पितृ देवता के रूप में खुद नारायण उपस्थित रहते हैं।
पिंड-दान का महत्व Gaya ji history in hindi
पुराणों के अनुसार इस संसार में मानव के ऊपर तीन तरह के ऋण के भार होते हैं। पहला पितृ ऋण, दूसरा गुरु ऋण, तीसरा देव ऋण। लोग गया में पिंडदान के द्वारा अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।
इस प्रकार वे अपने पितृ ऋण को उतारने का फर्ज अदा करते हैं। गया में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म और पिंड दान के पीछे यही उद्देश्य और धार्मिक मान्यता जुड़ी है।
क्यों गया धाम में पिंड दान करना श्रेष्ट है – IMPORTANCE OF PIND DAAN IN gaya dham bihar
हिन्दू धर्मशास्त्र के आधार पर अगर एक बार गया में पित्तरों का श्राद्धकर्म एवं पिंडदान हो जाय तब अन्यत्र दुबारा पिंडदान के आवश्यकता नहीं है। जैसा की हम जानते हैं की सम्पूर्ण गया, गयासुर नामक असुर के पाषाण रूपी शरीर के ऊपर स्थित है।
गया में पिंड-दान के लिए पवित्र स्थल में से फल्गु नदी का तट, अक्षय वट, विष्णुपद मंदिर, प्रेतशिला, रामशिला, ब्रह्मयोनि, पांशुशिला, वैतरणी, सीताकुंड, रामकुंड, नागकुंड, मंगलागौरी आदि स्थल प्रमुख हैं।
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गया में है भगवान विष्णु के पद-चिन्ह
गया धाम में एक भव्य मंदिर अवस्थित है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर विष्णुपद मंदिर के नाम से विख्यात है। गया धाम में फल्गु नदी के तट स्थित इस मंदिर में भगवान विष्णु के पद-चिन्ह मौजूद हैं।
इस पदचिन्ह को धर्म-शीला के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ लोग फल्गु नदी में स्नान व दान कर इस मंदिर का दर्शन करते हैं।
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गया धाम से जड़ी पौराणिक कथा Gaya ji history in hindi
गया धाम से जुड़ी हुई कई पौराणिक कथा पुराणों में वर्णित है। जिसमें से कुछ चुनिंदा कथाओं का नीचे वर्णन किया जा रहा है।
असुर गयासुर से मुक्ति
कहते हैं की असुर गयासुर, भस्मासुर के बंशज थे। उन्होंने विष्णु जी की कठोर तपस्या की और उनकी तपस्या से विष्णु जी प्रसन्न हो गये। उन्होंने विष्णु जी से वरदान मांगा की मेरा शरीर देबताओं से भी ज्यादा पवित्र हो जाय।
जो लोग मेरे शरीर का दर्शन करे उन्हें सभी पापों से छुटकारा मिल जाय और बैकुंठ धाम की प्राप्ति हो। विष्णु जी उन्हें वरदान दे दिया। तत्पश्चात धरती पर पाप और अत्याचार बढ़ने लगे।
लोग पाप करके गयासूर का दर्शन करते और पवित्र होकर मरने के बाद बैकुंठ पहुँच जाते। देवगण घबड़ाकर विष्णु जी के पास गये। तब विष्णु भगवान गयासुर के पास गए और यज्ञ के लिए धरती पर की सबसे पवित्र स्थल की मांग की।
गयासुर बोला भगवान मेरे शरीर से पवित्र इस समय धरती पर और क्या हो सकता है। वह धरती पर लेट गया। वह इतना विशाल था की उनका शरीर पाँच कोस तक फैल गया। उसके शरीर पर यज्ञ प्रारंभ हो गया।
यज्ञ के प्रभाव से गयासुर का शरीर हिलने लगा तब भगवान विष्णु ने अपने माया से उसके ऊपर एक बड़ा सा पत्थर रख दिया। जिसे आज प्रेतशिला के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु गयासुर के समर्पण से बहुत खुश हुए।
भगवान विष्णु ने कैसे गयासुर की इच्छा पूरी की
नारायण ने उनकी इच्छा को पूर्ति करते हुए पत्थर में बदल दिया। गयासुर ने भगवान नारायण से अपनी दो इच्छाएं पूर्ण कराई। पहली की स्वयं नारायण उसके शरीर रूपी शिला पर अपने पवित्र पद-चिह्न अंकित करें।
यह पदचिन्ह आज फल्गु नदी के किनारे विष्णु-पद मंदिर में स्थित है। तथा आप सभी देवगण अप्रत्यक्ष रूप से इस शिला पर ही विराजमान रहें।
दूसरा, वरदान गया सुर ने मांगा कई जब कोई भी व्यक्ति यहाँ आकर अपने पितरों का पिण्ड दान करेगा। तब उसके समस्त कुल का उद्दार हो जाएगा।
गरुर पुराण में वर्णन मिलता है की अगर 21 पीढ़ियों में से कोई भी गया में पिंडदान करता हैं तब उनके समस्त वंश का उद्धार हो जाएगा।
प्रभु श्री राम ने किया था गया में पिंडदान
कहते हैं की अपने पिता राजा दशरथ जी के पिंडदान के लिए भगवान राम अपने पत्नी सीता और भाई राम के साथ गयाधाम आये थे। इस बात का वर्णन गरुर पुराण में भी मिलता है।
कहते हैं की भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण संग पिंड दान की समाग्री लाने के लिए गये थे। माता सीता फल्गु नदी किनारे उनके आने का इंतजार कर रही थी। इधर पिंड दान का शुभ बेला निकला जा रहा था।
तभी अचानक राजा दशरथ जी की आत्मा प्रकट हुई और सीता से बोली, पिंड दान का शुभ समय खत्म होने वाला है। तब सीता जी ने फल्गु नदी, गाय, बटवृक्ष, केतकी के फूल को साक्षी मानकर बालू का ढेर बनाकर दशरथ जी का पिंड दान किया था।
गया का नाम गया क्यों पड़ा?
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार पूरा गया ‘गयासुर’ नाम के राक्षस के शरीर पर बसा है। उन्हीं के नाम पर गया का नाम गया पड़ा।
पिंड दान क्यों किया जाता है?
हिंदू धर्म ग्रंथ के अनुसार मृत्यु के बाद पितरों का तर्पण पिंडदान द्वारा किया जाता है। कहते हैं की पिंडदान से जहाँ पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है वहीं पितृऋण से भी छुटकारा मिलता है।
पिंड दान कहाँ कहाँ होता है?
पिंडदान बिहार के गया के अलाबा हरियाणा के कुरुक्षेत्र और हरिद्वार में किया जाता है। लेकिन गया में पिंडदान का विशेष महत्व माना गया है।
गया तीर्थ का क्या महत्व है?
गया तीर्थ का हिन्दू धर्म ग्रंथ विष्णु पुराण में विस्तृत विवरण मिलता है। कहते हैं गया धाम धरती पर वह पावन स्थल है। जहाँ पितरों के पिंडदान से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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