नवरात्रि के 9 दिन किस रंग के कपड़े पहने 2023: हिन्दू पंचांग के आधार पर वैसे तो पूरे वर्ष में कुल चार नवरात्रि आती है। जिसमें दो गुप्त नवरात्रि, एक चैत्र नवरात्रि और एक शारदीय नवरात्रि से नाम से जाना जाता है।
इस नवरात्रि में चैत्र और आश्विन महीने में पड़ने वाली नवरात्रि का सबसे अधिक महत्व माना गया है। इस दौरान विशेष अनुष्ठान और पूजा पाठ का विशेष महत्व है।
पंडित देवेन्द्र शर्मा के अनुसार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत आश्विन माह के प्रतिपदा तिथि से आरंभ होकर दशमी तिथि तक होती है। इस वर्ष नवरात्रि रविवार 14 अक्टूबर 2023 को रात 11:24 मिनट से आरंभ होकर 15 अक्टूबर 12:30 मिनट तक रहेगी।
नवरात्रि के नौ दिन इन 9 रंगों के कपड़े भी पहनने की सलाह दी जाती है। मान्यता है की ऐसा करना से देवी दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। माँ की छत्रछाया पूरे परिवार पर हमेशा बनी रहती है। नवरात्रि के 9 दिन के कलर के बारें में नीचे दिया गया है।
नौ दिनों तक चलने वाला यह त्योहार 23 अक्टूबर को समाप्त होगी। हमारे देश भारत के विभिन्न हिस्सों में नवरात्रि का त्योहार अलग-अलग तरीकों से मानते हैं। इस दौरान जहां कोलकाता का नवरात्रि देखने योग्य है।
वहीं कर्नाटक के मैसूर का नवरात्रि में पूरे भारत में प्रसिद्ध है। नवरात्रि के नौ दिन माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। लोग इस दौरान विशेष पूजा, उपासना, व्रत और उपवास रखने का विधान है।
नवरात्रि के अवसर पर गुजरात में होने वाला गरबा नृत्य विश्व भर में प्रसिद्ध है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता ही की नवरात्रि का त्योहार क्यों मनाया जाता है। इस लेख में नवरात्रि के 9 दिन किस रंग के कपड़े पहने, नवरात्रि त्योहार मनाने से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं के बारे में विस्तार से वर्णन है।
नौ दिनों तक नवरात्रि का त्यौहार क्यों मनाया जाता है जानें क्या है मान्यताये
शारदीय नवरात्रि का त्योहार माँ दुर्गा को समर्पित है। चूंकि यह शरद ऋतु में आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अगले नौ दिन तक चलता है। इस कारण से ही इसे शारदीय नवरात्रि के नाम से भी जानते हैं।
हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार माँ दुर्गा और दानव महिषासुर के साथ भयंकर युद्ध हुआ था। मात्रा दुर्गा का असुर महिषासुर के साथ पूरे नौ दिनों तक युद्ध चला था। अंत में युद्ध के दसवें दिन माता दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध किया था।
माना जाता है जिस बक्त मां दुर्गा ने महिषासुर का वध उस बक्त आश्विन का महिना चल रहा था। यही कारण है की प्रत्येक वर्ष आश्विन महीने के प्रतिपदा से लेकर पूरे नौ दिनों कर नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
मान्यता है की माता दुर्गा द्वारा महिषासुर के साथ युद्ध के दौरान सभी देवताओं ने भी नौ दिनों तक हवन व पूजा-पाठ किया था। जिससे देवी दुर्गा को महिषासुर के वध के लिए और शक्तिशाली हो सकें। कहते हैं की तभी से नवरात्रि का पर्व मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
नौ दिनों में माँ के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा
नवरात्रि के अवसर पर देवी दुर्गा का नौ दिनों में 9 रूपों में पूजन होती है। देवी दुर्गा के ये 9 रूप ‘नवदुर्गा’ के नाम से प्रसिद्ध है। आइए नवरात्रि के नौ दिनों में इन नौ रूपों की पूजा की जाती है।
- नवरात्रि का पहला दिन – शैलपुत्री
- नवरात्रि का दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी
- नवरात्रि का तीसरा दिन – मां चंद्रघण्टा
- नवरात्रि का चौथा दिन – कूष्मांडा
- नवरात्रि के पाँचवाँ दिन – स्कंदमाता
- नवरात्रि के छठा दिन – कात्यायनी देवी
- नवरात्रि के सातवाँ दिन – कालरात्रि
- नवरात्रि के आठवाँ दिन – महागौरी
- नवरात्रि के नौवां दिन – सिद्धिदात्री
नवरात्रि के 9 दिन किस रंग के कपड़े पहने 2023
नवरात्रि के अवसर पर इसके पहले दिन से लेकर 9वें दिन मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों में पूजन की जाती है। इन 9 दिनों में कुछ भक्त माँ के विशेष कृपा हेतु अलग-अलग रंगों के वस्त्र धारण करते हैं।
मान्यता है की इससे देवी दुर्गा के सभी 9 रूपों के आशीर्वाद की भक्त जन को प्राप्त होती है। आइए जानें नवरात्रि के 9 दिन किस रंग के कपड़े पहने ताकि मां दुर्गा की विशेष आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
1. नवरात्रि के पहले दिन – नारंगी अथवा सफेद रंग
नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ देवी दुर्गा की शैलपुत्री रूपों की पूजा होती है। माता के इस रूप को नारंगी और श्वेत रंग सबसे प्रिय है। इस कारण नवरात्रि की पहली पूजा सफेद रंग के वस्त्र पहनकर करना विशेष फलदायी हो सकता है।
2. नवरात्रि के दूसरे दिन – सफेद और सिल्वर कलर
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा होती है। इस दिन मां का पूजन सफेद रंग के वस्त्र पहनकर धारण कर विशेष फलदायी होती है।
3. नवरात्रि के तीसरे दिन – लाल रंग
नवरात्रि के तीसरे दिन देवी मां चंद्रघण्टा के रूप में पूजी जाती है। इस दिन माँ का सबसे प्रिय कलर लाल माना जाता है। इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण कर पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।
4. नवरात्रि के चौथे दिन – नीला और बैंगनी रंग
नवरात्रि के चौथे दिन मां के कूष्मांडा रूप की पूजा होती है। चौथे दिन नीले रंग अथवा बैंगनी रंग का विशेष महत्व है। इस दिन इन रंगों के वस्त्र धारण कर पूजन से मां का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
5. नवरात्रि के पांचवें दिन का रंग-पीला या सुनहरा
नवरात्रि के पांचवें दिन देवी दुर्गा, स्कंदमाता के रूप में पूजी जाती है। देवी दुर्गा के पांचवें दिन का यह रूप प्रेम और स्नेह का प्रतीक कहलाता है। इस दिन मां की पजा पीला अथवा सुनहार वस्त्र धारण कर करना विशेष फलदायी कहलाता है।
6. नवरात्रि के छठे दिन का रंग-गुलाबी रंग
नवरात्रि की 6 ठे दिन माँ दुर्गा, अपने कात्यायनी देवी के रूप में पूजी जाती है। मान्यता है कि इस दिन कुंवारी कन्याएं द्वारा गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर मां दुर्गा की पूजा करने से मनचाहा वर की प्राप्ति होती है।
7. नवरात्रि के 7 दिन – स्लेटी और कत्थई
नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा अपने प्रचंड और तेजमयी कालरात्रि स्वरूप में पूजी जाती हैं। मां के इस रौद्र रूप देखकर सभी दानव कांप उठते थे। इस दिन स्लेटी या फिर कत्थई रंग के वस्त्र धारण कर मां दुर्गा की पूजा श्रेयकर माना गया है।
8. नवरात्रि के आठवें दिन का रंग-सफेद और बैंगनी
नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा की उनके महागौरी के रूप में पूजा की जाती है। महागौरी माता को सफेद रंग प्रिय है। फलतः इस दिन सफेद और बैंगनी रंग के कपड़े धारण कर माँ की पूजन करनी चाहिए।
9. नवरात्रि के नवें दिन – हरा रंग
यह नवरात्रि का आखिरी दिन होता है। नवरात्रि के नवां मां की पूजा सिद्धिदात्री स्वरूप में होती हिय। मान्यता है की नवों दिन हरे रंग के वस्त्र धारण कर माँ के पूजन करने से कार्य में सफलता मिलती है, और घर में सुख समृद्धि को बढ़ोतरी होती है।
इन देवताओं ने मां दुर्गा को प्रदान किए अस्त्र-शस्त्र
माँ दुर्गा के हाथों में आपने अनेकों अस्त्र और शस्त्र देखे होंगे। उन्हें कई देवताओं ने मिलकर अपने अस्त्र और शस्त्र से असीम शक्तिशाली बनाया था। जिस कारण मां दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध करने में सफल हुई।
इस कारण मां दुर्गा का नाम महिषासुर मर्दिनी भी पड़ा। माता दुर्गा के 8 हाथों में स्थित विभिन्न प्रकार के अस्त्र और शस्त्र के बारें में मार्कंडेय पुराण में भी वर्णित है। पुराण के अनुसार माता के हाथों के अस्त्र और शस्त्र का खास महत्व है।
आइए जाने की मां दुर्गा के हाथों में अस्त्र-शस्त्र किन-किन देवताओं ने प्रदान किए और क्या है इसका महत्व।
भाला-
माता के हाथ में आपने भाला अवश्य देखा होगा। कहा जाता है की अग्नि देव द्वारा मां दुर्गा को भाला प्राप्त हुआ था।
शंख–
पुराण के अनुसार इसे वरुण देव ने माता को प्रदान किए थे। मान्यता है की शंख की ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।
त्रिशूल-
माता दुर्गा को त्रिशूल भगवान शिव से प्राप्त हुए थे। कहा जाता है की माता ने इसी त्रिशूल से असुर महिषासुर का वध का किया था।
धनुष और बाण-
धार्मिक कथाओं से पता चलता है की माँ दुर्गा को धनुष बाण की प्राप्ति सूर्य देव और पवन देव से हुई थी।
वज्र-
आपने मां दुर्गा हाथ में वज्र अवश्य देखा होगा। यह वज्र उन्हने इंद्र देव से प्राप्त हुआ था।
तलवार-
आपने माँ दुर्गा के हाथों में तलवार भी जरूर देखे होंगे। यह तलवार उन्हें भगवान गणेश द्वारा मिला था।
फरसा–
भगवान विश्वकर्मा द्वारा मां दुर्गा को फरसा प्रदान किए गए थे। फरसा को बुराई से लड़ने का प्रतीक के रूप में माना जाता है।
जानिए नवरात्रि की कहानी और इतिहास
नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अराधना की जाती है। लेकिन नवरात्रि का पावन त्योहार मनाने को लेकर कई धार्मिक कथाएं को भी जोड़ कर देखा जाता है। धर्मशास्त्र में वर्णित एक पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नामक एक असुर था।
उन्होंने ब्रह्माजी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। फलतः महिषासुर ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान प्राप्त कर लिया। उन्होंने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया की उन्हें दानव, मानव और देवता कोई नहीं मार सकता है।
उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथ से ही होना निश्चित की गई थी। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर महिषासुर घमंड में चूर हो गया। उनहोए मानव और देवताओं सभी पर अत्याचार करने और सताने लगा। उनके अत्याचार से सभी देवता लोग परेशान हो गए।
उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जाकर अपनी समस्या से निदान का उपाय करने को कहा। तब जाकर त्रिदेव ने मिलकर आदिशक्ति का आवाहन किया। फलतः ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने महिषासुर के विनाश के लिए अपने तेज पुंज से मां दुर्गा की उत्पति हुई थी।
उन्हें कई देवताओं से अस्त्र और शस्त्र मिले फलतः माँ दुर्गा ने असुर महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। कहा जाता है की महिषासुर दानव और माँ दुर्गा के मध्य पूरे 9 दिनों तक युद्ध चला। लेकिन माता दुर्गा ने दसवें दिन महिषासुर का वध करने में सफल हुई।
यही कारण है की की नवरात्रि का त्योहार पूरे नौ दिनों तक मनाया जाता है। लेकिन माँ में कुछ लोगों को सबाल आता होगा की नौ दिनों के बाद दशमी को माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। तो फिर दशमी के दिन रावण का पुतला क्यों जलाया जाता है।
रावण से क्यों जुड़ा है नवरात्रि का इतिहास
नवरात्रि को भगवान राम से भी जोड़ कर देखा जाता है। रामायण में वर्णित कथा के अनुसार जब राम के वनवास के दौरान रावण ने माता सीता का हरण कर लंका ले गया था।
उस बक्त भगवान राम ने भी रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए नौ दिनों तक मां दुर्गा का अनुष्ठान किया था। कहते हैं की दशमी के दिन देवी दुर्गा ने प्रकट होकर भगवान राम को आशीर्वाद दिया।
फलतः भगवान उसी दसमी के दिन रावण का वध करने में सफल हुए थे। तभी से नवरात्रि मनाने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। दशमी के दिन अनेकों स्थानों पर बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में रावण का पुतला दहन किया जाता है।
लोग इस दिन नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं भेज कर अपने परिजनों की भलाई की कामना करते हैं।
मां दुर्गा का आगमन और प्रस्थान 2023
वैसे तो माता का वाहन शेर है। लेकिन नवरात्रि के अवसर पर माता विशेष वाहन पर सवार होकर आती हैं तथा विशेष वाहन से प्रस्थान भी करती है। अगर नवरात्रि का आरंभ रविवार या सोमवार के दिन से होती है तब मां दुर्गा का वाहन हाथी होता है।
लेकिन शनिवार और मंगलवार को नवरात्रि की शुरुआत होने से माता रानी की सवरी घोडा होती है। ठीक उसी प्रकार गुरुवार और शुक्रवार को नवरात्रि अगर शुरु होती है तो मां का आगमन डोली पर होता है।
वहीं बुधवार को नवरात्रि का आरंभ होने से मां नौका पर सवार होकर आती हैं। इस प्रकार दिन और ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार माता की सवारी तय होती है। इस बार 2023 चूंकि नवरात्रि रविवार से आरंभ हुई।
फलतः माता हाथी पर सावर होकर आएंगी और मुर्गे पर उनकी विदाई होंगी। शास्त्रों के अनुसार माता रानी का हाथी पर आना होना शुभ संकेत है। इससे बारिश अधिक होगी जिससे फसल की पैदावार खूब होगी। परिणामस्वरूप घर में सुख-समृद्धि की बढ़ोतरी होती है।
वहीं नवरात्रि का समापन 24 अक्टूबर मंगलवार के दिन हो रहा है। जिससे देवी दुर्गा की विदाई के लिए सवारी मुर्गे को बताया जा रहा है। कहते हैं की मुर्गे पर माता रानी की विदाई को शास्त्रों में शुभ नहीं माना जाता है। यह दुख और कष्ट के संकेत हैं।
नवरात्रि उपवास के नियम
इस दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस काल में मांस, मछली और मदिरा के सेवन से दूर रहना चाहिए। नवरात्रि में उपवास के दौरान ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। अंत में भक्तजन नवरात्रि में माता का भोग लगाकर अपने पूजा को समाप्त करते हैं।
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दशहरा के दिन रावण का पुतला क्यों जलाया जाता है।
देवी दुर्गा ने दशमी के दिन असुर महिषासुर को मारा था। इसी दशहरा के दिन ही भगवान राम ने भी रावण जैसे अहंकारी का वध किया था। इसी कारण से बुराई पर अच्छाई के जीत के रूप में दशहरे पर रावण का पुतला जलाया जाता है।
नवरात्रि में क्या-क्या नहीं करना चाहिए ?
नवरात्रि में पूजा के दौरान मांस, मदिरा का सेवन वर्चित है। इस दौरान व्रत के दौरन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए हो सके तो सादा और नमक रहित भोजन करना चाहिए।
इस नवरात्रि माता की सवारी क्या है? 2023
चूंकि इस बार नवरात्रि का आरंभ रविवार को हुई, इस कारण माता इस बार हाथी पर सवार होकर या रहीं हैं।
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