Param Vir Chakra Winners Stories in Hindi: परमवीर चक्र विजेताओं की कहानी सारे देशबासी को गौरान्वित और प्रेरणास्रोत का काम कर सकती है। परमवीर चक्र युद्ध के दौरान दुश्मन के सामने अदम्य साहस और असाधारण वीरता प्रदर्शित करने के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सैन्य सम्मान है।
परमवीर चक्र विजेताओं की कहानी – Param Vir Chakra Winners Stories in Hindi
अब तक 21 वीर जावनों को भारत के सर्वोच्च सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र पुरस्कार से अलंकृत किया गया है। इन 21 वीर योद्धाओं ने अपनी अद्वितीय वीरता और देश के लिए सर्वश न्योछावर कर इतिहास में अमर हो गए। इस ब्लॉग पोस्ट में हम इन महान नायकों की वीर गाथा की अमर कहानियों के बारें में संक्षेप में जानेंगे।
इसमें आप पढ़ेंगे।
मेजर सोमनाथ शर्मा:
मेजर सोमनाथ शर्मा (1947) – 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कश्मीर ऑपरेशन में लड़े। परमवीर चक्र विजेताओं की कहानी से पता चलता है की मेजर सोमनाथ शर्मा देश के पहले परम वीर चक्र विजेता हैं।
उन्होंने 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कश्मीर ऑपरेशन में अपने अदम्य साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन किया था। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने अंत समय तक दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।
लेकिन उन्होंने अपने बहादुरी, अदम्य साहस और कुशल नेतृत्व से दुश्मन के मंसूबों को नकाम कर दिया। चौथी कुमाऊं रेजीमेंट की डेल्टा कंपनी के अधिकारी मेजर सोमनाथ शर्मा को अक्टूबर 1947 को एक सूचना मिली की पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ हो रहा है।
फलतः मेजर मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपने 50 जावनों के साथ मोर्चा संभाला। उन्होंने अपनी छोटी टुकड़ी के साथ करीब 500 लश्कर कबिलाइयों को मुंहतोड़ जवाब दिया और 6 घंटे तक उन्हें रोके रखा।
उन्होंने मुख्यालय को संदेश भेजा की दुश्मन फौज की संख्या हमारे तुलना में बहुत ही ज्यादा है। हमारे बीच भयंकर गोलीबारी चल रही है। लेकिन हम आखिरी गोली और आखिरी जवान तक डटे रहेंगे। उन्होंने ऐसे ही किया और अपने पोस्ट को कब्जा होने से बचा लिया।
लेकिन इसी दौरान मेजर सोमनाथ शर्मा एक मोर्टार विस्फोट के चपेट में आकर शहीद हो गए। देश के लिए अपने सर्वस्व न्योछावर करने वाले इस महान वीर योद्धा को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
परमवीर चक्र विजेता ‘लांस नायक करम सिंह’ की कहानी:
लांस नायक करम सिंह (1948) – 1948 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और परमवीर चक्र पाने वाले पहले जीवित प्राप्तकर्ता थे। 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लांस नायक करम सिंह ने दुश्मन के सामने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया।
6 फरवरी, 1948 का दिन था। नायक जदुनाथ सिंह जम्मू-कश्मीर के ताइन धार में एक फॉरवर्ड सेक्शन पोस्ट पर तैनात थे।
तभी पाकिस्तान की तरफ से दुश्मन ने जोड़दार हमला कर किया। नायक जदुनाथ सिंह ने अपने पास मौजूद छोटी सी सेना की टुकड़ी की मदद से दुश्मन पर टूट पड़े। भयंकर गोली-बाड़ी में उनके साथी घायल हो गए।
क्योंकि दुश्मन की तुलना में इनकी संख्या काफी काम कमी थी। फिर भी नाइक जदुनाथ सिंह ने वीरतापूर्ण अपने सैन्य टुकड़ी का नेतृव किया। गोली लगने से घायल होने के बावजूद वे दुश्मन पर हमला करने में उत्कृष्ट क्षमता और उच्चतम स्तर की वीरता दिखाते रहे।
जिससे घबराकर दुश्मन पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन अंत में नायक जदुनाथ सिंह सिर और छाती में गोलियां लगने से शहीद हो गए।
उनकी अदम्य साहस और वीरता के सर्वोच्च कार्य करने और देश की सेवा के लिए आत्मबलिदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया।
सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे:
सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे ने भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया और नौशेरा की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान नौशेरा की लड़ाई में सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे ने अविश्वसनीय साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया। वह भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र के पहले जीवित प्राप्तकर्ता थे।
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान राणे ने अद्भुत वीरता का परिचय दिया। उन्होंने दुश्मन की भारी गोलाबारी के बीच काम करते हुए भारतीय सेना द्वारा राजौरी पर कब्ज़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी अदम्य साहस और असाधारण वीरता के लिए भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया। करीब 28 साल की सेवा के बाद 1968 में वे मेजर के पद से भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुए। उनकी जज्बा और देश भक्ति को यह देश हमेशा याद रखेगा।
नायक जादू नाथ सिंह:
नायक जादू नाथ सिंह (1948) – 1948 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और नौशेरा की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
नायक जदु नाथ सिंह को 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके कार्यों के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
जदुनाथ सिंह का जन्म उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर जिले के खजूरी गांव में 21 नवंबर 1916 को हुआ था। 1941 में भारतीय सेना की राजपूत रेजीमेंट में भर्ती शामिल होने वाले भारत के वीर सिपाही जनवरी 1948 में नौशेरा इलाके में अपनी टुकड़ी के साथ तैनात थे।
तभी उनकी पोस्ट पर बड़ी संख्या में पाकिस्तान की कबाइली आक्रमकारी ने हमला कर दिया। उन्होंने अपने साथियों के साथ उनका जबरदस्त मुकाबला किया। हालांकि दुश्मन की संख्या अधिक थी और उनके साथ एक-एक कर शहीद होते जा रहे थे।
लेकिन फिर भी जदुनाथ सिंह ने अपना हौसले को बुलंद रखा। उन्होंने अकेले ही अपने स्टेनगन से गोलियों की बौछार कर दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
लेकिन जब तक पैरा राजपूत अन्य टुकड़ियां ने मोर्चे को संभाला तब तक उनके सिर में गोली लग चुकी थी। जिससे वे वीरगति को प्राप्त हुए। उनके अद्भुत शौर्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत:
कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत (1948) – 1948 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और तिथवाल की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
1948 में टिथवाल की लड़ाई के दौरान, कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह ने अद्वितीय बहादुरी और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया। कई बार घायल होने के बावजूद, उन्होंने अपने लोगों का नेतृत्व करना जारी रखा और अंततः दुश्मन के बंकर पर कब्जा करने की कोशिश करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया।
सीएचएम पीरू सिंह अपने सिपाही के साथ जम्मू और कश्मीर के थिथवाल में दुश्मन से लोहा ले रहे थे। इसी बीच उन्हें भारी एमएमजी फायर और हथगोले की बौछार का सामना करना पड़ा। इस दौरान वे बुरी तरह घायल हो चुके थे।
उनके सभी साथी मारे जा चुके थे। लेकिन सीएचएम पीरू सिंह घायल होने के बावजूद लड़ाई जारी रखा। तब तक वे दुश्मन के ग्रेनेड के शिकार हो चुके थे। फिर भी खून से लथपथ रेंगते हुए आगे बढ़े और दुश्मन के एमएमजी पोस्ट को नष्ट कर पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
लेकिन अंत में वे वीर गति को प्राप्त हो गए। उनकी अत्यंत विशिष्ट वीरता, अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया।
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कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया:
कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया (1961) – कांगो में संयुक्त राष्ट्र ऑपरेशन के हिस्से के रूप में कांगो संकट में लड़े और उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना का हिस्सा के रूप में दुश्मन के हमले के खिलाफ अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। उन्होंने कांगो सिविल वॉर के दौरान 40 विद्रोहियों को अकेले ढेर कर दिया था।
उनकी वीरता और पराक्रम की कहानी देशवासियों के लिए प्रेरणास्पद है। उनकी शौर्यगाथा देशवासियों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है। उन्होंने भारतीय सेना के बहादुरी और भारत के मान सम्मान को विश्व पटल पर ऊंचा किया।
मेजर धन सिंह थापा:
मेजर धन सिंह थापा (1962) – भारत-चीन युद्ध में लड़े और लद्दाख की लड़ाई में उनकी बहादुरी और शूरवीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। मेजर धन सिंह थापा 8वीं गोरखा राइफल्स रेजिमेंट की पहली बटालियन में एक भारतीय सेना अधिकारी थे।
उन्होंने सन 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान दुश्मन से लोहा लेते हुए अदम्य साहस और अविश्वसनीय बहादुरी का परिचय देते हए अपनी सैन्य डुकड़ी का कुशलता पूर्वक नेतृत्व किया। साल था 1962 का जब मेजर थापा अपनी छोटी सी सैन्य डुकड़ी के साथ लद्दाख में एक अग्रिम चौकी पर तैनात थे।
तभी चीनी सैनिकों ने जोड़दार हमला कर दिया। चीनी सेना की संख्या बहुत अधिक होने के बावजूद भी उन्होंने बिना हिम्मत हारे दुश्मन के खिलाफ भीषण लड़ाई लड़ी और दुश्मन से तब तक लड़ते रहे जब तक की उनका गोला बारूद खत्म नहीं हो गया।
अंततः चीनियों से उन्होंने आमने सामने की लड़ाई लड़ी और दुश्मन को मुहतोड़ जबाव दिया। लेकिन अंत में उन्हें बंदी बना लिया गया और बाद में छोड़ दिया गया। मेजर धन सिंह थापा को देश के लिए महान योगदान, अदम्य साहस को देखते हुए उन्हें परमवीर चक्र प्रदान किया गया।
सूबेदार जोगिंदर सिंह:
सूबेदार जोगिंदर सिंह (1962) – भारत-चीन युद्ध में लड़े और टोंगपेन ला की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। सूबेदार जोगिंदर सिंह को 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान उनके कार्यों के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने चीनी सेना के खिलाफ एक भीषण लड़ाई में अपने लोगों का नेतृत्व किया और तब तक लड़ते रहे जब तक कि वह गंभीर रूप से घायल नहीं हो गए। उन्होंने दुश्मन के सामने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया।
लेकिन बुरी तरह घायल होने के कारण वे वीरगति को प्राप्त हो गए। भारत-चीन युद्ध के दौरान उनके असाधारण साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन करने के लिए मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
इस प्रकार सूबेदार जोगिंदर सिंह ने अपने देश सेवा और आत्म बलिदान द्वारा भारतीय सेना की उच्चतम परंपराओं का उदाहरण पेश किया। उनका नेतृत्व, वीरता और सर्वोच्च बलिदान आने वलि पीढ़ियों को हमेशा से प्रेरित करता रहेगा। म आदर्शों को प्रेरित और उदाहरण देने के लिए जारी है।
मेजर शैतान सिंह :
मेजर शैतान सिंह (1962) – भारत-चीन युद्ध में लड़े और रेजांग ला की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर शैतान सिंह को भी 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान उनके अदम्य साहस और वीरता पूर्ण कार्यों के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने चीनी सेना के खिलाफ एक भीषण लड़ाई में अपने टुकड़ी का नेतृत्व किया और तब तक लड़ते रहे जब तक कि वह गंभीर रूप से घायल होकर वीरगति को प्राप्त को प्राप्त हो गए। इस बहादुर भारतीय सैनिक मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1924 को एक राजस्थानी राजपूत परिवार में हुआ था।
1962 की भारत और पाकिस्तान की लड़ाई के दौरान गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने अंतिम सांस तक लड़ाई जारी रखी और दुश्मन को भारी नुकसान पहुचाया।
लेकिन अंत में घायल होने के कारण मेजर शैतान सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। उनके सर्वोच्च बलिदान और अनुकरणीय नेतृत्व आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।
कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हामिद:
कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हामिद (1965) – 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और असल उत्तर की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हमीद एक वीर भारतीय सैनिक थे, जिन्होंने भारत-पाक युद्ध में अपनी बहादुरी और पराक्रम दुश्मन को नाकों चना चवाने पर मजबूर कर दिया।
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने अविश्वसनीय बहादुरी और साहस का प्रदर्शन किया। पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट करने में उन्होंने अपनी अद्भुत क्षमता और साहस का प्रदर्शन किया।
उनकी दुश्मन के सामने असाधारण वीरता, अदम्य साहस और आत्मबलिदान के लिए भारत सरकार ने मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया। अब्दुल हमीद की बहादुरी और समर्पण को सलाम देश हमेशा याद रखेगा।
लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशिर तारापोर:
लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशिर तारापोर (1965) – 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और फिलोरा की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशिर बुर्जोरजी तारापोर एक बहादुर भारतीय सैनिक थे जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अदम्य साहस और बहादुरी का परिचय दिया था।
देश के लिए समर्पण और आत्म-बलिदान के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्होंने असाधारण साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी सेना के खिलाफ भीषण लड़ाई में अपनी रेजिमेंट का नेतृत्व किया।
उन्होंने 1965 में पाकिस्तान के साथ जंग में 60 से ज्यादा पाकिस्तानी सेना के टैंकों को नष्ट कर दिया। लेकिन इस वीरता पूर्ण कारवाई के दौरान वे शहीद हो गये थे। उनकी वीरता और युद्ध कौशल को देश नमन करता है।
लांस नायक अल्बर्ट एक्का :
लांस नायक अल्बर्ट एक्का (1971) – 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और गंगासागर की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। लांस नायक अलबर्ट एक्का भारत माता के वीर सिपाही थे।
जिन्होंने अपने अदम्य साहस और उत्कृष्ट वीरता का परिचय देते हुए 1971 के भारत-पाक युद्ध में दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए थे। उस बक्त अलबर्ट ने अपना मोर्चा कलकता से थोड़ी दूर गंगा सागर (Gangasagar) के पास था।
बक्त था 03 दिसंबर 1971 का दोनों ओर से जबरदस्त गोलियां चल रही थीं। उन्होंने अपने साथियों के साथ पाक सेना का बंकर उड़ाकर उनके 65 से अधिक सैनिकों को ढेर कर दिया। लेकिन वापस आने के दौरान ऊपर टावर पर खड़ी पाक सेना ने अचानक हमला कर दिया।
जिसमें 15 भारतीय सैनिक शहीद हो गए। लेकिन दुश्मन द्वारा गोलियों के बौछार के बीच बहादुर अलबर्ट ने दौड़ते हुए उस टावर पर चढ़ गए जहाँ दुश्मन मशीनगन से गोलियां बरसा रहे थे। उन्होंने मशीनगन को अपने कब्जे में लेकर दुश्मनों को तहस-नहस कर दिया।
लेकिन इस दौरान अलबर्ट एक्का के शरीर में 20 से भी अधिक गोलियां लगने से काफी टाप टावर से नीचे गिर कर शहीद हो गए। इस प्रकार कहा जाता है की उन्होंने अपनी शहादत देकर 150 से अधिक भारतीय सेना की जान बचायी।
उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सैन्य सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों:
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों (1971) – 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और श्रीनगर की लड़ाई में एक लड़ाकू पायलट के रूप में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके कार्यों के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। वह भारतीय वायु सेना के एकमात्र जवान हैं जिन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया गया।
उन्होंने अकेले भारतीय वायु सेना बेस पर हमला करने वाले छह पाकिस्तानी लड़ाकू जेट विमानों को मार गिराया था। जिससे वे कई भारतीय विमानों के नष्ट होने से रोकने में कामयाब रहे।
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल:
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (1971) – 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और बसंतर की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके कार्यों के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्होंने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ टैंक युद्ध में बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
इस कार्रवाई के दौरान शहीद होने से पहले उन्होंने दुश्मन के कई टैंकों को नष्ट कर दिया।
मेजर होशियार सिंह :
मेजर होशियार सिंह (1971) – 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े और बसंतर की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। मेजर होशियार सिंह को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके वीरतापूर्ण कार्यों के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
मेजर होशियार सिंह का 1971 के भारत-पाक युद्ध में बसंतर की लड़ाई में बड़ा योगदान माना जाता है। इस दौरान उन्होंने बड़ी ही कुशलता से अपने सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व किया। दुश्मन की संख्या अधिक होने के बावजूद उन्होंने उनके गढ़ में घुसकर दुश्मन को मुहतोड़ जबाब दिया।
इस लड़ाई में वे घायल हो गए लेकिन फिर भी अपने कदम को पीछे नहीं हटाये। जब भारतीय सेना आगे बढ़ रही थी, तब उनकी टुकड़ी पर पाकिस्तान की ओर से मशीनगन से जोरदार हमला हुआ। लेकिन सीधी लड़ाई में होशियार सिंह ने पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
बाद में पाकिस्तानी सेना टैंकों से गोले बरसाने लगी। लेकिन होशियार सिंह ने मोर्चा संभालाते हुए ताबड़तोड़ पाकिस्तानी सेना पर फायरिंग शुरू कर दी। मजबूरन पाकिस्तानी सेना को पीछे भागना पड़ा।
इस युद्ध में कुल चार भारतीय वीर जावनों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। जिसमें अकेले मेजर सिंह को जीते जी इस सम्मान से सम्मानित किया गया था।
नायब सूबेदार बाना सिंह :
नायब सूबेदार बाना सिंह (1987) – सियाचिन संघर्ष में लड़े और सियाचिन की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। सूबेदार (मानद कैप्टन) बाना सिंह को 1987 में सियाचिन संघर्ष के दौरान उनके कार्यों के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कैप्टन बाना सिंह एक बहादुर भारतीय सैनिक थे जिन्होंने सियाचिन संघर्ष के दौरान अपने असाधारण वीरता, अदम्य साहस के साथ अपने सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व किया था। वर्ष 1987 में बाना सिंह जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री में तैनात थे।
उन्हें अपने साथियों के साथ 21,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर में पाकिस्तानी फौज द्वारा कब्जा की गई भारतीय पोस्ट(बंकर) को खाली कराने का जिम्मेदारी सौंपा गया। उस बक्त मौसम अत्यंत ही विषम था।
लेकिन इस विषम मौसम में भी अपने जवानों के साथ दुश्मन की गोलाबारी का सामना करते हुए वे आगे बढ़े। अपने जवानों का कुशल नेतृत्व करते हुए वे पाकिस्तान की कब्जे वाली पोस्ट को ग्रेनेड्स से तबाह कर दिया। उनके इस करबाई से कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए।
इस प्रकार उन्होंने भारतीय पोस्ट को पाकिस्तानी कब्जे से मुक्त कराया। अति प्रतिकूल परिस्थितियों में भी विशिष्ट वीरता और उत्कृष्ट नेतृत्व का प्रदर्शन करने के लिए नायब सूबेदार बन्ना सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। बाद में बाना सिंह को कैप्टन की मानद रैंक प्रदान किया गया।
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन:
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन (1987) – श्रीलंकाई गृहयुद्ध में लड़े और श्रीलंका की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन को 1987 में श्रीलंकाई गृहयुद्ध के दौरान उनके कार्यों के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्हें शांति अभियान के तहत भारतीय सेना की टुकड़ी के साथ श्रीलंका भेजा गया।
जहाँ उन्होंने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के खिलाफ एक भीषण लड़ाई में अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। मेजर रामास्वामी परमेश्वरन गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी पीछे नहीं हटे और 6 उग्रवादियों को ढेर कर दिया था।
लेकिन सिने में गोली लगने से अंततः वे शहीद हो गए। इस प्रकार मेजर परमेश्वरन ने वीरता की अद्भुत मिसाल कायम की।
कैप्टन विक्रम बत्रा:
कैप्टन विक्रम बत्रा (1999) – कारगिल युद्ध में लड़े और प्वाइंट 4875 की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन विक्रम बत्रा को 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान उनके अदम्य साहस और वीरता भरी कार्यों के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने असाधारण साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी सेना के कब्जे से अपने दो महत्वपूर्ण चोटियों को छुड़ाया था। इस साहसिक अभियानों का नेतृत्व करते बक्त घायल होने की वजह से वे शहीद हो गए।
विक्रम ने अदम्य साहस और देश भक्ति की अभूतपूर्व मिसाल पेश करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया। भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया।
परम योद्धा कैप्टन मनोज पांडे :
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे (1999) – कारगिल युद्ध में लड़े और खालुबार की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। कैप्टन मनोज पांडे की कहानी उनकी अदम्य साहस और देश के लिय मार मिटने की प्रेरणा देती है।
1999 के कारगिल की लड़ाई के दौरान मनोज पांडे अपने बटालियन के साथ आगे बढ़ रहे थे। उन्हें चोटी पर बने चार बंकर उड़ाने का आदेश दिया गया था। लेकिन मनोज ऊपर पहुंचे तो उन्होंने पाया की ऊपर 6 बंकर हैं और सभी बंकर में 2-2 मशीन गनों से लगातार गोलियां बरसा रहीं है।
मनोज पांडे ने दुश्मन की गोली के परवाह किए बिना दुश्मन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने लगे। तभी एक गोली उनके पैर में लग गई। घायल होने के बावजूद वे आगे बढ़ते रहे और हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट में कई दुश्मनों को मार गिराया।
उन्होंने पहला बंकर तबाह करने के बाद रेंगते हुए आगे बढ़े और दो और बंकरों को भी तबाह कर दिया। इसी क्रम में अन्य दुश्मन के बंकर से चार गोलियां उनके शरीर में लगी। लेकिन फिर भी उन्होंने उस बंकर को भी नष्ट कर दिया।
अंत में कैप्टन पांडे की बटालियन ने खोलाबार पर कब्जा कर लिया। लेकिन हीरो ऑफ बटालिक कैप्टन मनोज कुमार पांडे अपने देश के लिए शहीद हो गए। भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित किया।
राइफलमैन संजय कुमार:
राइफलमैन संजय कुमार (1999) – कारगिल युद्ध में लड़े और प्वाइंट 4875 की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्हें बाद में सूबेदार मेजर बनाया गया।
सूबेदार मेजर (तत्कालीन राइफलमैन) संजय कुमार की कारगिल लड़ाई के दौरान एरिया फ्लैट टॉप पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। राइफलमैन संजय कुमार ने 1999 में कारगिल युद्ध में अपना पराक्रम का परचम फहराते हुए दुश्मनों को मंसूबों पर पानी फेर दिया था।
उनके सम्मान में उनके नाम पर अंडनाम निकोबार में एक द्वीप का नाम रखा गया है। भारत सरकार ने उनके अदम्य साहस और वीरता भरी उत्कृष्ट कार्य के लिए देश के सबसे बड़े सैन्य सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।
ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव:
ग्रेनेडियर (मानद कैप्टन) योगेन्द्र सिंह यादव (1999) – कारगिल युद्ध में लड़े और टाइगर हिल की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके सम्मान में उनके नाम पर अंडनाम निकोबार में एक द्वीप का नाम रखा गया है।
कहा जाता है की मात्र 19 वर्ष की आयु में ग्रेनेडियर यादव ने परमवीर चक्र प्राप्त कर इतिहास रच दिया। ग्रेनेडियर यादव सबसे कम उम्र के वीर सैनिक हैं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ।
कारगिल युद्ध के हीरो रहे कैप्टन (तत्कालीन ग्रेनेडियर) योगेंद्र सिंह यादव अपने 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की घातक प्लाटून के साथ टाइगर हिल पर कब्जा करने के अभियान पर थे।
इस दौरान दुश्मन की तरफ से भारी गोली बाड़ी में उन्हें 18 गोलियां लगी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और कई दुश्मन सेना को मौत के घाट उतारकर अपने उद्देश्य में सफल रहे।
उपसंहार (Conclusion)
भारत के इस 21 वीर योद्धाओं ने अपने साहस, दृढ़ संकल्प और बलिदान द्वारा देश भक्ति की अमिट मिसाल पेश की। आपको यह जानकर गर्व होगा कि भारतीय इतिहास में ऐसे वीर सैनिक हुए हैं, जो अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा के लिए अंत तक लड़ते रहे।
उनकी अदम्य साहस और वीरता को हमें नमन करना चाहिए। ताकि आने वाली देश की पीढ़ियां हमेशा इनसे प्रेरित होकर देश सेवा के लिए तैयार रहें। हमें आशा है की परमवीर चक्र विजेताओं की कहानी (Param Vir Chakra Winners Stories in Hindi) प्रेरणादायक लगी होगी।
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स्रोत(Sources)- Wikipedia, National War Memorial