हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय, व्यंग्य लेख, कविताएँ, रचनाएँ, भाषा-शैली | Harishankar parsai ka jivan parichay 

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हरिशंकर परसाई कौन थे?

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय - Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay)

हरिशंकर परसाई हिन्दी के जाने माने कवि और लेखक हैं। हरिशंकर परसाई एक कहानीकार, उपन्यासकार, निबन्ध–लेखक और व्यंग्यकार के रूप में विख्यात हैं।

व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के बारे में कहा जाता है की उन्होंने व्यंग्य को लेकर नए कीर्तिमान की रचना की और व्यंग्य को हल्के-फुल्के होने के भाव से ऊपर उठाते हुए नई पहचान दिलाई।

उन्हें हिंदी साहित्य का पहला रचनाकार माना जाता हा जिन्होंने व्यंग्य को विधा का रूप प्रदान कराया। अपने साहित्यिक कैरीयर में उन्होंने अनेकों कहानियाँ, उपन्यास और निबंध की रचना की।

साहित्य सृजन में अपने जीवन को समर्पित करते हुए इन्होंने करीब 72 वर्षों तक जीवत रहे। उनका 10 अगस्त, 1995 ई० को जबलपुर में निधन हो गया। उन्होंने अपनी व्यंग्य लेखनी का माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

उनके इस योगदान के लिए वर्ष 1982 में उन्हें साहित्य का सबसे बड़ा सम्मान साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आइये इस लेख में इस महान कवि और लेखक हरिशंकर परसाई की जीवन परिचय विस्तार से जानते हैं।

हरिशंकर परसाई जी का जीवन परिचय – Harishankar parsai biography in Hindi

हरिशंकर परसाई का जन्म – 22 अगस्त 1924
हरिशंकर परसाई की माता पिता का नाम – जुमक लालू प्रसाद, चम्पा बाई
हरिशंकर परसाई की पत्नी का नाम – ज्ञात नहीं

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हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय इन हिंदी – Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

प्रारम्भिक जीवन

श्री हरिशंकर जी का जन्म 22 अगस्त 1924 को भारत के मध्यप्रदेश राज्य में इटारसी शहर के पास जमानी नामक स्थान पर हुआ था। हरिशंकर परसाई के पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद और उनकी माता जी का नाम चम्पा बाई थी।

हरिशंकर परसाई की शिक्षा

हरिशंकर परसाई की आरम्भीक शिक्षा अपने स्थानीय विध्यालय से हुई। उसके बाद उन्होंने वहीं से ही स्नातक की पढ़ाई पूरी की। तत्पश्चात वे नागपूर चले गए जहाँ से उन्होंने हिन्दी में एम० ए० की परीक्षा पास की।

करियर

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत जंगल बिभाग में नोकरी से की। बाद में अपने पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया। इस दौरान वे साहित्य सृजन में लगे रहे। कुछ वर्षों के बाद उन्होंने नोकरी छोड़ दी और स्वतन्त्र लेखन में लग गए।

पत्रिका का सम्पादन

नौकरी छोड़ने के बाद वे हिन्दी साहित्यिक पत्रिका के सम्पादन के क्षेत्र से जुड़ गए। सबसे पहले उन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ नाम की हिन्दी मासिकी पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन शुरू किया।

लेकिन कुछ दिनों के बाद आर्थिक तंगी के कारण इस बंद करना पड़ा। उनके कॉलम कई प्रसिद्ध पत्रिका में छापते थे। उनकी नयी कहानियों में ‘पाँचवाँ कालम’¸ नई दुनिया में ‘सुनो भाई साधो’ और ‘उलझी–उलझी’ तथा कल्पना में ‘और अन्त में’ कॉलम छपते थे।

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उनका लेख हिंदुसतान साप्ताहिक और देशबंधु में भी छपते थे। जबलपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबार देशबंधु में उनका एक कॉलम ‘पूछिये परसाई से’ होता था। जिसमें वे पाठकों के प्रश्नों का जवाव देते हुए खूब लोकप्रिय हुए।

कहा जाता था की उनका यह कॉलम इतना प्रसिद्ध था की पाठक उनके जबाव को पढ़ने के लिए अखबार का वेसब्री से इंतजार किया करते थे।

सम्मान और पुरस्कार

साहित्य सृजन में अमूल्य योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार की प्राप्ति हुई। उन्हें उनकी रचना ‘विकलांग श्रद्धा का दौर‘ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।

इसके अलावा उन्होंने मध्यप्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा-सम्मान, जबलपुर विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट् की मानद उपाधि, शरद जोशी सम्मान आदि प्राप्त हुए।

हिन्दी साहित्य में योगदान

हरिशंकर परसाई का हिन्दी साहित्य में स्थान अविस्मरणीय है। उन्होंने हमेशा से सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों का विरोध किया। उनकी सरल और सुबोध भाषा शैली में पाठक को अपनापन दिखता था।

उनकी रचना पढ़ने से पाठकगन खो जाते थे। लगता था की मानों लेखक उनके सामने ही पढ़ कर सुना रहे हो।

हरिशंकर परसाई की प्रसिद्ध रचनाएं

उन्होंने अपने जीवन काल में अनेकों कहानियाँ, उपन्यास, संस्मरण की रचना की तथा उनके अनेकों निबंध संग्रह प्रकिशित हुए। आईये जानते हैं उनकी प्रसिद्ध रचनाओं के बारें में : –

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हरिशंकर परसाई की कहानियां ( Harishankar parsai story)

  • हँसते हैं रोते हैं,
  • जैसे उनके दिन फिरे,
  • भोलाराम का जीव।

उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल

संस्मरण: तिरछी रेखाएँ।

निबंध-संग्रह

  • जैसे उनके दिन फिरे(प्रकाशन वर्ष-1963),
  • पगडंडियों का जमाना(प्रकाशन वर्ष-1966),
  • सदाचार की ताबीज (प्रकाशन वर्ष-1967),
  • ठिठुरता हुआ गणतंत्र(प्रकाशन वर्ष-1970),
  • अपनी-अपनी बीमारी (प्रकाशन वर्ष-1972),
  • विकलांग श्रद्धा का दौर(प्रकाशन वर्ष-1980),
  • सुनो भाई साधो (प्रकाशन वर्ष-1983),
  • तुलसीदास चंदन घिसे(1986ई०),
  • माटी कहे कुम्हार से आदि।

हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाएँ

इनके प्रमुख व्यंग्य में निम्नलिखित नाम शामिल हैं।

  • वैष्णव की फिसलन,
  • विकलांग श्रद्धा का दौर,
  • प्रेमचंद के फटे जूते,
  • पगडंडियों का जमाना,
  • सदाचार का तावीज,
  • ऐसा भी सोचा जाता है,
  • तुलसीदास चंदन घिसैं चंद

हरिशंकर परसाई पुण्यतिथि (निधन)

हरिशंकर परसाई का निधन 10 अगस्त 1995 को 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। प्रतिवर्ष 10 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है।

हरिशंकर परसाई के प्रश्न उत्तर

हरिशंकर परसाई का जन्म कब हुआ ?

प्रसिद्ध व्यंगकार हरिशंकर परसाई जी का जन्म 22 अगस्त 1924 को भारत के मध्यप्रदेश राज्य के इटारसी के पास जमाली नामक स्थान में हुआ था।

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Amit

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मैं अमित कुमार, “Hindi info world” वेबसाइट के सह-संस्थापक और लेखक हूँ। मैं एक स्नातकोत्तर हूँ. मुझे बहुमूल्य जानकारी लिखना और साझा करना पसंद है। आपका हमारी वेबसाइट https://nikhilbharat.com पर स्वागत है।

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