सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में | surdas ka jeevan parichay in hindi

सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में | surdas ka jeevan parichay in hindi

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सूरदास जी (Surdas ) सगुण भक्ति के उपासक और ब्रजभाषा के महान कवि व संत हैं। सूरदास ‘अष्टछाप’ के कवियों में सिरमौर माना जाता है। इनका नाम भगवान कृष्ण की भक्ति के अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले महान संत के रूप में लिया जाता है।

सूरदास का जीवन परिचय के इस लेख में हम जानेंगे की किस तरह उन्होंने प्रेम और विरह के द्वारा सगुण मार्ग से श्रीकृष्ण को अपना आराध्य माना। सूरदास का वात्सल्य वर्णन भक्ति की सरलता और सुगमता पर जोर देते हुए दिखाई पड़ता है।

उन्होंने वात्सल्य भाव द्वारा भगवान श्री कृष्ण की आराधना की। इस प्रकार इनका समस्त जीवन श्रीकृष्ण भक्ति में समर्पित रहा। भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक महान कवि व संत को हिंदी साहित्य में अद्वितीय योगदान के लिए हमेशा याद किये जायेंगे।

SURDAS KA JEEVAN PARICHAY HINDI MAIN - सूरदास का जीवन परिचय
सूरदास का जीवन परिचय – Biography Of Surdas In Hindi

सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में – surdas ka jivan parichay

  • सूरदास – भगवन श्री कृष्ण के परम भक्त
  • सूरदास जी का जन्म -1478 ईस्वी
  • सूरदास जी की मृत्यु – 1580 ईस्वी
  • सूरदास जी का जन्म स्थान -रुनकता ,मथुरा के पास
  • सूरदास की रचनायें – सूरसागर, सूरसारावली,साहित्य-लहरी इत्यादि
  • सूरदास के गुरु का नाम – बल्लभाचार्य
  • साहित्यिक भाषा – ब्रजभाषा

सूरदास की जीवनी – surdas ki jivani in hindi

इनका जन्म कब और कहाँ हुआ था इसके लिए विद्वानों की बीच मतांतर है। लेकिन अधिकतर विद्वान के अनुसार इनका जन्म 1478 ईस्वी में रुनकता में हुआ था।

कहते हैं की सूरदास का जन्म स्थान रुनकता (रेनू का क्षेत्र) मथुरा और आगरा के बीच स्थित एक गाँव था। सूरदास के माता पिता का नाम की बात करें तो उनके पिता का नाम रामदास था। गूगल सर्च के अनुसार सूरदास के माता का नाम जमुनादास था।

कुछ विद्वानों का के अनुसार इनका का जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक ग्राम में हुआ था। गोकुलदास कृत ‘चौरसी वैष्णवों की वार्ता’ के अनुसार उनका जन्म एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण के घर पैदा हुए थे।

सूरदास की शिक्षा दीक्षा – surdas biography in hindi

उनकी शिक्षा दीक्षा के बारें में पर्याप्त विवरण तथा कोई ठोस प्रमाण उपलव्ध नहीं है। लेकिन उनके ज्ञान एवं काव्य रचना को देखते हुए ऐसा प्रतीति होता है की दैवीय प्रतिभा के अतिरिक्त उन्होंने शिक्षा अर्जित किया होगा।

कहते हैं की बचपन में ही उनके अंदर वैराग्य उटपन हो गया जिस कारण वे घर छोड़कर बगल के गाँव में रहने लगे। 18 वर्ष की उम्र तक वे वहीं रहे, वहीं पर उन्होंने संगीत की शिक्षा ग्रहण की।

बाद में वे स्थायी रूप से आगरा के समीप गऊघाट जाकर रहन लगे। जहॉं उन्होंने शस्त्रों और पुराणों के अध्ययन किया। कहते हैं की इनके पिता रामदास गायक थे। सूरदास जी भी तम्बूरा लेकर कृष्ण भक्ति का गीत गया करते थे।

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गऊ घाट में रहते हुए उनकी मुलाकात श्री बल्लभाचार्य से हुई। तब बल्लभाचार्य जी ने एक बार उनसे कहा की तुम विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण के सौन्दर्य का गुणगान करो।

वे खुश होकर तुम्हारा निश्चित ही कल्याण करेंगे। बल्लभाचार्य जी ने उन्हें पुष्टिमार्ग की दीक्षा देकर अपना शिष्य बना लिया। सूवे अपने गुरु वल्लभाचार्य के आठ शिष्यों में प्रमुख हो गये।

तत्पश्चात वे अपने गुरु के साथ गोकुल गये और उनके आदेशानुसार भक्तिपूर्ण पदों की रचना की।

सूरदास की कहानी – surdas ji ka jeevan parichay

सूरदास जन्म से अंधे थे या वे बाद में अंधे हुए, इस विषय पर विद्वानों मे मतभेद है। कुछ ग्रंथों जैसे श्री हरिराय कृत “भाव-प्रकाश”, श्री गोकुलनाथ की “निजवार्ता’ इत्यादि का उदाहरण देकर लोग उन्हें जन्म से ही अंधा मानते हैं।

लेकिन इन्होंने अपने काव्य में बाहरी सौन्दर्य का जिस सूक्ष्मतापूर्वक वर्णन किया है। कृष्ण के सौन्दर्य का जिस तरह उन्होंने अपनी रचना में सजीव चित्रण तथा विभिन रंगों का जिक्र किया है।

उससे पता चलता है की उन्होंने कभी इन सभी रूप, रंग और आकृति का अपने आँखों से जरूर देखे थे। क्योंकी विना देखे किसी चीज का इतना सटीक वर्णन संभव प्रतीति नहीं होता।

यही कारण ही की कुछ विद्वान सूरदास (Surdas ) के जन्मान्ध को स्वीकार नहीं करते हैं। श्याम सुन्दर दास इस बारें में लिखते है – “सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो जिक्र उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने लिखा है – “सूर-सागर के कुछ पदों से यह अवश्य प्रतीति होता है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, लेकिन हमेशा इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।”

इनकी अंधता के बारें में एक किंवदंती भी प्रचिलित है। यदपि इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है। इस किंवदंती अनुसार उनकी अंधता को किसी स्त्री के प्रेम प्रसंग से जोड़ कर देखा जाता है। कहते हैं की युवावस्था में एक बार वे किसी स्त्री के प्रेम पाश में फंस गये।

किन्तु जल्द ही उन्हें आभास हुआ की जिन आँखों से वे भगवान के स्वरूप के दर्शन किए, वे ही आँखे उन्हें कुपथगामी बनाती जा रही है। ऐसा सोचकर उन्होंने अपनी आँखे खुद फोड़ ली।

सूरदास का विवाह अथवा सूरदास की पत्नी के बारे में ज्ञात नहीं है। कुछ विद्वान के अनुसार वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे।

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बादशाह अकबर से मुलाकात

इनके मधुर काव्य और भक्तिमय गान लोगो को बहुत प्रभावित करते थे। इस प्रकार धीरे-धीरे उनकी ख्याति खूब बढने लगी। कहते हैं की इनके काव्य सुनकर लोग अपना सुध-बुध खो देते थे।

इनकी काव्य की विशेषता उनका अपने कविता में वात्सल्य रस का वर्णन है। इनके आलबा उनके काव्य में भक्ति भावना, संगीतात्मक और शृंगार रस का समायोजन भी दिखाई देता है।

कहते हैं की मुगल बादशाह अकबर भी उनके काव्य रचना से बहुत प्रभावित थे। अकबर ने संगीत सम्राट तानसेन के कहने पर इनसे भेट की थी।

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सूरदास की मृत्यु – surdas ki mrityu kab hui

इनके निधन के वर्ष के बारें में कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। जैसे उनके जन्म वर्ष को लेकर विद्वानों में मतभेद है। ठीक वैसे ही इनकी मृत्यु के वर्ष को लेकर भी मतांतर देखने को मिलता है।

कहते हैं की अंत समय में वे परसौली नामक जगह को अपना निवास स्थान बनाया। जहॉं लगभग 100 वर्ष की अवस्था में सन 1583 ईस्वी में इनका निधन हो गया।

सूरदास का साहित्यिक परिचय – surdas ka jeevan parichay in hindi

सूरदास की प्रमुख रचनायें – ये भगवान कृष्ण की परम भक्ति के आलवा अपनी प्रसिद्ध रचना सूरसागर के लिये भी प्रसिद्ध हैं। इसके साथ उन्होंने सुर-सारावली तथा सहित्य लहरी की भी रचना की। आइये इनके प्रमुख रचनायें के वारें में संक्षेप में जानते हैं।  

सूरदास के पद में श्रृंगार और वात्सल्य रस की प्रधानता दिखाई पड़ती है। इस कारण सूरदास जी को श्रृंगार और वात्सल्य का सम्राट भी कहते हैं। सूरदास की भाषा शैली से भी यह बात साफ दृष्टि गोचर होती है।

सूरदास का जीवन परिचय एवं रचनाएँ – surdas ki rachnaye in hindi

सुरसागर

इनके समस्त काव्य कृति का आधार सुरसागर को ही माना जाता है। इसे ब्रज भाषा का सबसे बड़ा मुक्तक काव्य की संज्ञा दी गयी। इसमें लगभग सवा लाख पद माने जाते हैं। यह काव्य ग्रंथ सूरदास की रचनाएँ की महत्त्वपूर्ण कृति है जिसमें भक्ति रस की प्रधानता है।

इसकी अब तक केवल 10 हजार पद ही मिल सके हैं। इसमें श्रीमद्भगवात के दशम स्कन्ध की कथा का विस्तार से वर्णन है। इसमें उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के बचपन और उनकी लीलाओं का उल्लेख किया गया है। उनके काव्य गीत आपने जरूर सुने होंगे।

“मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो, भोर भये गऊअन के पीछे मधुवन मोहे पठायो, मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो”

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सूरसागर के संबंध में डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी जी लिखते हैं – “”काव्य गुणों की इस विशाल वनस्थली में एक अपना सहज सौन्दर्य है।

वह उस रमणीय उद्यानों के समान जिसका सौन्दर्य पग-पग पर माली के कृतित्व की याद दिलाता है, बल्कि उस अकृत्रिम वन-भूमि की भाँति है जिसका रचयिता रचना में घुलमिल गया है।”

साहित्य लहरी

यह सूर के ११८ पदों की एक लघु संग्रह है। इसमें नायिका-भेद, अलंकार और आदि का सम्पूर्ण विवेचन किया गया है। हालांकि इसमें अन्य रसों का भी प्रतिपादन किया गया है लेकिन साहित्य लहरी विशुद्ध रूप से श्रृंगार-रस प्रधान ग्रंथ है।

सुर-साराबली

यह इनके द्वारा रचित छंद-संग्रह है। इस ग्रंथ में होली के दो-दो पंक्ति में 1107 छंद दिए गये हैं।  इसके अलाबा उनके अन्य रचना नल-दमयन्ती और ब्याहलो को भी माना जाता है।

सूरदास के काव्य की विशेषताएं

सूरदास जी की काव्य भाषा ब्रजभाषा है। उन्होंने अपनी कृति में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। इसके आलवा इनकी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों, फारसी, अवधि आदि के शब्दों के प्रयोग मिलता है।

सूरदास की रचना की विशेषता उनका वात्सल्य-वर्णन है, जो उन्हें वात्सल्य रस प्रधान कवि बनाता है। वे भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उनके अनुसार श्रीकृष्ण भक्ति से जीवात्मा को सद्गति की प्राप्ति संभव है।

सूरदास के दोहे में “भक्ति और श्रुंगार” का मिश्रण कर, संयोग और वियोग दोनो पक्ष का वर्णन किया गया है। आयोध्ययसिंह उपाध्याय ‘हरीऔध’ के शब्दों में वे – वास्तव में वे सागर थे और सागर की ही उत्ताल तरंग-माला उनके काव्यों में संकलित है।

उनमें गंभीरता भी वैसी ही पाई जाती है। जैसा प्रवाह, माधुर्य तथा सौन्दर्य उनकी काव्यों में पाया जाता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।

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सूरदास का जन्म कब हुआ था? – surdas ka janm kab hua tha

सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी मे रुनकता मथुरा के पास हुआ था।

सूरदास जी की काव्य भाषा क्या है

सूरदास जी की काव्य भाषा में शृंगार और वात्सल्य रस की प्रधानता दिखती है।

सूरदास के गुरु कौन थे? – surdas ke guru kaun the

सूरदास के गुरु स्वामी बल्लभाचार्य जी थे।

सूरदास जी के पदों की भाषा है

सूरदास की रचनाओं मे ब्रजभाषा की प्रधानता है। भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त-कवि सूरदास के काव्य में श्रृंगार और वात्सल्य रस की प्रधानता साफ दृष्टिगोचर होती है।

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Amit

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मैं अमित कुमार, “Hindi info world” वेबसाइट के सह-संस्थापक और लेखक हूँ। मैं एक स्नातकोत्तर हूँ. मुझे बहुमूल्य जानकारी लिखना और साझा करना पसंद है। आपका हमारी वेबसाइट https://nikhilbharat.com पर स्वागत है।

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