मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और पिंडदान का विशेष महत्व है क्यों

मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और पिंडदान का विशेष महत्व है क्यों
मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और पिंडदान का विशेष महत्व है क्यों

मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और पिंडदान का विशेष महत्व है क्यों

मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान व् पिंडदान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के दिन साल में सिर्फ एक बार गंगा सागर में भाड़ी मेला लगता है। यह भी आपने सुना होगा की – सारे तीरथ बार बार गंगासागर एक बार ।

कहा जाता है की बाकी तीरथ बार बार जाने से जितना फल की प्राप्ति होती है। उतना फल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में डुबकी लगाने से मिल जाता है।

यही कारण है की मकर संक्रांति के दिन हर उम्र के श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए गंगासागर में डुबकी लगाते हैं। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के सागर द्वीप में हुगली नदी के किनारे भाड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।

मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और पिंडदान का विशेष महत्व है क्यों
मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और पिंडदान का महत्व

यहीं पर कपिल मुनि का मंदिर स्थित है। लोग गंगासागर में पवित्र स्नान के बाद समीप स्थित कपिल मुनि मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगासागर में स्नान का है विशेष महत्व माना जाता है।

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ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के शुभ दिन गंगा सागर में स्नान करने से 100 अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में स्थित गंगासागर की गिनती हिन्दु समुदाय के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में की जाती है।

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कुम्भ के बाद गंगासागर मेला विश्व का दूसरा सवसे बड़ा  मेला

मकर संक्रांति के अवसर पर जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करती है। तब गंगा सागर में विश्वबिख्यात मेला लगता है। जहां लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने गंगा सागर आते हैं।

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगने वाले कुम्भ मेला के बाद बंगाल में लगने वाले गंगासागर विश्व का दूसरा सवसे बड़ा  मेला कहलाता है। जहॉं एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु  गंगासागर में पुण्य स्नान करते हैं।

लेकिन सवाल यह है की मकर संक्रांति के दिन ही गंगा सागर में लाखों लोग आस्था की डुबकी क्यों लगते हैं। आखिर इस दिन का गंगा सागर से क्या संबंध है। मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में पितरों का पिंडदान कर उनका तर्पण भी किया जाता है।

आखिर मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में पिंडदान का क्या महत्त्व है। इस सब बातों का उत्तर जानने के लिए आपको पौराणिक कथा की ओर ले चलते हैं।

तभी हमें समझने में आसानी होगी की गंगा सागर में मकर संक्रांति के दिन स्नान का क्या महत्व है। इस बात का भी पता चलेगा की मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में स्नान के बाद पितरों का पिंडदान क्यों किया जाता है क्या है इसका धार्मिक महत्व।

गंगा सागर से जुड़ी ही पौराणिक कथा

गंगासागर को राजा भागीरथी से जोड़ कर देखा जाता है। राज भागीरथी का गंगा और गंगासागर से गहरा सम्वन्ध है, जहां प्राचीन कपिल मुनि का आश्रम स्थित था।

हिन्दू पौराणिक कथाओं के आधार पर भगीरथ के पूर्वज राजा सगर थे। उन्हें दो रानियां थीं, जिसके नाम केशिनी और सुमति थी। कई वर्षों के बाद भी राजा को कोई संतान नहीं था।

फलतः उन्होंने पुरोहितों से बिचार विमर्श कर संतान प्राप्ति  हेतु एक यज्ञ किया। यज्ञ के फलस्वरूप को पहली रानी से एक तथा दूसरी रानी सुमति द्वारा 60 हजार  पुत्रों का जन्म हुआ।

उनके सभी पुत्र बड़े हुए। राजा का चारों दिशाओं में बडा ही नाम था। एक की बात है बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। उन दिनों चक्रवर्ती सम्राट कहलाने के लिए राजाओं द्वारा अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया जाता था।

इस यज्ञ के दौरान  एक घोड़ा छोड़ा जाता था। घोड़ा जिस राज्य से होकर गुजरता था उस राज्य के राजा को अधीनता स्वीकार करनी पड़ती थी। नहीं तो उन्हें युद्ध करना पड़ता है।

इस क्रम में जब राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ के बाद अपने घोड़े को छोड़ा। उनकी सुरक्षा में अपने 60 हजार पुत्रों को लगा दिया। घोड़े के रक्षा के लिए उनके पीछे राजा सगर के 60 हजार पुत्र चल रहे थे। 

घोड़ा कई राज्यों में घूमते हुए गंगा सगार के पास कपिल मुनि के आश्रम के पास दौड़ते हुए एकाएक गायब हो गया। कहा जाता है की देवराज इंद्र ने जानबूझकर घोड़ों को कपिल मुनि के आश्रम के पास ही छुपा दिया।

जब राजा सगर के पुत्रों ने देखा की घोड़ा यहाँ आकार कहाँ गायब हो गया। तब घोड़ों की खोज बिन शुरू हुई। उन्होंने घोड़े को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम के पास पहुचे, जहां कपिल मुनि तपस्या में रत थे।

कपिल मुनि के आश्रम के पास उन्हें उनका घोड़ा मिल गया। बस क्या था राजा सगर के पुत्रों के अपनी मद में चूर होकर कपिल मुनि पर घोड़ा चुराने का इल्जाम लगा दिया। उन्होंने कपिल मुनि को आपत्तिजनक बातें कहते हुए बड़ा ही अपमान किया।

अपने अपमान की बात सुनकर तपस्या में लीन कपिल मुनि की आखें खुल गई। मुनि ने क्रोध में आकर श्राप दे दिया और उनकी क्रोध भरी आँखों की तेज में राजा के 60 हजार पुत्र जलकर गंगा सागर में कपिल मुनि आश्रम के पास ही भस्म  हो गए।

भागवत पुराण के अनुसार कपिल मुनि, भगवान विष्णु के छठा अवतार माना गया है। कई प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में गंगा अवतरण, गंगासागर और कपिल मुनि के बारें में वर्णन मिलता है।

जब राजा सगर को अपने पुत्रों के बारें में पता चला तो वे मुनि के श्राप के कारण राख में परिवर्तित हुए अपने 60 हजार पुत्रों के लिए क्षमा आचना कि। उन्होंने कपिल मुनि से निवेदन कर अपने श्राप को वापस लेने की आचना की।

लेकिन कपिल मुनि ने कहा श्राप को वासप नहीं लिया जा सकता, लेकिन में तुम्हें उनके मुक्ति का मार्ग बता सकता हूँ। तब मुनि ने राजा सगर के कहा की अगर आपका कोई भी वंशज यदि गंगा को स्वर्ग से पृथ्बी पर उतार लाये।

उस गंगा की जल धारा में इन लोगों कि अस्थियों समाहित हो जाय तो उनकी मुक्ति हो जाएगी। इस प्रकार कपिल मुनि के आश्रम के पास राजा सगर के साठ  हजार पुत्र भष्म रूप में वर्षों से मुक्ति का इंतजार कर रहे थे। 

राजा सगर से लेकर उनके कई पुश्तो ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर उतारने के कोशिस की, लेकिन कोई भी इसमें सफल नहीं हो पा रहे थे।   

राजा भगीरथ की तपस्या और गंगा का धरती पर अवतरण

अंततः उनके पीढ़ी में उत्पन राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया। फलतः राजा भगीरथ द्वारा अपने पूर्वजों के मुक्ति हेतु गंगा माता कि कठोर तपस्या की गई।

वर्षों के कठिन तपस्या के बाद गंगा खुश होकर स्वर्ग से पृथ्बी पर उतरने को तैयार हो गयी। इस प्रकार गंगा भगवान शिव के जटाओं होते हुए पृथ्वी पर उतरी।

राजा भागीरथी के पीछे बहते हुए गंगा कपिल मुनि के आश्रम के पास पहुंची, जहां भागीरथी के 60 हजार पूर्वज अपने उद्धार की बाट देख रहे थे। वहाँ गंगा उनके पूर्वोजों के राखों को अपने में समाहित करते हुए सागर में समा गई।

इस प्रकार राज भागीरथी ने अपने 60 हजार पूर्वजों को मुक्ति दिलाई। जहां पर गंगा, सागर में समाई वह स्थान गंगा सागर के नाम से जाना जाता है। चूंकि यह दिन मकर संक्रांति का दिन था।

गंगा सागर में स्नान से मोक्ष की प्राप्ति

तभी से मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व माना गया है। तभी कहा जाता है की सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार। मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर स्नान का महत्व और मान्यता है की इस दिन यहाँ डुबकी लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यही कारण है की मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में लाखों की संख्या में लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं। श्रद्धालु गंगा सागर में स्नान कर कपिल मुनि आश्रम में स्थित मंदिर में पूजा कर अपनी मनोकामना हेतु प्रार्थना करते हैं।

साथ ही लोगों मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में पिंड दान कर अपने पूर्वजों के मुक्ति हेतु प्रार्थना करते हैं। यही कारण है की साल में सिर्फ मकर संक्रांति के दिन ही गंगा सागर में मेला लगता है।

इस दिन गंगा सागर में पवित्र स्नान के बाद भगवान भास्कर को अर्ध्य प्रदान किया जाता है। श्रद्धालु पूजा अर्चना के बाद समुद्र देवता को नारियल और यज्ञोपवीत चढ़ाते हैं।

गंगा सागर मेले का महत्व इस बात से प्रतीत होता है की कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन यहां स्नान दान से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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F.A.Q

मकर संक्रांति में पवित्र नदियां में स्नान किया जाता है क्यों।

मान्यता है की मकर-संक्रान्ति के दिन देवगण का धरती पर अवतरन होता है। इस दिन से देवताओं के दिन की सुरुआत होती है। फलतः शस्त्रों में इस दिन स्नान और सूर्योपासना करना मोक्ष की प्राप्ति को सुगम बनाता है। इस दिन स्नान के बाद सूर्य को अर्ध्य व तिल-गुड़-चावल का दान श्रेष्ठ माना गया है।

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