Lingaraj Temple Bhubaneswar – लिंगराज मंदिर का इतिहास
ओडिसा के राजधानी में स्थित Lingaraj temple Bhubaneswar की शान है। भगवान शंकर के हरिहर (hari hara ) स्वरुप को समर्पित Lingaraj temple अत्यंत ही सुंदर व दर्शिनीय प्राचीन हिन्दू मंदिरों में से एक हैं।
सुप्रसिद्ध Lingaraj temple Bhubaneswar में अवस्थित अपने अनुपम स्थापत्य कला के कारण दुनियाँ में प्रसिद्ध है। ‘लिंगराज’ शब्द ‘लिंगों के राजा’ को दर्शाता है। भगवान शिव का ही दूसरा रूप ‘लिंग’ को माना जाता है।
जैसा की हम जानते हैं की भगवान शिव की, मूर्ति और लिंग दोनो रूप में पूजा की जाती है। इस मंदिर में भगवान शिव और lord Vishnu त्रिभुवनेश्वर रूप में विराजमान हैं।
यह भारत का ऐसा इकलौता मंदिर है जहां भक्त, हर-हर महादेव अर्थात शिव जी और श्री हरी अर्थात lord Vishnu दोनों के स्वरूपों का दर्शन प्राप्त करते हैं। इस कारण इसे हरिहर (hari hara ) भी कहते है।
कहते हैं की माता पार्वती ने इस स्थान पर लिट्टी व वसा नामक दो असुरों का संघार किया था। Kalinga style of architecture में बना यह बृहद मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।
अपनी अनुपम वास्तुकला और अद्भुत भव्यता के कारण लोगों का ध्यान अक्सर अपनी ओर आकर्षित करता है। दुनियाँ भर से लाखों लोग प्रतिवर्ष इस मंदिर को देखने आते हैं।
आज से हजार साल पहले जब इतनी टेक्नॉलजी का विकास भी नहीं हुया था। जब भारी-भरकम चीज को ऊपर उठाने के लिए क्रेन का आविष्कार भी नहीं हुआ था।
इतने बड़े-बड़े शीला खंडों को जोड़ कर इतना ऊंचा और विशाल Lingaraj temple का निर्माण वास्तव में विस्मय में डाल देता है।
उस जमाने में किस तरह इतने विशाल शीला खंडों को इतनी उचाई पर उठा कर fix किया गया होगा। यह शोधार्थी के लिए शोध का विषय हो सकता है। इस मंदिर की नीचे से ऊपर तक नकाकाशी देखते ही बनती है।
मंदिर के एक-एक शिलालेख पर उकेरी गयी एक-एक आकृति अचंभित करती है। Lingaraj Temple Bhubaneswar अनूठी वास्तुशैली और अनुपम स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारें में विस्तार से –
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लिंगराज मंदिर का इतिहास – Lingaraj temple Bhubaneswar in Hindi
छठी शताब्दी के लेखों में भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित इस मंदिर का वर्णन किया गया है।भगवान शिव को समर्पित (dedicated to lord shiva )इस मंदिर का इतिहास एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है।
मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1090-1104 ई के बीच माना गया है। कहते हैं की इसके कुछ हिस्से का निर्माण 1400 साल से भी ज्यादा प्राचीन हैं।
इतिहास में वर्णित कुछ तथ्यों से पता चलता है की इस मंदिर का निर्माण सन 615-657 ई. के मध्य हुया था। उसके बाद 11th century में जगमोहन(प्रार्थना कक्ष) और 12 वीं सदी में भोग मंडप का निर्माण कराया गया।
सोम वंश के शासक द्वारा इस मंदिर का निर्माण – LINGRAJ TEMPLE IN HINDI
कहा जाता है की यह मंदिर तीन राजाओं ययाति केशरी(king jajati keshari ), अनंत केशरी, और ललातेन्दु केशरी के शासन काल में निर्मित हुआ। वे सोम वंश से तालुक रखते थे।
यह भी मान्यता है कि जब राजा ने जयपुर से भुवनेश्वर अपनी राजधानी ले गये तब उन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया। लेकिन कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण ललातेन्दु केशरी के शासन काल में सम्पन हुआ।
मंदिर की संरचना व बनावट- Lingaraj temple Bhubaneswar in Hindi
Kalinga style of architecture में बना लिंगराज मंदिर की ऊंचाई 180 फुट के करीव है। लिंगराज मंदिर का निर्माण गहरे शेड वाले लाल बलुआ पत्थर से हुआ है।
विशालकाय शीला खंडों से निर्मित यह मंदिर अपने उत्कृष्ट नक़्क़ाशी और अनूठी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को बाहर से देखने पर लगता है की मंदिर चारों तरफ से फूलों के मोटे गजरे से लिपटा है।
साल भर पर्यटक और श्रद्धालू इस मंदिर का दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर पर की गयी बेहद उत्कृष्ट नक्काशी देखते ही बनती है। मंदिर के दीवार पर बनी आकृति कलाकारों की बेहद उत्कृष्ट कारीगरी को दर्शाता है।
सिंहद्वार या मुख्य द्वार – Lingaraj temple Bhubaneswar in Hindi
करीब 5 एकड़ में फैला लिंगराज मंदिर में तीन द्वार हैं। पश्चिम दिशा को छोड़कर बाकी तीनों दिशाओं उत्तर, दक्षिण और पूर्व में एक-एक द्वार हैं। श्री लिंगराज मंदिर पूर्वाभिमुख है। इसके पूर्व द्वार को मुख्य द्वार या सिंह द्वार के नाम से जाना जाता है।
मंदिर के प्रवेश द्वार के ठीक अंदर एक विशाल त्रिशूल स्थापित है। इस मंदिर के ठीक उत्तर दिशा में विंदुसागर नामक पवित्र सरोवर स्थित है। इस झील का निर्माण भगवान शिव के द्वारा माना जाता है।
Lingaraj temple के चार मुख्य भाग
Lingaraj temple को चार भाग में विभक्त किया गया है। पहला भगवान का गर्भगृह अर्थात श्रीमंदिर, दूसरा – यज्ञ शाला तथा तीसरा नाटमंडप और चौथा भोगमंडप।
कहते हैं की मुख्य मंदिर यानी श्रीमंदिर का निर्माण ललातेन्दु केशरी ने की थी। उसके बाद क्रमशः जगमोहन, नाटमंडप और चौथा भोगमंडप का निर्माण हुआ।
इस मंदिर के गर्भगृह में आठ फ़ीट मोटा और लगभग एक फ़ीट ऊँचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू लिंग स्थित है। इस मंदिर के स्वयंभू लिंग में God Vishnu और Shiv दोनो अपने स्वरूप में विराजमान हैं।
तभी तो इन्हें हरी-हरा कहा गया है। मंदिर के मुख्य द्वार के दरवाजे के दोनों तरफ शिव जी का त्रिशूल और श्री हरी का चक्र देखा जा सकता है।
Temple complex में कई अन्य छोटे-बड़े मंदिर उपलबद्ध
लिंगराज मंदिर complex में भगवान शंकर के विभिन्न स्वरुप के साथ कई छोटे-छोटे मंदिर भी अवस्थित हैं। लिंगराज मंदिर से सटे दक्षिण में भगवान गणपती, पश्चिम में कार्तिकेय तथा उत्तर दिशा में गौरी मन्दिर हैं।
इन मंदिरों में देवी-देवताओं के विशाल कलात्मक मूर्तियाँ अवस्थित हैं। इसके अलावा भी Lingaraj temple complex में अनेक देवी-देवताओं के छोटेछोटे मंदिर उपलब्ध हैं।
इन मंदिरों में वैधनाथ, विश्वकर्मा, भुवणेश्वरी, वृषभ, शिवकाली, सावित्री, नृसिंह इत्यादि देवी और देवता विराजमान हैं।
जैसा की हम पढ़ चुके हैं की लिंगराज मंदिर भारत के ओडिसा में स्थित एक मात्र मंदिर है, जहां भगवान शिव और श्री हरी अर्थात विष्णु भगवान दोनों एक स्वरूप में विराजमान हैं।
भगवान शिव का सवारी नंदी (वृषभ) है। इसीलिए इस मंदिर के प्रवेश द्वार के पास एक विशाल नंदी की प्रतिमा स्थापित है। वास्तुकला की दृष्टि से भी लिंगराज मंदिर की संरचना बेहद उत्कृष्ट है।
मूर्तिकारी कला का अद्भुत उदाहरण – LINGRAJ TEMPLE IN HINDI
भारत का लिंगराज मंदिर अपने अलंकरण तथा अनुपम स्थात्य कला के कारण संसार भर में प्रसिद्ध है। मन्दिर के प्रत्येक शिला खंड पर महीन कारीगरी के द्वारा कोई-न कोई आकृति उत्कीर्ण की गयी है।
इस मंदिर के शीला पर बहुत ही बारीकी और निपुणता से खुदाई कर एक-एक आकृति में अद्भुत कारीगरी के द्वारा मानो जान डाल दी गयी है। सभी चित्र विशाल हैं और कलाकारों की उत्कृष्ट कारीगरी प्रस्तुत करते हैं।
मंदिर के दीवार पर रामायण और महाभारत कथा, शिव विवाह, जीव-जन्तु, इन्द्र, यम, वायु, कुबेर, सहित कई देवी-देवताओं तथा पशु-पक्षियों की सुन्दर आकृति उस समय के अद्भुत मूर्तिकारी का जीता जागता उदाहरण है।
लिंगराज मंदिर का तालाब (बिन्दु सागर)
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इस मंदिर के उत्तर में पावन बिन्दुसागर नामक सरोवर (तालाब ) स्थित है। मान्यता है की इस तालाब का निर्माण अनेकों पवित्र नदियों के बूंदों से हुआ है। इस कारण इस सरोवर का नाम बिन्दुसागर पड़ा।
शिव भक्त इस सरोवर के जल को पवित्र मानते हैं। इस सरोवर से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। माता goddess parvati को भुवनेश्वरी भी कहा जाता है। शायद इसी कारण इस स्थान का नाम भुवनेश्वर पड़ा।
कहते हैं की माता goddess parvati ने इसी स्थान पर लिट्टी और वसा नामक दो असुरों का संहार किया था। युद्ध में दोनो असुरों के संहार के उपरांत माता goddess parvati को प्यास लग गयी ।
तब भोले शंकर द्वारा समस्त नदियों से जल के बूंदों को संचय कर एक सरोवर का निर्माण किया गया। यही सरोवर बिन्दु सागर सरोवर के नाम से जाना जाता हैं। महाप्रभु लिंगराज के चंदन यात्रा के समय इस सरोवर की रौनक अत्यंत बढ़ जाती है।
पापनाशनी कुंड – lingaraj temple in Hindi
लिंगराज मंदिर के उत्तर पश्चिम में स्थित सरोवर पापनाशनी कुंड के नाम से जाना जाता है। सरोवर में जल का level जमीन से लगभग 40 फुट नीचे है। तालाब में नीचे उतरने के लिए सीढ़ी बनी हुई है।
लिंगराज मंदिर के जलाभिषेक का पानी एक नाली के माध्यम से इसी सरोवर में पहुचता है। पापनाशनी कुंड का जल अति पावन माना गया है। जिसमें स्नान से पापों का नाश होता है।
इसके अलावा यहॉं पर स्थित देवी पादहरा कुंड और मरीचि कुंड का भी अपना महत्व है।
लिंगराज मंदिर से जुड़ी प्रमुख उत्सव
समय समय पर लिंगराज मंदिर में कई महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इनमें मकर संक्रांति, शिव चतुर्दशी और आसाढ़ महीने में परशुरामष्टमी इत्यादि प्रसिद्ध है।
इसके अलाबा लिंगराज मंदिर के बाहर विभिन शोभायात्रा भी निकली जाती है। इनमें फाल्गुन महीने में होने वाले दोल पूर्णिमा, चैत्र व बैशाख के मध्य अशोकाष्टमी रथयात्रा, चंदन रथ यात्रा, शिव विवाह आदि प्रमुख हैं।
अशोकाष्टमी रथ यात्रा
प्रति बर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को महाप्रभु श्री लिंगराज के रथ यात्रा का आयोजन बहुत ही धूम-धाम से किया जाता है।
इस रथ यात्रा को अशोकाष्टमी रथ यात्रा या रुकुणा रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है। श्री लिंग राज महाप्रभु के सुसज्जित रथ को भक्त रस्सियों से बांध कर खिचते हैं।
इस सुसज्जित रथ को खिचते हुए पास के रामेश्वर मंदिर तक ले जाया जाता है। चार दिन वाद यह रथ, रामेश्वर मंदिर से लिंगराज मंदिर में वापस लाया जाता है।
कहते हैं की अशोकाष्टमी रथ यात्रा में जिस रस्सी का प्रयोग किया जाता है। वही रस्सी जगन्नाथपुरी में होने वाले रथ यात्रा में माता सुभद्रा के रथ की रस्सी के रूप में इस्तेमाल की जाती है।
अशोकाष्टमी रथ यात्रा के समापन के वाद इस रस्सी को जगन्नाथपुरी कार्यालय को भेज दिया जाता है। यह परम्परा सालों से चली आ रही है।
नौका विहार अर्थात चंदन यात्रा
भगवान श्री लिंगराज की चंदन यात्रा हर साल बैसाख महीने के अक्षय तृतीया को शुरू होती है। यह यात्रा 22 दिनों तक चलती है। इस यात्रा में भगवान शिव एवं माता goddess parvati साथ होते हैं।
महाशिवरात्रि पर शिव विवाह उत्सव
लिंगराज मंदिर में हर वर्ष महाशिवरात्री के अवसर पर शिव विवाह को एक वृहद उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जिसमें लाखों शिव भक्त जमा होते है। शिवरात्रि का मुख्य उत्सव रात्री में शुरू होता है।
जब लिंगराज मंदिर के शिखर पर महादीप को प्रज्जवलित कर दिया जाता है तब शिव भक्त अपना व्रत तोड़ते हैं। शिवरात्री के दिन पूजा अर्चना के वाद श्री Lingraj महाप्रभु को दूल्हे के वेश में सजाया जाता है।
इस शोभायात्रा में शामिल होने वाले सभी भक्त वरयात्री कहलाते हैं। यह शोभा यात्रा श्री लिंगराज मंदिर से निकलकर केदार गौरी मंदिर तक जाती है।
वहाँ पर विवाह कार्यक्रम पारंपरिक रीति रिवाज से सम्पन किया जाता है। देवी गौरी और प्रभु लिंगराज के विवाह सम्पन होने के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है।
डोलयात्रा या दोलपूर्णिमा (होली)
फाल्गुन माह के पूर्णिमा को यहॉं दोलपूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान लिंगराज मंदिर में विशेष उत्सव का वातावरण होता है। इस दिन भगवान को आसन पर बैठाकर चंदन का लेप लगाया जाता है। इस दौरान हजारों भक्त प्रभु का दर्शन कर गुलाल लगाते हैं।
Lingaraj temple में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित
जैसे केरल के सावरिमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। उसी तरह Lingaraj temple Bhubaneswar में भी कुछ परंपराओं का कठोरता से पालन किया जाता है। इस मंदिर में गैर-हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है।
अन्य धर्म के लोग इस मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। दूसरे धर्म के पर्यटकों के लिए मंदिर के चारदीवारी के बाहर एक ऊंचा प्लेटफॉर्म बनवाया गया है। यहॉं से लिंगराज मंदिर का दर्शन किया जा सकता है।
लिंगराज मंदिर कैसे पहुंचे- How can I go to Lingaraj temple Bhubaneswar
अनुपम कलाकृति और भगवान शिव में आस्था के कारण लाखों लोग प्रतिवर्ष इस मंदिर के दर्शन करने भुवनेश्वर पहुचते हैं। भुवनेश्वर भारत के किसी भी कोना से रेल और सड़क मार्ग से पहुचा जा सकता है।
भुवनेश्वर में Biju Patnaik international Airport है। जहॉं से कार या बस द्वार आसानी से मंदिर पहुचा जा सकता है।
उपसंहार – Disclaimer
भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर के साथ करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है। अपनी भव्यता और लोकप्रियता के कारण Lingaraj temple Bhubaneswar की गिनती भारत के कुछ प्रसिद्ध गिने चुने मंदिरों में की जाती है।
इस मंदिर को जगन्नाथपुरी पूरी का सहायक मंदिर भी कहा जाता है। पर्यटक जगन्नाथधाम के मंदिर के साथ-साथ इस मंदिर का दर्शन करने अवश्य जाते हैं।
अपने यात्रा के अनुभव के द्वारा Lingaraj temple bhuvneswar के बारे में मेरा यह लेख सिर्फ जानकारी शेयर करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इस लेख में वर्णित किसी भी तथ्य की पुष्टि हमारी वेबसाइट नहीं करती हैं।
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