acharya ramchandra shukla in hindi – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

Acharya Ramchandra Shukla In Hindi - आचार्य रामचंद्र शुक्ल जीवन परिचय

Acharya Ramchandra Shukla In Hindi – आचार्य रामचंद्र शुक्ल जीवन परिचय

आचार्य रामचंद्र शुक्ल (Acharya Ramchandra Shukla )को हिंदी साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है। हिंदी साहित्य में वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्होंने ही की। हिन्दी निबंध के क्षेत्र में शुक्ल जी का स्थान सर्वोपरि है।

हिन्दी साहित्य का इतिहास उनकी द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकों मे एक है। शुक्ल जी हिन्दी के अद्वितीय, मौलिक और गंभीर निबंधकार थे। उन्होंने अपने दृष्टिकोण से विभिन्न भावों की पुनर्व्याख्या की।

आचार्य शुक्ल (Acharya Ramchandra Shukla) में बहुआयामी प्रतिभा मौजूद थी, जिससे उनके आलोचकीय व्यक्तित्व को निखारने में मदद मिली। उनकी आलोचकीय व्याख्या बहुत गंभीर और रोचक थी।

उन्होंने हिन्दी शब्द सागर तथा नागरी प्रचारिणी का संपादन किया। कासी हिन्दू विश्वविध्यालय में वे हिन्दी के विभागाध्यक्ष के पद पर आसीन रहे। उन्होंने व्यावहारिक तथा भावात्मक निबंधों की रचना के द्वारा हिंदी साहित्य की अद्वितीय सेवा की।

शुक्ल जी ने अपनी रचनाओं में कोमलता, भवात्मक मधुरता और सहृदयता जैसे भावों के समायोजन से गंभीर विचारात्मक निबंधों की रचना की। संस्कृत काव्यशास्त्र की नये ढंग से व्यावहारिक व्याख्या की।

उन्होंने हिंदी साहित्य का पहली बार व्यवस्थित और वैज्ञानिक ढंग से इतिहास लिखा। आचार्य रामचंद्र शुक्ल बीसवीं शताब्दी के हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। तो दोस्तों आईये Acharya Ramchandra Shukla के बारें में विस्तार से जानते हैं।

Acharya Ramchandra Shukla In Hindi - आचार्य रामचंद्र शुक्ल जीवन परिचय
Acharya Ramchandra Shukla In Hindi – आचार्य रामचंद्र शुक्ल जीवन परिचय

आचार्य रामचंद्र शुक्ल संक्षिप्त झलक – Acharya Ramchandra Shukla in hindi

  • जन्म – 4 अक्टूबर 1884ईस्वी, बस्ती, उत्तर प्रदेश
  • रचना – हिंदी साहित्य का इतिहास, रस मीमांसा, चिंतामणि
  • संपादन : हिंदी शब्द सागर, नागरी प्रचारिणी
  • मृत्यु – सन 1941ईस्वी, वाराणसी, उत्तरप्रदेश

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय (acharya ramchandra shukla ka jeevan parichay )

रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन 4 अक्टूबर 1884 ईस्वी को बस्ती जिला के अगोना गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रबली था। उनके पिता सुपर वाइजार कानूनगो थे। जब उनके पिता की नियुक्ति मिर्जापुर के राठ तहसील में हुई।

तब शुक्ल जी का पूरा परिवार मिर्जापुर में शिफ्ट हो गया। शुक्ल जी की पढ़ाई भी वहीं पर आरंभ हुई। बचपन में ही उनकी माँ का निधन हो गया। दादी से उन्हें बचपन से ही रामायण, सुरसागर की कहानी सुनने का मौका मिला।

वे अपने पिता के साथ रामचरितमानस का पाठ व श्रवण भी किया करते थे। घर पर ही उन्हें संस्कृत की शिक्षा प्राप्त हुई। स्थानीय मिडिल स्कूल में उन्हें उर्दू और अंग्रेजी का ज्ञान मिला उनके घर के पास ही संस्कृत के विद्वान पंडित बिंदेश्वरी प्रसाद रहते थे। 

वे अक्सर कुछ लड़कों के साथ पहाड़ों की तरफ जाया करते और उत्तर-रामचरित के श्लोकों का बहुत ही मधुर आवाज में पाठ करते थे। बालक शुक्ल भी उनके साथ पहाड़ों की तरफ चले जाते थे।

वास्तव में उन्हीं की प्रेरणा के फलस्वरूप शुक्ल जी के अंदर हिंदी एवं संस्कृत के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हुआ।उन्होंने सन 1898 ईस्वी में मिडिल स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।

Acharya Ramchandra Shukla उसके बाद वे लंदन-मिशन स्कूल से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के बाद उनके पिता चाहते थे की कचहरी में जाकर दफ्तर में काम सीखे। लेकिन शुक्ल जी की इच्छा उच्च शिक्षा प्राप्त करने को थी।

फलतः उनके पिता ने शुक्ल जी को आगे की पढ़ाई के लिए प्रयागराज भेज दिया। प्रयागराज में उनके पिता ने वकालत की पढ़ाई के लिए उनका नामांकन करा दिया। लेकिन उनकी रुचि तो वचपन से ही हिन्दी साहित्य के प्रति थी।

कहते हैं की उन्हें वकालत की पढ़ाई में तनिक भी मन नहीं लगा। कुछ दिनों के बाद उन्हें एक सरकारी ऑफिस में ₹20 मासिक की क्लर्क की नौकरी मिली। परंतु कुछ समय बाद ही वे इस नौकरी को छोड़ दिए।

वे मिर्जापुर के मिशन स्कूल में ड्राइंग टीचर के पद पर नियुक्त हो गए। लेकिन उन्होंने अपना साहित्यिक रचना का सफर जारी रखा। यही वह दौर था, जब उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे।

उनकी अद्भुत रचना के कारण उनकी प्रसिद्ध और यश चारों ओर फैलने लगी। उनकी प्रसिद्धि से प्रभावित, काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने सन 1908 में उन्हें “हिंदी शब्द सागर” के संपादन का जिम्मेदारी दी।

इस जिम्मेदारी को उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया। इसके बाद वे नागरी प्रचारिणी नामक पत्रिका के भी संपादक रहे। बाद में शुक्ल जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के अध्यापन का कार्य करने लगे।

अपने प्रतिभा के बल पर वे सन 1937 ईस्वी में हिंदी विभागयाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति हुए। इस पद पर रहते हुए उन्होंने हिन्दी साहित्य की महती सेवा की।

शुक्ल जी का निधन  (death of acharya Ramchandra Shukla

अस्वास्थता के कारण आचार्य शुक्ल का (Ram Chandra Shukla) 2 फरवरी 1941 ईस्वी को रविवार रात 9:00 बजे हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। शुक्ल जी भले ही इस संसार को छोड़कर चले गये। लेकिन हिंदी साहित्य रूपी अनन्त आकाश में सितारा की भाँति हमेशा प्रकाशमान रहेंगे।

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उनकी प्रमुख रचनायें

हिन्दी के गद्य साहित्य में जो स्थान आचार्य राम चंद्र शुक्ल जी को प्राप्त है वह अन्य किसी लेखक को नहीं मिला पाया। उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार है।

हिन्दी साहित्य का इतिहास – शुक्ल जी के अंदर एक कुशल इतिहासकर के सभी गुण मौजूद थे। उनके द्वारा रचित ग्रंथ ‘ हिन्दी साहित्य का इतिहास’ एक प्रसिद्ध और प्रामाणिक ग्रंथ है।

सम्पादन का कार्य – हिंदी शब्द सागर, नागरी प्रचारिणी नामक पत्रिका ।

उनके प्रसिद्ध निबंध – उत्साह, घृणा, श्रद्धा-भक्ति, लज्जा और ग्लानि, लोभ और ईर्ष्या, भय और क्रोध, साहित्य, साधरनिकरण, रसात्मक बोध के विविध रूप, मानस की धर्म भूमि, तुलसी का भक्ति मार्ग, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, मित्रता, काव्य में लोक-मंगल की साधनवस्था प्रमुख है।

भाषा शैली

शुक्ल जी की भाषा सरल सुबोध और अत्यंत परिष्कृत, परिमार्जित एवं साहित्यिक है। उनकी रचनाओं की भाषा में जो गंभीरता, संयम एवं सौरभ है। वह अन्य किसी भाषा के साहित्यकार अथवा आलोचक में दुर्लभ ही नजर आती है।

सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों के व्यक्त करने में शुक्ल जी की भाषा सर्वथा समर्थ जान पड़ती है। भावों की अभिव्यक्ति, वो भी नपे तुले शब्दों में, यह उनकी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता है। शुक्ल जी की भाषा के शब्द उनके भावों की प्रतिविम्ब है।

उन्होंने जहाँ दुरूह भावों का प्रतिपादन किया है। फिर भी उन्होंने अपनी भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने का प्रयत्न किया है। उनकी रचनाओं में बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले अंग्रेजी और उर्दू के शब्द भी पाये जाते हैं।

उनकी रचनाओं में मुहावरों एवं कहावतों का भी सुंदर उपयोग मिलता है। थोड़े में ही बहुत कह देना उनकी भाष शैली की प्रमुख विशेषता है। Acharya Ramchandra Shukla In Hindi

हिन्दी साहित्य में शुक्ल जी का स्थान

शुक्ल जी के अंदर एक कुशल इतिहासकर के सभी गुण मौजूद थे जिसे उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण रचना में प्रमाणित भी किया है। हिंदी साहित्य का इतिहास रामचंद्र शुक्ल के द्वारा रचित महत्वपूर्ण रचना है। शुक्ल जी उच्च कोटी के प्रबुद्ध एवं गंभीर आलोचक में से एक थे।

हिंदी साहित्य में वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं ने किया था। तुलसी, सूर और जायसी की जैसी निष्पक्ष, मौलिक और विद्वत्तापूर्ण आलोचनाएं उनकी रचनाओं की विशेषता है। निबंधकार के रूप में भी शुक्ल जी का स्थान सर्वोपरि है।

वे एक श्रेष्ठ, गंभीर तथा मौलिक निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं। उनके सभी निबंधों में गहरी सूझ-बुझ, तर्कपूर्ण पैनी दृष्टि सर्वत्र देखने को मिलती है।  हिन्दी साहित्य के गद्य-शैली में उनका नाम सर्वश्रेष्ठ रचनाकार के रूप में ली जाती है।

एक पत्रकार के रूप में भी उनका नाम काफी प्रसिद्ध हुआ। किसी भी विषय को नपे-तुले शब्दों में स्पष्ट करना उनकी व्यक्तिगत विशेषता थी। उन्होंने अपने अंदाज में भाव ,विभाव,रस आदि की पुनव्याख्या की।

उनके द्वारा विभिन्न भावों की व्याख्या में उनका विद्वता और सूक्ष्म पर्यवेक्षण साफ-साफ नजर आता है। शुक्ल जी द्वारा नपे तुले शब्दों में भावों की अभिव्यक्ति उनकी रचना की सबसे बड़ी विशेषता है। 

उपसंहार (conclusion )

हिन्दी साहित्य में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। उनके द्वारा रचित सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है “हिन्दी साहित्य का इतिहास” है। जिसके माध्यम से आज भी काल-निर्धारण एवं पाठ्यक्रम के निर्माण में हेल्प ली जाती है।

हिंदी साहित्य के सर्वाधिक प्रख्यात और लोकप्रिय आलोचक रामचंद्र शुक्ल (Acharya Ramchandra Shukla ) के गांभीर्य-भाव, बहुआयामी व्यक्तित्व एंव अनुपम कृत्य का हिंदी साहित्य हमेशा ऋणी रहेगा।

दोस्तों Acharya Ramchandra Shukla In Hindi शीर्षक का यह लेख आपको कैसा लगा अपने सुझाव से जरूर अवगत करायें ।

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