सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय – Subhadra Kumari Chauhan in Hindi

सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचयसुभद्रा कुमारी चौहान हिन्दी साहित्य की महान कवयित्री और देशभक्त थीं। जब सुभद्रा कुमारी का प्रादुर्भाव हुआ। उस बक्त भारत में राजनैतिक उथल-पुथल का काल था। देश की जनता अंग्रेजों के दमनकारी नीति से त्रस्त हो चुकी थी।

किसी तरह वे अंग्रेजों के दासता की  दामन से बाहर निकलना चाहते थे। आजादी के दौरन उनके द्वारा रचित काव्य ने राष्ट्रीय चेतना जागृत करने का काम किया। Subhadra Kumari Chauhan रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित हैं।

रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर लिखी उनकी प्रसिद् काव्य ‘झाँसी की रानी” है। इस काव्य ने उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया। यह काव्य आजादी के लड़ाई के बक्त स्वतंत्रता सेनानी में जोश भरने का काम किया।

बचपन से ही उन्हें काव्य की रचना में रुचि थी। उन्होंने कई रचनायें की। सुभद्रा कुमारी चौहान एक कवयित्री और लेखिका के साथ-साथ एक महान women freedom fighter of India थी।

आजादी की लड़ाई में भाग लेने के कारण कई बार उन्हें गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया। मात्र 43 वर्ष की अल्पायु में उनका निधन हो गया। Subhadra Kumari Chauhan In Hindi के शीर्षक वाले इस लेख में हम उनकी जीवनी को विस्तार से जानेंगे।

सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय – Subhadra Kumari Chauhan in Hindi

संक्षिप्त परिचय

  • जन्म – 16 अगस्त 1904 ईस्वी
  • जन्म स्थान – निहालपुर, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश
  • निधन – 15 फरवरी 1948 ईस्वी
  • कहानी संग्रह – बिखरे मोती (1932), उन्मादिनी (1934), सीधे-सादे चित्र (1947)।
  • काव्य संग्रह – त्रिधारा और मुकुल
  • कविता – झांसी की रानी

जन्म व प्रारम्भिक जीवन

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 ईस्वी को नागपंचमी के दिन प्रयागराज के निहालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह एक जमींदार परिवार से थे। सुभद्रा कुमारी चौहान अपने चार बहने में सवसे बड़ी थी तथा उन्हें दो भाई थे।

उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। उसके बाद उनकी शिक्षा प्रयागराज के ‘क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज’ में हुई। देश के लिए कुछ करने की इच्छा से उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी।

सन 1919 में उनके विवाह खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ हुआ। विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। वे गाँधी जी से बहुत ही प्रभावित थी। उन्होंने विवाह के बाद भी अपने पति के साथ आजादी के आंदोलन में हमेशा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

देशप्रेम की जज्बा ने उन्हें सफलता की उच्चतम शिखर पर पहुंचा दिया। उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन का निर्वाह करते हुए देश की आजादी के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी

सन 1921 ईस्वी में गाँधी जी द्वारा चलाए गये असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जेल की सजा काटनी पड़ी। जब उनका चुनाव अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रूप में हुआ।

तब वे घर-घर जाकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संदेश को जन-जन तक पहुचाने का काम किया। कहते हैं की सुभद्रा जी सादगी और त्याग की प्रतिमूर्ति थी। सन 1922 ईस्वी में उन्होंने जबलपुर के ‘झंडा सत्याग्रह’  में आगे बढ़ कर भाग लिया।

वे जब सभाओं में बोलती तो लोग बड़े ही ध्यान से सुनती थी। लोग उन्हें जबलपुर की ‘सरोजिनी’ के नाम से भी संबोधित करते थे। सन 1919 में जालियाँवाला बाग हत्या काण्ड से दुखी होकर उन्होंने बहुत ही मार्मिक कविताएँ लिखीं।

काव्य का शीर्षक – “जलियाँवाला बाग में वसंत”

परिमलहीन पराग दाग सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।

आओ प्रिय ऋतुराज, किंतु धीरे से आना, यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर, कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।

जटिल भावों को भी सरल और सुबोध भाषा में चित्रित कर लोगों के दिलों में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत कर देना उनकी कविता की विशेषता थी। भारतीय इतिहास में इनका शौर्यगीत झांसी की रानी सदा के लिए स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया।

जब भी झांसी की रानी का जिक्र होता है सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम सहसा ही याद आ जाता है। मानो सुभद्रा जी का नाम झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के साथ जुड़ सा गया हो। उनके द्वारा रचित झांसी की रानी कविता का कुछ अंश –

सिंहावन हिल उठे, राजवंशों ने भ्रकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई, फिर से नई जवानी थी।

गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, यह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥

बुंदेलखंड की लोक-शैली में झांसी की रानी काव्य की रचना उनके परिपक्क दृष्टिकोण का परिचय देता है। आजादी की लड़ाई के दौरन कहते हैं की उनकी कविता जन-जन के मन में बस चुकी थी। बच्चे से बड़े तक उनकी कविता के प्रसंशक थे।

निधन – Subhadra Kumari Chauhan

इस महान देशभक्त और देश को समर्पित महान कवयित्री का सन 1948 ईस्वी में सड़क दुर्घटना में निधन हो गया।

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सुभद्रा कुमारी चौहान में बचपन से ही काव्य प्रतिभा विध्यमान थी। साथ ही उनके अंदर देश प्रेम की भावना कूट-कूट भरी हुई थी।

कहते हैं की उनकी पहली काव्य रचना प्रयागराज से निकलने वाली हंस पत्रिका में सं 1913 ईस्वी में ही प्रकाशित हुई थी। नीम के पेड़ के ऊपर इस काव्य की रचना उन्होंने 9 साल की उम्र में की।

काव्य संग्रह– सन 1930 ईस्वी में उनका पहला  काव्य संग्रह ‘मुकुल’ का प्रकाशन हुआ। बाद में ‘त्रिधारा’ नामक उनकी काव्य संग्रह प्रकाशित हुई।  ‘झाँसी की रानी’ इनकी बहुचर्चित और प्रसिद्ध काव्य रचना है।

कविता : जलियाँवाला बाग में बसंत, झांसी की रानी, नीम, आराधना, इसका रोना, उपेक्षा, उल्लास, कोयल, खिलौनेवाला, चलते समय, चिंता, जीवन-फूल, कलह-कारण, झाँसी की रानी की समाधि पर, झिलमिल तारे, ठुकरा दो या प्यार करो आदि।

इसके साथ उनकी अन्य काव्य रचना थी : – तुम, परिचय, पानी और धूप, पूछो, प्रथम दर्शन,प्रभु तुम मेरे मन की जानो, प्रियतम से, फूल के प्रति, बिदाई, भ्रम, मधुमय प्याली, मेरा गीत, प्रतीक्षा, मेरा जीवन, मेरा नया बचपन, मेरी टेक, मेरे पथिक, आदि।

ईसके अलावा उन्होंने यह कदम्ब का पेड़-2, यह कदम्ब का पेड़, विजयी मयूर,विदा,वीरों का हो कैसा वसन्त, वेदना, व्याकुल चाह, अनोखा दान, मुरझाया फूल, समर्पण, साध आदि काव्य की रचना की।

कहानी संग्रह – बिखरे मोती सन 1932 में, उन्मादिनी सन 1934 में और सीधे-सादे चित्र सन 1947 में प्रकाशित हुआ। इन कहानी संग्रहों में उनके द्वारा रचित कुल 38 कहानियाँ का संग्रह है।

सुभद्रा कुमारी चौहान के कविता के कुछ अंश

सुभद्रा जी धर्मनिरपेक्ष समाज की पक्षधर थी। जिसका जिक्र उनके द्वारा रचित काव्य में भी देखने को मिलता है।

मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद, काबा-काशी यह मेरी, पूजा-पाठ, ध्यान जप-तप है, घट-घट वासी यह मेरी ।

कृष्णचंद्र की क्रीड़ाओं को, अपने आँगन में देखो, कौशल्या के मातृगोद को, अपने ही मन में लेखो।

प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास, जीव दया,जिन पर गौतम की, आओ देखो इसके पास।

सुभद्रा जी के वाल कविता के कुछ अंश

सुभद्रा जी ने बच्चों में भी अपनी काव्य रचना के माध्यम से देशप्रेम की अलख जगाने का काम किया। इसके लिए उन्होंने देश भक्ति से लवालाव बहुत सुंदर बाल काव्य की रचना की। उनके द्वारा रचित कविता ‘सभा का खेल’ का कुछ अंश इस प्रकार है।

सभा-सभा का खेल आज हम, खेलेंगे जीजी आओ। मैं गांधी जी, छोटे नेहरू, तुम सरोजिनी बन जाओ।।

मेरा तो सब काम लँगोटी गमछे से चल जाएगा। छोटे भी खद्दर का कुर्ता पेटी से ले आएगा॥

मोहन, लल्ली पुलिस बनेंगे, हम भाषण करने वाले। वे लाठियाँ चलाने वाले, हम घायल मरने वाले ॥

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