भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था, क्यों

भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था
भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था

भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था : – महाभारत के भीष्म पितामह के बारें में कौन नहीं जनता, भीष्म पितामह की मौत नहीं हुई क्योंकि उन्हें तो इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त था। यह वरदान उन्हें अपने पिता शांतनु से मिला था।

वे जब चाहे अपना प्राण त्याग सकते थे। लेकीन अर्जुन द्वारा घायल होने के बाद भी भीष्म पितामाह 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर कष्ट पाते रहे। युद्ध खत्म होने के बाद भी उन्होंने अपने प्राण त्याग हेतु सूर्य का दक्षिणनायन से उत्तारायण होने का इंतजार किया।

इस प्रकार मकर संक्रांति के दिन सूर्य के उत्तारायण होने पर उन्होंने अपने प्राण त्याग किए। उन्होंने अपने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही क्यों चुना।

इस के बारें में इस लेख में विस्तार से जनेगे। मकर संक्रांति पूरे भारतवर्ष में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध हिन्दू त्योहार है। जब सूर्य दक्षिणायन से उतरायन में प्रवेश करता है। तब मकर संक्राति का पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है।

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भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था
भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था

जब सूर्य कर्क राशि से मकर राशि में प्रवेश करती है। लेकिन इस साल यह त्योहार हिन्दी पंचांग के अनुसार 15 तारीख को मनाया जायेगा। क्योंकि इसका समय की गणना सूर्य की घूर्णन गति पर निर्भर करती है।

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इसी कारण से इस वर्ष मकर संक्रांति 14 के वजाय 15 जनवरी को मनाने का योग बनता है। यह त्योहार देश भर में अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है।

शस्त्रों के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों मे स्नान करना महा फलदायी माना जाता है।

भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था, क्यों

महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। महाभारत के लड़ाई में अर्जुन के बाणों से बुरी तरह आहात होने के बाबजूद बाणों की सैया पर वे लम्बे समय तक पड़े रहे।

अगर वे चाहते तो अपनी इच्छानुसार मृत्यु को वरण कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे बाणों की शैया पर महीनों परे रहे और जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश किया तभी उन्होंने अपने प्राण त्यागे।

इसके पीछे कई कारण माने जाते है। पहला वे महाभारत कि लड़ाई के परिणाम जाने बिना प्राण त्यागने के पक्ष में नहीं थे। क्योंकि वे मरने से पहले हस्तिनापुर की राजगद्दी को सुरक्षित देखना चाहते थे।

दूसरा कारण यह माना जाता है की वे अपने प्राण त्याग के लिए शुभ धड़ी का इंतजार कर रहे थे। इसी कारण जब महाभारत के लड़ाई खत्म हो गई और सूर्य दक्षिणायन से उतरायन मे प्रवेश किया। तब उन्होंने अपने प्राण त्यागे।

इसीलिए भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन अपना प्राण त्यागा

भीष्म पितामह के पास हजारों वर्षों के जीवन का अनुभव था। उन्हें मालूम था दक्षिणायन काल की तुलना में उत्तरायण काल में शरीर त्याग करने से मोक्ष का मार्ग अत्यंत ही सुगम होता है।

वैदिक साहित्य के अनुसार दक्षिणायन को पितृयान यानि देवताओं कि रात्रि तथा उत्तरायण को देवयान यानि देवतओं का दिन कहा गया है। इस दिन किया गया कार्य विशेष फलदायी माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं।

वे जानते थे की मकर संक्रांति के बड़ा शुभ दिन और नहीं हो सकता। कहते हैं की इस दिन प्राण त्यागने वालों को मोक्ष की प्राप्ति सरल होती है और वे जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्ति होकर परमधाम यानि मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

इस कारण से भीष्म पितामह ने सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करने तक इंतजार किया। जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में मकर संक्राति के दिन प्रवेश कर गया, तब उन्होंने अपने प्राण त्यागे।

यही कारण था की भीष्म पितामह ने मोक्ष की कामना लिए Makar Sankranti के दिन अपना मृत्यु का दिन चुना था। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और गरीबों का दान करना विशेष पुण्यदायक माना गया है।

समापन

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य का उत्तरायण में प्रवेश होता है। इसी दिन से देवताओं के दिन की शुरुआत मानी जाती है। धर्मशस्त्रों के अनुसार इस दिन देह त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अर्थ मोक्ष के बाद आत्मा जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्त हो जाता है और उन्हें फिर से जन्म नहीं लेना पड़ता है। भीष्म पितामह भी मोक्ष पाने की इच्छा से अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण का दिन चुना था।

जिस दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्यागा उस दिन माघ शुक्ल अष्टमी और मकर संक्राति का दिन था। इसी कारण से इस दिन को भीष्म अष्टमी और भीष्म पितामह की पुण्यतिथि के रूप में याद किया जाता है।

इस त्योहार की महत्ता का अंदाज इन बातों से भी लगाया जा सकता है की प्रयागराज में दुनियाँ का सबसे बड़ा कुम्भ की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से ही होती है।

कुम्भ मेला की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन क्यों होती है इसके पीछे भी पौराणिक कथा छुपी है। इसके अलावा इस दिन गंगा का भी राज भगरथी द्वारा घरती पर अवतरण हुआ था।

मकर संक्रांति के दिन ही गंगा भगवान शिव के जटाओं से वहती हुई घरती पर उतरी थी और गंगासागर के पास राजा भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार करते हुए सागर में समाहित हुई थी।

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