Bodh Gaya Temple History In Hindi- महाबोधि मंदिर बोधगया गौतम बुद्ध की साधना-स्थली
बौद्ध धर्म का यह आध्यात्मिक स्थल पटना से करीव 90 कि.मी.की दूरी पर स्थित है। बोधगया, भगवान् बुद्ध की तपोभूमि रही है, जिसने समूचे विश्व को सत्य, करुणा, शांति और अहिंसा का पाठ सिखया।
महाबोधि मंदिर आज अपने ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व के कारण विश्व पटल पर स्थान बना चुका है। यह स्थल अतीत काल से बिहार की धरती को गौरान्वित कर रही है।
महाबोधि मंदिर आज अपनी आध्यात्मिक महत्ता के कारण सिर्फ बौद्ध समुदाय के साथ-साथ अन्य धर्म के लोगों को आकर्षित करने में सफल रही है।
यह अपने स्थापत्य कला और अनुपम सौन्दर्य के कारण देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। सदियों से भगवान् बुद्ध की यह तपोभूमि, विश्व-शांति और अहिंसा का पाठ पूरे विश्व को पढ़ा रहा है।
भगवान बुद्ध की इस पावन स्थल को विश्व पटल पर लाने के लिए अनेकों काम अभी भी चल रहें। हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार की अनेकों सौंदीकरण योजनाएँ काम कर रही हैं।
इसके अलाबा इसके चहुमुखी विकास के लिए विदेशों से भी बौद्ध समुदाय के लोगों द्वारा भरपूर मदद मिल रही है। बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर’ बिहार का पहला मंदिर हैं, जिसे विश्व प्रसिद्ध संस्था यूनेस्को ने विश्व धरोधर में शामिल किया है।
इस पवित्र स्थल पर भारत के साथ-साथ थाइलैंड, जापान, चीन और श्रीलंका की सरकार ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। वहाँ की सरकार के अलाबा विभिन्य देशों के बौद्ध संस्थाओं के द्वारा निर्मित ‘महाविहार भी पर्यटक का मन मोह लेती है।
बोध गया का नाम बौद्ध समुदाय के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल है। तीन अन्य स्थान में लुम्बिनी, सारनाथ और कुशी नगर का नाम आता है। लुम्बिनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था,
सारनाथ में उन्होंने अपना प्रथम उपदेश दिया तथा कुशीनगर में उन्होंने महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था। Gautam Buddha updesh in Hindi में पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।
बुद्ध-जयन्ती के अवसर पर विश्व के विभिन्न देशों से बौद्ध समुदाय के लोग बड़ी संख्या में बौद्ध गया आते हैं। बौद्धगया में भगवान बुद्ध की जयंती समारोह देखने लायक होता है।
महाबोधि मन्दिर, बोधगया का इतिहास – Bodh Gaya Temple History In Hindi
आज से लगभग 2500 वर्ष पहले राजकुमार सिद्धार्थ ने मात्र 29 वर्ष की उम्र में गृह त्याग कर दिया। अपनी पत्नी यशोधरा व पुत्र राहुल को रात में सोये हुए छोड़कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े थे।
सांसारिक मोह-माया को त्यागकर ज्ञान की खोज में भटकते हुए गया के समीप पहुंचे। बुद्ध ने यही पर निरंजना नदी के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे कठोर साधना की थी।
करीव 5 वर्ष की कठोर साधना के बाद वैशाख महीने के पूर्णिमा के दिन उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस प्रकार वे राजकुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध कहलाये। पवित्र पीपल वृक्ष आज बोधिवृक्ष के नाम से जाना जाता है।
ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध अपने ज्ञान से विश्व को आलोकित कर लोगों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। भगवान बुद्ध की यह पावन भूमि बोधगया अतीत काल से आजतक उनके उपदेशों को जनमानस में संचारित कर रही है।
चीनी भ्रमणकारी ह्वेनसांग के अपने यात्रा वृतांत में बोधगया के पावन बौद्ध मंदिर को ‘महाबोधि मंदिर’ के नाम से उल्लेख मिलता है।
महाबोधि मंदिर का निर्माण – BODH GAYA TEMPLE HISTORY IN HINDI
महाबोधि मन्दिर के निर्माण की तिथि को लेकर इतिहासकारों में मतांतर है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार 289 ई. पू. महान सम्राट प्रियदर्शी अशोक ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
इस मंदिर में प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण दिखाई पड़ता है। इतिहासकारों के अनुसार इस विहार में सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी के दौरान एक बौद्ध स्तूप वनवाया था।
कहते हैं की कुषाण वंश के राजा कनिष्क ने इन बौद्ध स्तूप के ऊपर मंदिर का निर्माण कराया। सन 1105 ई में बर्मा के बौद्ध समुदाय के लोगों ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
लेकिन सन् 1205 ईस्वी में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय सहित इस मंदिर को भी नष्ट कर दिया। ब्रिटिश भारत में सन् 1876 में जब इस स्थान की खुदाई हुई तब जीर्ण-शीर्ष अवस्था में यह मंदिर मिला।
जिसकी अनेक वास्तु-शिल्पकारों की मदद से मरम्मत कर इस ऐतिहासिक मंदिर को पुनर्निर्माण किया गया।
बनावट और संरचना
Bodh Gaya Temple History In Hindi
दुनियाँ में ‘महाबोधि मंदिर’ सबसे प्राचीन तथा अनुपम मंदिर माना जाता है। इसकी स्थापत्य कला पर्यटक को बेहद आकर्षित करता है। इस मंदिर की ऊंचाई करीब 160 फीट जो देखने में बेहद ही भव्य लगता है।
भव्यता ऐसी की पर्यटक निहारता रह जाता है। इस मंदिर के चारों कोणों पर मंदिर के संतुलन के लिए चार गुंबद बनाया हुआ है। जो मंदिर की भव्यता को और भी निखार देता है।
महाबोधि मंदिर के गर्भगृह की लंबाई लगभग 47 फीट और चौड़ाई करीव 49 फीट के बराबर है। मंदिर की बाहरी दीवार को बेहद ही सुंदर ढंग से अलंकृत किया गया है। मंदिर के दीवारों पर चारों ओर छोटे-छोटे मूर्तियाँ रखी गई हैं।
मंदिर के परकोटे पर भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमाएं मौजूद हैं। बौद्ध मन्दिर के गर्भगृह में भगवान गौतम बुद्ध का पद्माकार आसन है। कहते हैं इसी स्थल पर बैठकर वह ध्यान और साधना करते थे।
पास ही शिला पर उनके पद चिन्ह भी अंकित है। बोधिवृक्ष से निकले हरी-भरी डाली भी इस मंदिर की शोभा को बढ़ाती है।
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बोधगया में महाबोधि मंदिर के अलाबा भगवान बुद्ध से जुड़ी हुई अनेकों चीज देखने लायक है जिसके बारें में आगे विस्तार से बताया गया है।
बौद्ध वृक्ष – BODH GAYA TREE
बौद्ध वृक्ष – BODH GAYA TREE – Image credit en.wikipedia.org
महाबोधि मंदिर के प्रांगण में ही पवित्र ‘बोधिवृक्ष’ (bodh tree )स्थित है। कहते हैं की दुनियाँ में कोई भी वृक्ष इतना लोकप्रिय नहीं होगा, जितना कि बोधगया का ‘बोधिवृक्ष’ है। इस वृक्ष को कई बार नष्ट करने की कोशिस हुई।
सबसे पहले सम्राट अशोक की पत्नी ने इस वृक्ष को कटवा दिया था। क्योंकि की सम्राट अशोक को इस वृक्ष के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति देखकर उसे ईर्ष्या हो गई।
दूसरी बार बंगाल के शासक शशांक ने इस वृक्ष में आग लगवा दि थी। तीसरी बार सन् 1870 में आँधी के कारण गिर पड़ा। कहते हैं की बर्तमान में महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित ‘बोधिवृक्ष’ अपने वंश की चौथी पीढ़ी का है।
वज्रासन BODH GAYA TEMPLE HISTORY IN HINDI
बोधिवृक्ष के किनारे चबूतरा पर पद चिन्ह अंकित है, जिसे भगवान बुद्ध के चरणों के निशान माने जाते हैं। इस स्थल को वज्रासन कहते हैं। इस स्थल पर भगवान बुद्ध ने एक सप्ताह बिताया।
उसके बाद वे खड़े होकर सात दिनों तक बिना पलक झपकाये ‘बोधिवृक्ष’ को देखते रहें जो ‘अनिमेष लोचन’ के नाम से जाना गया।
इस वज्रासन ‘ को श्रीलंका के सरकार ने सोने के पानी चढ़े रेलिंग एवं छतरी से और भी भव्य और आकर्षक बना दिया है। महाबोधि मंदिर के दक्षिणी किनारे पर एक सरोबर स्थित है जिसे कमल सरोवर या मूचलिंग सरोवर के नाम से जाना जाता है। सरोवर के चारों ओर लगे सुंदर पेड़-पौधे इसकी शोभा को और बढ़ा देता है।
भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा NEAR MAHABODHI TEMPLE
महाबोधि मंदिर के अलाबा बोधगया के मुख्य आकर्षण में भगवान् बुद्ध की नवनिर्मित विशाल प्रतिमा है। लगभग 80 फीट ऊंची और 51 फीट चौड़ी इस प्रतिमा को जापान के बौद्ध संस्था के द्वारा बनवाया गया।
यह प्रतिमा सदैव पर्यटक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। इस विशाल बुद्ध प्रतिमा का निर्माण चुनार के गुलाबी पत्थरों से किया गया है। इस प्रतिमा के अंदरूनी भाग में लगभग 16,300 छोटी-छोटी मूर्तियाँ रखी गई हैं।
बौद्ध धर्म में इस मूर्तियों का विशेष महत्व है। इस प्रतिमा को बनाने में करीव 4 साल का बक्त लगा और लगभग 1 करोड़ रुपए की लागत आयी। इस प्रतिमा को सन 1990 ईस्वी में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने अनावरण किया था।
इसके साथ ही ‘थाईलैंड सरकार द्वारा निर्मित मंदिर’ सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर का निर्माण 1967 में किया गया था। मंदिर परिसर में ही करीव 200 क्विंटल लोहे का बना धर्मचक्र स्थित है।
इस धर्मचक्र में गौतम बुद्ध के उपदेश उकेरे हुए हैं। मान्यता है की इस धर्मचक्र को घुमाने से पाप से मुक्ति होती है। इसके अलाबा अन्य दर्शनीय स्थलों में विभिन्न देशों द्वारा निर्मित बौद्ध मठ हैं।
बोधिमंदिर कैसे पहुंचे – HOW TO REACH MAHABODHI TEMPLE
जैसा का हम जानते हैं की गया वायु, रेल और सड़क मार्ग से भारत के हर हिस्से से जुड़ा हुआ है। गया स्टेशन से टैक्सी, ऑटो-रिक्शा और बस की भी सेवा बोधगया के लिए उपलब्ध है।
वायु मार्ग से पटना उतर वहाँ से बोध गया आसानी से पहुँचा जा सकता है। Gaya to bodhgaya distance गया से बोधगया की दूरी लगभग 15 किमी है।
लेकिन अगर आप पटना एयरपोर्ट पर उतरते हैं तो यहाँ से बोधगया की दूरी लगभग 90 कि.मी. है। वैसे bodhgaya airport से भी अव देशी-विदेशी विमान का संचालन शुरू हो गया है।
गया में पर्यटक के ठहरने के लिए बंगले, होटल और धर्मशाला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। दोस्तों BODH GAYA TEMPLE HISTORY IN HINDI शीर्षक वाला यह लेख आपको कैसा लगा अपने सुझाव से जरूर अवगत करायें।