कवि रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना | kavi raskhan ka jivan parichay in hindi

कवि रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना - Kavi Raskhan Ka Jivan Parichay In Hindi
कवि रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना | Kavi Raskhan Ka Jivan Parichay In Hindi

कवि रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना – kavi raskhan ka jivan parichay in hindi

कवि रसखान कौन थे (Biography of Raskhan in Hindi)

भारत के महान कवि रसखान एक कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। रसखान जी ने अपने काव्य की मोती में भगवान कृष्ण के असीमित लीलाओं को बखूबी वर्णन किया है। रसखान जी को ‘रस की खान’ यूं ही नहीं कहा गया है। इनके काव्य रचना में भक्ति और शृंगार रस दोनों का संगम देखने को मिलता है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भी ऐसे मुस्लिम हरिभक्तों को समर्पित यह उक्ति लिखी थी, “इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए”। भगवान कृष्ण की नागरी मथुरा के पास महाबन में आज भी इनकी समाधि मौजूद है।

कहते हैं की कवि रसखान का वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम खान था और वे दिल्ली के पास के एक गाँव के रहने वाले थे। उनपर कृष्ण भक्ति की ऐसी दीवानी चढ़ी की उन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा लेकर ब्रजभूमि में रहने लगे।

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कवि रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना - Kavi Raskhan Ka Jivan Parichay In Hindi
कवि रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना | Kavi Raskhan Ka Jivan Parichay In Hindi

इस प्रकार उन्होंने अपनी सम्पूर्ण जीवन को कृष्ण भक्ति के लिए समर्पित कर दिया। अगर आप गूगल पर निम्न बातें सर्च कर रहे हैं तो यह लेख आपकी मदद कर सकता है।

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रसखान का संक्षिप्त जीवन परिचय – raskhan ka sankshipt jivan parichay

रसखान जी का मूल नामसैय्यद इब्राहिम खान
रसखान के जन्म स्थानदिल्ली से सटे पिहानी गाँव
रसखान जी का जन्म वर्ष1548
रसखान के माता पिता का नामसटीक जानकारी उपलब्ध नहीं
रसखान की प्रमुख रचनाएँप्रेमवाटिका, सुजान रसखान
रसखान की मृत्यु1628 ईस्वी

कवि रसखान का जीवन परिचय – Raskhan ka Jivan Parichay in hindi

रसखान की जीवनी व प्रारम्भिक जीवन

रसखान के जन्म स्थान और जन्म तारीख को लेकर विद्वानों में मतांतर देखा जाता है। कुछ इतिहासकार उनका जन्म 1533 से 1558 के मध्य मानते हैं। जबकि कुछ विद्वान का कहना है की रसखान अकबर के समकालीन थे और उनका जन्म 1590 ईस्वी में दिल्ली के पास पिहानी में हुआ था।

लेकिन कुछ लोग उनके जन्म स्थान को उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले में स्थित पिहानी गाँव से जोड़कर देखते हैं। जो भी हो लेकिन अधिकतर स्थानों पर उनका जन्म के रूप में 1548 ईस्वी का उल्लेख मिलता है।

कवि रसखान का मूल नाम

जिस तरह से उनके जन्म तिथि और जन्म स्थान को लेखर विद्वानों में मतांतर है। ठीक उसी प्रकार उनके नाम एवं उपनाम को लेकर भी कई तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपनी रचनाओ में रसखान जी के दो-दो नामों का उल्लेख किया है।

सैय्यद इब्राहिम और सुजान रसखान। जबकि सुजान, रसखान की एक रचना का भी नाम है। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम खान था। वहीं कुछ स्थानों पर इनका नाम “रसखाँ’ के रूप में भी उल्लेख मिलता है।

कहीं-कहीं उनके काव्य रचना में “रसखाँ’ शब्द का प्रयोग देखने को मिलता है। इन रचनाओं को साक्ष्य मानकर कहा जा सकता है की उनका नाम ‘सैय्यद इब्राहिम’ और उपनाम “रसखान’ था।

नैन दलालनि चौहटें म मानिक पिय हाथ।
‘रसखाँ’ ढोल बजाई के बेचियों हिय जिय साथ।

कवि रसखान

कहते हैं की पठान परिवार में पैदा हुए रसखान जी के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। उनके माता पिता भी धार्मिक परिवृति के थे। घर के लोग भगवान के प्रति भी असीम आस्था रखते थे। इस कारण रसखान जी को घर में ही धार्मिक जिज्ञासा विरासत में प्राप्त हुई थी।

रसखान के जीवन से जुड़ी कहानी

कहते हैं की एक समय की बात है कही भगवत कथा चल रहा था। कथा वाचक बड़े ही सुंदर ढंग से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओ का बखान कर रहे। कथा बाचक के पास भगवान श्री कृष्ण की बड़ा ही मनोहारी चित्र रखा हुआ था। संयोगवस रसखान भी उस बक्त वहाँ मौजूद थे।

कथा बाचक के मुहँ से कृष्ण लीलाओं का वर्णन उन्हें बड़ा ही मनोहारी लग रहा था। उसी बक्त उनकी नजर पास पड़े कृष्ण कन्हैया के मनोहर चित्र पर पड़ी। कथा का श्रवण करते हुए उन्हें ऐसे लग रहा थी की कान्हा के मोहिनी सुरत की तरफ वह खींचा चला जा रहा है।

जितना वे भगवान कृष्ण के चित्र को निहारते गए वे उसमें खोते जा रहे थे। कहा समाप्त हो गई लेकिन फिर भी उनकी नजर उस चित्र से नहीं हट रही रही थी। उनके जीवन में रस की कमी न थी। पहले लौकिक रस का आस्वादन करते रहे,

फिर अलौकिक रस में लीन होकर काव्य रचना करने लगे। कहते हैं की तभी से रसखान साहब कृष्ण भक्ति में लिन अपनी भक्ति भावना को काव्य के माध्यम से प्रकट करने लगे।

रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना

कवि रसखान का साहित्य में स्थान उच्च है। उनकी साहित्य रचना में भक्ति और शृंगार रस दोनों की प्रधानता दिखती है। रसखान में अपनी रचना में सरल व सुबोध वज्रभाषा का प्रयोग करते हुए अपनी बात को सुंदर तरह से रखा है।

इनकी भाषा शैली से प्रतीत होता है की इन्हें दोहा, सवैया, और काव्य तीनों छंदों पर पूर्ण अधिकार था। कवि रसखान जी ने अपने रचना में अलंकारों और मुहावरों का भी प्रयोग बड़ा ही सुंदर ढंग से किया है।

रसखान की प्रमुख रचनाएँ

प्रेमवाटिका – रसखान ने अपने इस कृति में 25 दोहों के माध्यम से कृष्ण प्रेम का काव्यतात्मक रूप से अति सुंदर वर्णन किया है।
सुजान रसखान – यह काव्य और सवैया छंद में रचित भक्ति और प्रेम भाव से युक्त रसखान का मुक्त काव्य है। यह काव्य कुल 139 छंदों का एक संग्रह है।

रसखान की काव्यगत विशेषताएँ

काव्य रचना में ब्रजभाषा का मनोरम प्रयोग, शब्द-चयन तथा भाषा की मार्मिकता पर खास ध्यान रसखान की काव्यगत विशेषताएँ कही जा सकती है। उन्होंने अपनी काव्य रचना में कृष्ण की रूप-माधुरी, ब्रज-महिमा, राधा-कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है।

कहते हैं की रसखान ने भागवत का अनुवाद हिन्दी और फारसी भाषा में भी किया था। कवि रसखान की अनुरक्ति न केवल भगवान कृष्ण के प्रति दिखाई पड़ती है। बल्कि उनका कृष्ण-भूमि के प्रति भी अनन्य अनुराग दिखाई पड़ता है।

तभी तो उन्होंने अपने गाँव छोड़कर वज्र भूमि की तरफ चल दिए और कृष्ण भक्ति में अपने को समर्पित कर दिया।

रसखान के काव्य का भाव एवं शिल्प सौंदर्य

रसखान जी का स्थान कृष्ण भक्त कवियों में अग्रणी है। रसखान ने अपने काव्य में भागवत प्रेम का बड़े ही मनोरम रूप में चित्रण किया है। रसखान के काव्य का भाव एवं शिल्प सौंदर्य को उनकी रचना में साफ दिखाई पड़ता है।

उन्होंने अपनी काव्य रचना ‘प्रेम वाटिका’ में जिस प्रेम की चर्चा की है वह लौकिक प्रेम से बहुत परे है। जिसमें भक्त का भगवान के प्रति प्रेम की पराकाष्ठा साफ दृष्टिगोचर होती है।

रसखान की मृत्यु

जैसा की ऊपर देख चुके हैं की उनके जन्म स्थान और जन्म तारीख को लेकर विद्वानों में मतांतर है। ठीक उसी प्रकार रसखान जी के निधन की तारीख को लेखर विद्वान एकमत नहीं हैं। लेकिन अधिकतर स्थान पर कवि रसखान की मृत्यु सन् 1628 ईस्वी के आसपास बताई गई है।

रसखान अर्थात रस की खान जिन्होंने सूरदास और मीरा की भांति श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

कवि रसखान के दोहे की कुछ पंक्तियाँ – Raskhan ke Dohe


मोहन छवि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहि ! ऊँचे आबत धनुस से छुटे सर से जांहि !!

देख्यो रुप अपार मोहन सुन्दर स्याम को ! वह ब्रज राजकुमार हिय जिय नैननि में बस्यो !!

या छवि पे रसखान अब वारो कोटि मनोज ! जाकी उपमा कविन नही पाई रहे कहूँ खोज !!

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

रसखान का जन्म कब और कहां हुआ था?

वैसे तो रसखान के जन्म की तिथि और जगह के बारें में विद्वान एक मत नहीं है। लेकिन ज्यादातर लोग उनका जन्म 1548 ईस्वी के आसपास दिल्ली से सटे पिहानी गाँव को मानते हैं।

रसखान के माता पिता का नाम क्या था?

रसखान के माता पिता के नाम के बारें में सटीक जानकारी उपलबद्ध नहीं है। लेकिन इंटरनेट पर सर्च करने पर रसखान के पिता का नाम गंनेखां और माता का नाम मिश्री देवी बताया जाता है।

रसखान के गुरु कौन थे?

उन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा लेकिन कृष्ण की नागरी बज़्र की तरफ चले दिए। इस प्रकार उन्होंने कृष्ण भक्ति के पीछे अपने जीवन को समर्पित कर दिया।


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बाहरी कड़ियाँ (External links)


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