सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय एवं रचनाएँ उन्हें से पता चलता है की उन्हें प्रकृति से गहरा लगाव था। इसीलिए उन्हें ‘प्रकृति का सुकुमार कवि’ कहा जाता है। सुमित्रानंदन पंत का जन्म प्राकृतिक सुषमा के मध्य अल्मोड़ा में हुआ था।
सुमित्रानंदन पंत का जन्म स्थान अल्मोड़ा पर्वतों के बीच स्थित बड़ा ही सुंदर स्थल है। इस कारण बचपन से ही वे पर्वतों के अनुपम सौन्दर्य से प्रभावित थे। सुंदर सौम्य चेहरा, घूघराले बाल उनके व्यक्तित्व को बेहद ही आकर्षक बनाते थे।
सुमित्रानंदन पंत का साहित्य में स्थान सर्वोपरी है। सुमित्रानंदन पंत जी अरविन्द, कार्ल मार्क्स, रवींद्र नाथ टैगोर, और महात्मा गांधी जी से बेहद प्रभावित थे। सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के कवि थे। उन्हें हिन्दी साहित्य का विलियम वर्ड्सवर्थ कहा जाता है।
कहते हैं की सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को ‘अमिताभ’ नाम उन्होंने ही दिया था। वे 1950 से 1957 ईस्वी तक आकाशवाणी से सम्बद्ध रहे। वे अरविन्द के वेदान्त दर्शन से भी प्रभावित थे। इस कारण उन्होंने उम्र भर अविवाहित जीवन व्यतीत किया।
ज्ञानपीठ, पद्मभूषण और साहित्य अकादमी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित पंत जी की रचनाओं में समाज के यथार्थ के साथ-साथ प्रकृति की सुषमा का अद्भुत वर्णन मिलता है। तो चलिए Sumitranandan pant ka jeevan parichay को विस्तार से जानते हैं
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय एवं रचनाएँ (Sumitranandan Pant Biography In Hindi )
सुमित्रानंदन पंत जन्म 20 मई 1900 ईस्वी को उतराखंड के अल्मोड़ा जिले के रमणीय स्थल कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगादत्त पंत था। पंत जी के पिता स्थानीय चाय बागान में ही मैनेजर के रूप में कार्य करते थे।
सुमित्रानंदन पंत की माता का नाम सरस्वती देवी (Saraswati Devi) थी। बाल्यावस्था में ही उनके माता का निधन हो गया था। कहा जाता है की जन्म के महज छह घंटे के अंदर ही उनकी माता जी मृत्यु हो गई।
फलतः पंतजी का लालन पालन उनकी दादी के द्वारा हुआ। सुमित्रानंदन पंत की पत्नी का नाम ज्ञात नहीं है। क्योंकि उन्होंने शादी नहीं की थी।
सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गोसाई दत्त था। बाद के दिनों में उनका नाम सुमित्रानंदन पंत हो गया। जो कलांतर में हिन्दी साहित्य में पंत जी के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
शिक्षा दीक्षा
उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव के ही विध्यालय से हुई थी। बाद में उनका नामांकन वाराणसी के क्वींस कॉलेज में हुआ। जहॉं से उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की। हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वे प्रयागराज (इलाहाबाद ) आगे की पढ़ाई के लिए चले गये।
प्रयागराज में ही उनका झुकाव कविता के तरफ हुआ। इसी बीच कर्ज की बोझ तले उनके पिता का निधन हो गया, उन्हें कर्ज चुकाने के लिए अपने जमीन और घर तक बेचना पड़ा।
इस दौरान वे मार्क्स के विचारधारा के प्रभाव से प्रभावित हो गये थे। असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने विदेशी स्कूलों का बहिष्कार कर दिया। जिससे उन्हें अपनी पढ़ाई इन्टर में ही बंद करनी पड़ी।
उसके बाद उन्होंने अपने घर पर में ही अंग्रेजी, हिन्दी,बंगाल, संस्कृत का गहन अध्ययन कर निपुणता प्राप्त कर ली। उनकी पहली कविता रचना 1916 में प्रकाशित हुई, तव से वे जीवन पर्यंत काव्य साधना में ही लगे रहे।
सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय
उनकी रचनाओं में प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य का वर्णन देखने को मिलता है। बचपन से ही उन्हें प्राकृतिक सौन्दर्य के ऊपर काव्य की रचना में रुचि थी। प्रकृति से ज्यादा लगाव के कारण ही उन्हें ‘प्रकृति का सुकुमार कवि’ कहा जाता है।
सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएँ
उच्छवास (1920) ग्रन्थि (1920) वीणा (1927) पल्लव (1928) गुंजन (1932), युगांत, युगवानी, ग्रामया, स्वर्णकीरण, स्वर्णधुली तथा उत्तरा आदि। जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने ‘लोकायतन‘ नामक महाकाव्य की रचना की।
‘पल्लव’ पंतजी की सबसे महत्वपूर्ण काव्य रचना है। पल्लव उनकी सर्वश्रेष्ठ दर्शनिकतापूर्ण काव्य संग्रह है जिसमें एक तारा, परिवर्तन, नौका विहार प्रमुख है।
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय भाव पक्ष कला पक्ष
प्रकृति के सुकुमार कवि उपनाम से प्रसिद्ध सुमित्रानंदन पंत जी छायावादी युग के महान कवियों में से एक हैं। बचपन से ही उन्होंने कविता रचना शुरू कर दिया था। कहा जाता है की 7 वर्ष की आयु से ही इन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था।
उनकी कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों की प्रधानता देखने को मिलती है। इनकी प्रथम रचना वर्ष 1916 में लिखी गई ‘गिरजे का घंटा’ मानी जाती है।
पन्तजी जी के भाव-पक्ष का एक प्रमुख तत्त्व उनका मनोहारी प्रकृति चित्रण माना जाता है। सौन्दर्यमयी प्राकृतिक छटा के बीच पन्तजी ने अपनी बाल-कल्पनाओं को बड़ा ही सुंदर रूप से वर्णन किया है।
प्रकृति के प्रति उनका सहज आकर्षण उनकी रचनाओं में बखूबी देखने को मिलता है। प्रकृति के विविध आयामों और भंगिमाओं को हम पन्त के काव्य में रूपांकित देखते हैं।
सम्मान व पुरस्कार
सन 1958 ईस्वी में उन्हें अपनी रचना चितम्बरा के लिए साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया। सुमित्रानंदन पंत को भारत सरकार ने 1961 ईस्वी में पदभूषण की उपाधि भी प्रदान की।
उनकी कृति ‘कला और बूढ़ा चाँद‘ के लिए उन्हें सन 1960 ईस्वी में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। प्रमुख रचना लोकायतन के लिए भी उन्हें प्रसिद्ध पुरस्कार ‘सोवियत नेहरू शांति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु कब हुई
उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष प्रयागराज में बिताए। सुमित्रानंदन पंत का देहांत 28 दिसंबर 1977 ईस्वी को प्रयागराज में हुआ।
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उनकी समृति में स्मारक की स्थापना
उतराखंड के अल्मोड़ा जिले के जिस गाँव में उनका जन्म हुआ था उस घर को एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। उस संग्रहालय में उनके कुछ काव्य की पांडुलिपि, ज्ञानपीठ पुरस्कार में प्रदान किए गये प्रशंसित पत्र रखे हुए हैं।
इसक अलावा इस संग्रहालय में हरिवंश राय बच्चन और कालाकांकर के कुँवर सुरेश सिंह के साथ पत्र व्यवहार की प्रतिलिपि भी सुरक्षित रखी हुई है। इस संग्रहालय का नाम ‘सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ रखा गया है।
सुमित्रानंदन पंत की कविताएँ के कुछ अंश – Sumitranandan Pant Poems in Hindi
काव्य का शीर्षक – झर पड़ता जीवन डाली से
झर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात! केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से मधु का प्रभात!
मधु का प्रभात!–लद लद जातीं वैभव से जग की डाल-डाल, कलि-कलि किसलय में जल उठती सुन्दरता की स्वर्णीय-ज्वाल!
नव मधु-प्रभात!–गूँजते मधुर उर-उर में नव आशाभिलास, सुख-सौरभ, जीवन-कलरव से भर जाता सूना महाकाश!
आः मधु-प्रभात!–जग के तम में भरती चेतना अमर प्रकाश, मुरझाए मानस-मुकुलों में पाती नव मानवता विकास!
मधु-प्रात! मुक्त नभ में सस्मित नाचती धरित्री मुक्त-पाश! रवि-शशि केवल साक्षी होते अविराम प्रेम करता प्रकाश!
मैं झरता जीवन डाली से साह्लाद, शिशिर का शीर्ण पात! फिर से जगती के कानन में आ जाता नवमधु का प्रभात!
सुमित्रानंदन पंत की कविता पतझड़
काव्य का शीर्षक – सुख-दुख
सुख-दुख के मधुर मिलन से यह जीवन हो परिपूरन; फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि से ओझल हो घन !
मैं नहीं चाहता चिर-सुख, मैं नहीं चाहता चिर-दुख, सुख दुख की खेल मिचौनी खोले जीवन अपना मुख !
जग पीड़ित है अति-दुख से जग पीड़ित रे अति-सुख से, मानव-जग में बँट जाएँ दुख सुख से औ’ सुख दुख से !
अविरत दुख है उत्पीड़न, अविरत सुख भी उत्पीड़न; दुख-सुख की निशा-दिवा में, सोता-जगता जग-जीवन !
यह साँझ-उषा का आँगन, आलिंगन विरह-मिलन का; चिर हास-अश्रुमय आनन रे इस मानव-जीवन का !
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ (poems of Sumitranandan pant in hindi )
काव्य का शीर्षक– मोह
छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? भूल अभी से इस जग को!
तज कर तरल-तरंगों को,इन्द्र-धनुष के रंगों को, तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन? भूल अभी से इस जग को!
कोयल का वह कोमल-बोल, मधुकर की वीणा अनमोल, कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन? भूल अभी से इस जग को!
ऊषा-सस्मित किसलय-दल, सुधा रश्मि से उतरा जल, ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन? भूल अभी से इस जग को!
काव्य का शीर्षक– अमर स्पर्श
खिल उठा हृदय, पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय! खुल गए साधना के बंधन, संगीत बना, उर का रोदन,
अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण, सीमाएँ अमिट हुईं सब लय। क्यों रहे न जीवन में सुख दुख क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय! तन में आएँ शैशव यौवन मन में हों विरह मिलन के व्रण,
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन उर रहे प्रीति में चिर तन्मय! जो नित्य अनित्य जगत का क्रम वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम, जग से परिचय, तुमसे परिणय! तुम सुंदर से बन अति सुंदर आओ अंतर में अंतरतर, तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर वरदान, पराजय हो निश्चय!
सुमित्रानंदन पंत
हमें आशा है की सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय एवं रचनाएँ हिंदी में आपको जरूर अच्छी लगी होगी, अपने विचार से अवगत करायें।
सुमित्रानंदन पंत का अंतिम काव्य है?
सुमित्रानंदन पंत का अंतिम काव्य लोकायतन‘ को माना जाता है।
सुमित्रानंदन पंत किस युग के कवि थे ?
सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के कवि थे।
सुमित्रानंदन पंत को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला था?
पंत जी को सन 1958 ईस्वी में उनकी रचना ‘चितम्बरा‘ के लिए साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ प्राप्त हुआ।
पंत की पहली कविता कौन सी है?
सुमित्रानंदन पंत की पहली कविता वीणा मानी जाती है। जिसकी रचना उन्होंने 1918 में किया था।