सरदार वल्लभभाई पटेल बहुमुखी प्रतिभा और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वे महान देश भक्त, स्वतंत्रता सेनानी और आधुनिक भारत के निर्माता कहे जाते हैं। आजादी की लड़ाई में इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
First deputy prime minister of India सरदार पटेल एक प्रसिद्ध वकील थे, लेकिन भारत की आजादी के लिए उन्होंने अपना पेशा छोड़कर गांधी जी के साथ चल पड़े।
महात्मा गांधी जी द्वारा विदेशी सामानों के बहिष्कार में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने अपने कीमती विदेशी सामानों की होली जलाई। आजादी के बाद वे देश के पहले गृह मंत्री और उपप्रधानमन्त्री बनाए गये।
Sardar Vallabhbhai Patel In Hindi के इस लेख में हम जानेंगे की कैसे उन्होंने बड़ी ही कुशलता और समझदारी से 562 देशी रियासतों का भारत में विलय किया। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
आज का अखंड भारत उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है। उनके बहादुरी भरे कार्यों के लिए उन्हें ‘भारत का लौह पुरुष’ कहा जाता है। उन्होंने बारदौली सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाई।
इस कारण ही बल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार‘ की उपाधि मिली। दोस्तों आइए Sardar Vallabhbhai Patel In Hindi Essay शीर्षक के इस लेख में लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी को विस्तारपूर्वक जानते हैं : –
सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी – Biography of Sardar Vallabhbhai Patel In Hindi
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 ईस्वी को गुजरात के कैरा जिले में नादियाड नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम झाबरभाई पटेल थे। जो पहले रानी लक्ष्मीबाई के सेना में सैनिक थे तथा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में भाग लिया था।
उनके पिता का अपने गाँव में बहुत ही सम्मान था। उनकी माता लाडबाई अत्यंत ही धार्मिक प्रकृति की महिला थी। इस प्रकार पटेल जी को बचपन से ही देशभक्ति और अदम्य साहस विरासत में मिली थी।
अपने पिता की तरह ही सरदार पटेल किसी भी मुश्किल का हल आसानी से ढूंढ लेते थे। उनकी आरंभिक शिक्षा नजदीक के विध्यालय में हुई थी। उसके बाद उन्होंने लॉ की पढ़ाई की, कानून की परीक्षा पास करने के बाद वे गोधरा में ही वकालत करने लगे।
उनकी वकालत चल पड़ी, जब उनके पास पैसे हो गये तो उन्हें कानून की उच्च शिक्षा का विचार आया। वे पैसा इकट्ठा कर ‘बार एट ला’ की डिग्री पाने के लिए 1910 ईस्वी में इंगलेंड चले गये।
वहाँ उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा प्राप्त की और 1913 ईस्वी में बैरिस्टर बनकर भारत वापस आए। वापस आने के बाद वे अहमदाबाद में वकालत करने लगे। उनकी वकालत अच्छी खासी चल पड़ी तथा वे शान शौकत का जीवन व्यतीत करने लगे।
इसी क्रम में गुजरात सभा के दौरन उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। गांधी जी इस सभा के अध्यक्ष और पटेल जी महामंत्री चुने गये थे। सरदार पटेल गांधी जी से बहुत ही प्रभावित थे। गांधीजी भी पटेल जी को बहुत सम्मान देते थे।
जलियाँवाला हत्याकांड से वे बहुत ही आहत थे। गांधी जी के हर आंदोलन में पटेल जी का हमेशा साथ होता था। गांधी जी के असहयोग आंदोलन में सरदार पटेल ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा बरदोली सत्याग्रह
सन 1927 ईस्वी में किसानों ने लगान माफ करने के लिए सरदार बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में आंदोलन किया गया। किसान फसल खराव हो जाने के कारण लगान देने की स्थिति में नहीं थे।
ऊपर से ब्रिटिश सरकार अपने लगान की दर में संशोधन कर 22% की वृद्धि कर दिया था। लगान नहीं देने के कारण ब्रिटिश सरकार दमनकारी नीति अपनाया। लोगों के संपत्ति और मवेशी की कुर्की जप्ती शुरू हो गयी।
सरकार के इस फैसले के खिलाफ पटेल जी ने किसानों को संगठित किया। इस तरह उन्होंने लगान के बढ़े हुए कर को वापस लेने के लिए सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह शुरू कर दिया। यह सत्याग्रह बारदोली सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
सरदार की उपाधि
12 फरवरी 1928 ईस्वी को सरकार ने लगान जमा करने की अंतिम तारीख निश्चित कर दिया। किसानों ने पटेल जी के नेतृत्व में बंबई में स्थित ब्रिटिश सरकार के पास खत लिखा। लेकिन उसका कोई जवाव नहीं मिला।
उन्होंने किसानों के पास जा-जा कर सत्याग्रह के लिए तैयार किया। सत्याग्रह असफल न हो इसके लिए उन्होंने किसानों को सबसे पहले अपने विश्वास में लिया। उन्होंने गाँव गाँव जाकर किसानों को जागरूक किया।
बारदोली में बल्लभभाई पटेल जी के सनिध्य में किसान की एक विशाल सभा हुई। सत्याग्रह शुरू होते ही सरकार का दमनकारी नीति चालू हो गयी। बल्लभभाई पटेल ने पूरे क्षेत्र को कई भागों में बाँट दिया था। किसानों को अंग्रेजों के दमन चक्र का शिकार बनाया गया।
लेकिन उन्हें अपने नेता अर्थात सरदार(टीम लीडर) पर पूरा भरोसा था। अंततः सरकार को झुकना पड़ा और ब्रिटिश सरकार को किसानों की मांग माननी पड़ी। उन्होंने लगान की बढ़ी हुई दर वापस लेने की घोषणा कर दी, यह पटेल जी की पहली जीत थी।
इस आंदोलन के कारण लोगों ने अपने नेता बल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। तभी से उनके नाम से साथ ‘सरदार’ लिखा जाने लगा। इसी सत्याग्रह के बाद उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में फैल गयी।
विदेशी सामानों का बहिष्कार
गाँधी जी ने जब विदेशी सामानों के बहिष्कार के लिए आंदोलन चलाया तब सरदार पटेल ने उसमें बढ़ चढ़ कर भाग लिया। उन्होंने सबसे पहले अपने बैरिस्टर के समय के विदेशी सुट, टाइयों, कालर और जूते को आग के हवाले कर दिया।
इसके बाद उन्होंने विदेशी समान बेचने वाले दुकानदारों के दुकान पर धरना दिया। लेकिन उन्हें लगा की इससे बात नहीं बनेगी। जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे और खुद ही विदेशी बस्तुओं का खरीद बंद नहीं करेंगे ।
तब तक असली मुकाम हासिल नहीं होगा। इस कारण वे गांधी जी से मिलकर स्वदेशी अपनाने पर जोर देते हुए खादी का प्रचार किया।
जेल की सजा
1930 में जब गाँधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए सत्याग्रह किया था। तब सरदार पटेल ने सक्रिय रूप से इस आंदोलन में भाग लिया। मार्च 1930 ईस्वी में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। सन 1931 ईस्वी में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।
सन 1940 ईस्वी में गाँधी जी द्वारा शुरू किए गये सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें फिर से 17 नवंबर 1940 को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन जल्द ही उन्हें जेल से रिहा कर दिया। 1942 ईस्वी में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया।
इस आंदोलन में में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण उन्हें तीन साल तक जेल की सजा काटनी पड़ी। अंततः भारत की वीर सपूतों का त्याग और बलिदान रंग लाया और अंग्रेज ने भारत छोड़ने का मन बना लिया।
आजादी की घोषणा
वह दिन भी आ गया जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ने की घोषणा कर दी। उधर मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग पार्टी अलग देश ‘पाकिस्तान’ की माँग कर रहे थे।
तत्कालीन वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने सभी पार्टियों से बिचार-विमर्श के बाद कहा की अंग्रेज भारत के बिभाजन कर भारत और पाकिस्तान बनने के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत छोड़कर चले जायेंगे।
अंग्रेजों ने जाते-जाते यह भी घोषणा कर दी की भारत और पाकिस्तान की तरह ही छोटी बड़ी सभी रियासतें भी आजाद हो जायेंगी। अर्थात अंग्रेज जाते-जाते भारत के बँटबारा के अतिरिक्त एक और समस्या खड़ा कर के चले गये।
देश के प्रथम गृहमंत्री
15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली, लेकिन दुकड़ों में बाँट कर। अंग्रेजों के जाने के बाद सभी देशी रियासत अपने को स्वतंत्र मानने लगे।
गृह मंत्री का पद संभालते ही उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती 562 देशी रियासतों की थी, जिसे अंग्रेजों ने जाते-जाते पुर्ण आजाद घोषित कर गये थे।
इधर देश के बँटबारे के बाद लोग सोच रहे थे की हिन्दू और मुसलमान दोनो भाई चारे की तरह रहेंगे। देश में शांति, राष्ट्रीय एकता कायम होगा। लेकिन पश्चिम पाकिस्तान से हिंदुओं का के खिलाफ और भारत के कुछ हिस्सों में मुसलमानों के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे।
पश्चिम पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन और जुल्म हो रहा था। सरदार पटेल ने गृह मंत्री बनते ही पाकिस्तान को सक्त चेतावनी दी गई की वे इसे अबिलंब रोके नहीं तो परिणाम अत्यंत ही गंभीर होंगे।
तब जाकर भारत और पाकिस्तान के मंत्रियों के बीच एक सहमति बनी और दंगा रुका।
सरदार पटेल की सबसे बड़ी उपलब्धि
सरदार पटेल ने बड़ी ही कुशलता और सूझ-बुझ से सभी देशी रियासतों का भारत में विलय किया। हैदराबाद के निजाम को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश राजा और नबाब ने खुशी-खुशी भारत में विलय को स्वीकृति दे दी।
हैदराबाद बाद के निजाम के विरुद्ध उन्होंने कड़ी करबाई का फैसला लेते हुये पुलिस कार्यवाई का आदेश दिया। जिस कारण हैदराबाद के निजाम को भारत में विलय स्वीकार करना पड़ा।
इस प्रकार 562 देशी रियासतों को विलय कर उन्होंने एक अखंड भारतीय संध की स्थापना की। भारत के इतिहास में उसकी ये सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
देश बिदेश के समाचार पत्रों में उनकी इस उपलब्धि के लिए प्रशंसा की गयी। लंदन टाइम्स ने अपने लेख में लिखा की उनके इस कार्य से भारत के इतिहास में उनका नाम अमर हो जाएगा। उन्होंने सरदार पटेल को भारत का बिस्मार्क कहा।
खुद जवाहरलाल नेहरू जी ने सरदार बल्लभभाई पटेल की सराहना की और कहा की उन्हें खुद भी यकीन नहीं था की इतनी बड़ी समस्या का समाधान इतना अल्पकाल में संभव हो पायेगा।
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सरदार वल्लभभाई पटेल पुण्यतिथि
30 जनवरी 1948 के शाम के बक्त जब गाँधी जी प्रार्थना सभा से बाहर निकलते समय नाथु राम गोडसे ने बापू की गोली मार कर हत्या कर दी। बापू की हत्या का दुख पूरे देश को हुआ लेकिन सरदार पटेल सबसे ज्यादा आहत हुये।
क्योंकि उस बक्त वे देश के गृह मंत्री थे। उनपर आरोप भी लगा की बापू की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं किया गया था। बापू जी की हत्या से अंदर ही अंदर वे बहुत ही दुखी थे। उनका स्वस्थ निरंतर गिरता गया और कई बार छोटे-छोटे दिल के दौरे भी आए।
12 दिसंबर 1950 को विमान से उन्हें दिल्ली से बंबई लाया गया। लेकिन वहाँ भी उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ और 15 दिसंवर 1950 को वे सदा-सदा के लिए इस दुनियाँ को छोड़कर चले गये।
सारा देश शोक की लहर में डूब गया। भारत ने एक महान देशभक्त, कर्मठ राजनेता और कुशल प्रशासक को खो दिया। उनके सम्मान में विशाल vallabhai patel statue अर्थात स्टैचू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया गया है।
आपको सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी (Sardar Vallabhbhai Patel In Hindi) से संबंधित संकलित जानकारी अच्छी लगी होगी,