Sonpur mela history in hindi – पटना से महज 20 कि.मी. गंगा के उत्तर पार सोनपुर में विश्व प्रसिद्ध पशु मेला लगता है। सोनपुर का यह मेला सिर्फ बिहार का सबसे बड़ा मेला ही नहीं बल्कि एसिया का सबसे बड़ा पशु मेला कहलाता है।
यहाँ छोटे से जानवर से लेकर हाथी, ऊंट, गाय, घोड़ा लगभग हर पालतू पशु मिल जाते हैं। सोनपुर मेले में खरीदारी और मेला को देखने के लिए देश-विदेश के लोग आते हैं। हर वर्ष कार्तिक मास के पूर्णिमा से आरंभ होकर पूरे एक महीने तक यह मेला चलता है।
इस मेले में सिर्फ पशु के साथ जरूरी के हर समान की खरीदारी की जा सकती है। एशिया का सबसे बड़ा सोनपुर में लगने वाला पशु मेला का इतिहास अति प्राचीन है।
इतिहासकार के अनुसार इस मेला का आयोजन मौर्य काल से लेकर मुगल काल और फिर अंग्रेज के समय में भी आयोजित होता रहा है। मेले के दौरान राज्यभ्रमण विभाग द्वारा भी दर्शनार्थियों के ठहरने की व्यवस्था की जाती है।
सोनपुर मेला का इतिहास इन हिन्दी – sonpur mela history in hindi
सोनपुर मेला के वास्तविक इतिहास में के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं मिलती है। सोनपुर मेले की शुरुआत कब और किसने की यह अध्ययन का विषय हो सकता है।
लेकिन लगभग चार किलोमीटर के वर्ग मील में लगने वाले मेले में लाखों आदमी पहुंचते हैं। यह मेला मौर्यकाल से लेकर औरंजेब और बाद में अंग्रेज के समय में भी बड़े व्यापक स्तर पर लगता आ रहा है।
इस मेले में देश-विदेश के राजा-महाराजा अपने लिए हाथी-घोड़े खरीदने आते थे। इतिहास से एक बात का तो पता तो जरूर चलता है की सोनपुर पशु मेला मौर्यवंश के समय में भी प्रचलित थी।
कहते हैं की इस सोनपुर मेला से महान मौर्यवंशी सम्राट चंद्रगुप्त ने सैकड़ों हाथीयों की खरीदारी कर सेल्यूकस को भेंट किया था। औरंगजेब के शासनकाल के दौरान सोनपुर का मेला हाथी के व्यपार के लिए प्रसिद्ध था।
जहाँ दूर-दूर से लोग लोग मवेशियों की खरीद बिक्री करने आते थे। यह भी कहा जाता है की आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जाफ़र ने सोनपुर मेला से सफेद हाथी खरीदा था।
कहते हैं की यह मेला पौराणिक काल में हाजीपुर में लगता था लेकिन औरंगजेब के शासन काल के दौरान यह मेला हाजीपुर से सोनपुर में लगने लगा।
यह भी कहा जाता है की 1857 की प्रथम स्वतंरता संग्राम के लिए बाबू वीर कुंवर सिंह ने भी यहीं से अरबी घोड़े और हाथी की खरीदारी की थी।
एसिया का सबसे बड़ा पशु मेला sonpur mela in bihar
सोनपुर का यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला(sonepur cattle fair) माना जाता है। इस मेले में हर प्रकार के पालतू जानवर की खरीददारी की जाती है। जहाँ देश-विदेश के लोग इस मेले में खरीदारी के लिए खिंचे चले आते हैं।
एक समय था जब अफगानिस्तान, इरान, इराक तक के लोग यहाँ घोड़े और हाथी की खरीददारी करने इस मेले में आया करते थे। सोनपुर मेला अपने आप में स्वर्णिम इतिहास को संजोए हुए हैं। लेकिन अब इस मेले में आधुनिकता के रंग भी चढ़ने लगे हैं।
सोनपुर पशु मेला के शुरुआत के पीछे की कहानी
विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र के मेला के पीछे बिहार की गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा और धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। यहाँ लगने वाले पशु मेले को एक धार्मिक कहानी से जोड़कर देखा जाता है।
एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के दो परम भक्त थे। पौराणिक काल में दोनों ने हाथी और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर जन्म लिए। एक समय की बात है जब हाथी कोणाहारा घाट पर वही हाथी पानी पीने आया।
तब उसमें रहने वाले मगर ने उन्हें दबोच लिया। दोनों में लड़ाई चलती रही। लेकिन मगर के तीखे दांतों के प्रहार से भला हाथी कब तक बच पाता। धीरे-धीरे हाथी कमजोर पड़ने लगा।
तब हाथी ने अपने आराध्य भगवान विष्णु से प्रार्थना कर अपने जान की गुहार लगाई। तब भगवान विष्णु वहाँ प्रकट हुए और हाथी के प्राण की रक्षा की। कहते है की चूँकि इस स्थल पर दो जानवरों के बीच भयंकर लड़ाई हुई।
और खुद भगवान विष्णु खुद यहाँ आए इस कारण से यहां पशु की खरीद-विक्री शुभदायक समझा जाने लगा। तभी इस इस स्थल पर इस मेले का आयोजन होता रहा है। इस स्थल पर भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है।
हरिहर क्षेत्र का मेला के नाम से प्रसिद्ध
सोनपुर के मेला क्षेत्र में हरि (विष्णु) और हर (शिव) दोनों का एकल मंदिर है जो हरिहर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। है। इस कारण इसे हरिहर क्षेत्र का मेला के नाम से जाना जाता है।
वैसे तो प्रतिदिन हजारों की संख्या में भकत इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं लेकिन सोनपुर मेला के दौरान इस मंदिर की खास रौनक होती है। इस मंदिर के बारें मे मान्यता है की जब प्रभु श्री राम सीता स्वयंबर में भाग लेने जनकपुर जा रहे थे।
तब उन्होंने सोनपुर के पास इस शिव जी की स्थापना की थी। जो सोनपुर मेले के पास हरिहर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान हरिहर मंदिर का निर्माण मुगलकाल के दौरान राजा राम नारायण के द्वारा किया गया था।
बाद में इस मंदिर का बिरला संस्थान द्वारा जीर्णोद्धार किया गया था। सोनपुर के हरिहरनाथ मंदिर परिसर के अंदर भगवान शिव के मंदिर के अलाबा कई छोटे-छोटे और भी मंदिर बने हुए है।
सोनेपुर मेले के दौरन इस मंदिर में लाखों की संख्या में भक्तजन पूजा अर्चना करते हैं।
सोनपुर मेला का इतिहास और मुख्य आकर्षण
पहले सोनपुर मेले का मुख्य आकर्षण यहाँ विकने वाले बड़ी संख्या में हाथी और घोड़ों से थी। लेकिन अब सरकार के द्वारा लगाये गये पशु संरक्षण कानून के कारण अब हाथी की बिक्री नहीं की जाती है।
लेकिन अभी भी इस मेले में खरीद बिक्री के लिए गाय, घोडा, कुत्ता, बिल्लियों को भी देखा जा सकता है। इसके अलावा, आस्था, लोकसंस्कृति व आधुनिकता के रंग में सराबोर विश्व प्रसिद्ध पशु मेले में बदलते बिहार की झलक साफ दिखाई देती है।
यहाँ अब पारंपरिक दुकानों की जगह प्रसिद्ध ब्रांड के प्रदर्शनी स्टॉल लगाये जाने लगे हैं। साथ ही थियेटरों ने भी इस मेले में अपनी खास पहचान स्थापित कर लिए है।
सोनपुर मेला कब शुरू हुआ?
सोनपुर मेला की शुरूयात कब हुई इसकी तिथि ठीक से ज्ञात नहीं है। लेकिन इस मेले का आयोजन मौर्य काल में भी लगने का वर्णन मिलता है। यह मेल बिहार के सोनपुर में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन शुरू होता है।
सोनपुर मेला में क्या क्या बिकता है?
यहाँ छोटे से जानवर से लेकर बड़े जानवर तक बेचते हुए देखे जा सकते हैं। यहाँ हाथी, ऊंट, गाय, घोड़ा सहित लगभग हर पालतू पशु की खरीददारी की जा सकती है। तभी तो इस मेले में खरीदारी करने और मेला को देखने के लिए देश-विदेश के लोग बिहार आते हैं।
सोनपुर के पशु मेले का महत्व क्यों था?
सोनपुर मेल एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कहलाता हैं। धार्मिक परिक्षेत्र को जोड़कर इस मेले को ‘हरिहर क्षेत्र मेला’ के नाम से भी पुकारा जाता है। बिहार का सबसे बड़ा मेला सोनपुर मेले को यहाँ के स्थानीय लोग छत्तर मेला के नाम से भी जानते हैं।
सोनपुर मेला किस पशु के क्रय-विक्रय के लिए प्रसिद्ध है ?
कभी इस मेले में हाथी की भी खरीददारी की जाती है। वर्तमान में ऊंट, गाय, घोड़े के बहुतायत रूप में खरीददारी की जाती है।
इन्हें भी पढ़ें : –
बाहरी कड़ियाँ (External links)