जननायक कर्पूरी ठाकुर की जीवनी अत्यंत ही प्रेरणादायक है। कर्पूरी ठाकुर एक लोकप्रिय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने गरीबों के अधिकारों और दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए लड़ाई लड़ी। वह अपनी सादगी, ईमानदारी और साधारण जीवनशैली के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे।
ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का फॉर्मूला लागू किया। 64 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। इसी वर्ष 2024 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
जननायक कर्पूरी ठाकुर की जीवनी – Karpoori Thakur Ka Jivan Parichay in Hindi
जन्म व आरंभिक जीवन:
जननायक नाम से कर्पूरी ठाकुर बिहार के प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्होंने दो बार बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर रहे। कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव में एक नाई समाज में हुआ था।
उनके गाँव का नाम अब बदलकर कर्पूरी ग्राम कर दिया गया है। उनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर और माता जी का नाम रामदुलारी देवी था। उन्होंने मेट्रिक की परीक्षा 1940 में पटना से पास किया।
भारत छोड़ो आंदोलन में भाग:
कर्पूरी जी एक राजनेता ही नहीं बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे। वे महात्मा गांधी जी से बहुत प्रभावित थे और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया तथा जेल भी गए। जब देश आजाद हुआ तब उन्होंने एक टीचर के रूप में काम किया। उसके बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा।
राजनीतिक कैरियर :
कर्पूरी ठाकुर जी की राजनीतिक कैरियर की शुरुआत 1950 के दशक में शुरू हुई। उस बक्त जब कांग्रेस का चारों तरफ बोलबाला था तब उन्होंने कांग्रेस के विरुद्ध चुनाव लड़ा।
पहली बार सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए। इस प्रकार कर्पूरी जी एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे। कर्पूरी ठाकुर हमेशा कांग्रेस के विरुद्ध चुनाव लड़ते रहे।
वे पहली बार 1952 में विधायक चुने गए और जीवन भर वे किसी न किसी सदन के सदस्य बने रहे। उन्होंने 70 के दशक में को बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए। साथ ही उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभाई।
कांग्रेस की नीति के विरोध के बावजूद भी आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी। उन्होंने मजदूर, किसानों और पिछड़ो को ऊपर उठाने के लिए अपना अबाज बुलंद किया।
अपने पूरे राजनीतिक जीवन में उन्होंने गरीबों को ऊपर उठाने उन्हें शिक्षा की तरफ अग्रसर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
शादगीपुर्ण जीवन शैली के लिए प्रसिद्ध:
कर्पूरी ठाकुर शादगीपुर्ण जीवन शैली के लिए जाने जाते थे। यही कारण था की दो बार राज्य के मुख्य मंत्री के पद पर रहने के बावजूद भी ने उनके पास गाड़ी बंगाल कुछ भी नहीं था।
उनकी ईमानदारी, शादगीपुर्ण जीवन, सज्जनता और लोकप्रियता ने उनके विरोधी के दिल में जगह बना दी थी। जननायक कर्पूरी जी का पूरा जीवन गरीबों और पिछड़ो के हक की लड़ाई, सादगी और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित रहा।
जननायक तक का सफर:
उन्होंने हिन्दी और हिन्दी भाषा में शिक्षा का हमेशा समर्थन किया। हमेशा उन्होंने गरीबों और पिछड़ो के उत्थान की वकालत की। क्योंकि हमेशा कर्पूरी जी पिछड़े वर्ग को भी सर्वोच्च पद पर देखना चाहते थे। कहा जाता है की कर्पूरी जी राजनीति में परिवारवाद को कभी भी समर्थन नहीं किया।
यही कारण था की कर्पूरी ठाकुर अपने जीवन काल में अपने परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। जनता के प्रति उनकी अपार लोकप्रियता ने उन्हें जननायक बना दिया था। उन्होंने बिहार के मेट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म कर दिया था।
निधन :
कर्पूरी का 64 वर्ष की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। सामाजिक न्याय के लिए कैपरी बाबू के काम ने करोड़ों लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाया। उन्होंने हमेशा से ही सरकारी धन का निजी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल के विरुद्ध रहे।
जब 1988 में उनकी मृत्यु हुई तो कई नेता उनके गांव में शोक व्यक्त करने आये। तब उनके घर को देखकर कुछ नेता को बहुत आश्चर्य हुआ की इतने ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति के पास इतना साधारण सा घर भी हो सकता है।
सम्मान :
कर्पूरी जी यूं ही जननायक नहीं थे बल्कि उन्होंने पिछड़ो और गरीबों के भलाई के लिए हमेशा आवाज उठाई। भारत सरकार ने जनवरी 2024 में कर्पूरी ठाकुर को भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की।
जननायक कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय
पूरा नाम | कर्पूरी ठाकुर |
जन्म | 24 जनवरी 1924 |
मृत्यु | 17 फरवरी 1988 |
कर्पूरी ठाकुर का जन्म कब और कहां हुआ था
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर में हुआ था।
कर्पूरी ठाकुर का निधन कैसे हुआ
कर्पूरी ठाकुर का निधन 1988 में दिल का दौरा पड़ने से हुआ।