सारे तीरथ बार बार गंगासागर एक बार हर वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर हिन्दू समुदाय के भक्त पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के सागर द्वीप में भाड़ी संख्या में पहुंचते हैं। इस दौरान लोग पवित्र स्नान के बाद कपिल मुनि मंदिर में पूजा करने करते हैं।
गंगासागर हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। मकर संक्रांति के दिन जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में पदार्पण करती है तब विश्वबिख्यात गंगासागर का मेला लगता है। कहते हैं सारे तीरथ बार बार गंगासागर एक बार ।
प्रयागराज में लगने वाले कुम्भ मेला के बाद गंगासागर मेला दुनियॉं का दूसरा सवसे बड़ा मेला है। जहॉं एक दिन में लाखों की संख्या में श्रद्धालु सागर संगम में स्नान करते हैं। अब जानते हैं की गंगा सागर कहां है।
गंगा सागर भारत के राज्य पश्चिम बंगाल के कलकत्ता के पास स्थित है। मकर संक्रांति के दिन हरउम्र के लोग अपनी अलग-अलग मनोकामना पूर्ति हेतु गंगासागर में डुबकी लगते हैं। इस लेख में हम gangasagar mela history in hindi विस्तार से जानेंगे।
जानेंगे गंगासागर मंदिर किसको समर्पित है। राजा भागीरथी, गंगा और गंगासागर का आपस में क्या सम्वन्ध है। मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में पिंडदान के द्वारा पितरों का तर्पण का क्यों महत्त्व है।
GangaSagar Mela History In Hindi – गंगासागर मोक्ष का द्वार
जैसा कि हम जानते हैं, गंगासागर का नाम हिन्दू समुदाय के प्रसिद्ध तीर्थस्थानों में सुमार है। भारत में पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में सागर द्वीप नामक स्थान अवस्थित है।
इसी जगह पर गंगा का सागर में संगम होता है। यह सागर संगम स्थल कोलकाता से महज 150 कि.मी. कि दूरी पर स्थित है। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन इसी सागर द्वीप के छोर पर विश्व प्रसिद्ध गंगासागर मेला लगता है।
इस अवसर पर सिर्फ भारत से ही नहीं वल्कि दुनियॉं भर के लाखों श्रद्धालु सागर द्वीप पहुंचते हैं। दुनियॉं के कोने -कोने से आए लाखों लोग गंगासागर में मोक्ष प्राप्ति हेतु आस्था कि डुबकी लगाते हैं।
मान्यता है की गंगासागर में इस दिन स्नान व् दान से प्रभु के परमघाम की प्राप्ति होती है। गंगासागर का मेला में दुनियॉं भर से लाखों लोग स्नान और दान के लिए एकत्रित होते हैं।
जहॉं आज से हजारों वर्ष पहले इसी स्थान पर कपिल मुनि का आश्रम था। गंगासागर मेला के बारें में विस्तार से जानने से पहले हमें गंगा के वारे में कुछ रोचक बातें जानना जरूरी है।
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गंगा का उदगम स्थल से गंगासागर तक ganga sagar history in hindi
पतित पावन गंगा का उदगम गगनचुंबी हिमालय पर्वत के गंगोत्री नामक स्थान से माना जाता है। गंगोत्री से निकलकर गंगा उत्तराखंड के मैदानी भूभाग हरी का द्वार कहे जाने वाली भूमि अर्थात हरिद्वार पहुँचती है।
यहाँ से गंगा हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थान प्रयागराज कि ओर गमन करती है। प्रयागराज में गंगा का यमुना और सरस्वती नदी के साथ संगम होता है।
इसी संगम तट पर प्राचीन काल से ही विश्व प्रसिद्ध कुंभ मेला का आयोजन होता है। तत्पश्चात गंगा एक और तीर्थ स्थान वनारस को छूती हुई वंगाल कि खाड़ी में पहुंचकर सागर में मिल जाती है।
सागरद्वीप सुंदरवन डेल्टा का एक भाग है। बंगाल कि खाड़ी में सागर द्वीप के पास जिस स्थान पर गंगा जी का सागर में संगम होता है। इसी सागर द्वीप का एक छोर गंगासागर के नाम से पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।
जहाँ साल में एक बार मकर संक्रांति के दिन गंगासागर मेला लगता है। गंगासागर मेला में दुनियॉं भर से लाखों लोग स्नान और दान के लिए एकत्रित होते हैं। हजारों वर्ष पहले इसी स्थान पर कपिल मुनि का आश्रम था।
गंगासागर की कहानी बहुत ही पौराणिक है। जहाँ महाराजा भगीरथ ने गंगा कि तपष्या कि और अपने साठ हजार पुर्वजों को कपिल मुनि के श्राप से मुक्ति दिलाई ?
गंगासागर की कहानी। राजा सगर के बारे में– history of ganga sagar in hindi
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराज भगीरथ के पूर्वज राजा सगर, इक्ष्वाकु वंश के राजा थे। उनकी दो रानियां थीं। उनके पहली रानी के नाम केशिनी तथा दूसरी रानी का नाम सुमति थी।
उन्हें कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने यज्ञ किया। इस प्रकार महर्षि भृगु के वरदान स्वरूप राजा को कई हजार पुत्रों कि प्राप्ति हुई। अर्थात राजा के पहली रानी से एक तथा दूसरी रानी सुमति से 60 हजार पुत्रों कि प्राप्ती हुई।
राजा सगर ने जब अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया
एक वार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ का किया था। अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन राजाओं के द्वारा चक्रवर्ती सम्राट कहलाने के लिए किया जाता था। इस यज्ञ के दौड़ान स्वतंत्र रूप विचरण के लिए एक अश्व को छोड़ा जाता था।
अश्व जिस राज्य से होकर गुजरता या जिस राज्य के जमीन पर अपना कदम रख देता था। वह राज्य उस राजा के अधीन हो जाता था। दूसरे राज्य के राजा के पास मात्र दो विकल्प होते थे।
पहला कि लड़ाई करे और लड़ाई के वल पर अश्व को राज्य में प्रवेश करने से रोके। दूसरा विकल्प के रूप में अश्वमेघ यज्ञ कराने वाले राजा कि निःसंकोच अधीनता स्वीकार करनी पड़ती थी।
राजा सगर ने इस यज्ञ में छोड़े गए घोड़े की सुरक्षा कि जिम्मेदारी अपने 60 हजार पुत्रों के कंधों पर दिया।
कैसे राजा सगर के साठ हजार पुत्र जलकर राख हो गए।
आगे-आगे अश्व और उनके पीछे राजा सगर के साठ हजार पुत्र चल रहे थे। यज्ञ में छोड़े गए अश्व कपिल मुनि के आश्रम के पास आकर एकाएक गायब हो गया।
हुआ कि, देवराज इंद्र ने जानबूझकर छल पूर्वक अश्व को कपिल मुनि के आश्रम के पास छुपा दिया। राजा सगर के पुत्रों ने समझा कि घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम के पास से गायब हुआ है।
इसीलिये उन्होंने कपिल मुनि पर घोड़ा चोरी का इल्जाम लगाया। कपिल मुनि को आपत्तिजनक बातें कहकर उनका अपमान किया गया ।
उस समय कपिल मुनि तपस्या में लीन थे। कपिल मुनि ने अपने आखें खोली और श्राप के कारण सारे राजकुमार जलकर भस्म हो गए।
कपिल मुनि कौन थे ?
Gangasagar Mela History In Hindi -भागवत पुराण के अनुसार कपिल मुनि को भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में माना गया है। कपिल मुनि के माता देवहूति थी और पिता का नाम कर्दम ऋषि था।
कहते हैं कि भगवान विष्णु के कहने पर ही ऋषि कर्दम ने गृहस्त आश्रम में प्रवेश किया था। तब भगवान विष्णु के सामने कपिल मुनि के पिता ऋषि कर्दम ने शर्त रखी थी।
शर्त के अनुसार स्वयं भगवान विष्णु को उनके घर पुत्र के रूप में जन्म लेना होगा। फलतः कपिल मुनि के रूप में भगवान विष्णु ने ऋषि कर्दम के घर में जन्म लिया। हिन्दू समुदाय के कई धर्मग्रंथों में गंगा अवतरण ,गंगासागर और कपिल मुनि का बर्णन मिलता है।
भगीरथ के साठ हजार पूर्वजों के मुक्ति का मार्ग
कपिल मुनि के श्राप से राख में परिबर्तित साठ हजार राजकुमारों के परिजनों द्वारा क्षमा आचना कि गयी । कपिल मुनि से करबद्ध निवेदन किया गया । तब कपिल मुनि ने कहा श्राप तो अव वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन मुक्ति का मार्ग बताता हूँ ।
अगर राजा सगर के ही वंशज का कोई भी व्यक्ति गंगा को स्वर्ग से पृथ्बी पर उतार लाये । साथ ही साथ गंगा में इनलोगों कि अस्थियों समाहित हो जाय तो मुक्ति संभव है।
इस प्रकार कपिल मुनि के श्राप के कारण राजा सगर के जो साठ हजार पुत्र भस्म हो गए। उनकी अस्थियोँ कपिल मुनि के आश्रम के पास वर्षों से मुक्ति का इंतजार कर रही थी।
उनके पीढ़ी के कई लोगों ने गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। अंततः उनके पीढ़ी में उत्पन महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया।
गंगा धरती पर कैसे उतरी ?
राजा भागीरथी ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा माता कि बर्षो कठोर तपस्या कि। माँ गंगा उनकी तपस्या से खुश होकर स्वर्ग से पृथ्बी पर उतरने को तैयार हो गयी।
लेकिन समस्या थी कि अगर गंगा स्वर्ग से सीधे पृथ्बी पर उतरेगी तो उसका वेग बहुत ज्यादा होगा।इतना ज्यादा कि धरती उसे सहन नहीं कर पाये ।
गंगा का स्वर्ग से सीधे धरती पर उतरने के कारण पृथ्बी पर जबरदस्त हलचल पैदा होने कि सम्भावना थी। इस प्रकार धारा कि तेज गति के कारण गंगा सीधे पताल में समा सकती थी।
इस समस्या के निदान के लिए राजा भगीरथ ने फिर भगवान भोले शंकर कि आराधना कर उनको राजी किया।
भगवान शंकर ने गंगा की धारा के प्रचंड वेग को रोका
कहा जाता है कि जब गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरने लगी तब भगवान भोले शंकर ने अपनी जटाएं फैला दी। भगवन सदा शिव ने माँ गंगा को अपने जटाओं में समा लिया। इस प्रकार भगवान शंकर ने अपने जटाओं के माध्यम से गंगा के प्रचंड वेग को रोक दिया।
वर्षों तक गंगा भगवन शंकर के जटाओं में वहती रही। महाराज भगीरथ के द्वारा शंकर भगवान का काफी अनुनय विनय के बाद। अंततः गंगा भगवान भोले शंकर के जटाओं से होती हुई धरती पर अवतरित हुई।
इस तरह राजा भागीरथ ने अपनी कठोर तपस्या के बल पर गंगा को स्वर्ग से पृथ्बी पर उतारा। कहा जाता है की गंगाजी राजा भागीरथी के साथ-साथ चलते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंची।
कपिल मुनि के आश्रम के पास ही राजा भगीरथ के पूर्वजों की अस्थियाँ अपने मुक्ति का इंतजार कर रही थी। जहॉं उनके पूर्वजों कि अस्थियाँ गंगा जल में मिलती हुई सागर में समाविष्ट हो गई ।
राजा भगीरथ ने इस प्रकार अपने 60 हजार पुर्वजों को सद्गति दिलाई। गंगा जिस दिन गंगा सागर में मिली, उस दिन सूर्य दीक्षिणायन से उत्तरायण में पदार्पण किया था।
अर्थात उस दिन मकर संक्रांति का दिन था। इसी कारण हर साल मकर संक्रांति के दिन विशाल गंगासागर मेला लगता है।
इस दिन लाखों लोग गंगा और सागर का मिलन स्थल गंगासागर में स्नान और पिंडदान के लिए जाते है। मकर संक्रांति से पहले ही लोगों की अपार भीड़ Gangasagar mela पहुँच जाती है।
मकर संक्रांति के दिन लाखों कि संख्या में श्रद्धालु स्नान व् दान करते है। गंगासागर में स्नान के महत्त्व का अंदाजा इस कहावत के द्वारा आसानी से लगाया जा सकता है।
कहते है श्रद्धालु को गंगासागर में एक बार स्नान से एक सौ अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गाय दान करने के तुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है।
गंगासागर एक बार क्यों Gangasagar Mela History In Hindi
कहते हैं की सारा तीर्थ वार वार और गंगासागर एक बार । अर्थात बाकि तीर्थ में बार बार जाने से जितने पुण्य की प्राप्ति होती है। वह गंगासागर में एक बार स्नान और दान से प्राप्त हो जाता है।
गंगासागर(Gangasagar ) में स्नान के बाद लोग सूर्य भगबान को जल अर्पण कर समुन्द्र देवता को नारियल चढ़ाते है। इस दिन लोग पिंडदान के द्वारा अपने पितरों का तर्पण करते है।
कुछ लोग गंगासागर में गाय का दान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु पश्चात भवसागर से पार जाने में एक मात्रा गाय ही मददगार होती है। जिसके सहारे आत्मा भवसागर से पार होकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
गंगासागर मंदिर – ganga sagar temple history in hindi
लोग गंगासागर में स्नान और दान के साथ कपिल मुनि के मंदिर जाकर उनका आशिर्बाद प्राप्त करते है। मंदिर में कपिल मुनि के मूर्ति के आलावा गंगा जी और महाराज भगीरथ के मूर्ति भी विराजमान है।
गंगासागर कब जाना चाहिए
प्राचीन काल से ही मकर संक्रांति के दिन, गंगा और गंगासागर में स्नान और पितृ तर्पण का बिशेष महत्त्व है। इस दिन लोग गंगासागर के दर्शन, स्नान और दान के बाद अपने पितरों का तर्पण करते हैं।
लोग अपने पूर्वजों के आत्मा के शांति और सदगति के लिए प्रार्थना करते है। वर्ष में सिर्फ एक बार मकर संक्रांति के दिन यहाँ लाखों कि भीड़ जमा होती है। साल के बाकि दिनो में यहाँ शांति व सूनापन रहता है।
गंगासागर मेला कैसे पहुचें – KOLKATA TO gangasagar
जैसा कि हमलोग पहले जान चुके हैं कि हावड़ा से गंगासागर की दूरी लगभग 150 कि मी है। गंगासागर जाने के लिए ट्रेन भारत के किसी कोने से कोलकाता के हाबड़ा तक तक मिल जाती है।
सड़क मार्ग से यह स्थल भारत के सभी राज्यों से जुड़ा हुआ है। गंगासागर जाने के लिए फ़्लाइट की बात करें तोआप हवाई मार्ग द्वारा भी सीधे कलकाता के सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पर पहुंच सकते हैं।
वहॉं से काकद्वीप नामक जगह तक कि यात्रा आपको सरकारी बस या किराये के कार से करनी पड़ेगी। काकद्वीप से आगे गंगासागर मेला तक कि यात्रा फेरी या जहाज से करनी पड़ती है।
बर्षों पहले तक गंगासागर पहुंचना वेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण माना जाता था। क्योंकि गंगासागर मेला का सफर जोखिम भरा होता होगा। अपने जीवन काल में एक वार भी गंगासागर में स्नान पुण्यदायक समझा जाता है।
तभी तो यह कही जाती है सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार। लेकिन बर्तमान परिवेश में गंगासागर मेला पहुंचना सुगम हो गया है।
अब सरकारी एबं गैर सरकारी संस्थओं के द्वारा कई तरह से आधुनिकतम तकनीक से लैस सुबिधायें मुहैया कराया जाता है। इस दौरान कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थायें मेले में आये श्रद्धालु कि सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (F.A.Q)
गंगासागर मेला कब लगता है?
हर साल 14 या 15 जनवरी को जब सूर्य मकर संक्रांति के दिन उत्तरायण में प्रवेश करता है तब गंगासागर मेला का आयोजन होता है। इस दिन गंगासागर में स्थान और दान विशेष फल दाई माना गया है।
सारे तीरथ बार बार गंगासागर एक बार क्यों कहा जाता है?
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान, दान और पितरों के तर्पण का विशेष महत्व है। कहते हैं की दुनियाँ के सभी तीर्थ स्थान में बार बार जाने से जितना पुण्य की प्राप्ति होती है। वह गंगासागर में एक बार जाने से मिल जाती है।
कोलकाता से गंगासागर कैसे जाये?
कोलकाता से काकद्वीप नामक जगह तक कि यात्रा आपको सरकारी बस या किराये के कार से करनी पड़ेगी। काकद्वीप से आगे गंगासागर मेला तक कि यात्रा फेरी या जहाज से जाना पड़ता है।
गंगासागर कब खुलता है?
गंगासागर मेला प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन शुरू होता है. इस दिन यहां स्नान, दान और पितृ तर्पण का विशेष महत्व है।
Q. कोलकाता से गंगासागर की दूरी कितनी है
उत्तर – कोलकाता से गंगासागर की दूरी 118 की मीटर के लगभग है।
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