पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई – Prithviraj Chauhan death in Hindi

धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई
धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई (How did Prithviraj Chauhan die in Hindi)

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई – भारत के इतिहास में अनगिनत शूरवीरों के शौर्य गाथा स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। इन्होंने इतिहास के पन्नों में अपनी बहादुरी और शूर-वीरता की अमिट छाप छोडी।

Contents
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई (How did Prithviraj Chauhan die in Hindi)सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे मेंधरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहानमहमूद गौरी का आक्रमणपृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच लड़ाईपृथ्वीराज चौहान की हारसम्राट पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु का कारणमुहमद गौरी से बदलापृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब हुईपृथ्वीराज चौहान की मृत्यु को लेकर मतांतरपृथ्वीराज चौहान पर टीवी सीरियलQ. पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद संयोगिता का क्या हुआ?Q. पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कहां हुई?Q. पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब और कैसे हुई?Q. पृथ्वीराज चौहान-III(तृतीय) की मृत्यु कैसे हुई?Q. पृथ्वीराज चौहान अंधे कैसे हुए थे?

इस धरती पर महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई और पृथ्वीराज चौहान सहित न जाने कितने शूरवीरों ने जन्म लिया। पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजा थे।

युद्ध के मैदान में उनकी बहादुरी का कोई सानी नहीं था। उन्होंने युद्ध में मुहमद गौरी को 17 बार हराया था। लेकिन अपने अंतिम युद्ध में उन्हें गौरी के हाथों हार का सामना कारण पड़ा।

इस लेख में आप भारत की धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई उसके बारें में बात करेंगे। क्योंकि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के लेकर कई मतांतर देखने को मिलते हैं।

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तराइन के दूसरे युद्ध में हार के बाद गौरी ने उन्हें बंदी बना लिया। कुछ इतिहासकार मानते हैं की बंदी बनने के बाद गौरी पृथ्वीराज चौहान को अजमेर ले गया। जहां बाद में उनकी हत्या करवा दी गई।

लेकिन अगर यह बात सही है तो अफगानिस्तान के गजनी मे पृथ्वीराज चौहान की समाधि की बात गलत साबित होती है। कुछ विद्वान पृथ्वीराज चौहान के राजकवि और मित्र चंदबरदाई द्वारा पृथ्वीराज रासो में लिखित बातों से सहमत हैं।

धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई
धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई

पृथ्वीराज रासो के अनुसार गौरी पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गजनी ले गया। जहां उन्होंने चंदबरदाई के मदद से पहले उन्होंने गौरी को मारा और फिर चंदबरदाई और पृथ्वीराज दोनों की मृत्यु हो गई।

लेकिन यहाँ एक बात गौर करने लायक है की अगर चंदबरदाई की मृत्यु  पृथ्वीराज के साथ ही हो गई। तो फिर चंदबरदाई की पुस्तक पृथ्वीराज रासो में पृथ्वी राज चौहान की मृत्यु का जिक्र कैसे मिलता है।

इस लेख में धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी विस्तार से जानते हैं।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में

अगर हेमू के कुछ दिन की सत्ता को छोड़ दिया जाय तो पृथ्वीराज चौहान भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट था। आज भी धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की वीरता और देशभक्ति के बारें में पढ़कर गर्व महसूस होता है।

उन्होंने अपनी मृत्यु तक अपने सिद्धांत पर कायम रहे और मुहमद गौरी की अधीनता स्वीकार नहीं की तथा आँखें निकाल दिए जाने के बावजूद भी उन्होंने गौरी से अपना बदला उसे जान से मार कर लिया।

आइये धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई इसके बारें में जानने से पहले कुछ उनके जीवन गाथा से परिचित होते हैं।

धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान

भारत की धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ईस्वी में गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा सोमेश्वर और माता जी का नाम कर्पूरादेवी था। उनके पिता सोमेश्वर अजमेर के राजा था।

जब पृथ्वीराज चौहान की उम्र महज 11 वर्ष थी तभी उनके पिता राजा सोमेश्वर का निधन हो गया। फलतः पृथ्वीराज बचपन में ही राजगद्दी पर आसीन हुए।

बाद में वे अजमेर और दिल्ली की दोनों जगह राज किया। दिल्ली में उन्होंने किला राय पिथौरा का निर्माण करवाया। जिसका खंडहर आज भी मौजूद है। 

पृथ्वीराज चौहान के पास विशाल सैना थी। कहा जाता है उनके सेना में 3 लाख सैनिक तथा 300 हाथी का दल था। इस विशाल सेना के वल पर पृथ्वीराज ने अपने सीमा का बहुत विस्तार किया कर लिया था।

फलतः धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की शौर्य गाथा दूर दूर तक फैल चुकी थी। कन्नौज के राजा जयचंद्र उनसे नफरत करते थे क्योंकि उनकी बेटी से पृथ्वीराज चौहान ने जबरन भगाकर शादी कर ली थी।

इसी कारण से राजा जयचंद्र सहित कई राजपूत राजा उनके दुश्मन हो गए थे। साथ की जयचंद्र अपने अपमान का बदला लेने के फिराक में लग गए।

पृथ्वीराज चौहान ने अनेकों सीमावर्ती राजा को युद्ध में हराते हुए अपने सत्ता का विस्तार किया। दूसरी तरफ महमूद गौरी भी अपने सीमा का गजनी से विस्तार करते हुए पंजाब तक पहुँच चुका था।

महमूद गौरी का आक्रमण

उस बक्त उत्तर भारत के राजा कमजोर थे तथा उनमें एकता की कमी थी। उस समय के अगर शक्तिशाली राजाओ की बात करें तो उसमें गुजरात का चालुक्य वंश, कन्नौज में जयचंद का सोलंकी वंश और अजमेर और दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान का शासन माना जाता था। 

मुहम्मद गोरी ने अपने भारत अभियान के क्रम में पंजाब के भटिंडा तक चले आए। उसने पृथ्वीराज चौहान के दरबार में दूत भेजकर एक संदेश भेजा।

उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के सामने शर्त रखी कि वे इस्लाम धर्म कबूल करें और घुरिद के शासन को स्वीकार कर लें। वरना परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।

पृथ्वीराज चौहान ने उनके शर्त को सिरे से खारिज करते हुए अपनी सेना को तैयार होकर पंजाब की तरफ कूच करने का आदेश दे दिया। दोनों की सेना दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर दूर तराइन के मैदान में आमने सामने हो गई।

पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच लड़ाई

इस प्रकार धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की वीरता की गाथा व्यक्त करता तराइन का पहला युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच हुआ।

वर्ष 1191 ईस्वी में लड़े गए इस युद्ध में मोहम्मद गोरी एक तुर्की जनजाति घुरिद का नेतृत्व कर रहा था। वहीं पृथ्वीराज चौहान अपने बहादुर सेना के साथ राजपूतों का नेतृत्व कर रहे थे।

पृथ्वीराज चौहान की सेना गौरी की सेना से इतनी बहादुरी से लड़ी की। मुहमद गौरी की सेना राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान की बहादुर सेना के सामने टिक नहीं सकी। फलतः गौरी को हार का सामना करना पड़ा।

उधर गौरी युद्ध में घायल हो चुके थे। उसने अपनी जान बचाने में ही भलाई समझी और मैदान छोड़ भाग गए। इस प्रकार तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गोरी की हार हुई।

परिणामस्वरूप धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान ने विजय की पताका लहराई। इसके पहले भी मोहम्मद गोरी ने भारत पर कई आक्रमण किया।

कहा जाता है की पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 17 बार युद्ध में हराया और हर बार उसे क्षमा दान दे दिया। लेकिन गौरी मानने वाले में से नहीं था उन्होंने नए सिरे से तराइन के दूसरे युद्ध के लिए अपना सेना का गठन किया।  

पृथ्वीराज चौहान की हार

अगले बार फिर से तराईन के द्वितीय युद्ध में दोनों की सेना आमने सामने हुई। इस बार उन्हें कन्नौज के राजा जयचंद्र का उन्हें साथ मिला। क्योंकि जयचंद्र भी पृथ्वीराज से नफरत करते थे और नीच दिखने के अवसर की तलाश में थे।

उन्होंने पृथ्वीराज को हारने के लिए अपने सैन्य वल से गौरी का साथ दिया। इस बार पृथ्वीराज ने कुछ राजपूत राजाओं से मदद मांगी। लेकिन कोई मदद को आगे नहीं आया।

फलतः पृथ्वीराज ने अपने ही वल पर सेना को संगठित कर मोहम्मद ग़ोरी का सामना करने लगा। दोनों की सेनाओं के बीच तराईन के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों तरफ से हजारों सैनिक मारे गए।

लेकिन इस बार गौरी को जयचंद्र का साथ मिल गया और पृथ्वीराज के कुछ गुप्त राज का पता चल गया। इसका फाइदा गौरी ने उठाया और पृथ्वीराज चौहान की सेना कमजोर पड़ गई।

परिणामस्वरूप युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हो हुई। पृथ्वीराज घोड़े पर चढ़कर भागने की कोशिश की लेकिन उन्हें पकड़ कर बंदी बना लिया गया।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु का कारण

भारत के महान योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई इसको लेकर विद्वानों में मतांतर है। कुछ इतिहासकार का मानना है की गौरी पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर अजमेर के किला में बंद कर दिया।

वहाँ उन्हें आश्रित शासक बनाया गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद जब पृथ्वीराज चौहान ने विद्रोह कर दिया तब गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की हत्या करवा दी। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हुई थी।

लेकिन कुछ देर के लिए यह मान लिया जाय तो फिर गजनी में कथित पृथ्वीराज चौहान की समाधि कहाँ से आया। धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई इसका सबसे सटीक स्रोत प्रसिद्ध ग्रंथ पृथ्वीराज रासो को माना जा सकता है।

पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु गजनी में हुई थी। कहा जाता है की तराईन के द्वितीय युद्ध मे जब राजा जयचंद्र ने गौरी को अपने धन वल से साथ दिया। पृथ्वीराज ने दूसरे राजपूत राजाओं से मदद मांगी लेकिन कोई भी राजा मदद के लिए आगे नहीं आया।

फलतः पृथ्वीराज की सेना कमजोर पड़ गई। इस प्रकार पृथ्वीराज गौरी को 17 बार हराने के बावजूद भी वे इस युद्ध में हार गए। हारने के बाद जब पृथ्वीराज घोड़े पर बैठकर भाग रहे थे तभी उन्हें पकड़ लिया गया।

पृथ्वीराज रासो के अनुसार उन्हें बंदी बनाकर गौरी अपने देश गजनी ले गए। जहां उनकी आँखें निकालकर अंधा कर दिया गया और उन्हें जेल की सलाखों में डाल दिया गया।

जब पृथ्वीराज चौहान को गजनी ले जाकर जेल में डाल दिया गया। तब इसके कुछ महीनों के बाद उनके परम मित्र और दरबारी कवि चंदबरदाई पृथ्वीराज से मिलने गजनी गए।

मुहमद गौरी से बदला

गजनी में उन्होंने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान के शब्द भेदी बान चलाने की कला से अवगत कराया। उन्होंने मोहम्मद गौरी को बताया कि पृथ्वीराज चौहान आंखें पर पट्टी बांध कर सटीक निशाना लगा सकता है।

क्योंकि शब्द भेदी बान चलाने में माहिर वह आवाज के अंदाज पर सटीक निशाना लगाने में माहिर है। महाराज पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दी गई है वे अंधे हो चुके हैं। लेकिन अब भी वे  अपने लक्ष्य पर सटीक निशाना लगा सकते है।

मोहम्मद गौरी को चंदबरदाई की वातें अच्छी लगी और उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की प्रतिभा देखने को उत्सुक हो गया। फलतः राज दरवार सजाया गया और अपने सिंहासन पर मोहम्मद गौरी विराजमान हुए।

पृथ्वीराज चौहान को बंदी गृह से लाया गया। पृथ्वीराज चौहान देख नहीं सकते थे लेकिन वे अपने मित्र चंदबरदाई को उनकी आवाज से पहचान लिया। चंदबरदाई ने सारी बातें पृथ्वीराज चौहान को कविता के रूप में अवगत करा दिया।

उन्होंने कविता की पंकित के माध्यम से बताया की मोहम्मद गौरी किधर और कितनी ऊंचाई पर बैठा हुआ है। चंदबरदाई ने कहा कि –

चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान “

पृथ्वीराज अपने दोस्त चंदबरदाई का इसारा समझ चुका था, बस मौका का इंतजार था। दरवार में कुछ धातु के बर्तन लाया गया जिसे दूर रखकर उसमें आवाज उत्पन्न किया गया।

पृथ्वीराज चौहान को उस धातु के बर्तन की आवाज पहचान कर निशाना लगाने को कहा गया। पृथ्वीराज ने उस वर्तन की आवाज द्वारा दूरी और दिशा का अंदाज करते हुए सटीक निशान लगा दिया।

यह देखकर दरवार में उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। ऊंचे सिंहासन पर विराजमान मोहम्मद गौरी भी वाह वाह करने लगा। तभी पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी के आवाज से उसकी दूरी और दिशा का अंदाज कर लिया।

उन्होंने झट से अपना तीर मुहम्मद गौरी की तरफ छोड़ दिया। तीर सीधे गौरी के गले के आर-पार हो गई तथा मोहम्मद गोरी वहीं मारा गया।

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब हुई

फिर चंदबरदाई ने सोचा की इस घटना के बाद तो मृत्यु निश्चित है। लेकिन दुश्मन के हाथों मरने से बेहतर है की खुद ही मर जाएं।

इस कारण सबसे पहले उन्होंने अपने मित्र पृथ्वीराज को कटारी घोंपी और फिर खुद को भी कटारी घोंपी कर मर गए। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हुई। कुछ विद्वान उनकी मृत्यु का वर्ष 1192 मानते हैं।

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु को लेकर मतांतर

लेकिन कुछ विद्वान पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के संबंध में चंदबरदाई द्वारा पृथ्वीराज रासो में लिखित लिखित इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है की जब चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु एक साथ हुई।

तब पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु की बातें कैसे लिखी गई। कुछ विद्वान का कहना की है की चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु की बातें चंदबरदाई के पुत्र जल्हण के द्वारा बाद मे जोड़ी गई।

यह बातें कुछ तर्क संगत लगती है। जो भी हो इतना तो साफ पता चलता है की पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु महमूद गौरी द्वारा बंदी बनाने के बाद हुई थी।

पृथ्वीराज चौहान पर टीवी सीरियल

इस महान योद्धा के नाम पर एक टीवी सीरियल भी खूब प्रसिद्ध रहा जिसका नाम ‘धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान‘ था।

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास व सम्पूर्ण जीवन परिचय

राजा जयचंद्र कौन थे, क्या वे सचमुच गद्दारी कर पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनबाया

मोहम्मद गौरी कौन था, पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारा था?

F.A.Q

Q. पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद संयोगिता का क्या हुआ?

Ans. पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता की मृत्यु के बारें में कहा जाता है की संयोगिता ने जौहर कर अपने प्राण दे दिए थे।

Q. पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कहां हुई?

Ans, कहा जाता है पृथ्वी राज की मृत्यु गौरी के कैद में गजनी में हुई थी। वहीं कुछ इतिहासकार मानते का मानना है की उन्हें गौरी ने कैद करने के बाद अजमेर में हत्या करवा दी।

Q. पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब और कैसे हुई?

Ans. जब पृथ्वीराज चौहान को गौरी ने तराईन की दूसरी लड़ाई में हराने के बाद गजनी ले गया। उन्होंने अपने मित्र चंद्रवरदाई की मदद से पहले गौरी को मारा, फिर अपने आप को मार कर वीरगति को प्राप्त हो गए।

Q. पृथ्वीराज चौहान-III(तृतीय) की मृत्यु कैसे हुई?

Ans. कुछ इतिहासकार मानते हैं की मुहमद गोरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हराकर बन्दी बना कर अजमेर ले जाया गया जहां 1192 ईस्वी में उनकी हत्या कर दी गई।

Q. पृथ्वीराज चौहान अंधे कैसे हुए थे?

तराईन के युद्ध में हारने के बाद उन्हें बंदी बना लिया गया। बंदी में ही गौरी ने उनकी दोनों आँखें निकलवा दी। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान अंधे हुए थ।

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