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देवकीनन्दन खत्री कौन हैं ( devaki nandan khatri in hindi)
देवकीनन्दन खत्री भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय तिलिस्मी लेखक हैं। ‘तिलिस्म’, ‘ऐय्यार’ और ‘ऐय्यारी’ जैसे शब्दों को हिन्दी भाषियों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय बनाने में बाबू देवकीनंदन खत्री जी का हाथ है।
उन्हें हिन्दी साहित्य के पहले तिलिस्मी लेखक के रूप में जाना हैं। तिलिस्मी का अर्थ होता है चमत्कारिक या जादुई रहस्य से भरी कहानी। वे तिलिस्म उपन्यास की रचना कर हिन्दी जगत में प्रसिद्ध हो गए।
देवकीनंदन खत्री के चर्चित उपन्यास में चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी नरेंद्र मोहिनी, भूतनाथ आदि प्रसिद्ध हैं। अपने अद्भुत रचनाओं के माध्यम से उन्होंने लोगों के हृदय में एक अमिट छाप छोड़ी।
कहा जाता है की हिन्दी में रचित उनके उपन्यास के लिए गैर हिन्दी भाषी का भी रुझान हिन्दी के तरफ हुआ। इस प्रकार उनका हिन्दी के प्रचार प्रसार में अहम योगदान रहा। उनके उपन्यास को हर उम्र के लोग बड़े ही रुचि से पढ़ते थे।
कहा जाता था की उनके कुछ पाठक ने तो सिर्फ उनके उपन्यास पढ़ने के लिए हिन्दी सीखी।
देवकीनंदन खत्री का जीवन परिचय – devaki nandan khatri biography in hindi
प्रारम्भिक जीवन
प्रसिद्ध तिलिस्म लेखक देवकीनंदन खत्री का जन्म दिनांक 29 जून 1861 ईस्वी में बिहार के समस्तीपुर के पूसा में हुआ था। उनके पिता जी का नाम ‘लाला ईश्वरदास था। ‘लाला ईश्वरदास’ पंजाब के रहने वाले थे।
इनके पिता महाराजा रंजीत सिंह के पुत्र शेरसिंह के शासनकाल में लाहौर से कासी में आकार बस गये। कहते हैं की उनके पूर्वज भी मुगलकाल में अच्छे पद पर तैनात थे।
पारिवारिक जीवन
देवकीनन्दन खत्री का बिहार के मुजफ्फरपुर में ननिहाल था। बाद में उनका भी विवाह मुजफ्फरपुर में ही सम्पन्न हुआ।
शिक्षा
देवकीनन्दन खत्री जी का प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू तथा फ़ारसी भाषा में हुई थी। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेज़ी का गहन अध्ययन किया। आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे गया के ‘टेकारी इस्टेट’ में एक राजा के पास कार्य कार्य करने लगे।
बाद में वे गया में स्थित ‘टेकारी इस्टेट‘ में व्यवसाय करने लगे। उन्हें बचपन से ही भ्रमण करने में रुचि थी। उन्हें पुराने खंडहरों और जंगल एक तिलिस्म कहानी की तरफ आकर्षित करती थी।
जंगलों और खंडहरों से मिली तिलिस्म कहानी की प्रेरणा
कहते हैं की उन्हें कासी नरेश ‘ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह’ से चकिया और नौगढ़ के जंगलों का ठेका मिल गया। उन्हें कई वर्षों तक जंगलों में व्यतीत करना पड़ा। उन्हें घूमने का शौक था ही।
इस दौरन वे चकिया एवं नौगढ़ के बीहड़ जंगलों, सुनसान खंडहरों और पहाड़ियों के बीच घूमने का मौका मिला। इन प्राचीन वीरान ऐतिहासिक इमारतों और खंडहरों को देखकर ही उनके मन में तिलिस्म कहानी की प्रेरणा उठी।
बाद में उनका जंगलों का ठेका जब समाप्त हुआ तब वे कासी वापस आ गए।
लेखन के क्षेत्र में कदम
बीहड़ जगलों और वीरान खंडहरों को देखकर ही उनके मन में तिलिस्म कहानी लिखने की बात सूझी। फलतः उन्होंने लिखना शुरू किया उनकी कहानी को लोगों ने इतना प्यार दिया की। बाद में उन्होंने लेखन को ही अपना कैरीयर बना लिया।
चकिया और नौगढ़ में स्थित वीरान खंडहरों से प्रेरित होते हुए उन्होंने कई उपन्यास की रचना की। उन्होंने अपने उपन्यास ‘चंद्रकांता’, ‘चंद्रकांता संतति’, ‘भूतनाथ’ जैसी तिलस्मी भरी उपन्यासों द्वारा खूब सुर्खियों बटोरीं।
देवकीनंदन खत्री के चर्चित उपन्यास – devaki nandan khatri books
देवकीनंदन खत्री के चर्चित उपन्यास में चन्द्रकान्ता प्रसिद्ध है। चन्द्रकान्ता उनका पहला उपन्यास था। यह उपन्यास काफी लोकप्रिय हुआ। फलतः उन्होंने अपना दूसरा उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’ की रचना की, जिसमें कुल 24 भाग हैं।
देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता की कहानी पर हिन्दी टीवी धारावाहिक का भी निर्माण हुआ। यह टीवी सीरियल रामायण और महाभारत के बाद काफी लोकप्रिय रहा था। देवकीनंदन खत्री का अंतिम उपन्यास भूतनाथ को कहा जा सकता है।
यधपि इस उपन्यास को पूरे करने के पहले ही आकस्मिक उनकी मृत्यु हो गई। जिसे बाद में उनके बेटे ‘दुर्गाप्रसाद खत्री’ ने इसे पूरा किया।
प्रिंटिंस प्रेस की स्थापना
कुछ वर्षों के बाद उन्होंने कासी में एक प्रिंटिंस प्रेस की स्थापना की। देवकीनन्दन खत्री एक तिलिस्म लेखक ही नहीं बल्कि अच्छे सम्मापक भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में ‘सुदर्शन’ नामक हिन्दी मासिक पत्र की शुरुआत की थी।
हिन्दी के प्रचार प्रसार में योगदान
कहा जाता है की जब उन्होंने तिलिस्म उपन्यास लिखना शुरू की था। उस बक्त उर्दू का बोलबाला हो गया था। इस परिस्थिति में भी उन्होंने अपनी रचना को हिन्दी भाषा में लिखा।
उन्होंने बीहड़ जंगलों, प्राचीन इमारतों और खंडहरों की पृष्ठभूमि पर अपनी कल्पना शक्ति से तिलिस्म तथा ऐय्यारी भरी ‘चन्द्रकान्ता’ उपन्यास की रचना की। उनकी रचना को लोगों ने इतना प्यार दिया की।
कहते हैं की उनके चाहने वाले जो हिन्दी नहीं भी जानते थे वे भी उनके उपन्यास को पढ़ने के लिए हिन्दी भाष सीखा। इस प्रकार हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में भी खत्री जी का अहम योगदान माना जा सकता है।
देवकीनन्दन खत्री का प्रसिद्ध उपन्यास – devkinandan khatri ki rachnaye
उनकी प्रमुख रचनाएँ में चन्द्रकान्ता, चन्द्रकान्ता सन्तति, भूतनाथ के नाम आते हैं। जिसे देवकीनन्दन खत्री को हिन्दी साहित्य में अमर कर दिया। उनकी अन्य रचनाओं में कुसुम कुमारी, वीरेन्द्र वीर उर्फ कटोरा भर खून, काजर की कोठरी, नरेन्द्र मोहिनी, गुप्त गोदना आदि प्रमुख हैं।
देवकीनन्दन खत्री का निधन
बिहार में जन्में महान तिलिस्म लेखक देवकीनन्दन खत्री का 1 अगस्त, 1913 काशी में निधन हो गया। मात्र 52 वर्ष की अवस्था इस महान लेखक का इस दुनियाँ से विदा होना हिदी साहित्य के लिए अपूर्णीय क्षति है।
देवकीनंदन खत्री किस युग के उपन्यासकार हैं?
देवकीनंदन खत्री भारतेंदु युग के उपन्यासकार हैं। यह बात सत्य है की उनकी रचना भारतेंदु युग में हई। लेकिन कुछ विद्वान इसे पृथक कर देखते हैं। उनका मानना है ही उनका उपन्यास केवल तिलिस्मी और ऐयारी है।
देवकीनंदन खत्री का पहला उपन्यास कौन सा है
देवकीनंदन खत्री का पहला उपन्यास चंद्रकांता है। जो एक तिलिस्मी और ऐयारी उपन्यास है।
अनूठी बेगम किसकी रचना है?
अनूठी बेगम देवकीनंदन खत्री की प्रसिद्ध रचना है।
चंद्रकांता उपन्यास के लेखक कौन हैं?
चंद्रकांता एक तिलिस्मी और ऐयारी उपन्यास है। इसके लेखक देवकीनंदन खत्री जी हैं।
प्रश्न – काजल की कोठरी और भूतनाथ नामक उपन्यास के लेखक कौन है?
उत्तर – काजल की कोठरी और भूतनाथ नामक उपन्यास के लेखक देवकीनंदन खत्री साहब हैं।
प्रश्न – चंद्रकांता संतति कौन सी रचना है?
उत्तर – चंद्रकांता संतति देवकीनन्दन खत्री की तिलिस्मी और ऐयारी रचना है। कुछ विद्वान चंद्रकांता संतति को भारतेन्दु युग की रचना मानते हैं। लेकिन इस बात को लेकर विद्वानों में मतांतर है।