पृथ्वीराज चौहान का इतिहास, लड़ाई, कहानी | Prithviraj Chauhan ka itihas

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास - Prithviraj Chauhan ka itihas
पृथ्वीराज चौहान का इतिहास - Prithviraj Chauhan ka itihas

पृथ्वीराज चौहान कौन थे?

Contents
पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय Prithviraj Chauhan biography in Hindiप्रारम्भिक जीवन और परिवार (Birth, Family and Early Life)सम्राट पृथ्वीराज चौहान का इतिहास – Prithviraj Chauhan ka itihas in Hindiपृथ्वीराज चौहान का इतिहास और अजमेर का राजसिंहासनपृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का सिंहासन (Prithviraj Chauhan Succession to Delhi)पृथ्वीराज चौहान की पराक्रम की चर्चा prithviraj chauhanपृथ्वीराज चौहान एवं संयोगिता की प्रेम कहानी (Prithviraj Chauhan and Sanyogita Love Story)पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी – Mohammad gauri aur Prithviraj Chauhan ka itihaasतराइन की पहली लड़ाईतराइन की दूसरी लड़ाईपृथ्वीराज की हार और उन्हें बंदी बनाया जानाशब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे पृथ्वीराज चौहानपृथ्वीराज चौहान के राजकवि और मित्रपृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारापृथ्वीराज चौहान की मृत्यु (Prithviraj Chauhan death)पृथ्वीराज चौहान के बाद संयोगिता का क्या हुआपृथ्वीराज के जीवन पर बनी फिल्मप्रश्न – पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब हुआ था ?

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास (Prithviraj Chauhan ka itihas in Hindi )- पृथ्वीराज चौहान को मध्यकालीन भारत में अंतिम हिंदू सम्राट माना जाता है। इन्हें राय पिथौरा भी कहकर संबोधित किया जाता है। पृथ्वीराज चौहान अपने समय के एक महान शूरवीर और पराक्रमी हिंदू राजा थे।

धनुर्विद्या में पृथ्वीराज चौहान को महारत हासिल थी। उन्हें शब्दभेदी बाण चलाने मे महारत थी। अंधेरे में भी वे सिर्फ आवाज पर सटीक निशान लगा सकते थे। इन्होंने अजमेर से लेकर दिल्ली तक शासन किया।

अगर पृथ्वीराज चौहान का इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण घटना की बात करें तो वह राजा जयचंद्र से दुश्मनी, संयोगिता से प्रेम विवाह और महमूद गौरी के साथ युद्ध था। इन्होंने मुहमद गौरी को युद्ध में एक नहीं बल्कि 17 बार पराजित किया।

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लेकिन हर बार दया दिखाते हुए उन्होंने गौरी को माफ कर दिया था। लेकिन अपने अंतिम युद्ध मे वे गौरी से हार गए। क्योंकि इस युद्ध में मुहमूद गौरी को जयचंद्र का साथ मिला।

पृथ्वी राज बंदी बना लिए गये और उनकी दोनों आँखें निकलवा दी गई। लेकिन उन्होंने मरने के पहले महमूद गौरी को शव्द भेदी बान से हत्या कर अपना बदला पूरा कर लिया।

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास - Prithviraj Chauhan ka itihas
पृथ्वी राज चौहान का इतिहास ( Prithviraj Chauhan ka itihas in HIndi)

इस लेख में ऐसे ही महान राजा राजा पृथ्वीराज चौहान का इतिहास, कहानी, जीवन परिचय के बारें मे जानते हैं।

पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय Prithviraj Chauhan biography in Hindi

  • पृथ्वीराज चौहान जन्म तिथि – 1 जून 1163 ई.
  • जन्म स्थान – पाटन, गुजरात
  • माता का नाम – कर्पूरदेवी
  • पृथ्वीराज चौहान के पिता का नाम – सोमेश्वर चौहान
  • पृथ्वीराज चौहान के गुरु का नाम – राम जी
  • पृथ्वीराज चौहान के बेटे का नाम – गोविंद चौहान
  • पृथ्वीराज चौहान के घोड़े का नाम – : नत्यरंभा
  • पृथ्वीराज चौहान की बेटी का नाम – ज्ञात नहीं
  • पृथ्वीराज चौहान की हाइट कितनी थी – ज्ञात नहीं
  • पृथ्वीराज चौहान की तलवार का वजन – ज्ञात नहीं
  • मृत्यु 1192 ई

प्रारम्भिक जीवन और परिवार (Birth, Family and Early Life)

धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की गिनती विश्व के महान शूरबीर राजाओं होती है। पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में गुजरात में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान के पिता का नाम महाराजा सोमेश्वर था जो अजमेर के राजा था।

उनकी माता जी का नाम कपूरी देवी था। कहा जाता है की पृथ्वीराज चौहान का जब जन्म हुआ तब पूरे राज्य में खुशी की लहर फैल गई थी की वर्षों बाद राज्य का उतराधिकारी ने जन्म लिया।

जिसका पृथ्वीराज चौहान के माता पिता अपने शादी के 12 वर्ष तक इंतजार कर रहे थे। लेकिन राजदारवार के कुछ लोग पृथ्वीराज चौहान के पैदा होने के बाद नाराज भी थे।

क्योंकि पृथ्वीराज चौहान के जन्म लेने से पहले तक कुछ लोग राज्य का उत्तराधिकारी बनने का सपना देख रहे थे। राजदारवार में कुछ सजिस भी रची गई लेकिन सभी सजिस नाकाम हो गई।  

पृथ्वीराज चौहान को 13 पत्निया थी जिनके नाम रानी संयोगिता, जंभावती, जालंधरी, गुजरी, बड़गुजरी, यादवी, यादवी, पद्मावती, शशिव्रता, पुड़ीरानी, पड़िहारी, पंवारी, इच्छनी, दाहिया थी।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान का इतिहास – Prithviraj Chauhan ka itihas in Hindi

पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरागढ़ के नाम से भी जाना जाता है पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक माना जाता है। पृथ्वीराज चौहान का शासनकाल 1178 से 1192 के बीच माना जाता है।

वर्ष 1183 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल वंश के राजा को हराया था जिसमें उसके सेनापति आल्हा उदल की मृत्यु हो गई थी। पृथ्वीराज बचपन मे ही राजगद्दी सांभाला और बड़े होने तक अजमेर और दिल्ली दोनों जगह राज किया।

इस दौरण उन्होंने कई लड़ाई लड़ी और अपने सीमा का विसतर किया।पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंदबरदाई थे जिन्होंने उनके जीवन पर आधारित रचना पृथ्वीराज रासो की रचना की।

पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान की बारे में विस्तार से लिखा गया है। 1191 ईस्वी में तराइन की प्रथम युद्ध हुआ जिसमें पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की सेना आमने-सामने हुई।

इस युद्ध में मोहम्मद गौरी का विजय हुआ और पृथ्वीराज चौहान ने विजय पताका लहराया। इस युद्ध के बाद मोहम्मद गौरी पूरी तैयारी के साथ आया। तराइन का दूसरा युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की सेना एक बार फिर आमने-सामने हुई।

लेकिन इस बार पृथ्वीराज की सेना को युद्ध में पराजय का मुंह देखना पड़ा। मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को बंदी बना कर अफगानिस्तान ले गया। उनकी आंखें निकाल दी गई और उन्हें कारागार में डाल दिया गया। बाद में उन्होंने मुहम्मद गोरी को मार का अपना बदला पूरा किया।

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास और अजमेर का राजसिंहासन

अपने जन्म के 11 साल के बाद में पृथ्वीराज चौहान अजमेर की सत्ता पर काबिज हुए। पृथ्वीराज चौहान जब मात्र 11 साल के थे तभी अजमेर के राजा महाराजा सोमेश्वर की मौत हो गई।

फलतः बालक पृथ्वीराज चौहान को अपनी माँ के साथ अजमेर की गद्दी पर बैठाया गया। जब वे बड़े हुए तब उन्होंने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेते हुए अपनी सेना को मजबूत कर राज्य का विस्तार किया।

पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का सिंहासन (Prithviraj Chauhan Succession to Delhi)

वर्ष 1166 में महाराजा अनंगपाल की मौत के बाद दिल्ली की राजगद्दी पर पृथ्वीराज चौहान का राज्य अभिषेक हुआ। महाराजा अनंगपाल पृथ्वीराज चौहान के नाना थे। उन्हें कोई पुत्र नहीं था।

फलतः मरने से पहले अनंगपाल ने अपनी बेटी और दामाद के सामने ही पृथ्वीराज चौहान को अपना उतराधिकारी घोषित कर दिया था।

इस प्रकार महाराजा अनंगपाल के निधन के बाद पूरे विधि विधान से पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली के भी राज सिंहासन पर बैठाया गया।

पृथ्वीराज चौहान की पराक्रम की चर्चा prithviraj chauhan

इतिहासकार मानते हैं की उस बक्त पृथ्वी राज चौहान की पराक्रम की चर्चा सभी पड़ोसी राज्यों भी थी। एक तो वे खुद भी एक शूरवीर योद्धा थे, साथ ही उनकी सेना भी उतनी ही बहादुर थी।

कहते हैं की उस बक्त उनके पास एक विशाल सेना थी जिसमें 300 से भी अधिक हाथी और तीन लाख पैदल सेना थे। अपने इसी विशाल और पराक्रमी सेना के कारण वे कई बड़े बड़े राजाओ को पराजित किया। कई पड़ोसी राजा उनसे भय खाते थे।

पृथ्वीराज चौहान एवं संयोगिता की प्रेम कहानी (Prithviraj Chauhan and Sanyogita Love Story)

भारत के इतिहास में जब पृथ्वीराज चौहान की चर्चा हो वहाँ राजकुमारी संयोगिता का जिक्र न हो ऐस हो नहीं सकता। संयोगिता के पृथ्वीराज चौहान की कहानी इतिहास को मोड़ने वाली है। संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी।

जब पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता को देखा तभी दोनों एक दूसरे को अपना दिल दे बैठे। संयोगिता भी पृथ्वीराज चौहान की बहादुरी के चर्चे सुन चुकी थी। दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे।

लेकिन जब इस बात का पता संयोगिता के पिता राजा जयचंद्र को चला। तब वे गुस्सा हो गए क्योंकि जयचंद्र पृथ्वीराज चौहान से जलते थे। इस कारण से वे नहीं चाहते थे की उनकी बेटी पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करे।

वे पृथ्वीराज को हमेशा नीचा दिखाने की मौका की तलाश में लगे रहते थे। एक बार की बात है राजा जयचंद्र ने अपने राज्य में यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के अंत में उन्होंने अपनी बेटी के लिए स्वंयर का आयोजन किया।

दूर-दूर से अनेकों राजा-महाराजा और शूरवीर को आमंत्रित किया गया। लेकिन पृथ्वीराज को अपमान करने के मकसद से नहीं बुलाया गया। पृथ्वीराज को जब अपने दूत के माध्यम से इस बात का पता चला तब वे वेश बदलकर स्वयंबर तक पहुँच गए।

मौका पाकर पृथ्वीराज ने राजकुमारी संयोगिता को अपने घोड़े पर उठाकर भगाकर दिल्ली ले आया। दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता का विवाह पूरे विधि विधान से पूरा हुआ।

पृथ्वी राज के इस कृत्य से जयचंद्र सहित कई राजा-महाराजा नाराज हो गए। जयचंद्र अपने आप को घोर अपमानित समझने लगा। इस प्रकार जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच नफरत और भी बढ़ गई।

जयचंद्र बदले की भाव में जलने लगे और मौका की तलाश में जुट गुए।

पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी – Mohammad gauri aur Prithviraj Chauhan ka itihaas

इतिहास में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच एक नहीं 17 युद्ध की चर्चा मिलती है। लेकिन हर बार मोहम्मद गौरी को हार का मुह देखना पड़ा। हरेक बार उन्हें पृथ्वीराज से पराजित होकर अपना जान बचाकर भागना पड़ा।

क्योंकि की पृथ्वीराज के पास 300000 सेना और 300 हाथियों का विशाल काफिला था। जिसे भेद पाना किसी भी राजा के लिए आसान नहीं था।

तराइन की पहली लड़ाई

इतिहास में तराइन का पहला युद्ध (First Battle Of Tarain) पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच 1191 में हुआ था। यह युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच सरहिंद नामक स्थान के पास तराइन में हुआ था।

तभी इसे तराइन का युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में मोहम्मद गौरी को अपना जान बचाकर भागना पड़ा। तराइन के इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने करोड़ों की संपत्ति हासिल की थी।

जिसे उन्होंने कुछ अपने सेनाओं में बाँट दिया और बाँकी अपने राजकोष में जमा करवा दिए। इस युद्ध के फलस्वरूप पृथ्वीराज चौहान का हांसी, सरस्वती और सरहिंद पर अधिकार हो गया।

तराइन की दूसरी लड़ाई

तराइन की दूसरी लड़ाई 1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी बीच लड़ा गया। जिसमें जयचंद्र के गद्दारी के कारण पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उन्हें बंदी बना लिया गया।

तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान का हार का कारण संयोगिता का हरण, जयचंद्र से दुश्मनी और दूसरे राजपूत राजाओं का पृथ्वीराज का साथ नहीं देना था। जब स्वमबर से पृथ्वीराज चौहान जयचंद्र की बेटी संयोगिता को उठा लाती है।

तब जयचंद्र पृथ्वीराज चौहान का घोर दुश्मन हो जाता है। राजा जयचंद्र को पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं की कमी का ज्ञान था।

वे पृथ्वीराज चौहान को नीचा दिखाने के लिए उसके कट्टर दुश्मन मोहम्मद गौरी से हाथ मिला लिया। जयचंद्र ने गौरी को अपनी सेना सहित साथ देने का वचन दिया।

पृथ्वीराज की हार और उन्हें बंदी बनाया जाना

फलतः तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गौरी को राजा जयचंद्र का साथ मिला। पृथ्वीराज चौहान के पास 3,00000 से भी ज्यादा शूरवीर सैनिक थे। जबकि गौरी के पास मात्र 1,20000 सैनिक थे।

लेकिन इतना विशाल सेना के बावजूद भी पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा। क्योंकि इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना में पराक्रम की कमी दिखा।

साथ ही पृथ्वीराज के सेना की कमजोरी भी जयचंद्र के माध्यम से गौरी को पता चल चुका था। फलतः इस युद्ध में मोहम्मद गोरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना कारण पड़ा।

मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया और उनकी दोनों आँख फोड़कर अंधा कर दिया गया।

शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे पृथ्वीराज चौहान

जैसा की इतिहास से पता चलता है की पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे। वे आँख पर पट्टी बांध कर सिर्फ आवाज के माध्यम से सटीक निशाना लगा सकते थे।

मुहमूद गौरी के साथ अपने अंतिम युद्ध में हारने के पश्चात पृथ्वीराज चौहान बंदी बना लिया जाता है। पृथ्वीराज चौहान को अंधा बनाकर जेल में डाल दिया जाता है। जहां वे बंदी रहते हुए अपना बदला इस ज्ञान के माध्यम से लेता है।

पृथ्वीराज चौहान के राजकवि और मित्र

पृथ्वीराज चौहान के राजकवि थे चंद्रवरदाई। उन्होंने पृथ्वीराज रासो की रचनाकार ही हैं, जिसमें पृथ्वीराज चौहान के वीर गाथा का वर्णन मिलता है। पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई एक घनिष्ट मित्र भी थे। जिसे चंद्रवरदाई ने अंत तक निभाया।

कहते हैं की पिथौरागढ़ के निर्माण में भी चंद्रवरदाई का हाथ था। अपने मित्र चंद्रवरदाई के सहायता से ही पृथ्वीराज चौहान ने अपने दुश्मन महमूद गौरी से बदला लिया।

पृथ्वीराज चौहान जब गौरी के जेल में बंद थे तब उन्होंने चंद्रवरदाई के मदद से मोहम्मद गौरी की हत्या की। अंत में वे अपने दोस्त पृथ्वीराज के साथ जान दे दी।

पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारा

एक दिन मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण वाली ज्ञान के बारें में जानकारी मिलती है। तब पृथ्वीराज चौहान को दरवार में पेश किया जाता है।

जब मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पूछा की मैंने सुना है तुम्हें शब्द भेदी बान चलाने में महारत हासिल है। तब पृथ्वीराज चौहान के पास बैठे चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा की हाँ महाराज इन्हें बचपन से शब्दभेदी बाण विद्या आती है।

अगर विश्वास नहीं हो रहा हो तो इसकी परीक्षा ली जाय। तब मोहम्मद गौरी के आदेश पर तांबे की थालियाँ लाई गई। पृथ्वीराज के हाथ में तीर कमान पकड़ा दिया गया। चंद्रवरदाई उसी के पास बैठे थे।

तभी तांबे की बर्तन को पीटा गया और उसके आवाज के माध्यम से पृथ्वीराज चौहान को बान चलाने के लिए कहा गया। पृथ्वीराज ने जिस तरफ से बर्तन की आवाज आ रही थी। उस तरफ अपने बान साधा और सटीक निशाना लगा दिया।

यह देखकर गौरी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ और खुशी से चिल्लाने लगा। तभी चंद्रवरदाई ने अपने दोस्त के कान में एक चौपाई कही की

चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान,

चंद्रवरदाई

इतना सुनते ही पृथ्वीराज चौहान जी ने दूसरा तीर उस तरफ दे मार जिधर से मोहम्मद गोरी की आवाज आ रही थी। तीर सीधा मोहम्मद गौरी के गले को भेद दिया और मोहम्मद गौरी की वहीं मृत्यु हो गई। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान ने अपना बदला ले लिया।

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु (Prithviraj Chauhan death)

कहा जाता है की जब पृथ्वीराज चौहान ने भरी सभा में मोहम्मद गौरी का अपने शब्दभेदी बान से हत्या कर दी। तब यह तो निश्चित था की उन्हें भी मार डाला जाएगा।

फलतः पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र दोनों दुश्मन के हाथों मरने से बेहतर अपने हाथ मारना ठीक समझा। फलतः दोनों ने एक दूसरे को कटारी चुभा दी। जिसेसे पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई दोनों की 11 मार्च 1992 को मृत्यु हो गई।

पृथ्वीराज चौहान के बाद संयोगिता का क्या हुआ

कहा जाता है की महारानी संयोगिता को जब पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु की खबर मिली। वह व्याकुल हो गई। उधर मोहम्मद गौरी का सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक, संयोगिता को जबरन उठाना चाहते थे।

लेकिन ऐसा होता उसके पहले ही संयोगिता अन्य रानियों के साथ जौहर (आत्मदाह) कर अपनी जान दे दी।

पृथ्वीराज के जीवन पर बनी फिल्म

पृथ्वीराज के जीवन के जीवन पर आधारित फिल्म ‘सम्राज पृथ्वीराज’ में अक्षय कुमार और मानुषी छिल्लर ने अभिनय किया है। यह फिल्म काफी चर्चा में रही।

FAQ

प्रश्न – पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब हुआ था ?

उत्तर – पृथ्वीराज चौहान का जन्म 10 अप्रेल 1149 में हुआ था। उनका जन्म स्थान पाटन गुजरात माना जाता है। उनके पिता सोमेश्वर अजमेर के राजा था।

आपको पृथ्वीराज चौहान का इतिहास, लड़ाई, कहानी ( Prithviraj Chauhan ka itihas ) से संबंधित जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी।

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पृथ्वीराज चौहान – विकिपीडिया



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