मीराबाई का जीवन परिचय, इतिहास और रचनायें बहुत ही मामस्पर्शी हैं। मीराबाई एक महान संत कवियित्री, भगवान श्रीकृष्ण की दीवानी परम भक्त थीं। उनका नाम भक्ति-आन्दोलन के सबसे लोकप्रिय संतों में सुमार है।
मीरा के काव्य में कृष्ण भक्ति का अनुपम वर्णन मिलता है। आज भी भगवान कृष्ण को समर्पित उनके भजन, उत्तर भारत के घर-घर में अत्यंत ही लोकप्रिय है। उनके द्वारा रचित भजन बड़ी श्रद्धा के साथ गाये जाते हैं।
Mirabai ka jivan parichay से पता चलता है की उनका जन्म, राजस्थान के राजपूत राजघराने में हुआ था। मीराबाई के जीवन से संबंधित कई कथाएँ और किवदंतियां प्रसिद्ध है।
अपने पति के आकस्मिक मृत्यु के बाद वे भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त हो गयी। लोकलाज के कारण उन्हें घर से निकाल दिया गया। उनके बाद वे और भी दृढ़ता से कृष्ण भक्ति में तल्लीन हो गयी।
मीरा कृष्ण की दीवानी थी, उनके कृष्ण प्रेम और भक्ति की गहराई अतल है। कहते हैं की मीरा पूर्व जन्म में बृज की एक गोपी थी। उन्होंने सामाजिक और पारिवारिक लोक-लाज की प्रवाह किए बगैर कृष्ण को अपना पति माना और उनकी भक्ति में लीन हो गयीं।
इस प्रकार उन्होंने अपना सारा जीवन कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया। कृष्ण को अपना पति, अपना आराध्य समझने वाली मीरा बाई ने कई भजन लिखे। उनकी रचना में ब्रजभाषा और राजस्थानी, दोनो का समन्वय है।
मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरा न कोई। जाके सिर मोर मुकुट सोई मोर पति सम होई।।
meerabai ke pad in hindi
मीराबाई का संक्षिप्त जीवन परिचय – Mirabai ka jivan parichay in Hindi
नाम | मीराबाई (Meerabai) |
मीराबाई का जन्म और मृत्यु | जन्म सन 1503 ईस्वी और मृत्यु 1557 |
मीराबाई का जन्म स्थान | राजस्थान के मेड़ता |
मीराबाई की माता का नाम | विरकुमारी |
पति का नाम | भोजराज |
मीराबाई का जीवन परिचय इन हिंदी – Mirabai ka jivan parichay
मीराबाई का जन्म और मृत्यु सम्बंधित कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती है। इनके जन्म वर्ष, जन्म स्थान को लेकर विद्वानों के बीच मतांतर है। मीराबाई का बचपन का नाम क्या है इसका भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता।
प्रचलित कविदंती, कहानी, साहित्य तथा अन्य स्रोतों के मंथन से उनके जीवन से जुड़ी जो कहानी प्रचलित है। उन्हीं के आधार पर आइये मीराबाई का जीवन परिचय जानते हैं।
मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता में 1559-60 के आसपास हुआ था। लेकिन कुछ विद्वान उनके जन्म स्थान चोकड़ी तथा कुछ कुड़की गाँव मानते हैं। उन्होंने राज परिवार राव दुदाजी के बंशज में जन्म लिया। मीरा बाई के पिता रतन सिंह राठौड़ एक छोटे से रियासत के शासक थे।
मीराबाई की माता का नाम विरकुमारी थी। बचपन में ही मीराबाई के माता की मृत्यु हो गयी। मीराबाई अपने पिता की इकलौती संतान थी। कहते हैं की उनका पालन-पोषण उनके दादा के सनिध्य में हुआ।
उनके दादा जी भगवान विष्णु के परम भक्त थे। इस कारण साधु-महात्मा का उनके घर पर आना-जाना लगा रहता था। आगे चलकर इस भक्ति भावना का प्रभाव उनके जीवन पर भी पड़ा।
मीराबाई का विवाह
मीराबाई की शादी महज 13 साल की उम्र में कर दी गई। उनका विवाह उदयपुर के राजा महाराणा सांगा के युवराज के साथ बहुत ही धूम-धाम से सम्पन्न हुई। उनके पति का नाम भोजराज था।
दिल्ली सल्तनत के साथ संघर्ष में राजकुमार भोजराज घायल हो गया। इस कारण दुर्भागयवस विवाह के कुछ वर्षों के बाद ही भोजराज की मृत्यु हो गयी। इस प्रकार मीरा अल्पायु में ही विधवा हो गयी। इस विपत्ति की घड़ी में वे भगवान श्री कृष्ण की ओर उन्मुख हुई।
मीरा बाई का इतिहास
कहते हैं की उस बक्त सती प्रथा प्रचलित थी और पति की मृत्यु होने पर पत्नी को भी पति के साथ आग में जलना पड़ता था। मीरा को भी सती करने की कोशिस की गयी। लेकिन वह तैयार नही हुईं। धीरे-धीरे उन्हें इस मिथ्या जगत से विरक्त हो गयीं।
उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार बनाया और कृष्ण भक्ति में लीन हो गयी। धीरे-धीरे इस मिथ्या जगत से उन्हें विरक्ती होने लगी। इस प्रकार उन्होंने अपना सारा जीवन कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया।
उनका अधिकांश समय साधु-संतों की संगति में भजन में व्यतीत करने लगीं। मीराबाई मंदिरों में जाकर कृष्ण का भजन गाती तथा कृष्ण भक्ति में लीन हो जाती। वे परिवार के लोक-लाज को दरकिनार कर कृष्ण की मूर्ति के सामने भक्तिमद में चूर हो नाचने लगती।
यद्यपि तत्कालीन भारतीय समाज में मीराबाई का विद्रोही स्वभाव, कृष्ण भक्ति के तरीके किसी राजधारने की महिला और एक विधवा के लिए बने परंपरागत नियमों के प्रतिकूल माने जाते थे। लेकिन मीरा तो कृष्ण की दीवानी हो चुकी थी।
मीराबाई का घर से निकाला जाना – Meerabai Biography in Hindi
मीराबाई का कृष्ण-भक्ति में इस तरह से नाचना, गाना उनके ससुराल वालों को अच्छा नहीं लगा। उनके ससुराल के लोग मीराबाई की इस तरह की कृष्ण भक्ति को राजघराने के प्रतिकूल माना। फलतः उन्हें तरह-तरह से सताये जाने लगा।
जब मीरा ने बिष पिया
उन्हें बिषधर साँप से कटवाकर मारने की कोशिस की गयी। उनके खाने में बिष मिला दिया गया। लेकिन कृष्ण प्रेम की दीवानी मीरा पर इसका कुछ असर नहीं हुआ। उनकी कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गयी।
ससुराल में सताये जाने के कारण वे अपने मायके मेड़ता चल गयी। बाद में वे द्वारका और वृंदावन को चली गई।
तीर्थ यात्रा पर निकलना
मीरा ने गृह त्याग कर तीर्थ यात्रा पर निकल गयी। सन् 1539 में वे वृंदावन आ गयी जहॉं उनकी मुलाकात रूप-गोस्वामी से हुई। मीराबाई ने कुछ वर्ष वृंदावन में ही रहकर कृष्ण भक्ति की।
उसके बाद वे गुजरात में भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका चली गईं। इस पार्कर उन्होंने अपना सारा समय कृष्ण भक्ति, साधु संतों के साथ भजन और भक्ति पदों की रचना में व्यतीत करने लगी।
मीरा बाई की मृत्यु कैसे हुई (Death of Mirabai)
जैसा की हमने जाना की कुछ वर्षों तक वृन्दावन में समय गुजारने के बाद वे द्वारिका चली गईं। कहा जाता है की द्वारका में भगवान कृष्ण का भजन करते हुए उनकी मूर्ति में समाहित हो गईं।
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मीराबाई का साहित्यिक परिचय
मीरा कौन सी ब्रजभाषा की कवयित्री मानी जाती है। भगवान् श्रीकृष्ण के गुणगान में रचित सैकड़ों भजन को मीराबाई के साथ जोड़ा देखा जाता है। लेकिन विद्वानों का मत इससे अलग है। ज्यादातर विद्वान का मत है की मीराबाई ने इनमें से कुछ भजन का ही रचना की थी।
बाकी की रचनायें उनके प्रसंशकों द्वारा रचित जान पड़ती है। मीराबाई की काव्यगत विशेषताएँ अद्भुत हैं। उनकी काव्य रचना में उनकी आत्मा का रुदन और हास्य दोनो समाहित है। मीरा बाई ने ब्रजभाषा और राजस्थानी में स्फुट पद की ही रचना की।
इस पद की संख्या दो सौ से पाँच सौ के बीच मानी जाती है। मीरा बाई की रचना में माधुर्य भाव की प्रधनता दिखती हैं। उन्होंने कृष्ण की भक्ति प्रीतम और पति के रूप में की और हमेशा उन्हें पाने की कामना की।
मीरा द्वारा रचित ग्रंथ
कुछ विद्वान के अनुसार मीरा बाई के चार प्रमुख रचना मानी जाती है।
- गीतगोविंद टीका,
- राग गोविंद,
- राग सोरठ
- नरसी का मायरा।
मीरा बाई की भक्ति
मीरा कृष्ण के रूप की दीवानी थी। उनके अनुसार उनके सिवा दुनियाँ में कुछ नहीं है। मीराबाई का व्यक्तित्व और कृतित्व उनकी रचनाओं में साफ दिखाई पड़ता है।
हरि आप हरो जन री भीर। द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर। भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुञ्जर पीर। दासी मीरा लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर॥
चाकरी में दरसण पास्यू, सुमरण पास्यू खरची। भाव भगती जागीरी पास्यू, तीनूं बाता सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजंती माला। बिंदरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।
मीरा बाई के पद और दोहे के अंश –
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु कृपा करि अपनायो। पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
जी पाई जग में सभी खोवायो। पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो। पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो। मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो, पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
आपको मीराबाई का जीवन परिचय (Mirabai ka jivan parichay ) से संबंधित हमारी संकलित जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी, एक बारे कमेंट्स जरूर करें।
F.A.Q
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मीराबाई का बचपन का नाम क्या है?
मीराबाई का बचपन का नाम क्या है इस बात का कही उल्लेख नहीं मिलता। लेकिन मीराबाई का जन्म संवत् 1564 विक्रमी में राजस्थान के मेड़ता में दूदा जी के पुत्र रतन सिंह के घर हुआ था।
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मीरा बाई की समाधि कहां पर है?
मीरा बाई द्वारिका में कृष्ण मूर्ति में समा गई थी।
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मीराबाई का विवाह किस वर्ष में हुआ था?
कुछ विद्वान मीराबाई का विवाह 1516 ईस्वी में मानते हैं। उनका विवाह भोजराज सिंह के साथ हुआ था।
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मीराबाई का विवाह कितने वर्ष की उम्र में हुआ था?
मीराबाई का विवाह 18 वर्ष की उम्र में हुआ था।
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मीराबाई ने अपना पति किसे माना?
मीराबाई ने अपना पति भगवान श्री कृष्ण को माना था।
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मीरा बाई का जन्म कब और कहाँ हुआ?
मीरा बाई का जन्म 1498 ईस्वी में कुड़की गाँव में हुआ था।
बाहरी कड़ियाँ (External links)
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