बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) भगवान विष्णु को समर्पित हिंदू समुदाय के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर बद्रीनाथ, उत्तराखंड में स्थित राज्य के चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर को बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ चार तीर्थ स्थलों को सामूहिक रूप से यहाँ के चार धाम के रूप में जाना जाता है। उत्तराखंड का यह तीर्थ स्थल हर साल बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।
बद्रीनाथ को आठवें वैकुंठ के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु छह महीने सोते थे और छह महीने तक जागते थे। यहां शालग्राम शिला से बनी भगवान विष्णु की चार हाथों वाली मूर्ति ध्यान मुद्रा में मौजूद है।
इस स्थान पर नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है तथा हमेशा अखण्ड दीप जलता रहता है। स्कंद पुराण में भी इस स्थान का वर्णन करता है। कहते हैं स्वर्ग, पृथ्वी और नरक लोक में अनेकों पवित्र मंदिर हैं। लेकिन बद्रीनाथ जैसा कोई मंदिर नहीं है।
यह स्थल कई प्रसिद्ध ऋषियों मुनियों की तपोभूमि रही है। शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, श्री माधवाचार्य, श्री नित्यानंद जैसे मध्यकालीन धार्मिक संत भी यहाँ शांत चिंतन के लिए आए थे। इस मंदिर का इतना महत्व है की दर्शन मात्र से भक्त जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।
क्या सच में लुप्त हो जाएंगे बद्रीनाथ धाम
हिमालय की तराई में अवस्थित बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) करीब 6 माह के लिए भक्तों को दर्शन नहीं देते। क्योंकि इस दौरान अत्यधिक ठंड और बर्फ के कारण मंदिर के कपाट बंद हो हैं।
बद्रीनाथ तीर्थ स्थलों की रोचक कहानी भी गंगा की कहानी से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार तरह तरह के प्राकृतिक आपदा के कारण जिस दिन पतित पावन गंगा धरती से समाप्त होने लगेगी उस दिन से यह धाम भी धीरे-धीरे लुप्त होने लगेगा।
दूसरी मान्यता है की बद्रीनाथ नर और नारायण पर्वत के मध्य अवस्थित है। जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में सट जायेंगे। उस दिन बद्रीनाथ जाने का रास्ता पूरी तरह अवरुद्ध हो जाएगा और बद्रीनाथ के दर्शन नहीं सकेंगे।
इस बात का उल्लेख पुराने धर्मग्रंथों में भी मिलता है। पुराणों में कहा गया है कि वर्तमान बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम आने वालों समय में लुप्त हो जाएंगे।
इससे जुड़ी दूसरी मान्यता यह है की जोशीमठ में स्थित भगवान नरसिंह की मूर्ति का एक हाथ हर साल पतला होता जाता है। कहते हैं की जिस दिन यह हाथ पतला होते-होते लुप्त हो जायेगा। उस समय से यह धाम धीरे-धीरे लुप्त होना शुरू हो जायेगा।
बद्रीनाथ धाम कहाँ स्थित है।
यह धाम उतराखंड राज्य में गढ़वाल जिले में हिमालय में करीब 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित ‘बद्रीनाथ’ प्रसिद्ध अलकनंदा नदी के तट पर अवस्थित है।
बद्रीनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा
इस धाम से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। लोक कथाओं के अनुसार, विष्णु भगवान ने नीलकंठ पर्वत के पास एक शिशु के रूप में अवतरण लिया था। एक बार की बात है भगवान विष्णुजी अपने ध्यान और विश्राम के लिए एक उपयुक्त स्थान की खोज कर रहे थे।
इसी क्रम में उन्हें अलकनंदा नदी के पास का स्थान बहुत पसंद आ गया। लेकिन वहाँ पर भगवान शंकर और माता पार्वती रहते थे। एक दिन भगवान शिव और माता पार्वती बाहर गए और जब वे लौटे तो देखा कि एक छोटा बच्चा उनके दरवाजे के पास रो रहा है।
माता पार्वती का उस बच्चे के प्रति दया जागृत हुआ। उन्होंने बच्चे को उठाने लगी तब शिवजी ने माता पार्वती को रोका और कहा की वह बच्चे को न छुए। जब माता पार्वती ने कारण जानना चाहा तब भगवान शिव ने कहा, यह कोई साधारण बच्चा नहीं हो सकता।
क्योंकि यह अचानक यहां कैसे और कहां से आया? इनके माता-पिता भी दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है। जरूरी कोई मायावी बच्चा है। लेकिन मां पार्वती सहमत नहीं हुई और उसने उस बच्चे को उठा कर अपने घर के अंदर ले आई।
उन्होंने बच्चे को वहां सुलाकर शिव जी के साथ पास के झरने में स्नान करने चली गई। जब दोनों वापस लौटे तो देखा कि घर का दरवाजा अंदर से बंद था।तब माता पार्वती ने शिवजी से पूछा कि अब हमें क्या करना चाहिए।
लेकिन शिवजी ने कहा कि मेरे मना करने के बाद तुमने बच्चा को घर के अंदर ले आई। अब मैं कुछ नहीं कर सकता। भगवान शिव, विष्णु भगवान की लीला समझ चुके थे। उन्होंने कहा चलो हम अव नए निवास स्थल को ढूंढते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि शिव औरमाता पार्वती ने उस स्थान को छोड़ दिया केदारनाथ चले गए। इस तरह बद्रीनाथ को भगवान विष्णु ने अपना निवास स्थल बनाया।
बद्रीनाथ धाम की कहानी
एक बार की बात है भगवान विष्णु ध्यान कर रहे होते हैं। उसी दौरान इतनी अधिक बर्फबारी होने लगती है कि भगवान विष्णु का शरीर पूरी तरह से बर्फ में ढकने लगता है। जब मां लक्ष्मी यह देखती हैं तो परेशान हो जाती हैं।
फिर उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के करीब आकार बद्री नामक वृक्ष का रूप ले लेती है। इस प्रकार जब तक भगवान विष्णु तपस्या में लीन रहे तब तक छतरी बनकर बर्फ से भगवान विष्णु की बर्फ से रक्षा करती रही।
जब भगवान विष्णु की तपस्या पूरी हुई और अपनी आंखे खोली तो उन्होंने लक्ष्मीजी को देखकर अति प्रसन्न हो गए। देवी लक्ष्मी को देखकर भगवान विष्णु ने कहा की हे देवी तुमने भी ऐसे कर मेरे बराबर की तपस्या की है।
इसलिए आज से इस धाम में मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी। तुमने मुझे बद्री वृक्ष के रूप में सुरक्षित रखा है, इसलिए आज से मैं ‘बद्रीनाथ’ के नाम से भी जाना जाऊंगा। यही बद्रीनाथ धाम के नाम का रहस्य है। इस प्रकार भगवान विष्णु ‘बद्रीनाथ’ कहलाये।
मंदिर की स्थापना
हिंदू परंपरा के अनुसार, बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। कहते हैं की आदि श्री शंकराचार्य द्वारा हिंदू धर्म को पुनर स्थापित करने के लिए इस मंदिर की स्थापना की गई थी।
आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म की महिमा को वापस लाने का कार्य करते हुए हिंदू देवताओं शिव और विष्णु के मंदिरों का निर्माण किया।
मंदिर की डिजाइन और संरचना
बद्रीनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर, स्वयं भगवान की मुख्य मूर्ति के ठीक सामने, भगवान बद्रीनारायण के वाहन पक्षी गरुड़ की मूर्ति विराजमान है। गरुड़ को हाथ जोड़कर बैठे और प्रार्थना करते हुए दिखाया गया है। मंडप की दीवारें और खंभे जटिल नक्काशी से ढके हुए हैं।
बद्रीनाथ मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार बहुत भव्य है, मंदिर के इस द्वार को सिंहद्वार के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर करीब 50 फीट ऊंचा है। इसके शीर्ष पर एक छोटा गुंबद है, जो सोने की छतरी से ढका है। बद्रीनाथ मंदिर को तीन भागों में विभाजित किया गया है (1) गर्भगृह (2) दर्शन मंडप और (3) सभा मंडप ।
गर्भगृह: यह भाग सोने की छतरी से ढकी हुई है। मंदिर परिसर में करीब 15 प्रतिमाएं हैं। यहां का विशेष आकर्षण भगवान बद्रीनाथ की एक मीटर ऊंची प्रतिमा है, जिसे लगता है की काले पत्थर को बारीक रूप से तराश कर बनाया गया हो।
दर्शन मंडप: चतुर्भुज भगवान बद्री नारायण अपने दो भुजाओं में शंख और चक्र तथा अन्य दो भुजाओं में योग मुद्रा में बैठे हैं।
सभा मंडप: यह मंदिर परिसर में एक जगह है जहां तीर्थयात्री इकट्ठा होते हैं ।
मंदिर खुलने का समय
भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर के कपाट साल में छह महीने तक खुला रहता है और जाड़े के मौसम में भारी बर्फबारी के कारण इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। यह मंदिर अत्यधिक सर्दियों के बाद अप्रैल से लेकर नवंबर तक गर्मियों के महीनों के दौरान खुला रहता है। मंदिर खुलने का समय सुबह 4:30 बजे है। जहां शाम तक विभिन्न अनुष्ठान होते रहते हैं।
बद्रीनाथ धाम कैसे पहुंचे
यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है, जो बद्रीनाथ से लगभग 10 घंटे की दूरी पर है। जहां रोड के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
बद्रीनाथ धाम में अन्य दर्शनीय स्थल
आप यहाँ बद्रीनाथ धाम मंदिर में दर्शन के अलावा भी अन्य कई प्राचीन स्थल को भी देख सकते हैं। यहाँ आप गढ़वाल क्वीन’ के नाम से प्रसिद्ध बर्फ से ढंका ऊंचा शिखर नीलकंठ, को भी देखा जा सकता है। इसके अलावा आप कुछ इन स्थानों का भी दर्शन कर सकते हैं।
- तप्त कुंड –
- ‘सांप’ शिल्ला’ –
- ‘शेषनेत्र’ –
- ‘चरणपादुका’
बद्रीनाथ मंदिर कहां है?
बद्रीनाथ मंदिर चमौली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है।
बद्रीनाथ धाम में किस देवता का मंदिर है?
बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर है। बद्रीनाथ गढ़वाल हिमालय में समुन्द्र तल से 10279 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
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