संत रविदास ,जिन्हें लोग संत रैदास (Sant raidas) के नाम से भी जानते हैं। वे 15वी सदी के महान समाज सुधारक, कवि और निर्गुण संत थे। जिन्होंने जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर भक्ति भावना से समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया।
आज हम संत रविदास की जीवनी के अंतर्गत उनके सम्पूर्ण जीवन चरित्र के बारे में विस्तार पूर्वक जानेंगे। हम जानेंगे की संत रैदास का जन्म एवं मृत्यु कब और कहाँ हुई थी? उन्होंने कैसे समाज सुधारक के रूप में अग्रणी भूमिका निभायी थी।
सदियों से भारत की भूमि पर जब-जब कुरीतियों, ऊचनीच भेदभाव, जाती-पाती का भेदभाव ने अपना सर उठाया। तब-तब इस धरा पर महापुरुषों ने जन्म लिया और समाज में फैली इन बुराईयों को दूर करने का प्रयास किया।
इन्ही नामों में संत रविदास जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। संत रविदास जी की जीवनी से पता चलता है की उनका मध्ययुगीन भक्ति रस के कवि और साधकों में श्रेष्ट स्थान है। रैदास जी की ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था।
कहते हैं की भगवान की भक्ति में जाति-पाति का कोई स्थान नहीं होता। उनकी नजरों में ब्राह्मण तथा नीच सब एक समान है। भगवान सब को समभाव से देखते हैं। वे दिखावा या चढ़ावा नहीं बल्कि सिर्फ वे भक्त के भक्ति की पराकाष्ठा को देखते हैं।
नीच जाति व कुल में पैदा होकर भी संत रविदास जी इतने पहुंचे हुए संत हुए कि मीरा बाई, कबीरदास जैसे संत को भी उनसे मार्गदर्शन मिला। रविदास जी को भारत के अलग-अलग प्रदेशों में विभिन्न नामों से जाना जाता है।
जैसे की मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में उन्हें रैदास कहा जाता है जबकि पंजाव में उन्हें रविदास कहते हैं। इसके अलावा भी उन्हें और भी कई नामों से जाना जाता है। तो आईये जानते है महान संत रविदास की जीवनी विस्तार से :-
संत शिरोमणि रविदास जी जीवन परिचय – sant ravidas biography in hindi
संत रविदास जी का जन्म | 1377 ईस्वी वाराणसी |
रविदास जी के माता का नाम | कर्मा देवी (कलसा) |
रविदास जी के पिता का नाम | संतोख दास (रग्घु) था। |
संत रविदास जी के गुरु का नाम | स्वामी रामनंदाचार्य |
संत रविदास जी के पत्नी का नाम | लोना देवी |
रैदास जी के पुत्र का नाम | विजय दास |
संत रविदास की जीवनी हिंदी में – Sant Ravidas Biography in Hindi
संत रविदास जी का प्रारम्भिक जीवन – sant ravidas ji ka jivan parichay
संत रविदास का जन्म 15 वीं शतावदी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी (कासी) के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। कहते हैं की उनके माता जी का नाम कर्मा देवी (कलसा) और पिता जी का नाम संतोख दास था।
रविदास जी के जन्म वर्ष को लेकर इतिहासकारों मे मतांतर है। कुछ विद्वानों के अनुसार रविदास जी का जन्म सन 1377 ईस्वी के करीव माना जाता है। जबकि कुछ विद्वान उनके जन्म वर्ष 1388 या 1398 भी मानते हैं।
लेकिन ज्यादातर विद्वान संत शिरोमणि रविदास का जन्म 1376 ईस्वी में हिन्दी कैलंडर के माघ मास के पूर्णिमा के दिन मानते हैं। कहा जाता है की जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ, उस दिन रविवार का दिन था, शायद इसी कारण से इनके माता पिता ने इनका नाम रविदास रखा था।
संत रविदास जी की जीवनी व शिक्षा दीक्षा
संत रविदास जी बचपन से ही तेज बुद्धि के होनहार बालक थे। इस बात का पता उनके गुरु शारदा नन्द को शुरू में ही चल चुका था। जब वे ज्ञानार्जन के लिए पंडित शारदानंद के पास गये।
तब कुछ उच्च जाति के लोगों ने इसका विरोध किया। यद्यपि पंडित शारदा नन्द ने महसूस किया की रविदास कोई सामान्य बालक नहीं बल्कि विलक्षण प्रतिभा का धनी है।
इस प्रकार रविदास जी को पंडित शारदानंद ने अपनी गुरुकुल में शिक्षा प्रदान की। रविदास जी अपने गुरु के हर कसौटी पर वे खड़ा उतड़ते थे। उनके गुरु पंडित शारदानंद भी उनसे बहुत प्रभावित थे।
उनकी प्रतिभा को देखकर पंडित शारदा नंद को बिश्वास हो गया की आगे एक दिन वे महान सामाज सुधारक और संत के रुप में प्रतिष्ठित होंगे।
रविदास जी का वैवाहिक जीवन
रविदास जी का प्रभु के प्रति सच्ची निष्ठा और भक्ति थी। अध्यात्मिक चिंतन में हमेशा लीन रहने के कारण उनका पैतृक व्यवसाय में तनिक मन नहीं लगता था। यह सोच कर की घर-गृहस्ती का भार जब सर पर आयेगा सब ठीक हो जाएगा।
उनके पिता ने उनका विवाह लोना देवी के साथ कर दिया। शादी के बाद उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम विजय दास रखा गया। लेकिन शादी के बाद भी उनका मन सांसारिक कामों में नहीं लगा।
गुस्सा होकर उनके पिता ने पत्नी सहित धर से निकाल दिया। घर से निकाले जाने के बाद वे अपने पिता के घर के पीछे ही झोपड़ी बना कर रहने लगा। जिम्मेदारी सर पर आने के बाद वे अपने पैतृक पेशा में ध्यान बटाने लगा।
लेकिन उन्होंने प्रभु भक्ति को नहीं छोड़ा। रैदास की पत्नी भी सरल और विनम्र थी, पति की सेवा में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी। यदाकदा जूते के सिलाई से जो थोड़ा बहुत कमा लेते उसी में संतुष्ट रहते।
वे अपने पास हमेशा प्रभु के मूर्ति रखते थे। जूते सिलाई के साथ भगवान की भक्ति भी करते रहते। वे माधव, रघुनाथ, राजा राम चन्द्र, हरी, कृष्णा, गोविन्द के नामों का जप करके भगवान् के प्रति अपनी भक्ति भावना को व्यक्त करने लगे।
संत रविदास एक गुरु – sant ravidas ki jivani
संत रविदास के गुरु का नाम स्वामी रामनंदाचार्य था। उनसे रविदास जी को दीक्षा प्रदान की थी।
संत रविदास जी की कहानी – sant ravidas history in hindi
आगे संत रविदास की जीवनी शीर्षक कड़ी के इस लेख में उनके जीवन से जुड़ी एक रोचक कहानी के बारें में जानेंगे। कहते हैं की एक वार ठाकुर जी उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर रविदास की परीक्षा लेना चाहा। वे साधु का वेश धारण कर संत रविदास जी के छोटी सी दुकान पर आ पहुंचे।
उन्होंने रविदास को लोहे से सोना बनाने वाला पारस पत्थर दिखाया। साधु ने इससे जूते सिलाई करने बाले औजार को लोहे से सोने में बदल कर दिखाया।
इस प्रकार वे रविदास को सरल रूप में धनवान बनने का उपाय बताया। रैदास को यह पत्थर रख लेने के लिए कहा लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया।
साधु के जीद करने पर रेदास ने स्वीकृति में कहा। भाई अगर नहीं मानते तो इस मेरे छप्पर में कहीं रख दो। कई महीने बीतने के बाद वह साधु पुनः रविदास जी के पास पहुंचा और उस पत्थर के बारे में पूछा।
रविदास जी (guru ravidas ji ) ने जवाव दिया आप देख लें, जहां आप रखे होंगे, वहीं पर पड़ा होगा, मैंने तो इसे कभी हाथ भी नहीं लगाया।
रविदास जी का निधन
रैदास अपने आराध्य को को माधव कहकर पुकारते थे, वे एक निर्गुण संत थे। कहा जाता है की रविदास जी ने लगभग 120 वर्ष की आयु में अपने शरीर को त्याग कर ब्रह्मलोक चले गये। कुछ विद्वान रविदास की मृत्यु का समय 1540 ईस्वी के आसपास मानते हैं।
उन्होंने जाती पति और उंच नीच के भेद भाव को दूर करने का प्रयास किया। उनके अनुसार मनुष्य अपने उंच जाति में पैदा होकर महान नहीं होता बल्कि आदमी का उसका कर्म ही महान बनाता है।
संत रविदास जयंती जीवनी – guru ravidas jayanti
चूंकि संत रविदास जी का जन्म माध मास में पूर्णिमा के दिन हुआ था। अतः इस दिन संत रविदास जी की जयंती पूरे देशभर में बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है।
रविदास जी संत कबीर के समकालीन थे। कबीर दास जी की तरह रविदास भी एक महान संत और उच्च कोटि के कवि थे। उनका मानना था कि राम, कृष्ण, गॉड, अल्लाह आदि सब एक ही ईश्वर के विविध नाम हैं।
वेद, पुराण, गीता, कुरान, बाइबिल आदि सभी ग्रन्थों में उसी परमेश्वर का अलग-अलग ढंग से गुणगान किया गया है।
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संत रविदास जी की रचनाएँ
संत रविदास जी मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने आपसी सौहार्द और आंतरिक भावनाओं को ही सच्चा धर्म माना। रविदास जी की रचनाओं में सरल सुबोध ब्रजभाषा का प्रयोग मिलता है।
कहीं-कहीं उर्दू, अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और फ़ारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। उनकी रचना में अलंकार के रूप में उपमा और रूपक प्रयुक्त किया गया है।
रविदास जी के भक्ति काव्य के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की उनके द्वारा रचित कुछ पद, सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में संकलित किए गए हैं।
संत रविदास जी के अनमोल वचन
महान संत रविदास जी को भगवान की भक्ति में पूर्ण विश्वास था। रविदास जी की वाणी को सुनकर लोग बहुत प्रभावित होते हैं। रविदास जी द्वारा कहे अनमोल वचन, वाणी, दोहे और पद सदियों से रूढ़िगत समाज को सदैव आगे बढ़ने में मदद किया। इस लेख में संत रविदास जी के कुछ अनमोल वचन के बारें में जानते हैं।
- मन चंगा तो कठौती में गंगा।
- ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।
- भगवान का उस ह्रदय में वास होता है जिसके मन में तनिक भी किसी के प्रति बैर भाव, लालच व द्वेष न हो।
- कोई भी अपने जन्म के कारण व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं होता, बल्कि वह अपने कर्म के छोटा बाद बनता है। फलतः व्यक्ति को सदैव उच्च कर्म करना चाहिये।
- हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहिए तथा फल की भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य।
संत रविदास की मृत्यु कब और कैसे हुई थी
कहा जाता है संत रवि दास जी करीब 120 साल तक जीवित रहे। संत रविदास की मृत्यु 1540 ईस्वी में करीब मानी जाती है।
रैदास का जन्म कब और कहां हुआ था?
रैदास का जन्म 1377 ईस्वी में और वर्तमान उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था
दोस्तों संत रविदास की जीवनी (sant ravidas ji ki jivani )शीर्षक वाला यह लेख आपको जरूर अच्छा लगा होगा अपने सुझाव से जरूर अवगत करायें।
Last edited – 26 फरवरी 22