महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय | Mahavir Prasad Dwivedi jeevan parichay in Hindi

Biography of Mahavir Prasad Dwivedi in Hindi

महावीर प्रसाद द्विवेदी कौन थे

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आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी(Mahavir Prasad Dwivedi) का आधुनिक हिन्दी साहित्य को समृद्धशाली बनाने में अहम योगदान माना जाता है। हिंदी पत्रकारिता और खड़ी बोली आंदोलन में उनका योगदान उत्कृष्ट माना जाता है।

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रभाव उस युग में साफ दृष्टिगोचर होता है। एक युग-प्रवर्तक के रूप के उन्होंने अपने आपको स्थापित किया। हिन्दी भाषा और उसकी शैली को समृद्ध करते हुए भाषागत त्रुटियों पर ध्यान दिया।

आरंभिक शिक्षा अपने गाँव के स्कूल से पूरी करने के बाद रेलवे में नौकरी की और अपने स्वधयाय के वल पर उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, मराठी और अंग्रेजी में निपुणता हासिल की।

विद्वान हिन्दी साहित्य में उनके जीवन काल को द्विवेदी युग के नाम से संबोधित करते हैं। उन्होंने 18 वर्षों तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन कर कृतिमान स्थापित किया।

अपने जीवन को हिन्दी साहित्य को समर्पित करते हुए उनका 1938 में निधन हो गया। आइये इस लेख में महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय विस्तार से जानते हैं।

Biography of Mahavir Prasad Dwivedi in Hindi
Biography of Mahavir Prasad Dwivedi in Hindi

महावीर प्रसाद द्विवेदी संक्षिप्त जीवन परिचय Acharya Mahavir prasad Dwivedi

पूरा नाम – आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी
जन्म – 15 मई 1864
जन्म स्थान – दौलतपुर (रायबरेली) उत्तर प्रदेश
पिता का नाम – रामसहाय द्विवेदी
माता का नाम – ज्ञात नहीं
मृत्यु – सन्‌ 1938 ई०

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय – Mahavir prasad Dwivedi jeevan parichay in Hindi

आरंभिक जीवन

आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 को वर्तमान उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ था। कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में जन्मे द्विवेदी जी के पिता का नाम पं॰ रामसहाय दुबे था। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की माता का नाम ज्ञात नहीं है।

शिक्षा दीक्षा

द्विवेदी जी की आरंभिक शिक्षा उनके अपने गाँव के स्कूल में हुई थी। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उनकी शिक्षा अधिक नहीं हो सकी।

करियर

फलतः उन्हें रेलवे में नौकरी पकड़नी पड़ी। उन्होंने रेल में तार बाबू के पद पर नौकरी शुरू की। धीरे-धीरे उनकी पदोनन्ति होते होते उनकी मासिक वेतन 200 रुपये पहुँच गई। उस बक्त 200 रुपये बहुत बड़ी चीज होती है।

उसके बाद उनका तबादला झांसी हो गया। इस दौरान वे घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, मराठी, बंगला और अंग्रेजी आदि भाषाओं का गहन अध्ययन करते रहे।

कहा जाता है की झांसी में एक अधिकारी के साथ अनबन होने के कारण उन्होंने रेलवे की अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

सरस्वती का सम्पादन

नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद वे अपने आप को पूरी तरह से हिन्दी साहित्य के प्रति समर्पित कर दिया। रेलवे की नौकरी छोडेने के बाद वे ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन से जुड़ गए। उन्होंने इस पत्रिका का सम्पादन अनवरत 17 साल तक किया।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय

हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध द्विवेदी जी एक अद्वितीय लेखक हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य के गद्य एवं पद्य दोनों में अमूल्य योगदान दिया।

हिन्दी साहित्य के प्रति उनकी आलोचना दृष्टि एक जोहरी की तरह थी। उन्होंने हिन्दी साहित्य के गद्य को एक जोहरी की तरह तराशकर सुन्दर और सुसंस्कृत रूप दिया।

इस प्रकार द्विवेदी जी हिन्दी पद्ध के साथ-साथ गद्य को अपने जीवन के अंत समय तक सँवारने और परिष्कृत करते रहे।

महावीर प्रसाद द्विवेदी का हिंदी व्याकरण में योगदान

कहा जाता है की भारतेंदु युग में जहाँ रचनाओं में हिन्दी व्याकरण पर अधिक फोकस नहीं किया जाता है। उस बक्त हिन्दी रचनाओं में व्याकरण के नियमों तथा विराम-चिह्नों आदि का अधिक महत्व नहीं दिया जाता था।

लेकिन महावीर प्रसाद जी ने भाषा की शुद्धता पर अधिक ध्यान दिया। उन्होंने न सिर्फ व्याकरण की दृष्टि से भाषा की अशुध्दियों को दूर करने का प्रयास किया। बल्कि उन्होंने तत्कालीन लेखको को भी शुध्द तथा परिमार्जित भाषा लिखने की ओर प्रेरित किया।

महावीर प्रसाद द्विवेदी की भाषा-शैली

द्विवेदी जी की भाषा शैली अत्यंत ही सरल और सुबोध थी। ताकि सामान्य पाठकगण भी अच्छी तरह से समझ सकें। जब द्विवेदी जी ने हिन्दी साहित्य में कदम रखा, उस बक्त वज्र भाषा का बोलबाला था।

लेकिन द्विवेदी जी ने खड़ी बोली में अपनी रचनाओं को महत्व दिया। उन्होंने अपनी रचना में संस्कृत, अरबी और फांरसी के केवल प्रचलित शब्दों के प्रयोग पर जोड़ दिया।

साथ ही उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता और उर्दू-फारसी के अप्रचलित शब्दों के प्रयोग से परहेज किया। उन्होंने अपनी रचना मे भाषा की और व्याकरण का भी खास ध्यान रखा।

अपने समय के वे महान्‌ भाषा शैली निर्माता कहे जाते हैं। उनकी भाषा शैली में उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व दृष्टिगोचर होता था।

महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्य में स्थान

द्विवेदी जी की रचनाओं में परिचयात्मक, आलोचनात्मक,  गवेषणात्मक, भावात्मक और व्यंग्यात्मक इन सभी पक्षों का समावेश मिलता है। द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य की महती सेवा की।

उनके इस उत्कृष्ट साहित्य-सेवाओं के कारण ही उनका साहित्यक काल द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है। द्विवेदी जी ने कई भाषाओं का सहारा लेते हुए हिंदी साहित्य को संपन्न बनाया।

उन्हीं अथक प्रयास का परिणाम था की हिंदी भाषा में कई दूसरी भाषाओं के ग्रंथों का अनुवाद संभव हो सका। उन्होंने के सम्पादक के रूप में हमेशा पाठकों का ध्यान रखा।

इन्होंने अपने पाठक के लिए पत्रिका को निर्दोष, पूर्ण, सरस और नियमित बनाया रखने का प्रयास किया। द्विवेदी जी ने एक सम्पादक, निबन्धकार, आलोचक और अनुवादक और के रूप में अपना मार्ग खुद प्रशस्त किया था।

द्विवेदी जी ने अपने कार्यों ने नवीन लेखकों और कवियों को प्रोत्साहित करने का काम किया। प्रसिद्ध राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त इनसे बहुत प्रभावित थे।

गुप्तजी के अनुसार द्विवेदी जी किसी भी नवीन लेखको की रचना को सबसे पहले त्रुटि रहित करते थे। उसके बाद पाठक के लिए अपने पत्रिका में प्रकाशित  करते थे।

खड़ी बोली आंदोलन में महावीर प्रसाद द्विवेदी के योगदान

महावीर प्रसिद्ध द्विवेदी हिन्दी साहित्य के गद्य और पद्य की भाषा को संतुलित करने पर जोड़ दिया। इसके लिए उन्होंने न कवल खड़ीबोली का प्रचार-प्रसार किया बल्कि खड़ी बोली के लिए प्रबल आन्दोलन भी किया।

साथ ही उन्होंने खड़ी बोली में कविता को प्रोत्साहित करते हुए स्वयं भी खड़ी बोली में कविताएं लिखीं। उनसे प्रभावित होकर अन्य कवियों ने भी खड़ी बोली को अपनी रचनाओं में स्थान दिया।

कहा जाता है की मैथिली शरण गुप्त तथा अयोध्या सिंह उपाध्याय जैसे खड़ी बोली के प्रसिद्ध कवि द्विवेदी जी के प्रयास का ही परिणाम हैं।

महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएं

उनकी गद्य रचनाएँ में प्रमुख हैं।

नैषध चरित्र चर्चा, हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना, वैज्ञानिक कोश, नाट्यशास्त्र, विक्रमांकदेवचरितचर्चा, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, सम्पत्ति-शास्त्र, कौटिल्य कुठार, कालिदास की निरकुंशता, वनिता-विलाप, औद्यागिकी, रसज्ञ रंजन,

कालिदास और उनकी कविता, सुकवि संकीर्तन, अतीत स्मृति, साहित्य सन्दर्भ, अदभुत आलाप, महिलामोद, आध्यात्मिकी, वैचित्र्य चित्रण, साहित्यालाप, विज्ञ विनोद, कोविद कीर्तन, विदेशी विद्वान, प्राचीन चिह्न, चरित चर्या, पुरावृत्त, दृश्य दर्शन, आलोचनांजलि, चरित्र चित्रण, पुरातत्त्व प्रसंग, साहित्य सीकर, विज्ञान वार्ता, वाग्विलास, संकलन आदि

महावीर प्रसाद द्विवेदी की कविता

देवी स्तुति-शतक, कान्यकुब्जावलीव्रतम, समाचार पत्र सम्पादन स्तवः, नागरी, कान्यकुब्ज-अबला-विलाप, काव्य मंजूषा, सुमन, द्विवेदी काव्य-माला, कविता कलाप और

  • विनय विनोद – भर्तृहरि के ‘वैराग्यशतक’ का दोहों में अनुवाद,
  • विहार वाटिका – गीत गोविन्द का भावानुवाद,
  • स्नेह माला – भर्तृहरि के ‘शृंगार शतक’ का दोहों में अनुवाद,
  • श्री महिम्न स्तोत्र – संस्कृत के ‘महिम्न स्तोत्र’ का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद,
  • गंगा लहरी – पण्डितराज जगन्नाथ की ‘गंगालहरी’ का सवैयों में अनुवाद,
  • ऋतुतरंगिणी – कालिदास के ‘ऋतुसंहार’ का छायानुवाद,
  • कुमारसम्भवसार – कालिदास के ‘कुमारसम्भवम्’ के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश,

सम्मान व पुरस्कार

हिन्दी साहित्य में अमूल्य योगदान के द्विवेदी जी को कई सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा उन्हें आचार्य की उपाधि से अलंकृत किया था।

साथ ही हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा उन्हें वाचस्पति की उपाधि से बिभूषित किया गया। इन पुरस्कारों के इसके अलावा उन्हें निम्नलिखित सम्मान भी प्राप्त हुए। 

  • सन 1949 में – मंगला प्रसाद पुरस्कार
  • सन 1949 में – लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट. की मानद उपाधि
  • सन 1957 में – भारत सरकार द्वारा प्रसिद्ध नागरिक पुरस्कार
  • सन 1962 में – साहित्य अकादमी द्वारा टैगोर पुरस्कार
  • सन 1973 में – साहित्य अकादमी पुरस्कार

महावीर प्रसाद द्विवेदी का निधन

आचार्य महावीर प्रसादद्विवेदी अपने जीवन के अंत समय तक हिन्दी साहित्य की सेवा करते रहे। उनका निधन 21 फरवरी सन 1938 ईस्वी को हो गया।

इन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को हिन्दी साहित्य को समर्पित कर दिया। हिंदी साहित्य में उनके योगदान हमेशा अविस्मरणीय रहेगा।

द्विवेदी युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी (Dwivedi Yug)

भारतेन्दु युग के बाद का समय द्विवेदी युग का काल माना जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार द्विवेदी युग का काल 1900 से 1920 तक का समय माना जाता है। कथा-काव्य का विकास द्विवेदी युग की विशेषता कही जा सकती है।

द्विवेदी युग के यशस्वी कवि में मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध, श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी के नाम लिए जा सकते हैं।

इस युग के प्रसिद्ध निबंधकारों में द्विवेदी जी के साथ-साथ माधव प्रसाद मिश्र, श्यामसुंदर दास, चंद्रधर शर्मा गुलेरी ,बालमुकंद गुप्त आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रश्न उत्तर (F.A.Q)

प्रश्न -आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म कब और कहां हुआ था?

उत्तर -हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक आचार्य महावीर प्रसादद्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 ईस्वी में वर्तमान उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ था।

प्रश्न -महावीर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर -महावीर प्रसाद की मृत्यु 21 फरवरी सन 1938 में हुई थी।

प्रश्न -द्विवेदी युग के लेखक कौन है?

उत्तर -द्विवेदी युग के प्रमुख कवि में मैथिली शरण गुप्त, पं. रामचरित उपाध्याय, पं. लोचन प्रसाद पांडेय, राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण’ पं. नाथू राम शर्मा, पं. राम नरेश त्रिपाठी आदि के नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

प्रश्न -महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किस पत्रिका का संपादन किया?

उत्तर – आचार्य द्विवेदी द्वारा संपादित पत्रिका ‘सरस्वती’ एक मासिक पत्रिका था। जिसका संपादन उन्होंने करीब 17 साल तक किया।

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महावीर-प्रसाद द्विवेदी – विकिपीडिया

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