Kumbh Mela History In Hindi – कुम्भ मेला का इतिहास जानिये विस्तार से
दोस्तों Kumbh Mela History In Hindi शीर्षक वाले इस् लेख में आपका स्वागत है। आज हम इस् लेख के माध्यम से कुंभ मेला के इतिहास के बारें में जानेंगे। कुम्भ मेला हिंदू समुदाय का सबसे पवित्र और दुनियाँ का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है।
कुंभ मेला में दुनिया भर से अनगिनत श्रद्धालु पवित्र स्नान करने पहुचते हैं। इसके साथ ही हम यह भी चर्चा करंगे कि महाकुम्भ, कुम्भ और अर्धकुम्भ क्या होता है। समुन्द्र मंथन से कुम्भ मेला का क्या संबंध है। भारत में कुंभ मेला कहां-कहां लगता है।
कहते हैं कि कुंभ मेला में पावन स्नान से जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। यह दुनियाँ का एकमात्र मेला है जहॉं करोड़ों कि संख्या में लोग एक स्थान पर स्नान के जमा होते हैं। इसी कारण यूनेस्को ने बर्ष 2017 में कुम्भ मेला को विश्व विरासत की सूची में सूचीबद्ध किया।
हिन्दू समुदाय के लोगों का अपने अस्सी कोटी देवी-देवताओं पर अट्टू आस्था है। साथ ही उन्हें स्थानीय मान्यताओं और परंपराओं में भी दृढ़ विश्वास है। तो चलिये Kumbh Mela History In Hindi में हम इस मेले के बारे में विस्तार से जानते हैं।
कुम्भ मेला का इतिहास – Kumbh Mela History In Hindi
कुम्भ मेला कि शुरुआत कब हुई और इसको किसने शुरू कि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। किसी धर्मग्रंथ में भी इस बात का कोई सटीक प्रमाण व बर्णन नहीं मिलता है।
लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार कुम्भ मेला को सम्राट हर्षबर्धन के काल से जोड़कर देखा जाता है। सम्राट हर्षबर्धन के काल में प्राचीनतम कुम्भ मेला का बर्णन मिलता है। जिसका उल्लेख महान चीनी यात्री हुनसंग ने भी किया है।
कुछ विद्वानों के अनुसार यह माना जाता है कि आदिगुरु संकरचार्य ने कुम्भ मेला शुरूयत कि थी। लेकिन कुछ वर्ग यह भी मानते हैं कि Kumbh Mela कि शुरूआत समुन्द्र मंथन के बाद वैदिक काल में ही हो गई थी।
समुन्द्र मंथन से कुम्भ मेला का संबंध
वैदिक कालीन एक पौराणिक कथा के अनुसार दुर्वाषा ऋषि के श्राप के फलसरूप सारे देवगण कमजोर हो गए थे। तव कमजोर पड़े देवताओं के ऊपर दानवों ने आकर्माण कर उन्हें युद्ध में परास्त कर दिया था।
फलसरूप इन्द्र देव भागे-भागे ब्रह्म जी के शरण मे गए। ब्रह्म जी इन्द्र को साथ लेकर भगवान विष्णु के पास पहुचे। भगवान विष्णु से इस् समस्या का समाधान कि प्रार्थना कि गई।
भगवान विष्णु ने देवगन को दानवों से संधि कर समुन्द्र मंथन का सुझाव दिया। ताकि समुन्द्र मंथन से निकले अमृत पीकर देवगन अमर हो जाए। फलसरूप देवताओं और राक्षसों के बीच एक समझौते के तहद काम किया गया था।
इस् समझौते के तहद क्षीर सागर को संयुक्त रूप से मंथन कर अमृत प्राप्त करना था। समुन्द्र मंथन से प्राप्त अमृत को समान अनुपात में आपस में बांटना शामिल था।
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जब समुन्द्र मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया
इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और नागराज बासुकी को रस्सी बनाया गया। देवता और दानव दोनों ने एक साथ मिलकर क्षीर सागर को मथना शुरू किया। समुन्द्र मंथन के फलसरूप कुल 14 प्रकार के रत्न निकले।
सवसे पहले हलाहल नामक बिष निकला था। जिसे भगवान शंकर ने पी लिया। उस बिष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया। इस् कारण भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है।
समुन्द्र मंथन के सबसे अंत में जैसे ही अमृत से भरा ‘कुंभ’ लेकर धन्वंतरि जी प्रकट हुए। दानव अमृत से भरा ‘कुंभ’ लेकर भाग खड़े हुए। देवगण उनका पीछा करने लगे।
लगातार 12 दिनऔर रात तक, अमृत कलश के कब्जे को लेकर देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष हुआ। उनकी लड़ाई के दौरान अमृत कलश के छीना झपटी के कारण अमृत कि कुछ बूंदें गिर गई।
कलश से अमृत कि बूंदें छिलककर 4 स्थान, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरी। जिस कारण ये स्थान बाद में अति पवित्र हो गए। देवगण को अमृत कलश अपने कब्जे में लेने में 12 दिन का समय लगा।
देवलोक का एक दिन धरती के बारह दिन के बराबर होता है। इसीलिए महा कुम्भ का आयोजन हर बारह साल के अंतराल पर किया जाता है। प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ मेला किस स्थान पर आयोजित किया जायेगा यह पहले से निश्चित होता है
दूसरी कथा – Kumbh Mela History In Hindi
एक दूसरी कथा के अनुसार समुन्द्र मंथन से प्राप्त अमृत कुम्भ को दानवों से बचाने के गरुर जी कलश लेकर उड़ चले। दानवों के गुरु शुक्राचार्य के इसारे पर दानवों ने उनका पीछा किया।
उनकी उड़ान के दौरान, छीना झपटी में पवित्र अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के 4 स्थानों पर गिरीं। ये चार स्थान जहॉं कुम्भ से अमृत कि बूंदें गिरी वे प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन थे।
इस् प्रकार अमृत कलश से अमृत की बुँदे गिरने के कारण ही ये चारों स्थान कुम्भ मेला का आयोजन स्थल बना। जहाँ लाखों की संख्या में लोग स्नान करते हैं।
कब लगता है कुंभ मेला – Kumbh Mela History In Hindi
जैसा कि हम जान चुके हैं कि इस् मेला का आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है।Next kumbh Mela का आयोजन कहाँ और कैसे निधारण पूरी तरह ग्रहों और राशियों की स्थिति पर निर्भर करती है।
ज्योतिष गणना के आधार पर बृहस्पति, चंद्र, सूर्य कि स्थिति को ध्यान में रखते हुए कुम्भ मेला का आयोजन पूर्व नियोजित स्थानों पर किया जाता है। इन स्थल को 12 साल में एक वार महा कुम्भ के आयोजन का अवसर मिलता है।
उज्जैन में कुंभ का मेला 2019 में लगा था और उज्जैन में कुंभ का मेला अब 2029 में लगेगा। हरिद्वार में कुंभ का मेला 2021 में वहीं नासिक में कुंभ का मेला अब 2027 में लगेगा।
इसे कुम्भ मेला क्यों कहते हैं। – essay on kumbh mela in hindi
कुम्भ का मतलव कलश अर्थात घड़ा होता है। कुम्भ मेला के इस् लेख में भी कुम्भ का आशय कलश से ही है। लेकिन यहॉं कुम्भ का आशय सामान्य कलश से नहीं है। बल्कि यहॉं कुम्भ का आशय समुन्द्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश से जुड़ा है।
जिसे पाने के लिए देवताओं व दानवों के बीच भयंकर संग्राम हुआ था। कुम्भ मेला कि कहानी इसी अमृत कुम्भ के इर्द-गिर्द घूमती है। इसीलिए अमृत कुम्भ के कारण ही इसका का नाम कुम्भ मेला पड़ा।
महाकुम्भ, कुम्भ और अर्धकुम्भ क्या होता है।
अर्ध कुम्भ – जैसा की नाम से ही पता चलता है अर्ध का अर्थ है आधा होता है। प्रयागराज और हरिद्वार में प्रत्येक 6 वर्ष में लगने वाले आयोजन को अर्धकुंभ कहते हैं।
कुम्भ – कुम्भ का आयोजन चार जगहों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल में किया जाता है। कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होकर प्रयाग, नासिक और उज्जैन में लगता है।
पूर्ण कुंभ – प्रयागराज में प्रत्येक 12 साल में आयोजित होने वाले कुंभ को पूर्ण कुंभ कहा जाता है।
महाकुंभ – यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण आयोजन माना गया है। केवल प्रयागराज में 144 वर्ष के अंतर पर आयोजित होने वाले कुंभ को महाकुंभ मेला कहते हैं।
प्रयागराज कुम्भ मेला – ALLAHABAD KUMBH MELA HISTORY IN HINDi
पंचांग के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में तथा वृहस्पति वृषभ राशि में गमन करता है। तव प्रयागराज में कुम्भ मेला का आयोजन का अवसर होता है।
इस् दौरान करोड़ों कि संख्या में लोग प्रयागराज में संगम तट पर स्नान और दान के लिए जाते हैं। मान्यता है कि इस् दिन प्रयागराज के त्रिवेणी(संगम) में स्नान करने से मोक्ष का मार्ग सुगम हो जाता है।
इस् दौरान कुम्भ मेला में नागा साधु का विशाल जन समूह देखने को मिलता है। कुम्भ मेला के पहले स्नान कि शुरुआत नागा साधु से होती हैं। नागा साधु सम्पूर्ण शरीर पर भस्म लगाए निर्वस्त्र रहते हैं।
संगम के पास स्थित है अक्षयवट – Kumbh mela hindi essay
प्रयागराज में इसी संगम तट के पास बट का प्राचीन वृक्ष स्थित हैं। इसे अक्षयवट के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि मुग़ल काल में इस् अक्षयवट को कई बार नष्ट करने कि कोशिश कि गई लेकिन दुबारा यह हरा भरा हो गया।
यह अक्षयवट आज भी संगम के पास अकबर के द्वारा बनाए गए किले के अंदर मौजूद है। कुम्भ मेला के दौरान लोग इस् अक्षयवट का भी दर्शन करने जाते हैं।
हरिद्वार में कुम्भ मेला Kumbh Mela History In Hindi
जैसा कि नाम से ही विदित है, हरिद्वार का मतलव होता है, हरी का द्वार अर्थात ईश्वर के घर। हरिद्वार हिमालय पर्वतमाला के शिवालिक पहाड़ी के तराई में अवस्थित सुंदर पवित्र स्थल है।
हरिद्वार को प्राचीन काल में मोक्षद्वार, तपोवन आदि कई नामों से जाना जाता था। गंगोत्री से निकलने के बाद गंगा यहीं से मैदानी भाग में कदम रखती है।
देवों कि भूमि हरिद्वार हिन्दू समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों मे एक माना जाता है। जब सूर्य मेष राशि में और वृहस्पति कुम्भ राशि में प्रवेश करता है तव हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन होता है।
यह हिन्दी महीने के अनुसार चैत्र के महीने मे पड़ता है। इस् दौरान चहुं दिशा से लाखों लोग आस्था कि डुवकी लगाने हरिद्वार आते हैं। गंगा जो पहले कभी स्वर्ग में वहती थी, धरती पर क्यों और किसने उतारा जानने के लिए क्लिक करें।
कहते हैं कि गंगासागर मेला कि तरह ही कुम्भ मेला में स्नान से मोक्ष कि प्राप्ति होती है। गंगासागर मेला भी दुनियाँ का एकमात्र धार्मिक मेला है जहॉं कुम्भ मेले की तरह करोड़ों श्रद्धालु एक स्थान पर पवित्र डुबकी लगाते हैं।
नासिक में सिंघहस्तकुम्भ मेला Kumbh Mela History In Hindi
नासिक गोदावरी नदी के किनारे बसा एक पौराणिक नगर है। यहॉं से कुछ किलोमीटर कि दूरी पर 12 ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर अवस्थित है। इसी जगह से गोदावरी नदी का भी उद्गम हुआ है।
खगोलीय गणना के आधार पर जब सूर्य तथा वृहस्पति का संक्रमण सिंह राशि में होता है तव नासिक में गोदावरी के तट कुम्भ मेला का आयोजन किया जाता है।
सूर्य तथा वृहस्पति का संक्रमण सिंह राशि में होने के कारण इस् मेला को सिंघहस्त कुम्भ भी कहा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सिंघहस्त कुम्भ भादों माह मे आयोजित होता है।
ग्रह का ऐसा शुभ संयोग बारह वर्षों में एक बार बनता है । इस् दौरान अपार जन-समूह गोदावरी नदी में पवित्र डुबकी लगाकर अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
उज्जैन में कुम्भ मेला का आयोजन
उज्जैन भारत के मध्यप्रदेश राज्य में स्थित है। प्राचीन काल से ही उज्जैन का नाम प्रसिद्ध रहा है। उज्जैन जिसका मतलव होता है- विजय की नगरी।
कहते हैं कि देवों के देव महादेव ने यही पर त्रिपुरा नामक दानव का संघार किया था। यह नगर हिन्दू समुदाय के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है।
उज्जैन शिप्रा नदी के तट पर अवस्थित प्राचीनतम नगर मे से एक है। जब वृहस्पति ग्रह वृश्चिक राशि में तथा सूर्य तुला राशि में हो तो उस समय उज्जैन में कुम्भ का योग बनता है।
उज्जैन में इसी शिप्रा नदी के किनारे विशाल Kumbh Mela का आयोजन किया जाता है। ग्रहों कि स्थिति के आधार पर यह हिन्दी के बैसाख महीने में आयोजित होता है।
कुंभ मेला के अवसर पर विभिन अनुष्ठान – MAHA KUMBH MELA IN HINDI
जैसा कि हम जानते हैं कि इस त्योहार के मुख्य अनुष्ठान प्रयागराज में संगम तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में गोदावरी और हरिद्वार में गंगा तट पर होता है।
इस् दौरान पवित्र स्नान के अलावा विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ जैसे भक्ति गीत, भजन, प्रवचन, धार्मिक चर्चाएँ आदि आयोजित की जाती हैं। कुम्भ मेला के दौरान बहुत सारे साधु और संत इन पवित्र स्थलों पर जाते हैं।
इस् दौड़ान शरीर पर राख और चंदन लपेटे इन साधुओं को सहज ही से देखा जा सकता है। कुछ साधु ऐसे भी होते हैं, जो ‘नागा साधु’ के नाम से जाना जाता है, जो बिना कपड़े पहने नग्न रहते हैं।
उपसंघार – Kumbh Mela History In Hindi language
हिंदु समुदायों के बीच प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। मानते हैं कि Kumbh Mela के अवसर पर इन पवित्र स्थलों पर स्नान से जीवन भर के पाप धुल जाते हैं। श्रद्धालु को जन्म-जन्म के बंधन से मुक्त होकर स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
भारत में कुंभ मेला एक अत्यंत पवित्र और लोकप्रिय Hindu Festival है। कुम्भ मेला दुनियाँ के सभी हिस्सों के लोगों को आकर्षित करता है। भारतबर्ष में हिन्दू के तीर्थ स्थल आमतौर पर पहाड़ों, नदियों या समंदर के किनारे पर स्थित है।
पवित्र नदीओं के किनारे लगने वाले कुम्भ मेला हो या समंदर के तट पर लगने वाले गंगासागर मेला, दोनों ही मानव मेले हैं जिनमें दुनिया भर से लाखों लोग भाग लेते हैं।
दोस्तों Kumbh Mela History In Hindi शीर्षक के साथ लिखा गया कुम्भ मेला का इतिहास कैसा लगा, अपने सुझाव से जरूर अवगत करायें।
2 thoughts on “Kumbh Mela history in hindi – कुम्भ मेला का इतिहास”
apne history ko padhkar bahut achcha laga bahut sunder
Thanks for कमेंट्स