चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी (Chetak Horse story)

चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी

चेतक कौन था

चेतक महाराणा प्रताप के वफादार घोड़ा का नाम था। इस लेख मे महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी जानेंगे, जिन्होंने हल्दीघाटी के लड़ाई में अपना बलिदान देकर अपने महाराणा प्रातप की जान बचाई थी।

उनकी स्वामिभक्ति और बलिदान को देखते हुए उसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ घोड़ा माना गया। अपने मालिक महाराणा प्रताप के साथ स्वामिभक्ति के कारण भारत के इतिहास में वह अमर हो गया। महाराणा प्रातप का घोड़ा चेतक करीब चार साल से उनके साथ रहा।

अकबर और महारणा प्रताप के बीच लड़ी गई हल्दीघाटी के लड़ाई में चेतक ने 26 फिट नाले को फांदकर महाराणा प्रातप की जान बचाई और खुद शहीद हो गया।

चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी
चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी

महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी – Maharana Pratap Horse story

कुछ इतिहासकारों का मानना है पहले भारत के राजा अपने हथियार और हाथियों पर सवार होकर युद्ध में भाग लेती थी। लेकिन जब उन्हें पता चला की उनका प्रतिरोध विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले घोड़ों की तुलना में सुस्त है।

तब उन्हें युद्ध में घोड़े की क्षमता का पता चला और उन्होंने अच्छी से अच्छी नस्ल के घोड़े को अपने सैन्य अभियान में शामिल करने लगे। इस भारतीय शासकों को युद्ध में काफी फायदा हुआ। इस प्रकार सदियों से घोड़ों और महाराजाओं का अटूट संबंध स्थापित हो गया।

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की कहानी – Maharana Pratap ke Ghode Chetak ki kahani

चेतक महाराणा प्रताप सिंह का सबसे वफादार और प्रिय घोड़ा था। चेतक एक नीलवर्ण का ईरानी नस्ल का घोडा था। इस महाराणा प्रताप ने गुजरात के व्यपारी से खरीदा था। असल में महाराणा प्रताप ने गुजरात के चारण व्यापारी से तीन घोड़े खरीदे थे।

इसमें एक का नाम चेतक, दूसरे का त्राटक और तीसरे का अटक रखा। त्राटक और अटक नामक घोड़े को महाराणा प्रताप ने अपने भाइयों को दे दिया। चूंकि चेतक महाराणा प्रताप को खूब पसंद आया इस कारण इस उन्होंने अपने पास रख लिया।

उन्होंने तीनों घोड़ों का कड़ी परीक्षण के बाद खरीदा था। कहा जाता है की इस घोड़े को पाकर महाराणा प्रताप इतने खुश हुए की उन्होंने चारण व्यपारी को इन घोड़ों के बदले दो गाँव भेंट कर दिए।

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की विशेषता

उस बक्त घोड़ों की तीन मुख्य नसलें राजस्थान में प्रसिद्ध थी, जिसेमें मारवाड़ी, सिंधी और काठियावाड़ी का नाम आता था। चेतक का शरीर अन्य मरुस्थलीय घोड़ों के समान ही सुडौल और दुबला-पतला लेकिन विशालकाय था।

चेतक की ऊंचाई अन्य घोड़ों की तुलना में काफी अधिक थी।  इसका लंबा गर्दन, चमकदार आंखें और गजब की फुर्ती अन्य घोड़ों से अलग करती थी। उसकी लंबी गर्दन के कारण ही  चेतक को “मयूर ग्रीव” (मोर गर्दन) भी कहा जाता था।

महाराणा प्रातप के घोड़े चेतक का रंग नीला था इस कारण से महाराणा प्रताप को कई कविदंतियों में “नीले घोड़े का सवार” भी कहा गया है। चेतक की विशेषता कही जा सकती है की वह 318 किलो वजन लेकर सबसे तेज दौड़ और ऊँची छलांग लगा लेता था।

क्योंकि लंबे तगड़े 7 फिट 5 इंच ऊंचाई वाले महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो के करीब था, साथ ही वे युद्ध में 72 के किलो के कवच धरण करते थे। वे अपने साथ 80 किलो के भाला और 208 किलो का दो तलवार अपने साथ रखते थे।

महाराणा प्रताप और चेतक

महाराणा प्रताप का घोड़ा ‘चेतक’ अपने का नाम भारत के इतिहास में अपने स्वामी के प्रति वफादारी के लिए प्रसिद्ध है। चेतक एक ईरानी नस्ल का घोड़ा था जो बहुत ही फुर्तीला और ताकतवर था।

कहा जाता है जब चेतक दौड़ता थे तब उसके रफ्तार इतनी तेज होती थी की मानो हवा से बात कर रहा हो। हर युद्ध में चेतक घोड़े बहुत ही बहादुरी और वफादारी से महाराणा प्रताप का साथ दिया।

महाराणा प्रताप भी चेतक की खान पान और सुरक्षा का खास ध्यान रखा करते थे। युद्ध के मैदान में उन्होंने चेतक की सुरक्षा के लिए उसके चेहरे पर धातु का बना हाथी का सूंड जैसा मुखौटा पहनाते थे।

महाराणा प्रताप का वफादार था, चेतक

कहा जाता है की चेतक बहुत ही आक्रामक और घमंडी था। वह बहुत ही मुश्किल से नियंत्रित होने वाले घोड़े था। लेकीन अपने मालिक महाराणा प्रताप का वह अत्यंत ही वफादार था।

वह मालिक की हार भावना और उनके इसारे को एक क्षण में समझ जाता था। कहा जाता है की इंसान की तरह ही महाराणा प्रताप के बोली और आदेश को समझ कर उनकी आज्ञा का पालन करता था।

महाराणा प्रताप का घोड़ा कैसे मरा

हल्दी घाटी अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 1576 ईस्वी में हुआ था। इस युद्ध के दौरान चेतक ने अपनी अपनी स्वामिभक्ति और अद्वितीय वीरता का परिचय देते हुए अपने स्वामी की जान बचाई थी।

चेतक की ताकत और फुर्ती का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है की चेतक हाथी के सिर के बराबर ऊंची छलांग लगा सकता है। हल्दीघाटी के लड़ाई में जब महाराणा प्रताप और अकबर के सेनापति मान सिंह का आमना सामना हुआ।

तब मानसिंह हाथी पर सवार होकर युद्ध कर रहा था। महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े चेतक को मान सिंह की तरफ मोड़ दिया। चेतक ने ऊंची छलांग भरकर मानसिंह के हाथी के सिर पर अपने टाप (पांव) रख दिए।

चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी (Chetak Horse story)

फलस्वरूप महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर अपने भाले से जोड़ से प्रहार किया। हालांकि इस प्रहार में मान सिंह बाल-बाल बच गया लेकिन हाथी के सिर पर बंधे तलवार से चेतक का पैर बुरी तरह जखमी हो गया।

कैसे चेतक ने महाराणा प्रताप की जान बचाई

हालांकि इस युद्ध में राणा की सेना बहादुरी से लड़ी लेकिन कम संख्या होने के कारण ज्यादा देर टिकना मुस्किल था। फलतः महाराणा प्रताप वहाँ से निकल पड़े।  चेतक बुरी तरह से घायल होने के बाद भी महाराणा प्रताप को लेकर हवा की गति से भाग रहा था।

मुगल सेना ने उनका पीछा किया। तभी एक बड़ा नाला आ गया। जिसे चेतक ने प्रताप को अपनी पीठ पर लिए उस 26 फीट दरिया को छलांग लगाकर पार कर अपने स्वामी बचा लिया। उस दरिया को उस बक्त मुगल पार न कर सकी।

चेतक की मृत्यु कहां हुई थी

चेतक 26 फिट नाले पार कर महाराणा प्रातप की जान बचाई और वहीं गिर गया। क्योंकि उनका पैर भी कट गया था, फलतः उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार चेतक ने अपना सर्वस बलिदान देकर अपने मालिक का जान बचाई और अद्भुत वफादारी का परिचय दिया।

कहा जाता है की चेतक की मृत्यु के बाद प्रताप और उनके भाई शक्ति सिंह ने पूरे विधि-विधान से चेतक का दाह संस्कार किया। जहां पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ हल्दीघाटी में चेतक की याद में समाधि बना है, जिसे आज भी देखा जा सकता है।

चेतक पर पराक्रम भरी कविता

चेतक के स्वामिभक्ति, वीरगति और वफादारी के ऊपर कई कहानी और कविता सुनने को मिलती है। महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के ऊपर हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्याम नारायण पाण्डेय ने एक बड़े ही  मार्मिक कविता का रचना की है।

चेतक की वीरता

रण बीच चौकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली लेकर सवार उड जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड जाता था।।

श्याम नारायण पाण्डेय’

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महाराणा प्रताप की सच्ची कहानी विस्तार से

F.A.Q

  1. महाराणा प्रताप के घोड़े का रंग कैसा था ?

    महाराणा प्रताप का घोड़ा नील वर्ण का था। इस करण से राणा को नीलवर्ण का सवार भी कहा जाता था।

  2. महाराणा प्रताप का घोड़ा किस नस्ल का था?

    महाराणा प्रातप का घोड़ा अरब नस्ल का काफी तेज तर्रार और बेहद फुर्तीला था।

  3. महाराणा प्रताप के घोड़े की हाइट कितनी थी?

    इसकी सटीक जानकारी नहीं उपलबद्ध है।

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