नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास – nalanda vishwavidyalaya history in hindi
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास( Nalanda Vishwavidyalaya) अत्यंत ही गौरवपूर्ण रहा है। भारत प्राचीन काल से शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र रहा है। कहते हैं की भारत यूं ही विश्व गुरु नहीं कहलाता था।
बिहार का नालंदा यूनिवर्सिटी को दुनियाँ का सबसे पहला विश्वविध्यालय माना जाता है। इस Nalanda Vishwavidyalaya में पूरी दुनियाँ से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे। जहाँ छात्रों को रहने खाने के साथ निः शुल्क शिक्षा की व्यवस्था थी।
प्राचीन काल में भारत के सबसे प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान में तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशीला विश्वविध्यालय का नाम आता है। लेकिन इतिहासकार के अनुसार नालंदा विश्वविध्यालय विश्व का सबसे पुराना विश्वविध्यालय है।
विद्वानों के अनुसार अगर बिहार स्थित भारत के इस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट नहीं किया जाता तो यह विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालय ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड (स्थापना – 1167), इटली की बोलोना ( स्थापना – 1088), काहिरा की अल अज़हर ( स्थापना – 972) से भी काफी वर्ष पुरानी होती।
लेकिन एक कट्टर सोच रखने वाले सुल्तान बख्तियार खिलजी ने 12 वीं शताब्दी में नालंदा यूनिवर्सिटी को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। हजारों छात्रों और बौद्ध अनुयायी को मौत के घाट उतार दिया गया। बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट करने के बाद इसके पुस्तकालय में आग लगा दि।
जिसमें कहा जाता है की भारतवर्ष की अनेकों साहित्य भी जल कर राख हो गई। इस लेख में नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, नालंदा यूनिवर्सिटी के संस्थापक कौन थे, बख्तियार खिलजी ने क्यों इस विश्वविद्यालय को khandar में तब्दील कर दिया। आईए विस्तार से जानते हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास इन हिंदी – Nalanda university history in hindi
Nalanda Vishwavidyalaya का इतिहास जानने के पहले हम जानते हैं की आखिर यह नालंदा विश्वविद्यालय, भारत के किस राज्य में था।
नालंदा विश्वविद्यालय कहाँ पर है – Nalanda vishwavidyalay kahan sthit hai
नालन्दा विश्वविध्यालय प्राचीन भारत में विश्व प्रसिद्ध शिक्षा का केंद्र रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय पटना से लगभग 90 कि.मी की दूर बिहार के नालंदा जिले में स्थति है। इस प्राचीन विश्वविध्यालय के अवशेष आज भी मौजूद हैं।
नालंदा विश्व विध्यालय के खंडहर को देखने देश विदेश से लोग बिहार के नालंदा आते हैं। जिसे देखने के बाद लोगों को भारत की गौरवशाली अतीत की याद ताजा हो जाती है।
नालंदा विश्वविद्यालय क्यों प्रसिद्ध है
नालंदा यूनिवर्सिटी को विश्व का प्राचीनतम विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है। यहाँ देश विदेश से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे। प्राचीन काल में यह विश्व विध्यालय शिक्षा का सबसे बड़ा हुआ करता था। जहाँ फ्री में ज्ञान प्रदान किया जाता था।
प्राचीन Nalanda Vishwavidyalaya का खंडहर सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत की गौरवपूर्ण अतीत की याद दिलाता है। यहाँ बौद्ध धर्म व दर्शन का अलाबा अन्य विषयों की भी पढ़ाई कराई जाती थी।
इस विश्वविद्यालय का 9 वीं शताब्दी से लेकर 12 वीं शताब्दी के दौरान अपने उत्कर्ष पर था। इस शिक्षा केंद्र की ख्याति दुनियाँ भर में फैली हुई थी। जहाँ निः शुल्क रहने, खाने और शिक्षा ग्रहण करने व्यवस्था उपलब्ध थी।
इस विश्व विधालय के खर्च का वहन राजा महारजाओं द्वारा दिए गए अनुदान से चलता था। कहते हैं की इस विश्वविधालय को 200 गाँव भी अनुदान में प्राप्त था जिससे भी अनुदान प्राप्त होता था।
दुनियाँ का पहला विश्व विध्यालय – nalanda vishwavidyalaya history
नालंदा विश्वविद्यालय दुनियाँ का पहला विश्व विध्यालय माना जाता है। जहाँ देश विदेश के विधार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। यह विश्व विध्यालय 8 वीं से 12वीं शताब्दी के बीच दुनियाँ भर के छात्रों के आकर्षण का केंद्र था।
यहॉं चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया आदि देशों से छात्र पढ़ने के लिए आते थे। कहते हैं की 12 साल तक चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस नालन्दा विश्वविध्यालय में शिक्षा ग्रहण की थी। इस बात का उल्लेख उनके यात्रा वृतांत में भी मिलता है। कहा जाता है 7 वीं सदी के दौरान अर्थात ह्वेनसांग के समय में इस विश्व विद्यालय के प्रमुख (कुलपति ) शीलभद्र थे। जो अपने समय के एक प्रसिद्ध आचार्य और विद्वान थे।
इस विश्वविद्यालय में छात्रों के अध्ययन के लिए सैकड़ों कक्ष और विशाल पुस्तकालय मौजूद था। तुर्क आक्रमणकारी ने इसे आग के हवाले भारतवर्ष के गौरवशाली इतिहास को मिटाना चाहा।
लेकिन उन्हें शायद पता नहीं था की इतिहास को कभी मिटाया नहीं जा सकता। इसके खंडहर में छात्रों के रहने का स्थल, स्तूप, मठ, मन्दिर आदि देखे जा सकते हैं।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के संस्थापक – nalanda university was built by
नालंदा विश्वविद्यालय बिहार राज्य के नालंदा जिले में है। प्राचीन काल में वर्तमान राजगीर के पास एक विशाल शिक्षा केंद्र की स्थापना की गई। यही विश्वविधालय कालांतर में नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से पूरी दुनियाँ में प्रसिद्ध हुआ।
इतिहासकार के अनुसार इस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5 वीं सदी के आसपास गुप्त बंश के द्वारा मानी जाती है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के संस्थापक गुप्त वंश के कुमारगुप्त प्रथम को माना जाता है।
नालंदा विश्व विध्यालय की बनावट और संरचना
नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा एरिया एक मोटी विशाल चार-दीवारी से घिरा हुआ था। इस नालंदा यूनिवर्सिटी में प्रवेश करने के लिए एक मुख्य द्वार था। साथ ही विश्व विद्यालय परिसर में मठों की कतार थी जिसके सामने अनेक सुंदर स्तूप और मंदिर का निर्माण किया गया था।
इस विश्वविद्यालय के परिसर के मंदिरों में भगवान बुद्ध की सुंदर कलात्मक मूर्तियां भी स्थापित थीं। इस मूर्तियाँ और दीवारों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। इस प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर और अवशेष देखने से कई अहम बातों का पता चलता है।
इसके खंडहर को देखने से साफ प्रतीत होते है की प्राचीन काल में यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला की दृष्टि से बहुत ही अनुपम होगा। कहा जाता है इस विश्व विध्यालय में करीव 300 कमरे और 7 बड़े हॉल मौजूद थे।
साथ ही विधार्थी के अध्ययन के लिए यहाँ 9 मंजिल एक बृहद पुस्तकालय मौजूद था। कहा जाता है की बख्तियार खिलजी द्वारा एक पुस्तकालय में आग लगाने से पहले इसमें तीन लाख से ज्यादा प्राचीन पांडुलिपि और पुस्तक रखी हुई थी।
अत्यंत शक्त थी विश्वविद्यालय में नामांकन की प्रक्रिया
इस विश्व विद्यालय में छात्रों को नामांकन के लिए कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता था। जो इस विश्वविध्यालय में नामांकन के मानदंड को पूरा करता था। सिर्फ उन्ही छात्रों का इस विश्वविध्यालय में नामांकन हो पता था।
यह विश्व विद्यालय पूरी तरह से आवासीय था। जहाँ 10000 से ज्यादा छात्रों का एक साथ अध्ययन करने की व्यवस्था थी। कहते हैं की इस विश्वविश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए लगभग 2000 अध्यापक भी मौजूद थे।
बख्तियार खिलजी का आक्रमण – Nalanda Vishwavidyalaya Hindi
बख्तियार खिलजी द्वारा इस विश्वविद्यालय पर आक्रमण और इसे ध्वस्त करने की बात जानने से पहले हम बख्तियार खिलजी के बारें में थोड़ा जानते हैं।
बख्तियार खिलजी कौन था?
बख्तियार खिलजी का पूरा नाम इख्तियार अल-दीन मुहम्मद बख्तियार खिलजी था। जो एक तुर्क लड़ाका और कुतुबुद्दीन ऐबक का सेनापति था। जिन्होंने बंगाल और बिहार सहित पूर्वी भारतीय प्रदेशों में मुस्लिम विजय की अगुआई की।
आगे चलकर वे खुद को ही शासक के रूप में स्थापित किया। इन्होंने ही भारत के प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र नालंदा और विक्रमशीला विश्वविद्यालय को नष्ट किया।
बौद्ध भिक्षुओं की सामूहिक हत्या कर बौद्ध संस्थानों को गंभीर नुकसान पहुंचाया। बाद में उन्होंने तिब्बत और चीन तक अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहा। लेकिन 1206 में उनकी मृत्यु हो गई।
नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया – who destroyed nalanda university
12 वीं शतवादी के करीब 1199 ईस्वी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस इलाके पर अपनी सेना के साथ चढ़ाई कर दी। उन्हों अपने सैन्य बल से इस विश्वविध्यालय को पूरी तरह नष्ट कर किया।
साथ ही उस दुराचारी ने अनेकों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया। वह इतना ही पर नहीं रुका, उन्होंने नालंदा विश्व-विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में आग(fire) के हवाले कर दिया।
इस पुस्तकालय में रखी किताबों की संख्या का सिर्फ अनुमान मात्र लगाया जा सकता हैं, जो लगातार तीन महीने तक जलती रही थी। उन्होंने भारत के ज्ञान और गौरवपूर्ण इतिहास को मिटाने की भरपूर कोशिस की।
लेकिन इतिहास को नहीं मिटा पाए, आज भी nalanda ka khandar भारत के गौरव पूर्ण इतिहास और बख्तियार खिलजी के बर्बरता का साक्षी है। अब सवाल उठता है की आखिर उसने इस विश्व विध्यालय को क्यों नष्ट कर आग के हवाले कर दिया।
आखिर बख्तियार खिलजी ने क्यों नालंदा यूनिवर्सिटी को नष्ट कर दिया था?
हमने जाना की सनकी तुर्की बादशाह बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर कर दिया। इसकी पुस्तकालय में आग लगवा दि । जहाँ इतनी पुस्तकें थी की कहते हैं की लगातार तीन महीने तक यहां की किताबें जलती रही थी।
उन्होंने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु का जान से मार डाला। इसके पीछे इतिहास जो वजह मानते हैं वह यह है की एक बार की बात है बख्तियार खिलजी बहुत तेज ज्यादा बीमार पड़ गया था।
काफी उपचार के बाद भी वह ठीक नहीं हो पा रहा था। उन्होंने अनेकों हकीमों द्वारा उपचार करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसी दौरान उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के ख्याति के बारें में पता चला।
इन्हें इस विश्वविधालय के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से चिकित्सा कराने की सलाह दि गई। उन्होंने आचार्य राहुल को इलाज के लिए अपने पास बुलाया।
लेकिन खिलजी ने आचार्य के पास एक शर्त रख दि की वे उनके द्वारा दि गई कोई भी आयुर्वेदिक दवा का सेवन नहीं करेंगे। लेकिन फिर भी उन्हें ठीक भी करना पड़ेगा। और अगर वे ठीक नहीं कर पाए तो उन्हें मौत के घाट उतार दिया जायेगा।
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- भारत के प्राचीन विक्रमशीला विश्वविध्यालय के शहर भागलपुर का इतिहास
- बिहार के 11 पर्यटन स्थल की जानकारी
कहा जाता है की आचार्य के पास एक बहुत बड़ी चुनौती थी। लेकिन उन्होंने इसका भी हल निकाल लिया। वे कुछ दिन के बाद खिलजी के पास पहुंचा और उन्हें एक कुरान भेंट की।
उन्हें कहा गया की आप एक पवित्र कुरान कि आयात संख्या इतने से इतने तक रोज कुछ दिन तक पाठ करें ठीक हो जाएंगे। खिलजी ने ठीक वैसा ही किया और कुछ दिनों में ठीक हो भी गया।
खिलजी के ठीक होने के जो वजह यह कही जाती है आचार्य जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों पर एक विशेष प्रकार की दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था। खिलजी द्वारा कुरान के पाठ के दौरन पन्ने पलटने के कर्म वे अपने उंगुली को गिला करने के लिए बार-बार मुहँ में लेना पड़ता था।
इसी क्रम में कुरान में लगी दवा का अंश उनके शरीर में चला गया और वह ठीक हो गया। लेकिन खुश होने के वजाय उसने इस एहसान का बदला नालंदा विश्व विद्यालय को नष्ट आकर और उसके पुस्तकालय में आग लगाकर दिया।
कहते हैं की ठीक होने पर उन्हें खुशी नहीं हुई बल्कि उन्हें बहुत गुस्सा आया था। उन्हें अपने हकीमों से बढ़कर इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ होना हजम नहीं हो रहा था। उन्होंने भारत के इस प्राचीन ज्ञान को मिटाने के बात सोच ली।
इसी कारण से उन्होंने बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के वजाय 1199 पर नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला कर दिया। उन्होंने इस विश्वविध्यालय को ध्वस्त कर लाइब्रेरी में आग लगवा दी।
कहा जाता है वहां इतनी पुस्तकेंं थीं कि आग में 03 महीनों तक पुस्तकेंं जलती रहीं। साथ ही उन्होंने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु को जान से मार डाला। नालंदा विश्वविद्यालय का उत्खनन के बाद इसके कई और भी रोचक जानकारी का पता चला।
आपको नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास (Nalanda Vishwavidyalaya history in Hindi) जरूर अच्छी लगी होगी, अपने बहुमूल्य सुझाव से अवगत कराएं।
नालंदा विश्वविद्यालय कब और किसने बनवाया?
नालंदा विश्व विद्यालय को को गुप्त बंश के कुमार गुप्त ने 5 वीं शतवादी के दौरान बनवाया था।
नालंदा विश्वविद्यालय को कब जलाया गया?
बख्तियार खिलजी ने सं 1199 ईस्वी में नालंदा विश्व विद्यालय में आग लगवा दी थी। उनका पूरा नाम इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी था। जो तुर्क का रहने वाला था।
बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों नष्ट कर दिया था?
उन्हें भारत का आयुर्वेद का ज्ञान अपने हकीमों के ज्ञान के ऊपर भारी पड़ता नजर आया। इस बात को वह हरगिज बर्दास्त नहीं कर सकता था। फलतः उन्होंने भारतीय आयुर्वेद के ज्ञान को मिटाने के उद्देश्य से नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। क्योंकि यहाँ की पुस्तकालय में भारत के ज्ञान विज्ञान की 3 लाख से ज्यादा किताबें और पांडुलिपियाँ मौजूद थी।
नालंदा विश्वविद्यालय के विषय में आप क्या जानते हैं?
नालंदा विश्व विद्यालय को दुनियाँ की सबसे प्राचीन विश्व विद्यालय मानी जाती है। भारत के ज्ञान विज्ञान से खफा होकर एक सनकी सुल्तान बख्तियार खिलजी ने इसे 1199 में नष्ट कर आग लगा दि।
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