येल्लप्रगड सुब्बाराव (Yellapragada Subbarow ) भारत के महान चिकित्सा विज्ञानी थे। उन्हें चिकित्सा विज्ञान में कई अहम योगदान के लिए हमेशा याद किए जाते हैं। येल्लप्रगड सुब्बाराव को the miracle man of medicine भी कहा जाता है।
उन्होंने टेट्रासाइक्लिन और फाइलेरिया रोग की दवा की खोज की। इसके साथ ही उन्होंने शरीर के तरल पदार्थो तथा उत्तको में से फॉस्फोरस की मात्रा आंकलन की विधि और वैज्ञानिक साइरस फिस्के के साथ मिलकर (ए.टी.पी.) की खोज की।
उन्होंने मानव शरीर में उत्पन्न होने वाली कई जटिल विमारीयों पर शोध किया। उनके अनुसंधान के फलस्वरूप कैंसर जैसी विमारी को समझने और उनके निदान में महत्वपूर्ण सहयोग मिला। चिकित्सा विज्ञान के कई अद्भुत औषधि की खोज के कारण उन्हें wizard of wonder drugs के नाम से भी जाना जाता है।
भारतीय वैज्ञानिक येल्लप्रगड सुब्बाराव ने जीवन का अधिकांश समय अमेरिका में बिताया। लेकिन कहते हैं की अमेरिकी नागरिकता के पेशकश के बावजूद भी उन्होंने अमेरिका में ग्रीन कार्ड नहीं लिया।
अर्थात वे लंबे समय तक अमेरिका में रहने के बावजूद वहाँ की नागरिकता ग्रहण नहीं की। उनका खोज किसी नॉवेल पुरस्कार विजेता विज्ञानी से कम नहीं था। लेकिन वे हमेशा सोहरत से परहेज करते हुए अपने कम में लगे रहे।
येल्लप्रगड सुब्बाराव की जीवनी – Yellapragada Subbarow Biography in Hindi
येल्लप्रगड सुब्बाराव का जन्म ब्रिटिश भारत में 12 जनवरी 1895 को मद्रास प्रेसिडेन्सी के भीमवरम (आन्ध्र प्रदेश) में हुआ था। जब येल्लप्रगड सुब्बाराव बच्चे थे तभी उनके पिता इस दुनियाँ से चल बसे।
पिता के निधन के बाद उनकी पढ़ाई में कई दिक्कत का सामना करना पड़ा। लेकिन इनकी माता जी ने अपने जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। उनके पढ़ाई के ऊपर कोई व्ययवधान नहीं होने आने दिया।
एक तेलुगु नियोगी ब्राह्मण परिवार में जन्मे सुब्बाराव अत्यंत ही विनम्र प्रकृति के थे। कहते हैं की बचपन में एक बार उन्होंने घर छोड़कर सन्यासी बनने का निर्णय कर लिया था। वे राम कृष्ण मिशन में जाना चाहते थे।
लेकिन माँ के आग्रह पर उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। येल्लप्रगड सुब्बाराव ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित कर दिया। उनका गणित के प्रति गहरी रुचि पैदा हो गई। लेकिन बाद में उन्होंने साइंस की तरफ अपना रुख कर लिया।
वे चिकित्सा विज्ञान(medical research) में अपना कैरियर बनाकर मानव सेवा करना चाहते थे। इन्होने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज से इंटरमिडीएट की परीक्षा पास करने के बाद मद्रास मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। यहाँ पर उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।
लेकिन एक सज्जन कस्तूरी सूर्यनारायण मूर्ति ने उनके खर्चे के सारा जिम्मा उठाया। बाद में सुब्बराव की शादी उन्ही के बेटी के साथ हुई। सन 1923 ईस्वी में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गये।
भारत की चिकित्सा डिग्री को संयुक्त राज्य अमेरिका में मान्यता नहीं की गई थी। इस कारण उन्होंने कुछ दिनों तक बोस्टन के एक अस्पताल में नाइट पोर्टर के रूप में काम किया। बाद में उन्हें हार्वर्ड स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में प्रवेश मिल गया।
येलप्रगादा सुब्बराव का योगदान – Y Subbarow in Hindi
हार्वर्ड मेडिकल कालेज से डिप्लोमा हासिल करने के बाद वे वहीं हार्वर्ड में ही अपने अनुसंधान में लग गये। यहाँ पर अनुसंधान करते हुए उन्होंने वैज्ञानिक साइरस फिस्के के साथ मिलकर (ए.टी.पी.) की खोज की।
इसके साथ ही उन्होंने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के बायोकेमिस्ट्री विभाग में कार्य करते हुए शरीर के तरल पदार्थो एवं उत्तको में फॉस्फोरस की मात्रा का आंकलन करने की विधि भी विकसित की। इसके लिए उन्होंने एक बिशेष प्रकार का यंत्र का निर्माण किया।
सन 1940 में लेडलेर प्रयोगशालाओं में काम करने लगे। यहाँ इन्होंने फोलिक एसिड के संश्लेषण के लिए टेट्रासाइक्लिन की खोज की। साथ ही उन्होंने स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक और एंटीकैंसर ड्रग दवा की भी खोज की।
डॉ. सुब्बाराव ने संग्रहणी रोग के इलाज के लिए फोलिक एसिड प्रयोग किया। उन्होंने फायलेरिया की दवा का भी आविष्कार किया। टेट्रासाइकलिन एन्टिबायटिक भी इन्हीं महान विज्ञानी की देन है।
उन्होंने अपने समस्त जीवन को रोगों से लड़ने वाली औषधियों के आविष्कार में लगा दिया। चिकित्सा विज्ञान में अपने कई अनुसंधान के माध्यम से मानवसेवा को ही उन्होंने अपना धर्म मान लिया।
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डॉ. सुब्बाराव का निधन
अपने जीवन 53 वर्ष उन्होंने चिकित्सा विज्ञान के लिए की समर्पित कर दिया। विज्ञान की सेवा करते हुए येलप्रगादा सुब्बराव का निधन 8 अगस्त 1948 में न्यूयार्क में हो गया।
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