स्वर्ण मंदिर का इतिहास (Golden temple history in Hindi) स्वर्ण मंदिर भारत के पंजाब प्रांत के अमृतसर में स्थित सिक्खो का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। इस मंदिर को श्री हरमंदिर साहिब या श्री दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है।
अमृतसर शहर में स्थित इस मंदिर में देश विदेश से सभी धर्मों के लोग माथा टेकने आते हैं। अमृतसर रेलवे स्टेशन से स्वर्ण मंदिर की दूरी करीब 3.5 किलोमीटर है। स्वर्ण मंदिर का इतिहास से पता चलता है की सिख धर्म का सबसे महत्वपूर्ण इस मंदिर का निर्माण पांचवें सिख गुरु अर्जनदेव द्वारा किया गया था।
इस मंदिर का निर्माण एक पवित्र सरोबर के बीचों बीच हुआ है। स्वर्ण मंदिर की सुंदरता और वास्तुकला देखते बनती है। मंदिर तक पहुचने के लिए एक रास्ता बना हुआ है। कहा जाता है की गुरु अर्जनदेव द्वारा इस मंदिर में गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया था।
जहाँ बाबा बुड्ढा जी को इसका पहला ग्रंथी नियुक्त किया था। गोल्डन टेम्पल अमृतसर में प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु दर्शन करने और माथा टेकने आते हैं। यह श्रद्धालु पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं माथा टेकते हैं और कीर्तन को सुनते हैं।
उसके बाद लोग लंगर में जाकर प्रसाद चखते हैं। सभी धर्मों के प्रति आदर की मिसाल पेश करते हुए यह मंदिर सभी धर्मों और पंथों के लिए खुला है। आइए इस लेख में स्वर्ण मंदिर का इतिहास और इससे जुड़ी जानकारी विस्तार से जानते हैं।
स्वर्ण मंदिर का इतिहास – Amritsar Golden temple history in Hindi
इस मंदिर के इतिहास से पता चलता है की दरबार साहिब के नाम से प्रसिद्ध अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर को 1577 ईस्वी में चौथे सिख गुरु गुरु राम दास द्वारा शुरुआत की गई थी। उसके बाद पांचवें सिख गुरु अर्जनदेव ने मंदिर की स्थापना की थी।
पांचवें गुरु गुरु अर्जन देव द्वारा सिखों के लिए एक केंद्रीय पूजा स्थल बनाने का विचार रखा सामने आया था। उसके बाद उन्होंने ही श्री हरमंदिर साहिब की वास्तुकला को डिजाइन किया। इसके लिए पहले पवित्र सरोबर की खुदाई की गई।
यह भी कहा जाता है की गुरु अर्जन देव महाराज ने इस मंदिर की नींव 1645 विक्रमी संवत को लाहौर के मुस्लिम संत हजरत मियां मीर जी द्वारा रखवाई थी। इस मंदिर की वास्तुकला हिंदुओं और मुसलमानों के निर्माण कार्य का एक अद्वितीय सामंजस्य का प्रतिनिधित्व करती है।
स्वर्ण मंदिर का इतिहास इस इस बात की भी पता चलता है की 1762 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद के कारण मंदिर नष्ट भी हुआ था। उसके बाद फिर से मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार और गर्भगृह का 1776 ईस्वी में पुनर्निर्माण हुआ।
संगमरमर और तांबे के प्रयोग कर इस मंदिर को सजाया गया। बाद में 1830 ईस्वी में महाराजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण मंदिर पर सोने की चादर चढ़ाई।
स्वर्ण मंदिर का इतिहास बताता है की महाराज रंजीत सिंह ने सोने की परत के साथ मंदिर के गुंबज और गर्भगृह को सुसज्जित करने के लिए सोना दान किया। एक अनुमान के अनुसार माना जाता है की अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में 750 किलो ग्राम से भी अधिक शुद्ध सोना लगा हुआ है।
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स्वर्ण मंदिर की नींव कब और किसने रखी 100
स्वर्ण मंदिर की नींव 1588 में गुरु अर्जुन देव महाराज द्वारा रखबाई गई थी।