1905 बंगाल विभाजन के कारण और परिणाम | Bengal partition Information in Hindi

1905 बंगाल विभाजन के कारण और परिणाम

1905 बंगाल विभाजन के कारण और परिणाम

अंग्रेजों द्वारा 1905 में बंगाल-विभाजन का फैसला एक ऐसा कदम था। जिसका स्वतंरता आंदोलन मे अभूतपूर्व योगदान दिया था। बंगाल विभाजन के कारण और परिणाम ने आजादी की लड़ाई की दशा बदल दी।

16 अक्टूबर 1905 घोषित बंगाल के विभाजन भारत के इतिहास में बंगभंग आंदोलन के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है की अंग्रेजों द्वारा भारत को धर्म के आधार पर तोड़ने से फैसले ने आजादी की लड़ाई में एक नई जान फूँक दी।

अंग्रेजों के विरुद्ध में देश में एक नई क्रान्ति की लहर दौर पड़ी। अंग्रेजों के फुट डालो और राज करो की छुपी नीति लोगों को समझ आ चुकी थी। लोग बंगाल बिभाजन के बिरोध में सड़कों पर उतर पड़े। इस प्रकार बंगभंग आंदोलन की लहर पूरे देश में फैल गई।

जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों ने भाईचारा और एकता का परिचय देते हुए इसका खुलकर विरोध किया। बंगाल विभाजन के पीछे अंग्रेजों की क्या मनसा थी खुलकर सामने आ गई।

फलतः बंगाल विभाजन के कारण और परिणाम के फलस्वरूप लोगों मे आक्रोश उत्पन्न हो गया। इस विभाजन ने आजादी के समय भारत विभाजन की पटकथा लिख गई।

यधपि आगे जाकर अंग्रेजों को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। इस लेख में बंगाल विभाजन का इतिहास, बंगाल विभाजन कब और क्यों हुआ, इसके कारण और परिणाम के बारें में विस्तार से जानेंगे।

बंगाल विभाजन कब हुआ Bengal partition Information in Hindi

1905 बंगाल विभाजन के कारण और परिणाम
1905 बंगाल विभाजन के कारण और परिणाम

बंगाल विभाजन 16 अक्टूबर 1905 को हुआ था। इस विभाजन के बाद देश में आजादी की लड़ाई में बहुत बड़े परिवर्तन आए। बंगाल विभाजन के समय भारत का वायसराय लार्ड कर्जन था।

लार्ड कर्जन के 1905 में बंगाल का विभाजन के घोषणा के द्वारा बंगाल को दो हिस्सों में बाँट दिया गया। इस प्रकार हिन्दू बहुल क्षेत्र का पश्चिम बंगाल और मुस्लिम बहुल क्षेत्र का पूर्वी बंगाल नाम दिया गया।

इसमें ब्रिटीस सरकार का कहना था की बंगाल एक बहुत बड़ा प्रांत है। इस कारण शासन की सुविधा की दृष्टि से विभाजन आवश्यक बताया। लेकिन बंगाल के लोग अंग्रेजों की नियत से परिचित हो चुके थे।

अंग्रेजों ने मुसलमानों को खुश करने के उद्देश्य से विभाजन का फैसला लिया। जिसका धर्म के आधार पर विभाजन का हिन्दुओं ने जमकर विरोध किया।

बाद में दोनों समुदाय को समझ आ गया की अंग्रेज विभाजन के माध्यम से राष्ट्रीय भावना और एकता को कमजोर कारण चाहती है। वे हिन्दू और मुसलमानों में फुट डालना चाहती है।

बंगाल विभाजन के कारण Bangal vibhajan ke karan aur parinam

बंगाल विभाजन के कोई चार कारण 200 की बात की जाय तो इसमें जिन कारणों के प्रमुखता से बताया जाता है। वह इस प्रकार हैं।

फुट डालो और राज करो की नीति – अंग्रेज लोग बंगाली मुसलमानों को अपने सबसे अधिक वफादार मानते थे। कहा जाता है की यहाँ के मुस्लिमों ने 1857 के प्रथम स्वतंरता संग्राम में भी भाग नहीं लिया था।

दूसरी तरफ बंगाल के पूर्वी हिस्से में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक थी। फलतः अंग्रेजों ने उन्हें खुश करने और हिन्दू मुस्लिमों में फुट डालने की नियत से बंगाल के विभाजन का फैसला लिया।

अंग्रेजों की यह नीति बंगाल विभाजन के चार कारण 150 में यह सबसे प्रसिद्ध कारण माना जाता है।

बड़े प्रांतों का हवाला देना – उस बक्त बिहार उड़ीसा और असम का कुछ हिस्सा बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा था। उनका मानना था की इतने बड़े प्रांतों में सुव्यवस्थित रूप से शासन चलाने की लिए विभाजन जरूरी है।

इसके वगैर शासन सुचारु रूप से नहीं चलाया जा सकता। लेकिन विभाजन का असल कारण तो कुछ और ही था।

बंगालियों की राष्ट्रीय भावना – उसे बक्त बंगाल राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बिंदु बन गया था। क्योंकि अंग्रेजों के सभी आला अधिकारी का दफ्तर भी बंगाल में ही थी।

अंग्रेज भारतीय खासकर बंगाल के लोगों के बीच फैलती जा रही राष्ट्रीय चेतना को कमजोर करने के उद्देश्य से 1905 में बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा की गई। यह सबसे बड़ा बंगाल विभाजन का कारण 100 साबित हुआ।

मुस्लिम प्रांत की स्थापना – उस बक्त पूर्वी बंगाल के क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक थी। फलतः संतुष्टिकरण की नीति के तहद उन्होंने बंगाल का विभाजन किया ताकि मुस्लिम अंग्रेजों का विरोध न करें।

वे आजादी की लड़ाई से अपने आप को अलग कर लें ताकि यह लड़ाई कमजोर हो जाए। इसी कारण लार्ड कर्जन ने मुस्लिम बहुल प्रांत बनाने के अपने नपाक इरादे से बंगाल को दो टुकड़ों में विभाजित करने का फैसला लिया।

इस प्रकार उन्होंने 1905 ई. में बंगाल को पूर्वी और पश्चिमी बंगाल दो भागों में बांट दिया।

बंगाल विभाजन के पीछे क्या उद्देश्य था

बंगाल उस बक्त राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बन गया था। दूसरी तरफ बंगाल के मुस्लिम 1857 से ही अंग्रेजों के गुड लिस्ट में थे। क्योंकि की वे उस बक्त इस लड़ाई में भाग नहीं लेकर एक तरह से परोक्ष रूप से अंग्रेजों का साथ दिया था।

फलतः बंगाल विभाजन के पीछे उनका उद्देश्य दोनों समुदाय के बीच फुट डाल कर आजादी की लड़ाई को कमजोर करना था।

1905 बंगाल विभाजन के परिणाम

अंग्रेजों द्वारा बंगाल विभाजन के परिणाम हुआ की लोग उनके विरोध में सड़कों पर उतर पड़े। कई बड़े बड़े नेताओं ने बंगाल विभाजन का विरोध किया। इस प्रकार बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी या बंग भंग आंदोलन का जन्म हुआ।

हिन्दू और मुसलमान दोनों को अंग्रेजों की चाल समझ आ गई। फलतः दोनों ने जुलूस के माध्यम से अपने एकता का परिचय दिया।

धीरे-धीरे पूरे देश में इसका बिरोध हुआ और उच्च स्तर की राजनीतिक अशांति फैल गई। परिणामस्वरूप अंग्रेजों को अपने फैसले पर फिर से विचार कारण पड़ा।

बंगाल विभाजन कब रद्द हुआ

तत्कालीन गवर्नर लार्ड कर्जन ने तो 1905 में बंगाल का विभाजन तो कर दिया। लेकिन इस विभाजन के कारण पूरे देश में उच्च स्तर की राजनीतिक अशांति उत्पन्न हो गई।

हिन्दू और मुसलमान दोनों पक्षों के लोगों ने इसका जबरदस्त बिरोध किया। अंत में विवस होकर अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा। फलतः लार्ड हार्डिंग ने 1911 में बंगाल विभाजन को रद्द किया और बंगाल के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों फिर से एक हो गए।

1905 बंगाल विभाजन के प्रश्न उत्तर (F.A.Q )

बंगाल विभाजन कब हुआ था ?

बंगाल विभाजन 1905 में हुआ था।

बंगाल विभाजन के लिए कौन जिम्मेदार था?

बंगाल विभाजन के लिए अंग्रेजों की गलत नीति जिम्मेदार था।

बंगाल विभाजन को किस वर्ष समाप्त किया गया था ?

बंगाल विभाजन को 1911 में समाप्त किया गया है।

बंगाल विभाजन के समय बंगाल का लेफ्टिनेंट गवर्नर कौन था ?

बंगाल विभाजन के समय बंगाल का लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रयूज फ्रेजर था।


प्रश्न – बंगाल विभाजन के समय गवर्नर जनरल कौन था ?

उत्तर – बंगाल के विभाजन के समय लार्ड कर्जन गवर्नर जनरल थे।

प्रश्न – बंगाल विभाजन के समय वायसराय कौन था 250

उत्तर – बंगाल विभाजन के समय भारत का वायसराय लार्ड कर्जन था।

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बाहरी कड़ियाँ : –

बंगाल का विभाजन (1905) – विकिपीडिया

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