Information about Kittur Rani Chennamma in Hindi – क्या आप जानते हैं रानी लक्षमीवाई से पहले भी भारत के कर्नाटक में एक रानी हुई। जिन्होंने अंग्रेजों को युद्ध में छक्के छुड़ाए। उनका नाम कित्तूर की महारानी ‘रानी चेन्नम्मा‘ थी।
रानी कित्तूर चेन्नम्मा का राज्य कर्नाटक में स्थित कित्तूर नामक स्थान पर था।अंग्रेजों से संघर्ष करने वाली वह भारत की पहली महिला शासिका थी। जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से भी पहले अंग्रेजों को युद्ध में दांत खट्टे किए थे।
उन्हें कर्नाटक की लक्ष्मीबाई के नाम से भी जाना जाता है। जिसने 1857 के सिपाही विद्रोह के लगभग तीन दशक पहले सन 1824 में अंग्रेजों से सशस्त्र विद्रोह किया था। भारत के इतिहास में वह पहली रानी थी जिन्होंने अंग्रेजों से ससत्र विद्रोह किया।
महान Women freedom fighter of India रानी कित्तूर चेन्नम्मा, वीरता और साहस की अनुपम प्रतिमूर्ति थी। उन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। वह पहली भारतीय शासिका थी। जिन्होंने मजबूत ब्रिटिश सेना से लोहा लिया और अपने देश की आजादी के लिए अपने प्राण को उत्सर्ग कर दीये।
कित्तूर रानी चेन्नम्मा की जीवनी | Information about Kittur rani Chennamma in Hindi
रानी चेन्नम्मा का जन्म | – 23 अक्टूबर 1778 |
जन्म स्थान | – बेलगाम, कर्नाटक |
पति का नाम | – राजा मलासारजा |
दत्तक पुत्र | – शिवलिंग रुद्रसर्ज |
निधन | – 02 फरवरी 1829 को बेलहोंगल में |
रानी कित्तूर चेन्नम्मा जीवन परिचय – kittur rani chennamma biography in Hindi
रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 ईस्वी में कर्नाटक के बेलगावी (पुराना नाम बेलगाम ) के पास ककाती नामक स्थान पर हुआ था। इसके अंदर बचपन से ही अदम्य साहस और वीरता कूट-कूट कर भरी थी।
बचपन से ही तेज-तर्रार होने के कारण उन्होंने घुड़सवारी, तीर चलना, और शस्त्र संचालन में महारत हासिल कर ली। शस्त्र विद्या के आलवा वे कन्नड, मराठी, उर्दू और संस्कृत में भाषा में भी निपुण थी। इसके साथ ही चेन्नम्मा अत्यंत ही रूपवती थी।
रानी चेन्नम्मा की शादी व संतान –
कर्नाटक के एक छोटे से राज्य कित्तूर के महाराज मलसर्ज की दो रानियाँ थी। रानी चेन्नम्मा राजा की दूसरी रानी थी। महाराज मलसर्ज की चेन्नम्मा से कैसे शादी हुई इसके वारें में एक कथा प्रचलित है।
कहते हैं की कर्नाटक में धारवाड़ और बेलगाँव के बीच कित्तूर नामक एक छोटा सा राज्य था। एक समय की बात है, बेलगाँव के काकति नामक एक जगह में नरभक्षी बाघ का आतंक छा गया।
आए दिन कोई ने कोई उसका शिकार बन जाता था। बाघ के भय से ककाती के लोग अत्यंत ही भयभीत थे। ककाती, कित्तूर के राज्य में ही आता था। कित्तूर के राजा मल्ल्सर्ज को जब बाघ के आतंक की सूचना मिली तो वे बाघ के शिकार करने के लिए काकति आये।
काकती में वे लोगों के सूचना के आधार पर बाघ के शिकार पर निकले पड़े। बाघ का पता चलते ही उन्होंने शीघ्र ही उस पर बाण चला दिया। बान लगते ही बाघ मूर्छित होकर जमीन पर गिर गया और तड़पने लगा।
राजा जब बाघ के निकट पहुंचा तो पाया की बाघ पर दो बाण लगे थे। जबकि राजा मल्ल्सर्ज ने सिर्फ एक बाण चलाया था। यह देखकर राजा बहुत ही अचंभित हुए। तभी राजा की दृष्टि वीर वेश घारण की हुई एक अत्यंत ही सुन्दर कन्या पर पड़ी।
वह समझ चुके थे की दूसरा बाण इसी कन्या का है। वह कन्या कोई और नहीं बल्कि चेन्नम्मा थी। राजा अंदर ही अंदर चेन्नम्मा की वीरता और सुंदरता पर मोहित हो गये। उनके रूप और गुण से प्रभवित होकर राजा ने चेन्नम्मा को अपनी रानी बनाने का निर्णय किया।
इस प्रकार चेन्नम्मा की शादी देसाई वंश के राजा मलसर्ज से हुआ। कुछ दिनों के बाद उन्हें एक संतान की प्राप्ति हुई लेकिन थोड़े समय में ही उसकी मृत्यु हो गयी।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा का इतिहास – KITTUR RANI CHENNAMMA HISTORY IN HINDI
रानी चेन्नम्मा की जीवन कहानी कुछ हद तक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से मिलती है। इसीलिए रानी चेन्नम्मा को कर्नाटक की लक्ष्मीबाई के नाम से भी जाना जाता है। आइए हम इस लेख के द्वारा उनके जीवन की सम्पूर्ण गाथा को जानते है।
पेशवा से मतभेद – Kittur rani chennamma information in Hindi
थोड़े दिनों के ही बाद कित्तूर राज्य के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। किसी बात को लेकर कित्तूर के महाराज मलसर्ज का पेशवाओं से मतभेद हो गया। फलसरूप छलपूर्वक कित्तूर के महाराज को पेशवा के द्वारा कैद कर लिया गया। जहॉं उनकी मृत्यु हो गयी।
कित्तूर के महाराज का आकस्मिक निधन के बाद राज्य पर संकट और गहरा हो गया। रानी चेन्नम्मा ने हिम्मत रखी। उन्होंने अपने सूझ बुझ का परिचय देते हुए गुरलिंग मल्लसर्ज को गोद ले लिया।
इस प्रकार गुरलिंग मल्लसर्ज को कित्तूर का उतराधिकारी घोषित कर दिया गया। लेकिन राज्य संचालन की सारी जिम्मेदारी रानी चेन्नम्मा खुद देख-रेख करने लगी।
रानी चेन्नम्मा गोद निषेध नीति और संघर्ष
कित्तूर के दीवान मल्लप्पा शेट्टी को यह विचार पसंद नहीं आया। क्योंकि उनकी नियत राज्य की प्रति अच्छी नहीं थी। इस समय पूरे भारत पर अंग्रेजों का साम्राज्य था। अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति जगजाहिर थी।
मल्लप्पा शेट्टी ने चुपके से गोद लेने की खवर अंग्रेज अधिकारी को दे दिया। अंग्रेज की नजर तो पहले से ही कित्तूर के खजाने पर टिकी थी। वे अपने विस्तारवादी नीति के तहद कित्तूर को हड़पना चाहा।
डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स नीति का हवाला देकर उनके दत्तक पुत्र को कित्तूर का उतराधिकारी मानने से मना कर दिया। अंग्रेजों ने रानी के पास संदेश भेजे लेकिन रानी का कहना हुआ में कित्तूर नहीं दूँगी।
रानी के पास अंग्रेजों ने धमकी भरे संदेश भेजे लेकिन रानी मानने से इनकार कर दी। हालांकि रानी ने बाम्बे प्रेसीडेंटि के तत्कालीन गवर्नर से हड़प नीति नहीं लागू करने का अनुरोध की लेकिन बात नहीं बनी।
रानी चेन्नम्मा के खाने में जहर
इधर देशद्रोही मल्लप्पा शेट्टी रसोई के नौकरानी से मिलकर रानी के खाने में जहर मिला दिया। रानी को समय रहते ही इसका पता चल गया। जब नौकरानी ने कहा की खीर में जहर नहीं है।
तब प्रमाण के लिए नौकरानी को ही पहले खीर खाने को कहा गया। थोड़ी मात्रा में ही खीर खाकर नौकरानी ने वहीं तरप तरपकर दम तोड़ दिए।
रानी अंग्रेजों के नियत से परिचित थी। वे जानती थी की दुश्मन अंदर और बाहर दोनो जगह मौजूद है। इसीलिए उन्होंने अपनी सेना को मुजबूत करना शुरू कर दिया।
कित्तूर की जनता रानी के एक आह्वान पर कित्तूर के लिए जान देने को तैयार थी। हिन्दू और मुस्लिम दोनो रानी के साथ खड़े थे।
रानी चेन्नम्मा का अंग्रेजों के साथ युद्ध
एक दिन अंग्रेजों ने अपने 400 बंदूकों वाली 20 हजार सैनिकों के साथ कित्तूर पहुच गया। 23 सितंबर 1824 ईस्वी को अंग्रेजों ने कित्तूर राज्य को चारों ओर से घेर लिया। तब रानी वीर वेश घारण कर अपनी सेना के साथ किले के फाटक को खोल कर अंग्रेजों पर आक्रमण कर दी।
रानी चेन्नम्मा शेरनी की भांति अंग्रेजों पर टूट पड़ी थी। रानी चेन्नम्मा अपनी तलवार से दुश्मनों को चंडी की भाँति काट रही थी। अपनी रानी को इस तरह अपने बीच लड़ता देखकर कित्तूर की सेना में भी नया जोश आ गया।
देखते ही देखते पूरा जंग का मैदान लाशों से पट गया था। इस युद्ध में अंग्रेज अधिकारी थैकरे को मार गिराया गया। अपने कमांडर के मरते ही अंग्रेजी सेना भाग खड़ी हुई।
रानी ने अंग्रेज अधिकारी सर वाल्टर इलियट और मी स्टीवसन को कुछ सिपाही सहित बंदी बना लिया। हालांकि बाद में रानी ने अंग्रेज अधिकारी को इस शर्त पर छोड़ दिया की अव अंग्रेज कित्तूर पर आक्रमण नहीं करेंगे।
अंग्रेजों के साथ दूसरा युद्ध
कित्तूर के पराक्रम और स्वाधीनता का समाचार आसपास के राज्यों तक फैल गया। लेकिन अंग्रेज मानने वाले कहाँ थे। उन्होंने इसके के लिए मद्रास और मुंबई से और सैनिक को बुलाया। फलतः 03 दिसंबर 1824 को अंग्रेजों ने कित्तूर पर एक बार फिर से हमला कर दिया।
इस वार अंग्रेजी सेना पहले से ज्यादा मजबूत और सुसंगठित थी। लेकिन कित्तूर के सेना का हौसला भी पहले से अधिक बुलंद था। उन्होंने इस बार भी रानी के नेतृत्व में अंग्रेजों को युद्ध में धूल चटा दी। फलतः अंग्रेजों को युद्ध से पीछे हटना पड़ा।
रानी लड़ाई हार कर भी इतिहास में अमर हो गई
अंग्रेजों को अपनी हार किसी कील की भाँति चुभ रही थी। उन्होंने इसी माह में फिर से पूरी तैयारी के साथ कित्तूर पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों ने इस बार कित्तूर के कुछ लोगों को चुपके से प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर लिया।
उन्होंने रानी के कई भेद अंग्रेजों को बता दिए और रानी के बारूद में गोबर मिला दिया । यदपि रानी चेन्नम्मा इस युद्ध में भी वीरता के साथ लड़ी। लेकिन इस वार वे अंग्रेजी सेना के सामने टिक नहीं सकी।
रानी की पराजय हुयी और रानी को उसके कई वफादार सहयोगी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजों ने रानी के सहयोगी को एक-एक कर फांसी पर लटका दिया।
रानी चेन्नम्मा की मृत्यु
इधर रानी को बैंगलहॉल में बंद कर दिया गया। बैंगलहॉल में बंद रानी चेन्नम्मा अपने वीर देश भक्तों के फांसी के समाचार से बहुत ही आहत हुई। उन्होंने इस आहात को बर्दास्त ने कर सकी और 2 फरवरी 1829 को उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
इस प्रकार अंग्रेजों के कैद में ही उस महान रानी चेन्नम्मा का निधन हो गया।भले ही रानी अपनी आखरी जंग में सफल नहीं हो पायी। लेकिन आजादी के लिए किए गये उनके बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।
रानी चेन्नम्मा का सम्मान
वैसे तो रानी पूरे देश के लिए प्रेरणा की स्रोत हैं लेकिन कर्नाटक के लोग उन्हें नायिका की तरह पूजते है। lady freedom fighter रानी चेन्नम्मा के याद में प्रतिवर्ष 22 अक्टूबर से लेकर 24 अक्टूबर कित्तूर उत्सव का आयोजन किया जाता है।
आज भी कित्तूर का राजमहल और बेलहोंगल के पास उनकी समाधि देखा जा सकता है। यह स्थल आज भी आजादी के लिए अंग्रेजों के बिरुद्ध कित्तूर रानी चेन्नम्मा की याद को ताजा कर देती है।
पार्ल्यामेंट कंप्लेक्स में लगी है प्रतिमा –
रानी चेन्नम्मा के सम्मान में पार्लियामेंट हाउस नई दिल्ली में उनकी प्रतिमा भी स्थापित किया गया। इस प्रतिमा का अनावरण तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटील ने 11 सितंबर 2007 को की थी।
इसके अलावा कर्नाटक के कई जगह पर उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी है। उन्होंने आजादी की जो मशाल जलाई देश के दीवानों ने तब तक जलाए रखा। जब तक की अंग्रेज भारत छोड़कर चले नहीं गए।
F.A.Q
चेन्नम्मा शब्द का अर्थ क्या है?
चेन्नम्मा शब्द का अर्थ रूपवती सुंदर कन्या होता है।
रानी चेन्नम्मा का जन्म कब और कहां हुआ?
रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को वर्तमान वेलगावी कर्नाटक में हुआ था।
राजा मल्लसर्ज की धर्मपत्नी कौन थी?
महाराज मलसर्ज जो कर्नाटक के एक छोटे से राज्य कित्तूर के राजा थे उन्हें दो रानियाँ थी। रानी चेन्नम्मा उनकी दूसरी धर्मपत्नी (रानी) थी।
रानी चेन्नम्मा की मृत्यु कब हुई थी?
रानी चेन्नम्मा की मृत्यु 2 फरवरी 1829 को हुई थी।
रानी चेन्नम्मा कहां की शासिका थी?
रानी चेनम्मा भारत के कर्नाटक स्थित कित्तूर नामक राज्य की शासिका थीं।
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