महाबोधि मंदिर का इतिहास अति प्राचीन माना जाता है। बोधगया, जिसे महाबोधि मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, बिहार के गया जिले में एक बौद्ध तीर्थ स्थल है। इसे भगवान बुद्ध के जीवन और विशेष रूप से उनके ज्ञानोदय से संबंधित चार पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि बुद्ध को 531 ईसा पूर्व में इसी स्थान पर ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस मंदिर का संस्थापक मौर्य सम्राट अशोक को माना जाता है, जो बौद्ध धर्म के अनुआयी थे। यह स्थान कुशीनगर, लुंबिनी, सारनाथ सहित दुनिया के चार महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों में से एक है।
यूनेस्को द्वारा महाबोधि मेंदीर को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया है। यहाँ बहुत भाड़ी संख्या में थाईलैंड, जापान और चीन सहित दुनिया भर से बौद्ध तीर्थयात्री दर्शन करने आते हैं।
गौतम बुद्ध की साधना-स्थली, बौद्ध धर्म का यह प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थल बोधगया पटना से करीव 90 कि.मी.की दूरी पर स्थित है। बोधगया, भगवान् बुद्ध की तपोभूमि रही है, जिसने समूचे विश्व को सत्य, करुणा, शांति और अहिंसा का पाठ सिखया।
यह स्थल अतीत काल से बिहार की धरती को गौरान्वित कर रही है। महाबोधि मंदिर आज अपनी आध्यात्मिक महत्ता के कारण सिर्फ बौद्ध समुदाय के साथ-साथ अन्य धर्म के लोगों को आकर्षित करने में सफल रही है।
महाबोधि मंदिर की विशेषताएं – Mahabodhi Temple in Hindi
यह अपने स्थापत्य कला और अनुपम सौन्दर्य के कारण देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। सदियों से भगवान् बुद्ध की यह तपोभूमि, विश्व-शांति और अहिंसा का पाठ पूरे विश्व को पढ़ा रहा है।
इस पवित्र स्थल पर भारत के साथ-साथ थाइलैंड, जापान, चीन और श्रीलंका की सरकार ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। वहाँ की सरकार के अलाबा विभिन्य देशों के बौद्ध संस्थाओं के द्वारा निर्मित ‘महाविहार भी पर्यटक का मन मोह लेती है।
बोध गया का नाम बौद्ध समुदाय के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल है। तीन अन्य स्थान में लुम्बिनी, सारनाथ और कुशी नगर का नाम आता है। लुम्बिनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, सारनाथ में उन्होंने अपना प्रथम उपदेश दिया तथा कुशीनगर में उन्होंने महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था।
बुद्ध-जयन्ती के अवसर पर विश्व के विभिन्न देशों से बौद्ध समुदाय के लोग बड़ी संख्या में बौद्ध गया आते हैं। बौद्धगया में भगवान बुद्ध की जयंती समारोह देखने लायक होता है।
महाबोधि मंदिर का इतिहास – Bodh Gaya Temple History In Hindi
आज से लगभग 2500 वर्ष पहले राजकुमार सिद्धार्थ ने मात्र 29 वर्ष की उम्र में गृह त्याग कर दिया। अपनी पत्नी यशोधरा व पुत्र राहुल को रात में सोये हुए छोड़कर वे ज्ञान की खोज में निकल पड़े थे। सांसारिक मोह-माया को त्यागकर ज्ञान की खोज में भटकते हुए गया के समीप पहुंचे।
बुद्ध ने यही पर निरंजना नदी के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे कठोर साधना की। करीव 5 वर्ष की कठोर साधना के बाद वैशाख महीने के पूर्णिमा के दिन उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस प्रकार वे राजकुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गए।
यही पवित्र पीपल वृक्ष आज बोधिवृक्ष के नाम से जाना जाता है। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध अपने ज्ञान से विश्व को आलोकित कर लोगों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
इस प्रकार अतितकाल से ही भगवान बुद्ध की यह पावन भूमि बोधगया उनके उपदेशों को जनमानस में संचारित करती आ रही है। चीनी भ्रमणकारी ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में भी बोधगया के पावन बौद्ध मंदिर को ‘महाबोधि मंदिर’ के नाम से उल्लेख मिलता है।
महाबोधि मंदिर के संस्थापक
महाबोधि मन्दिर के निर्माण की तिथि को लेकर इतिहासकारों में मतांतर है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार 289 ई. पू. महान सम्राट प्रियदर्शी अशोक ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर में प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण दिखाई पड़ता है।
इतिहासकारों के अनुसार सबसे पहले सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी के दौरान यहाँ एक बौद्ध स्तूप वनवाया था। जहां कुषाण वंश के राजा कनिष्क ने इन बौद्ध स्तूप के ऊपर मंदिर का निर्माण कराया।
जिसे आगे चलकर सन 1105 ई में बर्मा के बौद्ध समुदाय के लोगों ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। लेकिन सन् 1205 ईस्वी में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय सहित इस मंदिर को भी नष्ट कर दिया था।
लेकिन जब ब्रिटिश भारत में सन् 1876 ईस्वी के आसपास इस स्थान की खुदाई हुई तब जीर्ण-शीर्ष अवस्था में यह मंदिर मिला। उसके बाद अनेक वास्तु-शिल्पकारों की मदद से इस ऐतिहासिक मंदिर को पुनर्निर्माण किया गया।
महाबोधि मंदिर की बनावट और संरचना
दुनियाँ में ‘महाबोधि मंदिर’ सबसे प्राचीन तथा अनुपम मंदिर माना जाता है। इसकी स्थापत्य कला पर्यटक को बेहद आकर्षित करता है। इस मंदिर की ऊंचाई करीब 160 फीट जो देखने में बेहद ही भव्य लगता है। भव्यता ऐसी की पर्यटक को बार-बार निहारने का मन करता है।
इस मंदिर के चारों कोणों पर मंदिर के संतुलन के लिए चार गुंबद बनाया हुआ है। जो मंदिर की भव्यता को और भी निखारता है। इस मंदिर के गर्भगृह की लंबाई लगभग 47 फीट और चौड़ाई करीव 49 फीट के बराबर है।
मंदिर की बाहरी दीवार को बेहद ही सुंदर ढंग से अलंकृत किया गया है। मंदिर के दीवारों पर चारों ओर छोटे-छोटे सुंदर मूर्तियाँ बनी है। मंदिर के परकोटे पर भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमाएं मौजूद हैं।
बौद्ध मन्दिर के गर्भगृह में भगवान गौतम बुद्ध का पद्माकार आसन है। इस आसान को भगवान बुद्ध से जोड़कर देखा जाता है। कहते हैं इसी स्थल पर बैठकर वह ध्यान और साधना करते थे।
यहाँ एक शिला पर भगवान बुद्ध के पद चिन्ह भी अंकित है। बोधिवृक्ष से निकले हरी-भरी डाली भी इस मंदिर की शोभा को बढ़ाती है।
बोधगया के दर्शनीय स्थल (Places to visit in Bodhgaya)
बोधगया में महाबोधि मंदिर के अलाबा भगवान बुद्ध से जुड़ी हुई अनेकों चीज देखने लायक है। आइये इसके बारे मे जानते हैं।
बौद्ध वृक्ष (जिसके नीचे बुद्ध को मिला था ज्ञान)
महाबोधि मंदिर के प्रांगण में ही पवित्र ‘बोधिवृक्ष’ (Bodh tree )स्थित है। कहते हैं की दुनियाँ में कोई भी वृक्ष इतना लोकप्रिय नहीं होगा, जितना कि बोधगया का ‘बोधिवृक्ष’ है। इस वृक्ष को कई बार नष्ट करने की कोशिस हुई, लेकिन आज भी इस वृक्ष को देखा जा सकता है।
कहा जाता है की एक बार सम्राट अशोक की पत्नी ने इस वृक्ष को कटवा दिया था। क्योंकि की सम्राट अशोक को इस वृक्ष के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति देखकर रानी को ईर्ष्या हो गई थी। दूसरी बार बंगाल के शासक शशांक ने इस वृक्ष में आग लगवा दि थी।
तीसरी बार सन् 1870 में आँधी के कारण यह वृक्ष गिर पड़ा था। बर्तमान में जो महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित ‘बोधिवृक्ष‘ विधमान है वह अपने वंश की चौथी पीढ़ी का बोधिवृक्ष है।
बोधगया के इस बोधि वृक्ष के नीचे प्रतिवर्ष 8 दिसंबर को बोधि दिवस दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों द्वारा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
‘वज्रासन’ (जहां अंकित हैं बुद्ध के चरणों के निशान )
बोधिवृक्ष के किनारे चबूतरा पर पद चिन्ह अंकित है, जिसे भगवान बुद्ध के चरणों के निशान माने जाते हैं। इस स्थल को वज्रासन कहते हैं। इस स्थल पर भगवान बुद्ध ने एक सप्ताह बिताया।
कहते हैं की यहीं पर खड़े होकर वे सात दिनों तक बिना पलक झपकाये ‘बोधिवृक्ष’ को देखते रहें जो ‘अनिमेष लोचन’ के नाम से जाना जाता है।
इस वज्रासन ‘ को श्रीलंका के सरकार ने सोने के पानी चढ़े रेलिंग एवं छतरी से और भी भव्य और आकर्षक बना दिया है। महाबोधि मंदिर के दक्षिणी किनारे पर एक सरोबर स्थित है जिसे कमल सरोवर या मूचलिंग सरोवर के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा
महाबोधि मंदिर के अलाबा बोधगया के मुख्य आकर्षण में भगवान् बुद्ध की नवनिर्मित विशाल प्रतिमा है। लगभग 80 फीट ऊंची और 51 फीट चौड़ी इस प्रतिमा को जापान के बौद्ध संस्था के द्वारा बनवाया गया। यह प्रतिमा सदैव पर्यटक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है।
इस विशाल बुद्ध प्रतिमा का निर्माण चुनार के गुलाबी पत्थरों से किया गया है। इस प्रतिमा के अंदरूनी भाग में लगभग 16,300 छोटी-छोटी मूर्तियाँ रखी गई हैं। बौद्ध धर्म में इस मूर्तियों का विशेष महत्व है। इस प्रतिमा को बनाने में करीव 4 साल का बक्त लगा था।
एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर को बनाने में उस बक्त लगभग 1 करोड़ रुपए की लागत आयी थी। इस विशाल प्रतिमा को सन 1990 ईस्वी में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने अनावरण किया था।
इसके अलावा यहाँ ‘थाईलैंड सरकार द्वारा निर्मित मंदिर’ भी सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर का निर्माण 1967 में किया गया था। जिसमें करीव 200 क्विंटल लोहे से निर्मित धर्मचक्र स्थित है। इस धर्मचक्र में गौतम बुद्ध के उपदेश उकेरे हुए हैं।
मान्यता है की इस धर्मचक्र को घुमाने से पाप से मुक्ति होती है। इसके अलाबा यहाँ विभिन्न देशों द्वारा निर्मित बौद्ध मठ भी देखे जा सकते हैं। गया में पर्यटक के ठहरने के लिए बंगले, होटल और धर्मशाला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
महाबोधि मंदिर कैसे पहुंचे –
जैसा का हम जानते हैं की बिहार का गया शहर वायु, रेल और सड़क मार्ग द्वारा भारत के हर हिस्से से जुड़ा हुआ है। गया स्टेशन से टैक्सी, ऑटो-रिक्शा और बस की सेवा बोधगया के लिए उपलब्ध है।
वायु मार्ग से पटना उतर वहाँ से बोध गया आसानी से पहुँचा जा सकता है। गया से बोधगया की दूरी (Gaya to bodhgaya distance ) लगभग 15 किमी है। लेकिन अगर आप पटना एयरपोर्ट पर उतरते हैं तो वहाँ से बोधगया की दूरी लगभग 90 कि.मी. है।
अव Bodh Gaya airport से भी देशी-विदेशी विमान का संचालन शुरू हो गया है। जहां से विश्व के किसी भी देश से पर्यटक गया पहुँच सकते हैं।
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अंत में
बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर’ बिहार का पहला मंदिर हैं, जिसे विश्व प्रसिद्ध संस्था यूनेस्को ने विश्व धरोधर में शामिल किया है। भगवान बुद्ध की इस पावन स्थल को विश्व पटल पर लाने के लिए अनेकों काम अभी भी चल रहें। हैं।
पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार की अनेकों सौंदीकरण योजनाएँ काम कर रही हैं। इसके अलाबा इसके चहुमुखी विकास के लिए विदेशों से भी बौद्ध समुदाय के लोगों द्वारा भरपूर मदद मिल रही है।
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