रविन्द्र नाथ टैगोर जीवनी | rabindranath tagore jeevan parichay in hindi

रविन्द्र नाथ टैगोर जीवनी | rabindranath tagore jeevan parichay in hindi

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Rabindranath tagore jeevan parichay in hindi – रविन्द्र नाथ टैगोर जीवनी

गुरूदेव के नाम से प्रसिद्ध रविन्द्र नाथ टैगोर एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आज हम Rabindranath Tagore In Hindi के शीर्षक वाले इस लेख के माध्यम से उनके समस्त जीवन के बारे में जानने की कोशिस करेंगे।

रबीन्द्र नाथ टैगोर एक महान  कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और समाज सुधारक थे। रविन्द्र नाथ टैगोर भारत और बांगलादेश के राष्ट्रगान के रचियाता हैं।

उनके अंदर संगीतकार, चित्रकार इत्यादि गुण भी मौजूद थे। उन्होंने रवींद्र संगीत की नींव रखी और कई शैक्षिक संस्थायें कि स्थापना कि। इन शैक्षणिक संस्थाओं में शांति-निकेतन, शिक्षा सत्र जैसे नाम प्रमुख है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध रचना गीतांजलि gitanjali है। जिसके लिए उन्हें साहित्य के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध नोवेल पुस्कार से सम्मानित किया गया। रवीन्द्रनाथ टैगोर का व्यक्तित्व बहुयामी थे जिन्हें हिन्द की सीमा भी न बांध पायी।

धीरे-धीरे उनकी ख्याती पूरे विश्व में फैल गई और विश्व नागरिक के रूप में उनकी पहचान बन गई। रवीन्द्रनाथ टैगोर के व्यक्तित्व को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘सर ’ की उपाधि से सम्मानित किया।

Rabindranath Tagore Jeevan Parichay In Hindi - रविन्द्र नाथ टैगोर जीवनी
Rabindranath Tagore Jeevan Parichay In Hindi – रविन्द्र नाथ टैगोर जीवनी

उनकी अदभूत कामयावी से पराधीन भारतीयों में आत्मसम्मान की भावना जागृत हुई। उन्होंने ही महात्मा गाँधी को महात्मा की उपाधि प्रदान की। Rabindranath Tagore In Hindi में हम आगे यह भी जानेंगे की क्यों उन्होंने अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदत सर की उपाधि को लौटा दिया था।

रविन्द्र नाथ टैगोर जीवनी एक झलक – Rabindranath Tagore BIOGRAPHY In Hindi

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के सम्पूर्ण जीवनी पढ़ने से पहले उनके जीवन के संक्षिप्त झलक देखते हैं।

  • पूरा नाम – रवींद्नाथ ठाकुर
  • अन्य नाम – रवींद्रनाथ टैगोर, गुरुदेव   
  • जन्म – 7 आई 1861 कलकत्ता, भारत
  • मृत्यु – 7 अगस्त 1941
  • पत्नी का नाम – मृणालनी देवी  
  • प्रसिद्ध रचना – गीतांजलि
  • सम्मान व पुरस्कार – नोवेल पुरस्कार,
  • महतपूर्ण कृति – शांतिनिकेतन की स्थापना, भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान की रचना,

रविंद्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय

कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता के जोड़ासांको नामक स्थान पर हुआ था। उनका परिवार (Rabindranath tagore family) बहुत ही सम्पन्न था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के  माताजी का नाम शारदा देवी तथा पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था। अपने भाई-बहन में रवीन्द्रनाथ टैगोर सबसे छोटे थे। उनके एक बड़े भाई का नाम सत्यन्द्रनाथ टैगोर था।

जिन्हें भारत के सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने वाले प्रथम भारतीय होने का गौरव प्राप्त है। बचपन में घर के सारे सदस्य उन्हें प्यार से रवि कहा करते थे।

रविन्द्र नाथ टैगोर के माता का देहांत उनके वचपन में ही हो गया था। उनके सन् 1883 ईस्वी में उनका विवाह मृणालिनी देवी के साथ सम्पन्न हुआ।

शिक्षा-दीक्षा – rabindranath tagore in hindi

रविन्द्र नाथ टैगोर बचपच से ही स्वतंत्र विचारधारा के प्रवर्तक थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर की बचपन से ही पढ़ाई में रुचि थी। स्वंय इसके लिए उन्होंने विद्यालय जाने की इच्छा व्यक्त की।

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इस प्रकार उनकी आरंभिक शिक्षा की शुरुआत कलकता के एक प्रतिष्ठित सेंट जेवीयर स्कूल से हुई थी। लेकीन कुछ दिन विद्यालय जाने के पश्चात उन्हें वहां उन्हें  बंधन की तरह लगा।

स्कूल में भी उन्हें कड़ी अनुासन में चारों ओर से शिक्षकों से घीरे रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। चूकिं वे एक सम्पन्न परिवार से थे, इसलिए घर पर ही उनको पढ़ाने के लिए निजी अध्यापक  की व्यवस्था की गई।

वीडियो रविंद्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय

इस प्रकार रवीन्द्रनाथ टैगोर ने घर पर ही रहकर बंगला, संस्कृत और  अंग्रेजी भाषाऔं का ज्ञान प्राप्त किया। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होने चित्रकला एवं  संगीत के क्षेत्र में भी निपुणता हासील की।

उच्च शिक्षा के लिए इंगलेंड रवाना

सन 1878 ई. में वे वैरिस्टर बनने के लिए कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गये। इंगलेंड में उनका परिचय डब्लू वी यीट्स से हुआ जो अंग्रेजी के प्रख्यात कवि थे। वे डब्लू वी यीट्स से बहुत ही प्रभावित हुए।

कहते हैं की आगे चलकर उन्ही से प्रभावित होकर बांग्ला के 103 कविता का संग्रह कर गीतांजलि की रचना की। इंगलेंड का माहोल उन्हें रास नहीं आया। इस कारण वे ज्यादा दिन तक वहाँ नहीं रहे। इस प्रकार सन 1880 ईस्वी में वे अपना देश भारत लौट आये।

आजादी की लड़ाई में योगदान

यद्यपि गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को राजनीति में कोई खास रूची नहीं थी। लेकिन जब देश की बात आयी तो बंगाल विभाजन के समय उन्होंने इसके विरूद्ध चलने वाले स्वदेशी आन्दोलन का नेतृत्व किया।

वे बंगाल की सड़कों पर एकता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व का गीत गाते हुए निकल पड़े। अन्ततः उनका प्रयास काम आया और तत्कालीन बंगाल विभाजन रुक गया। सन 1919 में जालियावाला बाग हत्याकाण्ड से वे बहुत ही आहत हुए।

उन्होंने इस घटना के विरोध में ब्रिटिश सरकार के द्वारा प्रदत सर की उपाधि लौटा दिया। उन्होंने बंगाल भाषा में ‘तबे एकला चलो रे’ नामक देशभक्ति गीता की रचना की। जिसका प्रकाशन 1905 ईस्वी मे हुआ था।

विदेश यात्रा

अपने जीवन में रविन्द्र नाथ टैगोर ने करीब 30 देशों की यात्रा की। उनके यात्रा का एक ही उद्शेय था कि जो लोग हिन्दी, बंगला, संस्कृत नहीं समझ पाते थे, उन तक अपना साहित्य ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाना।

उन्होंने अपना पहला विदेश यात्रा इंग्लैंड से शुरू किया था और उनकी अंतिम यात्रा श्रीलंका था। उन्होंने तीन बार विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन से भी मिले थे।

निधन – rabindranath tagore death in hindi

कहते हैं की रविन्द्र नाथ टैगोर की जीवन का अंतिम समय बहुत ही कष्टकारी रहा। उनके जीवन का अंतिम चार वर्ष बीमारी में बीता। अंततः केन्सर के कारण 7 अगस्त सन 1941 ईस्वी में उन्होंने अंतिम सांस ली।

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साहित्य के क्षेत्र में योगदान

रवींद्र नाथ टैगोर का साहित्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान रहा। उन्होंनें अपना सारा जीवन शिक्षा, समाज सेवा के साथ-साथ साहित्य को समर्पित कर दिया। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का साहित्य के प्रति रूचि बचपन से ही थी।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मात्र 8 वर्ष की अवस्था में ही अपना पहला काव्य की रचना की थी। उन्होंने 16 वर्ष की उर्म में अपनी पहली लघुकथा प्रकाशित कर बंगला साहित्य में एक नये युग का प्रारंभ किया।

उनकी पहली पुस्तक संध्या संगीत के नाम से सन 1882 ईस्वी में प्रकाशित हुई।

रवींद्र नाथ टैगोर की प्रमुख रचनायें

ज्यादातर लोग उन्हें एक कवि और समाज सुधारक के रूप में ही ही जानते है परन्तु वास्तविकता कुछ अलग है। उन्होंने कविता के साथ-साथ उन्हें ड्रामा, लेख, उपन्यास, लघु कहानियां, यात्रा-वृत्तांत के साथ साथ हजारों गीत भी लिखे।

इनके प्रमुख लेखनी में गीतांजलि, गौरा, पोस्ट ऑफिस, चित्रा, विर्सजन, कल्पना, काबुलीवाला, नवयुग, नारी आदि है।

रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान – rabindranath tagore dwara sthapit shikshan sansthan

रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत लौटने के पचात अपना सारा रियासत घुमा और सुदूर गॉव के िक्षा प्रणाली का अवलोकन किया। तत्पश्चात बोलपुर के समीप जहां उन्होंने साधना की।

वहीं पर सन 1901 ई. में एक आश्रम की स्थापना की। यही आश्रम आगे चल कर शांतिनिकेतन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर उन महान शिक्षाशास्त्री में से एक थे,

जिन्होंने शिक्षा प्रणाली का प्रतिरूप ही नहीं दिया वरण उसको धरातल पर लाकर दुनियां को दिखाया। उनके द्वारा स्थापित प्रमुख शैक्षणिक संस्था में शांतिनिकेतन, श्रीनिकेतन, शिक्षा सत्र एंव  विश्वभारती प्रमुख है।

आईये उनके द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान के बारे में विस्तार से जानते है-   

शांतिनिकेतन

जैसा की हम पढ चुके हैं कि गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने सन 1901ईस्वी में जिस ब्रह्मचर्य आश्रम का स्थापना की, जो बाद में शांतिनिकेतन के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ। दिन-प्रतिदिन छात्रों की संख्या बढ़ती गयी।

सुरूआत में शांतिनिकेतन में अध्यापण की जिम्मेवारी गुरूदेव के दो पुत्र समिन्द्रनाथ एवं रतिन्द्रनाथ ने संभाला। सन 1913 ईस्वी तक रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्वंय ही इस संस्थान का खर्च का वहन किया।

इसी स्कूल में भारत के प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भी पढ़ाई की। महान साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी यहाँ अध्यापन का कार्य किया था।

प्रकृति से रवींद्रनाथ को बहुत ही लगाव था। शांतिनिकेतन में उन्होंने ढ़ेर सारे पेड़-पौधा लगबाये।

शिक्षा सत्र

गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने अपने प्रयोग को जारी रखते हुए सन 1924 ईस्वी में एक विद्यालय का प्रारंभ किया, जिसका नाम ‘शिक्षा सत्र’ रखा। इसमें वैसे बच्चों को सम्मिलित किया गया जो या तो अनाथ थे, या जिनके माता-पिता इतने गरीब थे कि वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते।

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विश्वभारती

गुरूदेव ने सन 1921 ईस्वी के अन्त में शांतिनिकेतन का विस्तार विश्व भारती के रूप में किया। आगे चलकर यह विश्व भारती, विश्वविध्यालय के रूप में परिवर्तित हुआ।

जिसका आर्दाश वाक्य था ‘यत्र विश्वं भवेत्य नीड़’। यह एक ऐसी संस्था है जहां दो संस्कृति पूर्वी एवं पश्चिमी का अद्भूत संगम है।

रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार – rabindranath tagore nobel prize in hindi

गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर को उसके अद्वितिय रचना के लिए सन् 1913 ई. में नोवेल पुस्कार से सम्मानीत किया गया। ये पुस्कार साहित्य के क्षेत्र में उनकी प्रसिद्ध पुस्तक गीतांजलि के लिए मिला।

साहित्य के क्षेत्र में नोवेल पुस्कार पाने वाले वे भारत के ही नहीं बल्कि एसिया महाद्वीप के प्रथम व्यक्ति थे। कलकत्ता विश्व विद्यालय ने भी उन्हें 1913 में ही ‘डी लिट’ की उपाधि से सम्मानित किया।

इंगलेंड के तत्कालीन किंग जार्ज पंचम ने रवीन्द्रनाथ टैगोर को समाजकल्याण और शिक्षा के प्रति समर्पण को देखते हुए सर की उपाधि से सम्मानित किया।

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दो देशों के राष्ट्रगान के रचनाकार

भारत के राष्ट्रगान के रचियाता गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर हैं। जिसे 26 जनवरी 1950 में राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया।

वे दुनिया के एक मात्र ऐसे महान विभूति हैं जिन्होंने एक नहीं बल्कि दो देशों के राट्रगान को लिखा। उन्होंने भारत का राट्रगाण ‘जन-गण मन’ के साथ बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बंगला की भी रचना की।

उपसंहार

गुरदेव रविन्द्र नाथ टैगोर अद्भुत प्रतिभा सम्पन थे। ऐसे महान व्यक्तित्व से हमें अपने जीवन में सिख लेनी चाहिए। इन्होंने भारत में शिक्षा पद्धि में बदलाव का जो स्वप्न देखा उसे अपने जीवन में साकार किया। ऐसे विलक्षण प्रतिभााली व्यक्तित्व  को सादर नमन।

रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म कब और कहां हुआ था?

रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता के जोड़ासांको नामक जगह पर हुआ था।

रविंद्र नाथ टैगोर को कौन सा पुरस्कार मिला था?

रविंद्र नाथ टैगोर को अपने साहित्य गीतांजलि के लिए विश्व प्रसिद्ध नोवेल पुस्कार मिला। अंग्रेजों ने उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया। जिसे उन्होंने जलियाँवाला बाग कांड के बाद लौटा दिया।

रविंद्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार कब मिला?

गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को नॉवेल पुरस्कार सन 1913 ई. में मिला था।

रविंद्र नाथ टैगोर की मृत्यु कब हुई थी?

रविंद्र नाथ टैगोर की मृत्यु 7 अगस्त 1941 ईस्वी में हुआ था।

दोस्तों RABINDRANATH TAGORE JEEVAN PARICHAY IN HINDI लेख के बारे में अपने सुझाव से जरूर अवगत करायें।

Amit

Amit

मैं अमित कुमार, “Hindi info world” वेबसाइट के सह-संस्थापक और लेखक हूँ। मैं एक स्नातकोत्तर हूँ. मुझे बहुमूल्य जानकारी लिखना और साझा करना पसंद है। आपका हमारी वेबसाइट https://nikhilbharat.com पर स्वागत है।

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