करवा चौथ का त्योहार विवाहित महिलाओं के लिए सबसे बड़ी खुशी का त्योहार माना जाता है। भारत के अधिकांश भाग में यह त्योहार विवाहित महिलाएं बड़ी ही धूम-धाम से मानती है।
करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। दिन भर उपवास रखते हुए वह शाम को चाँद के दीदार के बाद अपने पति के हाथों से अपना वर्त तोड़ती है।
विवाहित महिलाएं शाम ढलते ही चंद्रमा के दर्शन के बाद करवा चौथ की पूजा पूरी करती है। इस वर्त में चाँद को अर्घ्य दूध और पानी को मिलाकर दिया जाता है।
लेकिन बहुत कम लोगों को पता है की इस दिन विवाहित महिलाएं छलनी से ही क्यों अपने पति का चेहरा देखती है। क्यों इस दिन अर्ध्य देने के लिए दूध और जल के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है।
करवा चौथ को पत्नी अपने पति को छलनी में से क्यों देखते हैं
करवा चौथ में व्रत करने वाली महिलाएं छलनी से चांद का दीदार करती हैं। इस दिन सीधे रूप से पति का चेहरा न देखकर किसी की आड़ में देखा जाता है। व्रत करने वाली महिलाएं छलनी के माध्यम से अपने पति के चेहरे को देखती हैं।
इस प्रकार वह प्रार्थना करती हैं कि जैसे छलनी में सैकड़ों छेद होते हैं, उसी तरह जब वे उन छेदों से अपने पति को देखेंगी तो उनकी उम्र भी सैकड़ों साल हो जाएगी।
अंत में चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए मिट्टी के घड़े में पानी भरकर पति अपनी पत्नी को जलपान कराकर उसका व्रत तोड़ता है।
धर्मों ग्रंथों में भी इसका जिक्र
इस व्रत का जिक्र पुराणों में भी मिलता है। पुराणों में इसका उल्लेख करक चतुर्थी के रूप में मिलता है। पुराणों में वर्णन मिलता है की एक बार प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को क्षीण हो जाने का श्राप दे दिया। उन्होंने चंद्रमा को श्राप दिया की जो भी तुम्हारे दर्शन करेगा वह कलंक का भागी होगा।
फलतः चंद्रमा भागते हुए भगवान शिव के पास पहुंचे। उन्होंने भगवान शंकर से प्रार्थना किया। तब शंकर भगवान बोले की सब चतुर्थी को छोड़िए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो भी तुम्हारे दर्शन करेगा। उसका जीवन धन्य धान से परिपूर्ण और सभी दोषों से मुक्त होगा।