महर्षि पतंजलि जीवन परिचय और योग में योगदान | Maharshi patanjali ka jeevan parichay

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महर्षि पतंजलि कौन थे ? (Patanjali kaun the)

महर्षि पतंजलि (Maharshi Patanjali ka parichay In Hindi ) योगशास्त्र के प्रकांड विद्वान थे। महर्षि पतंजलि को दुनियाँ में भारतीय संस्कृति के प्रणेता और योगशास्त्र का जनक कहते हैं। उन्होंने संस्कृत में अनेकों ग्रंथों की रचना की।

उनके द्वारा रचित ग्रंथों में योग से संबंधित योगसूत्र, आयुर्वेद पर आधारित ग्रंथ और अष्टाध्यायी पर भाष्य प्रमुख हैं। भारत वर्ष देव भूमि रही है, यहाँ पर अनेकों महापुरुषों ने अवतरण लिए और अपने मकसद को अंजाम देकर भारत भूमि को गौरान्वित किया।

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महर्षि पतंजलि भी ऐसे ही महापुरुष हुए जिन्होंने पूरी दुनियाँ में योग के ज्ञान को फैलाया। पाश्चात्य देश और विज्ञान भी योग के महत्व को समझ चुका हैं। महर्षि पतंजलि के द्वारा सदियों पहले कही गई बात पर आज शोध चल रहा है।

महर्षि पतंजलि जीवन परिचय और योग में योगदान | Maharshi patanjali ka jeevan parichay
महर्षि पतंजलि – Maharshi patanjali

कई स्कूलों और कॉलेजों के पाठकर्म में योग को सम्मिलित कर योग की शिक्षा दी जा रही है। कई संस्थानों में नित्य योग की कक्षा अनिवार्य कर दी गई है। महर्षि पतंजलि ने हमारे पौराणिक ग्रंथ, वेदों और उपनिषदों में वर्णित योग के सिद्धांत को दार्शनिक रूप प्रदान किया।

विश्व के कई धर्मों ने योग के महत्व को स्वीकारा। पतंजलि सहित स्वामी विवेकानंद, स्वामी शिवानंद, महेश योगी और बाबा रामदेव ने भी योग को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाँ के कई देशों में फैलाया।

जैसे महर्षि चरक को आयुर्वेद का जनक कहते हैं वैसे ही पतंजलि योगशास्त्र के जनक थे। चलिये पतंजलि जीवनी को संक्षेप में जानते हैं।

योगशास्त्र का जनक’ महर्षि पतंजलि का जीवन परिचय – Maharshi patanjali ka jeevan parichay

पूरा नाम महर्षि पतंजलि
महर्षि पतंजलि का जन्म200 ईस्वी पूर्व
महर्षि पतंजलि का जन्म स्थानगोनारद्य
महर्षि पतंजलि की माता का क्या नाम गोणिका
पतंजलि के पिता का नामअंगीरा
प्रसिद्धि योगशास्त्र के जनक के रूप में
महर्षि पतंजलि का प्रसिद्ध ग्रंथयोगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ

योग के जनक महर्षि पतंजलि का जीवन परिचय – Maharshi Patanjali Ka Jeevan Parichay

महर्षि पतंजलि का जन्म 2 शताब्दी ईस्वी पूर्व में हुआ था। महर्षि पतंजलि के जन्म स्थान को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं मिलता है। उनके जनम स्थान को लेकर विद्वान में मतांतर देखा जाता है।

कुछ विद्वानों के अनुसार महर्षि पतंजलि का जन्म स्थान मध्य-प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास एक ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान गोनारद्य मानते हैं जिसका जिक्र पतंजलि के महाभाष्य में भी मिलता है। उसके बाद में वे बिहार के मगध चले गए।

पतंजलि को शुंग राजा के समकालीन माना जा सकता है। क्योंकि महर्षि पतंजलि शुंग राजा के राजपुरोहित थे। कुछ पौराणिक कथा के आधार पर पतंजलि के पिता का नाम अंगीरा था। ऋषि अंगीरा को सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी का पुत्र माना जाता है।

महर्षि पतंजलि का योग में योगदान

विश्व में योग को वैज्ञानिक दृष्टिकोण देने वाले महर्षि पतंजलि ही थे। उन्होंने विश्व को बताया की योग एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक शांति भी प्राप्त की जा सकती है।

महर्षि पतंजलि ने दुनियां को अष्टांग योग का ज्ञान प्रदान किया। कहते हैं की पहले योग के सूत्र बिखरे हुए थे। इस कारण उन योग सूत्रों को समझना आम जन की बस की बात नहीं थी।

महर्षि पतंजलि ने इन सूत्रों को समझते हुए योग के 195 सूत्रों को इकट्ठा कर योग से संबंधित अष्टांग योग का सूत्रपात किया। उन्होंने दुनियाँ को बतलाया की मानव के शरीर में नाड़ियाँ और कुछ ऐसे केन्द्र हैं मौजूद हैं।

जिसकी योगसाधना के द्वारा सक्रिय किया जा सकता है। पतंजलि ने जो बात सदियों पहले कहा था वह आज सही साबित हो रही है। उनकी बातों पर आज पूरे मनोयोग से ध्यान दिया जा रहा है।

आज विश्व के अनेक संस्थानों में योग और प्राणायाम से संबंधित शोध हो रहे हैं। महर्षि पतंजलि ने योग से दुनियाँ को अवगत करने के लिए योगशास्त्र की रचना की। उनके द्वारा बताई गई योगक्रिया के अभ्यास से शारीरिक और आत्मिक उन्नति संभव है।

उन्होंने बताया की योग और स्वास साधन विधि से बिना किसी दवाई के शरीर को हाष्ट-पुष्ट और निरोग रखा जा सकता है। योग की महत्ता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है की इस क्रिया को सभी देश एक मत से स्वीकार कर चुके हैं। परिणाम स्वरूप आज समूचे विश्व में विश्व योग दिवस का आयोजन किया जाता है।

योग से देवत्व की प्राप्ति संभव

योग शब्द यूज धातु से बना है, जिसका मतलब होता है मेल, जोड़। योग द्वारा व्यक्ति अपनी अंतः वृतियों को साधकर परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। पतंजलि के अनुसार चित्तवृतियों के निरोध को ही योग कहा गया है।

योग के द्वारा शारीरक विकास से साथ-साथ मानसिक विकास होता है। पतंजलि ने बताया कि योग द्वारा भगबत प्राप्ति संभव है। इसके लिए पतंजलि ने आठ चरण यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि के बारे में शिक्षा दी है।

उनके अनुसार इन राहों पर चलकर व्यक्ति देवत्व को प्राप्त कर सकता है। इन सभी चरणों में उन्होंने समाधि को सबसे कठिन चरण माना है। जिस स्थिति में पहुंचकर व्यक्ति का मन शांत हो जाता है।

आत्मा और शरीर सभी नियंत्रण में आ जाते हैं और दिव्य अनुभूति का अनुभव होता है। इसके सक्रिय होने पर कुंडलिनी शक्ति को जगाया जा सकता है। कहते हैं की कुंडलिनी शक्ति जागृत होने पर शरीर निरोग होता है और व्यक्ति दैवी शक्ति प्राप्त कर लेता है।  

उन्होंने योगशास्त्र को मुख्य रूप से चार भाग ज्ञानयोग, कर्मयोग, राजयोग और हठयोग में बाँटा। इसे अपनाकर मन को शांत और ईश्वर के दर्शन संभव है।

योग के द्वारा असाधारण मानसिक शक्तियों संभव

कुछ सालों के बाद फिर से दुनियां में योग के विषय में बहुत प्रगति हुई  है। वैज्ञानिक अध्ययनों से भी सिद्ध हो चुका है कि योग के द्वारा शारीरिक और मानसिक व्याधि से छुटकारा पाया जा सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार योग द्वारा असाधारण मानसिक शक्तियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। असाधारण मानसिक शक्तियों प्राप्त कर जीवन में कोई भी लक्ष्य हासिल किया सकता है।

यहाँ तक की व्यक्ति लम्बे समय तक बिना भोजन और साँस लिए रह सकता है। दिमागी क्षमता को असमित रूप से विकसित किया जा सकता है।

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महर्षि पतंजलि द्वारा रचित ग्रन्थ

पतंजलि द्वारा योग के ऊपर प्रथम पुस्तक संभवतः 200-400 ईसा पूर्व लिखी गई। भारतीय दर्शन और योग को उजागर करने वाले पतंजलि के कई ग्रंथों की रचना की।

भारतीय साहित्य में महर्षि पतंजलि द्वारा लिखी गई 3 प्रमुख ग्रंथों की चर्चा होती है। जिसमें योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य तथा आयुर्वेद पर आधारित ग्रन्थ हैं। इस सब में योगसूत्र सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ मानी जाता है।

वर्तमान में इस ग्रंथ का translation विश्व के कई भाषाओं में किया जा चुका है। महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य के नाम से पाणिनी के अष्टाध्यायी पर अपनी टिप्पणी लिखी। इनके महाभाष्य का काल लगभग 200 ईपू का है।

उपसंहार

आजकल टीवी पर भी योग से सम्बन्धीत प्रोग्राम दिखाये जाते हैं। उनके फायदा के बारे में लोगों को बताया जा रह है। ताकी लोग केमिकल युक्त दवाई के अत्यधिक सेवन से बचे। बिना किसी मेडिसिन के उनके स्वास्थ्य उत्तम बना रहे।

आज योग को अपनाकर जनसाधारण लाभान्वित हो रहे हैं।पतंजलि के अनुसार योगासन के अभ्यास से मनुष्य का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहती है।

फलतः आदमी स्वस्थ्य लंबी आयु को प्राप्त करता है। बर्तमान में योग के प्रचार-प्रसार में बाबा रामदेव भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। जैसे आयुर्वेद के जनक चरक को कहा जाता है ठीक उसी तरह ही पतंजलि योग के सूत्रधार हैं।

योग किसी धर्म विशेष का नहीं बल्कि समस्त मानव मात्र के कल्याण के लिये है।आपको महर्षि पतंजलि का जीवन परिचय ( Maharshi patanjali ka jeevan parichay ) जरूर अच्छी लगी होगी, अपने सुझाव से अवगत जरूर करायें।

  1. प्रश्न – महर्षि पतंजलि का जन्म कब हुआ था?

    भारत के प्राचीन योगगुरु महर्षि पतंजलि का जन्म 250 ईसा पूर्व हुआ था। लेकिन कुछ विद्वान इनका जन्म चौथी शताब्दी ईसा पूर्व मानते हैं।

  2. प्रश्न – पतंजलि किसका अवतार है?

    प्राचीन योग ऋषि महर्षि पतंजलि को भगवान शेषनाग का अवतार माना जाता है। उन्हें व्याकरणाचार्य पाणिनी का शिष्य माना जाता है।

  3. प्रश्न – भारत के ऋषि मुनियों ने योग के कितने अंग बताए हैं?

    भारत के ऋषि मुनियों ने योग के कुल आठ अंग बताए हैं। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि

  4. प्रश्न – महर्षि पतंजलि की प्रसिद्ध रचना कौन सी है ?

    महर्षि पतंजलि की तीन प्रमुख रचना मानी जाती है। जिसमें योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेदिक ग्रन्थ हैं। इस सब रचना में योगसूत्र सबसे प्रसिद्ध मानी जाती है।

प्रश्न – योगसूत्र ग्रन्थ में कितने सूत्र हैं?

उत्तर – पतंजलि के योगसूत्र ग्रन्थ में 195 सूत्र हैं। पातंजलि का यह ग्रंथ चार अध्यायों में विभाजित है। जिसमें योग व ध्यान-क्रियाओं अनुपम संकलन किया गया है।

प्रश्न – पतंजलि द्वारा लिखित योग सूत्र की रचना कब हुई?

उत्तर – पतंजलि द्वारा लिखित योग सूत्र की रचना काल 200-400 ईस्वी पूर्व मानी जाती है।

प्रश्न – महर्षि पतंजलि का प्रसिद्ध ग्रंथ कौन सा है

उत्तर – योगशास्त्र के जनक महर्षि पतंजलि ने प्राचीन भारत में अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ में योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ सम्मिलित है।

प्रश्न – महर्षि पतंजलि की माता का क्या नाम था

उत्तर – महर्षि पतंजलि या को योगशस्त्र का पिता कहा जाता है। उनकी गिनती प्राचीन भारत के महान विद्वान में की जाती है।

यदपि उनकी माता के नाम के बारें में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है। लेकिन कहीं कहीं महर्षि पतंजलि की माता का नाम ‘गोणिका’ के नाम से उल्लेख मिलता है।

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