Munshi Premchand ka jeevan parichay in Hindi | मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ

Munshi Premchand ka jeevan parichay in Hindi | मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

Munshi Premchand ka jeevan parichay – मुंशी प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखक थे। उनकी गिनती हिन्दी साहित्य के महान उपन्यासकारों में अग्रणी है।

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बर्ष 1880 में भारत के उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में जन्मे प्रेमचंद्र का बचपन बड़े ही कष्टों और गरीबी में वीता। लेकिन अपने कड़ी मेहनत के वल पर उन्होंने शिक्षक की नौकरी पाई।

बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर साहित्य को अपना पूर्णकालीन कैरियर बना लिया। उनके द्वारा लिखी गई उपन्यास और कहानियाँ को पाठक ने मुक्त कंठ से सराहा। उनकी 3 प्रसिद्ध रचनाओं में “गोदान,” “कफ़न,” और “रंगभूमि” का नाम सम्मिलित है।

मुंशी प्रेमचंद्र को कलम का सिपाही कहा जाता है। कुछ विद्वान उनकी तुलना गोर्की से भी किया है। उन्होंने रामदास गौड़ से प्रेरणा पाकर हिन्दी साहित्य में लेखन का आरंभ किया था।

उपन्यास के रचना के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के कारण प्रसिद्ध  कवि व लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहा था। वे मुंशी प्रेमचंद व नवाब राय के नाम से भी जाना जाता है।

उन्होंने प्रारंभ में अपनी रचना नवाब राय के नाम से ही लिखी थी बाद में उन्होंने प्रेमचंद्र नाम रख लिया था। गोदान उनकी कालजयी रचना कहलाती है, जबकि कफन उनकी आखरी रचना मानी जाती है। आइए इस लेख में उनके जीवन और रचनाओं के बारें में थोड़ा विस्तार से जानते हैं।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय संक्षेप मेंMunshi Premchand ka jeevan parichay

पूरा नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद।
जन्म तिथि व स्थान : 31 जुलाई 1880 बनारस के पास
पिता का नाम : मुंशी अजायब राय
माता का नाम : आनंदी देवी।
पत्नी का नाम : शिवरानी देवी
सम्पादित पत्रिका मर्यादा’, ‘हंस’, जागरण तथा माधुरी
निधन : 18 अक्टूबर सन 1936 ईस्वी

मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय – Munshi Premchand ka jeevan parichay in Hindi

Munshi Premchand ka jeevan parichay in Hindi | मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ

प्रारम्भिक जीवन

मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 31 मई 1880 ईस्वी में वाराणसी के पास लमही नामक गाँव मे हुआ था। उनका जन्म एक निर्धन कायस्थ परिवार में हुआ था। कहते हैं की उनके बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उन्हें नबाब राय के नाम से भी पुकारा जाता था।

उनके पिता का नाम मुंशी अजायब राय और उनके माता का नाम आनंदी देवी थी। प्रेमचंद्र के पिता अजायब राय डाक खाने में मामूली बेतन पर मुंशी का नौकरी करते थे।

जब प्रेमचंद्र की उम्र महज आठ साल की थी तब उनकी माता का निधन हो गया। उनके कुछ वर्षों के बाद उनके पिताजी जी भी इस दुनियाँ से चल बसे। उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। कहते हैं की मुंशी प्रेमचंद्र का आरंभिक जीवन बहुत ही कष्ट में बीता।

आर्थिक कठनाइयों ने उन्हें हिला कर रख दिया था। कहते हैं की एक बक्त ऐसा आया की घर का खर्चा चलाने के लिए उन्हें अपनी किताब तक बचने की नौवत आ गयी थी।

गरीबी का करीब से अनुभव करने वाले, महान साहित्यकार प्रेमचंद्र ने, भारत के गाँव के लोगों की आर्थिक दशा, अशिक्षा, अंधविश्वास और उनके शोषण का करीब से देखा था।

उन्होंने पाया कैसे साहूकार, जमींदार, घूसखोर अधिकारी, निर्धन और अशिक्षित जनता का खून चूसने में लगी है। समाज में आर्थिक विषमता इस तरह व्याप्त हो रही थी की गरीब दिन-प्रतिदिन और गरीब तथा आमिर और ज्यादा पैसे वाले बनते जा रहे थे।

शिक्षा दीक्षा

मुंशी प्रेमचंद्र की प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू और फारसी भाषा में आरंभ हुई। उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद प्रयाग राज में primary स्कूल में अध्यापन का कार्य शुरू कर दिया।

उसी दौरान नौकरी के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए सन 1910 ईस्वी में अंग्रेजी,फारसी और इतिहास के साथ इंटर की परीक्षा पास की। तत्पश्चात सन 1919 ईस्वी में उन्होंने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

पारिवारिक जीवन पत्नी व बच्चे

उनका विवाह बचपन में ही मात्र 15 साल की उम्र में हो गयी थी। उनका पहला विवाह सफल नहीं रहा और सन 1905 ईस्वी में उनकी दूसरी शादी हुई। उनकी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था। उन्हें तीन संतान की प्राप्ति हुईं उनके नाम थे – श्रीपत राय, अमृत राय तथा कमला देवी।

कैरीयर

ढेर सारे कष्टों के बावजूद वे अपने प्रतिभा के बल पर आध्यापक बने। आगे चलकर वे शिक्षा विभाग में सब डिप्टी इन्स्पेक्टर के पद तक पहुंचे। मुंशी प्रेमचंद्र गाँधी जी अत्यंत ही प्रभावित थे। अतः उन्होंने अपने स्वास्थ्य का हवाला देकर नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

हिन्दी साहित्य की ओर अग्रसर

नौकरी से इस्तीफा देने के बाद वे पूरी तरह से हिन्दी साहित्य के लेखन की तरफ अग्रसर हो गये। उन्होंने रामदास गौड़ की प्रेरणा स्वरूप हिन्दी में लेखन का काम आरंभ किया, तथा अपना नाम बदल कर धनपत राय से प्रेम चंद्र रख लिया।

सामाजिक समस्या को उन्होंने करीब से देखा की जिसका उन्होंने बड़े ही सजीव और सरल रूप अपनी रचनाओं जगह दी है। ग्रामीण जीवन की उन्होंने सफल व्याख्या की है। उनकी रचनाओं में समाजवादी विचारधारा की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

उन्होंने भारत की गरीबी, अशिक्षा, अंग्रेजों का दमन और शोषण, किसानों की दयनीय स्थिति का बहुत ही व्यापक रूप से अपने उपन्यास में चित्रित किया है।

मुंशी प्रेमचंद्र की रचनाओं में आदर्शवाद और यथार्थवाद दोनो का समन्वय मिलता है। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े मुंशी प्रेमचंद्र ने ग्रामीण समस्या को नजदीक से अनुभव किया था।

उन्होंने निर्धनता को घूंट को पिया था, इस कारण उनकी रचनाओं में समाज में व्याप्त शोषण, गरिवी, कुरीतियों और अंग्रेज सरकार के दमन का विस्तृत वर्णन मिलता है।

सरस्वती प्रेस की स्थापना

वाराणसी में उन्होंने सरस्वती प्रेस की स्थापना की, जहॉं से हंस नामक पत्रिका प्रकाशित होती थी। बाद में घाटा हो जाने के कारण उन्हें बंद करना पड़ा। उसके बाद उन्होंने माधुरी एवं जागरण पत्रिका का भी सम्पादन किया।

किन्तु वह भी नहीं चला। कहते हैं की कुछ समय तक उन्होंने मुंबई में फिल्म कंपनी में फिल्म के लिए पटकथा भी लिखी लेकिन उन्हें मुंबई रास नहीं आया और कुछ दिनों के बाद वनारस लौट आए। धनपत राय से प्रेमचंद्र और फिर

मुंशी प्रेमचंद्र बनने की कहानी

जैसा की हम जानते हैं की उनके बचपन का न धनपत राय था। बाद में उन्होंने अपना नाम प्रेमचंद्र रख लिया। मुंशी प्रेमचंद के नाम के साथ, मुंशी शव्द जुडने के पीछे एक कहानी है।

कहते हैं की जब उनकी पत्रिका हंस प्रकाशित हो रही थी तब उसके संपादक के रूप में ‘कन्हैयालाल मुंशी’  और प्रेमचंद्र दोनो का नाम छपता था। हंस पत्रिका के प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी का पूरा नाम नहीं होकर मात्र ‘मुंशी’ छपा रहता था और साथ में प्रेमचंद का नाम होता था।

अर्थात उस पत्र के संपादक इस प्रकार लिखा रहता था – मुंशी,प्रेमचंद। कहते हैं की कलांतर में पाठक ने ‘मुंशी’ तथा ‘प्रेमचंद’ को एक ही समझ लिया। इस प्रकार वे मुंशी ‘प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।

कुछ लोगों का मानना है की मुंशी विशेषण उनके पिता के नाम मुंशी अजायब राय के नाम से आया था। इस प्रकार वे धनपत राय श्रीवास्तव से प्रेमचंद्र और कलांतर में मुंशी प्रेमचंद्र के नाम से प्रसिद्ध हो गये।

मुंशी प्रेमचंद का साहित्य में स्थान

मुंशी प्रेमचंद्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने हिन्दी साहित्य की कई रूपों में सेवा की, अपनी रचनाओं यथा  उपन्यास,कहानी,नाटक, संपादकीय,संस्मरण आदि अनेक रूपों में हिन्दी साहित्य की सेवा की।

लेकिन उनकी सबसे ज्यादा प्रसिद्धि एक उपन्यासकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में वे ‘उपन्यास सम्राट’ कहलाये। अपना पहला लेख उन्होंने ‘नबाब राय’ के नाम से लिखी थी।

उन्होंने हिन्दी में 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां और उर्दू में 178 के लगभग रचना की। इसके साथ ही उन्होंने नाटक, अनुवाद और  बाल-पुस्तकें की रचना की। उनके द्वारा रचित उपन्यास और कहानी ने उन्हें हिन्दी जगत का सिरमौर बना दिया।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ

उपन्यास – प्रेमचंद्र का पहला उपन्यास सेवा सदन था। उनके बाद प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि, कायाकल्प, गबन, गोदान,वरदान,प्रेमा, दुर्गा दास, मंगल सूत्र,  निर्मला, प्रतिज्ञा, आदि उपन्यास प्रकाशित हुए।

नाटक – प्रेमचंद ने ‘संग्राम’, ‘कर्बला’ ‘प्रेम की वेदी’ रूहानी शादी, रूठी रानी और चंदहार नामक नाटकों की भी रचना की।

सम्पादन – हंस, जागरण आदि।

प्रेमंचद की कहानी – उनके द्वारा रचित प्रमुख कहानियों में – पंच परमेश्‍वर, गुल्‍ली डंडा, दो बैलों की कथा, ईदगाह, बडे भाई साहब, पूस की रात, नमक का दरोगा, बड़े घर की बेटी, कफन, ठाकुर का कुंआ, सद्गति, बूढी काकी, विध्‍वंस, दूध का दाम, मंत्र आदि नाम लिए जाते हैं।

कहानी संग्रह – सप्‍त सरोज, नवनिधि, प्रेम-पूर्णिमा, प्रेम-पचीसी, प्रेम-प्रतिमा, प्रेम-द्वादशी, प्रेम तीर्थ, प्रेम पंचमी समरयात्रा, मानसरोवर- भाग एक व दो, तथा कफन आदि प्रमुख हैं। उनका पहला हिन्दी कहानी संग्रह मान सरोबर सन 1917 ईस्वी में प्रकाशित हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद्र की भाषा शैली

उन्होंने अपनी रचना में सरल, सुबोध और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। प्रारंभ में उन्होंने अपनी रचना उर्दू में लिखी थी। इस कारण उनकी रचना की भाषा उर्दू मिश्रित सरल खड़ी बोली है।

जिसपर ग्रामीण परिवेश में पर्युक्त होने वाले मुहावरे का सुंदर प्रयोग मिलता है। उनके रचनाओं में अरबी, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग देखने को मिलता है। कुछ विद्वान उन्हें हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक मानते हैं।

उनकी रचना शैली अत्यंत ही प्रभावशाली और मार्मिक है। जो पाठक के सीधे दिलों तक पहुच जाती है। तभी तो उन्हें उपन्यास सम्राट के नाम से जाना जाता है।

मुंशी प्रेमचंद्र का निधन

कलम का सिपाही महान जादूगर मुंशी प्रेमचंद्र का जलोदर रोग के कारण 18 अक्टूबर सन 1936 ईस्वी को निधन हो गया। हिन्दी साहित्य जगत उनकी योगदान के लिए सदा नतमस्तक रहेगी।

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उपसंसार ( conclusion)

एक कहानीकार के रूप में मुंशी प्रेमचंद्र का नाम श्रेष्ट है। डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने प्रेमचंद के बारें में कहा था –

“उन्होंने अपने को सदा मजदूर समझा। बीमारी की हालत में भी मौत के कुछ दिन पहले तक भी, वे अपने कमजोर शरीर को लिखने के लिए मजबूर करते रहे। मना करने पर कहते-मैं मजदूर हूँ और मजदूरी किए बिना भोजन ग्रहण करने का अधिकार नहीं।“

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी

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F.A.Q

मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म कब और कहां हुआ ?

मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 31 मई 1880 ईस्वी में वाराणसी के पास लमही नामक गाँव में एक कायसत परिवार में हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी किस पत्रिका में प्रकाशित हुई ?

मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ उर्दू पत्रिका ‘ज़माना’ में प्रकाशित हुई थी

मुंशी प्रेमचंद्र जी को उपन्यास सम्राट की उपाधि किसने दी ?

उनकी की रचनाओं को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी थी।

मुंशी प्रेमचंद्र की किन्हीं तीन कहानियों के नाम लिखिए ?

मुंशी प्रेमचंद्र ने अनेकों कहानी लिखी जिसमें पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा, पूस की रात, बूढ़ी काकी और कफन आदि प्रसिद्ध है। उनकी 3 कहानियों के बात करे तो नमक का दरोगा, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी का नाम लिखना चाहूँगा।

संकलन तिथि – 15 अगस्त 2020

अंतिम संशोधन – 1 जनवरी 2023

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