नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं, छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है क्यों?

By Amit

नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं, छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है क्यों। Narak Chaturdashi 2023 के इस लेख में विस्तार से वर्णित है। दीपावली के एक दिन पहले छोटी दीपावली यानि नरक चतुर्दशी मानते हैं।

लेकिन कम लोगों को पता है की नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं क्या है नरक चतुर्दशी का महत्व। हम सभी जानते हैं की दीपावली का त्योहार भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन की खुशी में मनाया जाता है।

इसी दिन भगवान राम अयोध्या लौटे थे, और उनके आगमन की खुशी लोगों ने दीप जलाकर खुशियां मनाया था। इस बार महीने के 12 नवंबर 2023 को निश्चित है। चारों तरफ इसकी तैयारियां भी जोर शोर से शुरू हो गई हैं।

हम सब जानते हैं की दीपावली का त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। इसकी शुरुआत मुख्य दीपावली से ठीक एक दिन पहले हो जाती है। दीपावली से ठीक एक दिन छोटी दीपावली मनाई जाती है।

छोटी दीपावली को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। इस लेख के द्वारा दीपावली के पहले नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं , क्या है इसका महत्व विस्तार से जानते हैं। ।

नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं

दीपावली के एक दिन पहले मनाई जाने वाली दीपावली को छोटी दीपावली अथवा नरक चतुर्दशी के नाम से भी जानते हैं। वर्ष 2023 में छोटी दीपावली अर्थात नरक चतुर्दशी 11 नवंबर 2023 को मनाया जायेगा।

लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं की छोटी दीपावली को नरक चतुर्दशी या नरक चौदस के नाम से क्यों जाना जाता है। इस लेख में हम इस बारें में विस्तार से जानेंगे की छोटी दीपावली के दिन को आखिर किस कारण से नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।

शास्त्रों में भी मिलता है नरक चतुर्दशी की कहानी

कहा जाता है की द्वापर युग में नरकासुर नामक राक्षस था। वह कामरूप का राजा था, इसे प्राचीनकल में प्राग्ज्योतिषपुर (असम) के नाम से भी जाना जाता था। नरकासुर का चारों तरफ आतंक था, उनके आतंक से जन-जन परेशान थे।

उन्होंने ब्रह्मा जी की तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया की वह भूमि पुत्र है और उनकी मृत्यु सिर्फ माँ के हाथों में ही हो। कहते हैं की उसका आतंक ऐसा था की उन्होंने अपने बंदीगृह में 16 हजार लड़कियों को बंद कर रखा था।

इस बात का वर्णन असम के लोककथा और श्रीमद् भागवत पुराण में मिलता है। ब्रह्मा जी से वर प्राप्ति के बाद नरकासुर का आतंक और भी बढ़ गया। उन्होंने धरती के सभी राजाओं को परास्त कर दिए और इंद्रलोक को अपने अधीन करने के लिए स्वर्ग पर आक्रमण किया।

कहते हैं की नरकासुर के पराक्रम से घबराकर इंद्र देव अपने सिंहासन छोड़ भाग खड़े हुए। उसके बाद भगवान श्री कृष्ण से मदद की गुहार की गई। भगवान श्री कृष्ण अपने पत्नी सत्यभामा के साथ गरुर पर सवार होकर नरकासुर से युद्ध के लिए प्राग्ज्योतिषपुर गये।

दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। नरकासुर ने सबसे पहले अपने सेनापति मुरा को भगवान कृष्ण से मुकाबला को भेजा। भगवान कृष्ण ने नरकासुर के सेनापति सहित सभी सेना को युद्ध में पराजित कर दिया। इस बात से क्रोधित होकर नरकासुर ने अपने त्रिशूल से भगवान कृष्ण पर हमला कर दिया।

भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के हाथों हुआ था नरकासुर का वध

कहते हैं की नरकासुर के प्रहार से भगवान कृष्ण अचेतावस्था में चले गया। श्री कृष्ण की दशा को देखकर सत्यभामा ने नरकासुर पर अपने बाण से प्रहार शुरू कर दिया। उनके प्रहार से नरकासुर मारा गया।

कहते हैं की सत्यभामा को पृथवी की ही अवतार मानी जाती है। इस प्रकार नरकासुर को मां के ही हाथों मारे जाने का जो वरदान था, वह पूरा हुआ और जन-गण को नरकासुर के आतंक से मुक्ति मिली।

नरकासुर वघ के बाद भगवान श्री कृष्ण ने उसके कैद से 16 हजार कन्याओं को मुक्त कराया। तब सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण भगवान को घेर लिया और विनती करने लगी ही अब हमलोग कहाँ जाएं और उन्हें अब कौन स्वीकार करेगा।

सभी कन्याओं से ने आग्रह किया की आप ही हमें अपना लें। तब भगवान कृष्ण ने कहा ठीक है मैं आप सभी को अपनाऊंगा और अपना नाम दूंगा। इस पार्कर भगवान कृष्ण ने उन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।

नरकासुर के वध की खुशी में मनाई जाती है छोटी दीपावली

नरकासुर के वध और उसके आतंक से मुक्ति की खुशी में चारों तरफ लोगों ने दीप जलाकर खुशी प्रकट की। कहते हैं की इस कारण से ही छोटी दीपावली को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। अब आप जान चुके होंगे की छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से क्यों जाना जाता है।

आज भी असम के गोहाटी के पास पाण्डु-गौहाटी मार्ग पर स्थित पहाड़ी को नरकासुर पर्वत के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है की नरकासुर माता कामाख्या का भी परम भक्त था।

आज भी जिस रास्ते अधिकतर लोग कामाख्या मंदिर की चढ़ाई करते हैं उसे नरकासुर पथ के नाम से ही जाना जाता है। कविदंती यह है की इस रास्ते का निर्माण खुद नरकासुर ने ही करवाया था।

छोटी दीपावली या रूप चौदस भी कहा जाता है क्यों

इस वर्ष छोटी दीपावली या रूप चौदस, 12 नवंबर 23 को रविवार के दिन मनाया जायेगा। छोटी दीपावली को रूप चौदस अथवा काली चौदस भी कहा जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार मां काली के हाथों हुआ था नरकासुर का वध। इसी कारण से बंगाल मे इस दिन को काली चौदस के रुप में बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है।

जानें नरक चतुर्दशी का महत्व

चूंकि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण की पत्नी सत्यभामा द्वारा नरकासुर का वध हुआ था। तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाई जाने की शुरुआत हुई।

मान्यता है की छोटी दिवाली अर्थात नरक चतुर्दशी के शाम में यम के नाम दीप जलाने से अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है। यह भी मान्यता है की इस दिन दीप जलाने और भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करने से नरक से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन कुल 12 दिए जलाने शुभ माने जाते हैं।

धर्मशास्त्रों में वर्णन मिलता है की कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को छोटी दिवाली के दिन ही भगवान कृष्ण के सहयोग से नरकासुर का वध हुआ था। इस कारण से इस दिन भगवान श्रीकृष्ण, ,माता लक्ष्मी और यम की पूजा होती है।

इसके अगले दिन अर्थात कार्तिक अमावस्या यानि बड़ी दिवाली की रात्री में माता लक्ष्मी रात्रि और काली की विशेष पूजा होती है। लोग इस अवसर पर एक दूसरे को छोटी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं भेजते हैं।

आदिकाल से रहा है तंत्र सिद्धियों के प्रसिद्ध यह स्थान

प्राचीनकल से यह स्थान तंत्र सिद्धियों और जादू-टोनों के लिए प्रसिद्ध रहा है। इस स्थान पर बड़ी संख्या में लोग तांत्रिक सिद्धियों के लिए आते हैं। खास अवसर पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है।

FAQ

छोटी दिवाली को किसकी पूजा करनी चाहिए?

इस अवसर पर भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि उनके कारण से नरकासुर का वध हुआ था।

छोटी दिवाली पर कितने दिए जलाने चाहिए?

छोटी दिवाली पर कम से कम 5 दिए जलाने का विधान है।

छोटी दीपावली क्यों मनाई जाती है ?

छोटी दीपावली भगवान श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध की खुसी में मनाई जाती है

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां प्रिन्ट व सोशल मीडिया, पत्र-पत्रिकाओं, धार्मिक और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। हमारी वेबसाईट nikhilbharat.com इस बात की सत्यता की किसी भी तरह से पुष्टि नहीं करता।)

Share This Article